प्रेम....
प्रेम का ताना बाना,
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
किसी ने पाना ,किसी ने खोना
तो किसी ने निभाना जाना।
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
कोई प्रेम में रोया, कोई प्रेम में खोया
किसी ने पूजा तो किसी ने सजा जाना।
जिसने समझा उसने उतना माना।
किसी ने दुख, पीड़ा ,तड़प जाना
तो किसी ने सुख, चैन , सुकुन माना
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
किसी ने सुबह ,शाम ,रात जाना
तो किसी ने पूरा धरती, आसमान जाना
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
किसी ने तन का ,किसी ने मन का
तो किसी ने आत्मा का संगम जाना।
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
किसी ने राधा की प्रीत ,किसी ने मीरा की भक्ति
तो किसी ने साबरी का इंतजार जाना,
जिसने जितना समझा उसने उतना माना।
लेकिन...
क्या....
वास्तव में किसी ने परम प्रेम को
जाना ,माना, समझा या पहचाना है.....???