शहीद का दर्द
आदतन फिर गुजरा तुम्हारी गलियोंसे,
आजकल मैं बस यहीं किये जा रहा हूँ |
पुराने लम्हों को फिरसे जिये जा रहा हूँ |
कुछ बीते पल आज भी जिंदा हैं वहाँ |
मुझे देख शरमाते हुए न जाने खो गए कहाँ ?
तुम होती साथ तो देखती उन पलों को,
मुस्कुराकर दूरसे कैसे मैं चूमता था फ़ूलोंको |
आँखे झुकाकर,शरमाकर तुम मुझसे नजरें चुराती |
क्या लम्हें थे वो मुहोब्बतमें डूबे, अलगही अंदाजवाले,
इश्क़िया मिज़ाजवाले, बेचैनी से तारे गिगने वाले |
गर बेरहम कातिलों ने मुझे बक्शा होता,
तो आज तुम छत पे मेरा बेवजह इंतजार न कर रहीं होती,
और न मैं यहाँ तुम्हारी गलियोंमें यूँही भटकतां फिरता |
गिले दुपट्टे से अब तुम्हारे आँसू भी नहीं संभलते,
कोख़ में पल रहे मेरे अंश को कैसे संभालोगी ?
दिलमें कई सवाल लिए तिरंगे में तो लिपटा दिया गया,
बस्स..! तुम्हारे दामन से लिपटने की आरजू रह गयी..!
Robin rajput