नहीं हूँ
नहीं हूँ। हाँ! नहीं हूँ।
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ किरदार बदल जाते हैं
मन्सूबे यूँ ही फिसल जाते हैं
असली चेहरा देखती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ इंसान की कद्र नहीं होती
दूसरे की हँसी से जलन नहीं सोती
शालीनता पाती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ मीठे बोल ज़हर घुले आते हैं
रंजिश भरे ताने-तीर चले आते हैं
गहराई ढूँढ पाती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ पर मिट्टी सोना नहीं होती
फसल होती है बारिश नहीं होती
बातों में स्वाद पाती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ कोई दुश्मन नहीं होते हैं...
बस दोस्त ही घात लगाए होते हैं
मुफ़्त भरोसा दे पाती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
जहाँ पीठ पर घाव उकेरे गए हैं
भारी शाम ख़ाली सवेरे गए हैं
चोट पे मरहम पाती जहाँ नहीं हूँ
मैं अब वहाँ नहीं हूँ...
मैं अब वहाँ नहीं हूँ।
- रचना कुलश्रेष्ठ
2 नवम्बर 2020