यादों से मिटाकर तुझे दिल में बिठाया था
बंज़र जमीं को जैसे जल का दान किया था !
वैसे तो बड़ी शिद्दत से भरी बाजार में घूमते थे आप
नजाने जमीं से ऊपर चलने का खेल किसने सिखाया था ?
लग रहा है चाहत हमारी कमजोर सी हो गयी थी
वरना इतने गुनाहो की चद्दर ओढ़के क्यों फिरता था ?
खामोशी हमारी आपके समज के परे थी ज़नाब
इसीलिए बेरहमी से हमारी ज़िन्दगी को छेड़ रहा था !
_anjali✍️