अरे..
देखा नही तुमने
मैंने लिखने का सिलसिला ही खत्म कर दिया,
जैसे उड़ते परिंदे को जमी पर ला दिया,
जैसे बहती दरिया को उल्टा बहा दिया,
और जैसे गरजते बादल को बारिश बना दिया,
जैसे बहती नदी की सूखा कर दिया,
जैसे कोयल की धुन को काक बना दिया ,
जैसे चाँद रात के बदले, दिन में उगा दिया,
जैसे कुसुम से खुशबू हटा दिया,
जैसे सजे आँखों से काजल बहा दिया
अरे अब भी नही समझी तुम,
चलो छोड़ो बस इतना ही समझो कि..
मैंने लिखने का सिलसिला ही खत्म कर दिया