मेघा रे
मेघा रे ! आओ बरसो मन के अंदर
बह जाते सन्नाटे की रेत
पिघले मन मिट्टी के ढेर
फिर लौटे सुख के दिन
खिले सुनहरी धूप
खुल जाये मन की खिड़की
फिर महकें गुलाब की क्यारी
फुदक फुदक चिड़िया चहके
धुल जाये अवसादों की स्याही
रह जाये केवल मन का कोरा पन्ना
फिर लिखूं कहानी जीवन की
फिर अनुभूति अपने पन की
नयी जिंदगी अपने मन की
मेघा रे बरसो बरसो
मन के अंदर
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