My Touching Poem...!!!
यारों मूठीं में रेत लिए है फिरता इन्सान
लगता है ज़िन्दा लाशें गिनता है इन्सान
साँसों की कच्ची दौर फ़िरोता है इन्सान
हर शब मर के सुबह ज़िंदा होता इन्सान
जहाँ से जातें मुर्दों को गिनता है इन्सान
अजीब ख़ौफ़ की चादर ओढ़े है इन्सान
पल पल तिल तिल काँपता भी है इन्सान
दौलत की दौड़ से थका-हारा है इन्सान
अपने ही आशियानों में क़ैद-सा है इन्सान
जहाँ की अझीँमतरीन हुक़ूमतों की आन
बान-ओ-शान तक भी आज है निलाम
दहलीज़ पर दहशतगर्दी पालें है इन्सान
भूखे प्यासे तवंगर निर्धार हाल है इन्सान
या रब मुश्किलें दूर कर बेबस हैं इन्सान
प्रभु आख़री आशा तूम ही जानें है इन्सान
✍️🥀🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🥀✍️