प्यार बहुत पास ले आता है
इतना पास कि
पूछ लेने की इच्छा होती है
कैसे हो?
कहीं से उत्तर आता है
बहुत अच्छे
कहीं से कोई उत्तर नहीं आता
मैं समझ जाता हूँ
बहुत अच्छे में रहस्य छुपा है।
बात करने को मन होता है तो
पहले की तरह बेबाक तो नहीं हो सकता ,
घुमाफिरा कर पूछता हूँ
मौसम कैसा है?
गरमी कितनी है?
प्रदूषण कितना रहता है?
भीड़ तो बहुत बढ़ गयी होगी पहले से,
फल-फूलों की कमी तो नहीं है
वहाँ?
वे पूछते हैं, समय कैस कटता है आजकल?
मैं कहता हूँ
ऐसी -ऐसी गलतियां हो जाती हैं,
जिन्हें ठीक करने में ही तीन-चार दिन लग जाते हैं,
फिर देश की बातें,प्रदेश की बातें,
शहर और गांव की बातें तो हैं ही,
प्यार-मुहब्बत, घूमना-फिरना भी हैं ही,
कुछ दर्द में ,कुछ रोगों की टहनियों में,
कभी-कभी हँसी भी मुहर लगा जाती है,
जो समय नहीं कटता उसे ईश्वर के हिस्से डाल देता हूँ।
**महेश रौतेला