# Moral Stories
जिम्मेदारी का अहसास
शीतल ने भीड़ भरे बाजार में गाड़ी खड़ी की तो एक नौ-दस वर्ष का साँवला सा लड़का,मैले कपड़े पहने हुए, कार साफ़ करने लगा ।उसने मना किया तो कहने लगा ,"मेम साब मैं गाड़ी साफ़ कर दूँगा । कुछ भी दे देना ।"
" नहीं ! हटो रहने दो । "
" करवालो मेमसाब । कल से कुछ नहीं खाया है । "
शीतल ने अनसुना करते हुए कहा ,"तुम अभी बच्चे हो पढ़ने के लिये स्कूल क्यों नहीं जाते ?"
उसने कहा ,"हमारे पास स्कूल के लिये पैसे नही हैं ।"
उसने कहा, झूठ बोलते हो,तुम पढ़ना ही नहीं चाहते । चलो मेरे साथ अभी सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाती हूँ ।
लड़का गिड़गिड़ाने लगा । "नहीं मेम साब ! मेरे पेट पर लात मत मारो । स्कूल जाउँगा तो मेरी बूढ़ी दादी और बीमार दादा को रोटी कौन खिलायेगा ? माँ बाप पहले ही एक दुर्घटना में मर चुके हैं । हम भूखे मर जायेंगे । " सुनकर शीतल का मन द्रवित हो उठा , उसने निश्चय किया कि इस बच्चे के लिये कुछ करना चाहिए । सबसे पहले उसे समझा कर सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाया जिससे वह शिक्षित हो सके । उसके बाद उसे एक दुकान पर काम दिलवा दिया | सुबह का स्कूल था, दोपहर में बारह बजे वहाँ से दुकान पर काम पर जाने लगा ,उससे उनकी रोटी का जुगाड़़ होने लगा । पढ़ लिखकर जब वह शीतल के सामने खड़ा हुआ तो उसने असीम आत्मिक शान्ति का अनुभव किया ।