क्यूँ निगाहें निगाहों को शिक़वे सुनाए
मुर्दा अफ़सुर्दा लफ़्ज़ों की मानी जगाये
जो है खुद से शिकायत क्यूँ तुझको बताये
क्यों हम यादों के रंगों से ख्वाबों को सजाये
ये कैसी बात बढ़ रही है तेरे मेरे दरमियान
ये कैसी बात जग रही है तेरे मेरे दरमियान
क्यूँ सुबह खिल रही है तेरे मेरे दरमियान
क्यूँ शाम ढल रही है तेरे मेरे दरमियान