गुज़रे हाल मस्त कोई, गुज़रे क्या कोई
इश्क ए मिजा़ज से कोई , गुज़रे क्या कोई
इल्म क्या ढुंढते है, मरिजे़ गम मय़खाने मैं
दिलकश़ मिजाज़ से ,कोई गुज़रे क्या कोई
दर्द क्या लजिज़ होता है , ज़ख़म देने वाले
कहर के मिजाज़ से , कोई गुज़रे क्या कोई
बेखुदी में मस्त , बेखबर परवाना मस्त है
शम्मा के मिजाज़ से , कोई गुज़रे क्या कोई
रुखसत हो जायेगी जिंदगी, कुचे से कब्र
मौत के मिजाज़ से , कोई गुज़रे क्या कोई