वो हरकतो से अपनी कहाँ बाज़ आता है।
कलतक रोटी के लिए मोहताज था, आज कैसे रंग दिखाता है।
उस जमीं पर हक तेरा कहाँ?,
जिसपर तु अपना अधिकार बताता है।
वो जिंदगी से नाफरमानी कर बैठे।
रोटी के लिए अपनी जान गवा बैठे।
गुलिस्तान को अपनाने के ख्वाईश में खून की नदियाँ बहा बैठे।
अरसो बीत गये,
अब कही राहत मिली है।
इस भारतवर्ष में कश्मीर की कली खिली है।