कान्हपा की योगिनियाँ
कान्हा बोला—योग न रूखा,
न तन का केवल ताप।
जहाँ प्रेम जगे और चेतन हँसे,
वही साधना, वही जाप।
उसके संग थीं योगिनियाँ,
न दासी, न परछाईं।
सहज हँसी, सहज मौन में,
जागी अंतर की गहराई।
काजल-सी आँखों में ज्ञान,
पैरों में बंधन नहीं।
घर, जंगल, बाजार सभी,
उनके लिए साधन ही सही।
वे बोलीं—देह भी दीप है,
इसे मत कह माया भार।
जिसमें श्वास जगे सजग होकर,
वही ब्रह्म का द्वार।
न व्रत कठिन, न रूढ़ि कठोर,
न भय, न पाप का लेख।
कान्हपा ने योग सिखाया—
जीवन ही बन जाए सेख।
योगिनियाँ हँसती रहीं,
लोक ने जो भी कहा।
प्रेम बना उनका योगपथ,
सहज में मोक्ष मिला।