कानन, रघुनंदन, पनघट, काजल, रक्षाबंधन
1 कानन
गिरि कानन सरिता पवन, ठंडक बहे बयार।
मौसम की अठखेलियाँ, भर देती हैं प्यार।।
2 रघुनंदन
रघुनंदन हिय में बसें, निर्मल रहे स्वभाव।
लोभ-मोह के भँवर से, मुक्त चलेगी नाव।।
3 पनघट
पनघट प्यासा रह गया, सरिता रही उदास।
घट जल से वंचित रहा, बुझी न मन की प्यास।।
4 काजल
काजल आँजा आँख में, लगा डिठौना माथ।
आँचल की छाया मिली, माँ की ममता साथ।।
5 रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व यह, भ्रातृ-बहन का प्यार ।
संकट की हर घड़ी में, चलने को तैयार।।
रक्षाबंधन पर्व में , वचनों की सौगात।
नेह प्रेम की डोर में, जीने की है बात ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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