कभी कभी कुछ दिल से भी लिख लेना चाहिए।
मैं अब सिर्फ़ मैं ही रह गया हूँ ,एक विरान खंडहर था जो ढह गया हूँ। तलाशता हूँ खुद में छिपे मकड़ी के जालों को, मुझ मैं दिन बीता चुके कई अनगिनत सालों को । खेलते थे जो मुझमें वीराने अब वो भी नाराज है, कल के रोशनदान पर भी कालिख छाइ आज है। मेहफिले सजती थी पहले मुझमें पर अब तो वक्त गुजरता है, मेहफूज ठिकाना ना मिले तब हर कोई खंडहर में ही ठहरता है।
-Sunil Singh Chauhan