एक दिन:
एक दिन मैं मर जाऊँगा
शायद आकाश बन जाऊँगा,
कुछ लोग शव को देखेंगे
कुछ श्मशान को।
एक दिन मर कर
शायद हवा बन जाऊँगा,
हवा बन सांसों में आया-जाया करूँगा।
जो बात नहीं कही
उसे कहने लगूँगा,
जो बात नहीं सुनी
उसे सुनने लगूँगा।
क्या पता किसी परी लोक में
विश्राम कर
विशाल सपने देखने लगूँगा।
धरती से बातें कर
उसकी सुगंध बन जाऊँगा,
जल में बहते- बहते समृद्ध हो
समुद्र में आ जाऊँगा,
फिर बादलों में आ
पहाड़ों पर मुग्ध हो
तुम्हें देखने लगूँगा।
क्या पता मेरी जड़ यहीं छूट
जीवन और मौत के बारे में बताते-बताते,
फिर अंकुरित होने लगेगी।
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*** महेश रौतेला