चाय स्फूर्तिवर्धक पेयों में से एक है। चाय का नाम सुनते ही मुंह में चाय के
स्वाद की अनोखी अनुभूति होती है।
सुबह हुआ कि मेरा किचन में चाय बनाना शुरु हो जाता है। चाहे चार बज रहें हों या पांच । कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुझे सुबह सुबह तो चाय की तलब महसूस होती है और मेरा अब चाय तैयार हो गया है।
अब मैं लौंग की चाय पीने को बेताब हो रही हूं।
गर्मागर्म चाय की प्याली और सुबह का सुहाना मौसम । तो चाय का आनंद दुगुना हो जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है।
अब मैं धीरे-धीरे चाय की घूंट भर रही हूं और घूंट में दुनिया भर के विचारों को सोच रही हूं। पता भी नहीं चला कि कब चाय खत्म हो गई और प्याली मेरे हाथ में है। हमें लगा कि और चाय होगी लेकिन एक बूंद भी चाय नहीं बची थी। फिर मुझे दूसरे कप चाय पीने की इच्छा हुई।
मैंने सोचा कि प्राकृतिक छटा अरुणिम भोर का आनंद ले लूं और पक्षियों को गगन में विचरण करते हुए देखती रही। आज सबसे पहले मुझे कौआ दिखाई दिया। काफी समय के पश्चात् हमने कौए के झुंड को देखा। समझ गई कि जरुर कोई जीव मर गया है। बिना कोई पसंदीदा आहार के कौवे दिखाई नहीं देता है।
फिर कबूतर और कोयल
की आवाज सुनाई दी।
मुझे लगा कि अब आम आ गया है तो आम्र वृक्ष पर कोयल कुहू कुहू कर रही है और मैं खुश हो गई।
दुबारा चाय पीने की इच्छा लिए किचन में आ गई।
और अब मेरे हाथ में दूसरी चाय की प्याली थी।
इस बार अदरख की चाय बनाई मैंने।
अदरख की चाय के साथ मन में पुरानी यादों को साझा किया जो हमने मां पिताजी के साथ बिताए थे।
मेरा मन बहुत-बहुत प्रसन्न हो गया। चाय की स्मृति मां पिताजी के साथ मेरी बहुतेरी है।
उन यादों में खो गई।
बचपने के सपने में
डूब गयी।
पापा के गुड़ की चाय की मिठास के साथ।
-Anita Sinha