कल चौदहवीं की रात थी रात भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा।
हम भी वहीं मौजूद थे हमसे भी सब पूछा क्या?
हम हंस दिए हम चुप रहे मंजूर था पर्दा तेरा।
इस शहर में किस से मिले ? हमसे तो छूटी महफिलें
हर शख्स तेरा नाम ले , हर शख्स दीवाना तेरा
कूचे को तेरे छोड़कर , जोगी ही बन जाए मगर
जंगल तेरे पर्बत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरे।।