जीने की आरज़ू है, दिल को जूस्तजू़ भी है
वजूद मिटाकर , ईस तरह जिया नहि जाता
शौक से पाला, परिन्दा ए हुश्न दिल जिंदगी
कुतर कर पंख, ईस तरह जिया नहि जाता
मासूम है नजाक़त लीए, होनहार दिल यहाँ
ज़ख्मो का कहर, ईस तरह जिया नहि जाता
खोज़ रहा हु तन्हाई में, ईश्क दिल बिरहाना
भीगी पलकों में सपना, ऐसै जिया नहि जाता
दावत दी है घायल़ को , शिकारी ने बाखु़बी
हन्नर हकीकत में, ईस तरह जिया नहि जाता