गुनगुनाती रश्मियों से, द्वार नभ का सज रहा है |
सुर सजे खलिहान हैं ज्यों, पग में नूपुर बज रहा है |
ओस की बूंदें हैं बिखरी,मही पे मोती सी बनकर |
मुग्ध होकर गा रहे हैं, विहग सारे वृक्ष ऊपर |
तानकर कोहरे की चादर, छिप रहे हैं दिग -दिगंत,
फिर सुखद अनुभूतियाँ ले, आ गया प्यारा हेमंत |
~रिंकी सिंह ✍️