मुलाकात बसंती आमा से
धुंए के छल्ले उड़ाती हुई आमा,
निश्छल हंसी बिखराती हुई आमा,
हर कश के साथ लेती है विराम वह,
छेड़ती हैं बातें, दुनिया की तमाम वह,
कहते हैं बूढ़ी हैं पिछले तीस साल से,
रहती है अपनी दोनों बकरी के साथ वे,
गांव के हर घर आंगन की जान हैं,
हर गली रास्ते से उनकी पहचान हैं,
बिटिया उनकी जा बसी विदेश है,
बातें उसकी स्मृतियों में शेष है,
तस्वीर लेने पर खुश होती है आमा,
देखेगी बिटिया, सोचती है आमा,
सुलगाती है बीड़ी
फिर से वह ध्यान से,
देती हैं दुआएं
मन और प्राण से,
ये लोग हैं जीवंत विरासत हमारी,
इनसे जीवित है सभ्यता हमारी,
हिल मिल कर रहने की,
संग साथ चलने की,
जीवन के हर पल को
खुल कर के जीने की,
ना कोई ग़म है, ना ही कमी है,
बेफिक्री इनके जीवन की पूंजी है।