दिल की तख्ती से हमको भुला ही दिया।
नाम लिख कर मिटाने से क्या फायदा।।
गैर के कदमों में दिल बिछा ही दिया।
फिर मेरे दर पे आने से क्या फायदा।।
शबनमी शामें थीं रातें रंगीन थीं।
खुशबुएं भी बहारों की नमकीन थीं।।
एक इबादत में सिर को झुका ही दिया।
घंटियाँ फिर बजाने से क्या फायदा ।।
तुमको दौलत मिली चन्द खुशियां मिली।
हमको उजड़ा चमन और हंसिया मिली।।
आशियाना बनाकर मिटा ही दिया।।
बस्तियाँ फिर बसाने से क्या फायदा।।
रेत पर नाम लिखकर मिटाते रहे।
हम उसी रेत पर घर बनाते रहे।।
ख़ाक कर दामने दिल जला ही दिया।
ख़ाक बस्ती में आने से क्या फायदा।।
-Sanjay Singh