योगिनियाँ : नाथ परंपरा की नारी शक्ति
कंदरा–कंदरा गूँज उठी,
जब योगिनियों ने स्वर साधा।
केवल गेरुआ नहीं था पथ,
नारी ने भी योग को साधा।
मैनावती ने त्याग चुना,
बंधन टूटे, भय भी हारे।
अंतर में जागी अग्नि ऐसी,
जिससे अज्ञान तमस मारे।
जालंधरी ने श्वास में बाँधा,
कुंडलिनी का मौन प्रकाश।
गुरु–वाणी हृदय में रखकर,
चल दी वह निर्भय आकाश।
चौरंगी की देह तपस्या,
धैर्य बना उसका शृंगार।
काँटों पर भी पुष्प खिले,
जब जागा अंतर का संसार।
लीलावती लोक में बोली,
ज्ञान न रहा ग्रंथों का दास।
नारी ने जब शब्द जगाए,
जाग उठा हर सूना श्वास।
माया कहकर जिसे टाला,
वही बनी शक्ति का स्रोत।
नाथ-पंथ में नारी बोली—
“मैं भी हूँ योग की ज्योत।”