My Romantic Poem...!!!
यारों अजीब हकीम है____
वह मासूम महबूब मेरा 🙊
इश्क करे ना करे इन्तज़ार
वह मेरा बेहिसाब करता है..!!
अजीब मर्ज़ है यह इश्क़ भी....
ख़ुद की फ़िक्र चाहे हो ना हो
अपने हसीन महबूब की फ़िक्र
बंदा वह सुबह-शाम़ करता है..!!
अजीब दस्तूर है इस जहाँ का भी...
बस रस्मों की इज़्ज़त के नाम
इश्क़ के मरीज़ों पर हर दौर में
सितम बे-सूमार करता है..!!
अजीब हौसले होते है इश्क़ के....
मरीज़ों के भी हर दौर में
मरते मर जाते है पर इश्क़ की
बुलंदीको रुसवा नहीं होने देते हैं..!!
अजीब खेल है इश्क़ का भी....
जाति-धर्म-उच-नीच की हर दिवारें
चाहने वाले अपने पैरों के तले ही
बेड़ी जुर्म की हर रौंद देते है..!!
अजीब जुनून है इश्क़ का भी...
यारों इन्सान तो इन्सान इस ने
कृष्णा-ओ-गोपीयों तक को भी...
इश्क़ की चादर में लपेटा है..!!
अजीब इम्तिहान है इश्क़ का भी...
है कौनसा संत जो न हो गिरफ़्त में
हर दौर के संतों ने भी मज़ा इश्क़
का प्रभुजी के प्रेम में चखा है..!!
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