जिंदगी कोई इम्तेहान हो जैसे
साँस लेना कठिन काम हो जैसे
दरिया अब खुद ही मान बैठा है
नमक उसकी ही जुबान हो जैसे
सियासत हद से पर जा बैठी है
अवाम उसकी गुलाम हो जैसे
मौत अलग अंदाज़ से बुलाएं मुझे
सांसे अब सरेआम नीलाम हो जैसे
तकलीफ से गुजरता है दिन मेरा
रात यादों का बस पैगाम हो जैसे
न मिलने की कोई वजह ही नहीं
मिलना तुजे आखरी काम हो जैसे
आइना अब कुछ ढूँढता है घर मैं
यादों से पुरानी पहेचान हो जैसे
मेरा हाल जो जानना है तो सुनो
खंडर सा कोई मकान हो जैसे
हिमांशु