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Vk Sinha

Vk Sinha

@vksinha1449
(22)

सार संदेश
जन्म मृत्यु औ काल पे चलै न कोई ज़ोर
विनयदास बस देखिए, जब जो आये दौर

विनय दास धीरज धरो,ना तड़ातड़ी कुछ होय
समय पाय कारज भये , क्यों चिंता कर कोय

जल प्रवाह नीचा रहे, हवा चढ़ी असमान
निज सुभाव में जो रहे वो ही धीर सुजान

जर जमीन जोरू गये,मन हो गया विरागी
इसको ज्ञान न जानिए,गिरे पड़े को त्यागी

मन से हारे हार है, मन जीता सोई जीत
रख अंकुश विवेक का,चलता जा तू मीत

सब संसारी खेल निराले,नियम सहित तू खेल
तन,मन,की शुचिता रखना, जासे होय न फेल

मेघा बरसें समय से, सकल जगत हरिआय
जब बरसे वो इधर-उधर, रहा-सहा भी जाय

मौसम आये फल पकै, समय भये सब काम
बेमौसम,बेसमय करन से, ना गुठली ना आम

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सार संदेश
जन्म मृत्यु औ काल पे चलै न कोई ज़ोर
विनयदास बस देखिए, जब जो आये दौर

विनय दास धीरज धरो,ना तड़ातड़ी कुछ होय
समय पाय कारज भये , क्यों चिंता कर कोय

जल प्रवाह नीचा रहे, हवा चढ़ी असमान
निज सुभाव में जो रहे वो ही धीर सुजान

जर जमीन जोरू गये,मन हो गया विरागी
इसको ज्ञान न जानिए,गिरे पड़े को त्यागी

मन से हारे हार है, मन जीता सोई जीत
रख अंकुश विवेक का,चलता जा तू मीत

सब संसारी खेल निराले,नियम सहित तू खेल
तन,मन,की शुचिता रखना, जासे होय न फेल

मेघा बरसें समय से, सकल जगत हरिआय
जब बरसे वो इधर-उधर, रहा-सहा भी जाय

मौसम आये फल पकै, समय भये सब काम
बेमौसम,बेसमय करन से, ना गुठली ना आम

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"सारांश", को मातृभारती पर पढ़ें :
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🌺अजनबी होता शहर🐓
एक लम्बे अंतराल पर अपने
कस्बाई शहर लौटा हूं
सुखद यादों के चित्र
मन में संजोए हुए..१
पर यह क्या
शहर ने बाहें नहीं फैलाईं
अपना शहर
पहचान ही नहीं रहा मुझको
न ही मैं पहचान पा रहा हूं
अपने शहर को
वो भी अपरिचितों से घिरा है
और मैं भी..२
आते जाते लोग
परस्पर अपरिचित
कुछ कुछ उदास से
जल्दबाजी में दिखाई दिये..३
पहले की तरह
कुछ ठहर कर
हालचाल लेते
दुआ सलाम करते
नहीं दिखे..४
अभी अभी घर पहुंचा हूं
मां बाबू डेहरी पर इंतज़ार में मिले
बूढ़ी धुंधलाई आंखों में
चमक लिए..५
शाम हो चुकी
अंधियारा पसरने लगा
पड़ोसी से कोई नहीं आया
पीड़ा भीतर तक उतर आई..६
पहले जैसे दिन
अब नहीं रहे बेटवा
जी नहीं लगता तनिकौ..७
मन उदास हो गया
एक संकल्प उभरा
अगले दिन मां-बाप के संग
शहर लौट आया..८
अजनबीपन यहां
वहां की अपेक्षा
कुछ कम लगा
🔥समाप्त🔥

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⚽️संभल के⚽️
दिलों के खेल भी, खू़ब होते है
कोई फारमूला फ़िट नहीं बैठता
हम जिन्हें चाहते है , टूट-कर
अक्सर वही हमारा नहीं होता
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इस बेमुरौवत दुनियां में
अाज हरगिज़ सहारा न ढूंढिये
आबोहवा कुछ इस कदर बिगड़ी
सहारा दे,वो फ़सल अब नहीं होती
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जिंदगी किसी दौर से गुज़रे
अन्तत: उबर ही जाती है
बेवफ़ाई का एक दौर ऐसा भी है
जहां कश्ती डूब जाती है
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🏠नीड़ की ओर🏠
अंधियारे पथ का मैं दीपक हूं
मुझको नीरव ही जलने दो

ज्ञान पुंज की दीपशिखा मैं
अन्तर मन में बरने दो

आशाओं के पंक्षी बिचर रहे
मन के नील गगन में
अस्त हो रहा सूरज शाम हुई
इन्हें बसेरा करने दो

रसमय जल सूख चला, जीवन की नदिया में
आ रही विदाई बेला, तुम मुझको अब जाने दो
⛪⛪⛪⛪⛪⛪⛪⛪⛪⛪⛪?

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