भारत माता फिर हरषायी......
भारत माता फिर हरषायी,
घाटी में रौनक है छायी।
सात दशक के बाद है देखो,
केसर की क्यारी मुसकायी।।
बाग बगीचे और हरियाली,
फल फूलों की बगिया न्यारी ।
नाव शिकारे घर झीलों को ,
देख देख दुनियां भरमायी।।
हिमगिरि की मुस्कानें प्यारी,
देवदार की हंसी निराली।
गाल सेव से हुये गुलाबी,
आंखें तो खुद ही शरमायीं।।
स्वर्ग हमारा काश्मीर है,
नरक बनाके रखा हुआ था।
अस्थायी धारा को फेंका ,
महबूबा जी क्यों कुम्हलायीं।।
नापाकी कुछ सांप पले थे,
बार बार फुफकार रहे थे।
जहर दांत के टूट चुके हैं,
राजनीति है क्यों भरमायी।।
दो विधान औ दो निशान की,
थ्योरी को जग में झुठलायी।
पाकिस्तान को धता बताकर,
मोदी जी ने दी रुसवायी।।
नामुमकिन को मुमकिन करके,
राजनीति की नींद उड़ायी।
नापाकी मंसूबों के घर,
बजरंगी बन आग लगायी।।
राष्ट्र गान गूंजा घाटी में,
तीन रंग ने खुशियाँ पायीं ।
जनगण मन में आस जगी फिर,
वंदेमातरम् नें धुन गायी ।।
मनोज कुमार शुक्ल "मनोज "