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🌌 नीली आँखें बनी मेरे मन की चाबी में
रात के सन्नाटे में कोई रोशनी उतर आई,
जैसे आकाश ने मेरे भीतर झाँका हो।
एक पल को सब थम गया —
साँसें, विचार, समय भी शायद...
वहीं कहीं, उन गहराइयों के बीच
दो नीली आँखें झिलमिलाईं —
जैसे सागर की लहरें
किसी भूली हुई आत्मा को पुकार रही हों।
उनकी ठंडक में आग भी थी,
उनकी चमक में शांति भी।
मैंने जब देखा,
तो अपनी परछाई खो दी —
बस एहसास रह गया,
एक अनकहा जुड़ाव, एक मौन संवाद।
वो आँखें कुछ कहती नहीं,
पर हर बार मिलती हैं तो भीतर की दीवारें गिर जाती हैं।
कितने जन्मों का रहस्य लगता है उनमें,
जैसे मेरी आत्मा को उसकी खोई हुई कड़ी मिल गई हो।
अब हर ध्यान में, हर स्वप्न में,
वो लहर-सी नीली झलक आती है —
और मैं समझ जाती हूँ,
वो नीली आँखें बनी मेरे मन की चाबी में।
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