खाली दिमाग
रामू गाँव का एक सीधा-साधा लड़का था। काम-काज कम करता, सोचता ज्यादा था। उसकी माँ अक्सर कहती, "खाली दिमाग शैतान का घर होता है।" लेकिन रामू को ये बात हँसी की लगती।
एक दिन रामू आम के पेड़ के नीचे बैठा सोचने लगा, "अगर मैं उड़ सकता, तो स्कूल जाने में आसानी होती। अगर मैं राजा बन जाऊँ, तो कोई मुझसे सवाल नहीं करेगा..." सोचते-सोचते वो इतना खो गया कि उसने पास आती भैंस को देखा ही नहीं, जो उसकी किताबें चबा गई।
अगले दिन स्कूल में मास्टरजी ने पूछा, "किताब कहाँ है?" रामू बोला, "सर, भैंस खा गई।" पूरी क्लास की हँसी फूट पड़ी। उस दिन रामू का खूब मजाक उड़ाया गया।
उस दिन के बाद रामू ने तय किया — अब खाली नहीं बैठना। खेतों में काम करने लगा, पढ़ाई में मन लगाया, और सोचने लगा कैसे असली दुनिया में कुछ बड़ा कर सके।
कुछ सालों में वही रामू गाँव का पहला लड़का बना जो शहर जाकर इंजीनियर बना। जब वापस आया, तो माँ मुस्कराई — "अब दिमाग भरा है बेटा, तभी तो जिंदगी भी सँवरी है।"
सीख: खाली दिमाग में सिर्फ ख्याली पुलाव पकते हैं, लेकिन काम करने वाला दिमाग सचमुच कुछ बना सकता है।