पिंजरा
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मेरा मन,
पिंजरे का पंछी,
भावों की उड़ान भरे,,
कभी गगन में उड़ाना चाहे,,
कभी समुन्द्र के पार यह चले,
मेरा मन,
पिंजरे का पंछी,
भावों की उड़ान भरे,
कभी रेत के महल बनाये,
कभी पेड़ पर बसेरा यह करें,
मेरा मन,
पिंजरे का पंछी,
भावों की उड़ान भरे,
कभी कागज की नाव बनाये,
कभी लहरों के यह साथ बहे।।।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित