# कविता **
# विषय .गरीबी "
जिदंगी तुझें ,कैसे सजाऊँ मैं ।
मैं तो एक गरीब आदमी ,कैसे पार पाऊँ मैं ।।
तू तो महलों की ,आस लगायें ।
झौपड़ी छोड़ कर ,महल कैसे पाऊँ मैं ।।
तन ढ़कने को ,कपडे नहीं है ।
सुदंर वैभव कहाँ ,से पाऊँ मैं ।।
एक वक्त की रोटी ,मुश्किल से मिलती है ।
तुझें छप्पन भोग ,कहाँ से खिलाऊँ मैं ।।
पढ़ाई मेरे लिए ,दीवास्वप्न सा है ।
अच्छी पढ़ाई से ,तुझें कैसे सजाऊँ मैं ।।
मैं तो गरीब आदमी ठहरा ,गरीबी में ही पला बड़ा हूँ ।
एक एक पैसे को ,सदा तरसता रहता हूँ ।।
लाखों रुपये के ,ऐशोआराम कहाँ से जुटाऊँ मैं ।
लोग मेरी हंसी उडाते ,कब तक सहन कर पाऊँ मैं ।।
गरीबी मुझे ,अभिशाप में मिली है ।
उसे कैसे कर ,अपना पीछा छुडाऊँ मैं ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।