ख़ुशी
आज खुश बहुत था शंकर
तिनका-तिनका जोड़ कर
देह को दिन रात निचोड़ कर
एक सपना आखिर
साकार जो कर पाया था,
कजरी के आंखों में खुशी
अपार देख पाया था
बरसों से बारिश में
टपकता मकान
आज नया छप्पर
जो देख पाया था,
आज खुश बहुत था शंकर...
आज इस घर मे
महीनों बाद
खीर बनाई गयी थी
दोस्तो को संग बिठा कर
ताड़ी पिलाई गई थी
उसके घर की छत का
इस साल टपकना
जो बंद हो जाने वाला था
बारिश के मौसम में
ठंडी फ़ुहारों का डर छोड़
चद्दर तान सो जाने वाला था
आज खुश बहुत था शंकर....
कजरी नई साड़ी में
आज भी कितनी दमकती है
ताड़ी के नशे मैं
रात भी कितनी बहकती है
बारिश गर्मी को धो रही है
कजरी का रूप
कितना भा रहा है
चांद भी बादलों में
छुपा जा रहा है
आज खुश बहुत था शंकर
आज बरस रहें है बादल
गरज-गरज कर
गरजने वाले भी बरस रहे है
मचल-मचल कर
बारिश का पानी
गजब ढहा रहा है
इतना बरस रहा है
घर मे आ रहा है
चूल्हा, खाट, बिस्तर
सब कुछ भीगता जा रहा है
घर में घुसता पानी
घर को लीलता जा रहा है,
छप्पर तो हां नही चुचा रहा है,
पानी तो फिर भी सता रहा है।
पानी में बहकर चूल्हा भी
चला जा रहा है,
शंकर की खुशियों को
उड़ा रहा है।
कजरी शंकर की खुशियां
काफूर हो गयी है
थोड़ी ही थी अब तक जो खुशियां
जो और भी दूर हो गयी
फिर से दुखी है शंकर....
प्रताप सिंह
वसुंधरा, गाज़ियाबाद, उ०प्र०
9899280763