हम सब तमाशा देख रहे थे,
दूर खड़े,
वो मासूम रस्सी पर चल रही थी,
वो करतब दिखा रही थी,
और हम तमाशबीन,
पर सच जो मैंने देखा वो अलग था,
क्या वो सही था या गलत था?
पर मै खुद को तलाश रहा था,
आखिर मै भी तो वही कर रहा था,
करतब और रस्सी पर गुलाटियां,
पर उसमें दर्शक भी मै ही था,
मदारी भी मै ही,
और करतब करने वाला भी मै ही,
पर बाकी सब खुश थे,
उन्हें संभवतः आत्मा बोध नहीं था।
छेत्र और छेत्रज्ञा
© Krishna Katyayan 2018