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Swati Solanki Shahiba

Swati Solanki Shahiba

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(15)

अंग्रेजों पर हावी जब नवचंडी थी, ओर कोई नहीं वह रानी लक्ष्मी थी
57 की क्रांति में जब रियासतों ने हाथ में चूड़ी पहनी थी,
तब वह अकेली ही तलवार लेकर रण में लड़ी थी।।
ममता को धर के अपने बाहु पर मांँ काली का रूप लिया था
मूख से ना सही लेकिन शमशीर से उसने अपनी सब का लहू पिया था
सिर कट गया था सांँसे थी लड़खड़ा रही आंँखों में लगी थी गोली,
प्रचंड संग्राम में फिर भी दस दस को मार के खेल रही थी लहू की होली।
फिरंगी देखना पाया उस समर भवानी की ज्वाला।
जिंदा छू भी ना पाया उस चण्डी़ की काया।
इतिहास शायद तभी पलट जाता घर का भेदी अगर विभीषण ना बनता तो भारत आजाद 57 में ही हो जाता।
स्वाति सिंह साहिबा

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बसंत की बहार कम ना हो मांँ सरस्वती की आराधना में आंँसू ना हो।
अपनी सांसों को मांँ सरस्वती की वंदना को समर्पित एक दिन ताई ने रोका बसंत की बहार तो फिर भी मुरझा गई।

आपकी आवाज ही सदा पहचान रहेगी।
तेरी बिना जिंदगी से सदा शिकवा रहेगी माँ।
जिंदगी प्यार का गीत सदा रहेगी,
फूल ना सही कांटों से भी काम चलाती रहेगी।
जीवन में आपकी हर सिख आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहेंगी।
प्यार की हर बात याद रहेगी।
रहें या ना रहे आप सदा महकती रहेगी।😢😓
जिंदगी प्यार का नगमा ही सही।
काश यूँ हीं सारी उमर,युहीं आप सदा रहती साथ हमारे।
जिंदगी की कभी ना टूटती यह लड़ी,
तुझसे नाराज़ कैसे जिंदगी हो गई।
माँ तुम को हम से कोई चुरा ना पाएगा।
आप जहाँ भी रहे आपका सारा साथ रहेगा।
लिखने वाले ने एक इतिहास लिख दिया आपके नाम ताई।
जीवन की दास्तां भी अजीब है कहाँ शुरू हुई कहाँ खत्म करदी।
आने वाली पीढ़ियाँ आपके आशीर्वाद से अछुती रह गई।
तूम से मिलकर हर जनम का नाता बन गया।
काश जीवन के ये कांटों भरे पल को अपना आंचल फिर खिंच लाती आप।
एक दशक पिढी की उमर भी आप पर शुरू आप पर खत्म हुई।
जीवन की झुठी सच्चाई पर रोएं,मौत की सच्चाई को झुठलाने पर रोएं।
दिल फिर से पुकारे आजा आजा।
आप सदा, चंदा है तू सूरज है तू रहोगी।
आपकी ज्योति का ये कलश सदा चमकता रहेगा।
आखरी दर्शन आपके आंँखों में सदा रहेगा,
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो ना हो ।
आपका(तेरा) हमारा (मेरा) साथ सदा अमर रहेगा।
ये यारा सिलीसिली (आपके)विरह की ये रात ये युग सदा जलता रहेगा।
शिशा हो दिल हो या जिंदगी हो आखिर टूट जाता है छूट जाता है।
जाने क्यूँ ईश्वर आप जैसी विभूति(मोहब्बत) देकर वापस ले लेता ।
आपका और जाना जैसे दो पल रुका ख्वाबों का कारवां रहा।
जाने क्या बात है जो आप यूँ रूठ कर चली गई।
पर यह भी एक अमिट सच्चाई है जीवन की,
उस मोड़ पे जातें हैं कुछ सुक्स्त कदम चल के।
आपका आना एक शमा था शमा था वो प्यार का।
कभी खुशी कभी ग़म आपके साथ भी सदा रहा।
आपके साथ में कहाँ आ गए थे हम।
अब साहित्य जगत तेरे बिना तेरा बिना लागे ना।सदा दोहराता रहेगा।
ये गलियां ये चौबारा ये धरती यहाँ आना दोबारा सदा गाती रहेगी
मैं मैं चली गाते हुए आप चली गई ताई।
लुका छुपी करते आप हमें छोड़ कर चली गई।😢😓
आपके आंचल से कई गुना सौगात आपने दी।
इस युग की आप ही मंदिर और पूजनीय रहेगी।
रंगीला सा संगीत गीत और आवाज आपकी।
आपकी याद सदा रहेगी आपके लौटने की प्रतीक्षा सदा रहेगी।
दिखाई दिए यह बेखुदी रात (याद) जो आपको हमसे जुदा कर गए।
सलाम ए इश्क को आपकी जुबान से मिला।
शिव की आराधना सत्यम शिवम सुंदरम आपने दिया।
जीवन की सच्चाई यह सच है पिया आप हमें आज बता गई।
पर बिती पीढीयाँ आने वाली पीढ़ियाँ आपको कभी भूलना ना पाएंगी।

हे ईश्वर या अल्लाह ये पुकार सुन ले,लता जैसी स्वर कोकिला हमें फिर लौटा दे।
आएगा आएगा आएगा आने वाला।
आ लौट के आजा मेरे मीत आप पुनः इस धरती पर लौट आए।
काश पंख होते तो उड़ आती आपके पास।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम सब।
ये तेरे वतन के लोग सदा याद करते रहेंगे।
ऐसा देश में तेरा सदा रहेगा।

मांँ सरस्वती विसर्जन दिवस पर स्वरों की रानी स्वर कोकिला लता ताई की विदाई कभी न भर पाने वाला एक खालीपन सदा रहेगा।

अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि अर्पित,

-Swati Solanki Shahiba

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बेशकीमती जिंदगी देने वालों को तूने,
चंद कांँच के टुकड़ों के लिए बेच दिया।।
इसीलिए,
निसर्ग(प्रकृति) ने अपना भयानक रूप तुझे दिखा दिया।
सांँसे देकर अपनी जिसने तेरी सांँसो को बचाया था,
देख कर तूने उसको आरि का जख्म,खुद को सांँसो का मोहताज बना लिया।।
मुट्ठी भर जद का आयाम पाकर अपने हाथ में
अपने सिर पर सरताज सजाया था,
जरा सा क्या मिजाज बदला कुदरत ने अपना ,
तेरी तासीर को वास्तविकता का आईना दिखा दिया।
कांच के टुकड़ों के लिए तूने अपनी जिंदगी को बेच दिया।।

स्वाति सिंह साहिबा।।

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न्याय की नगरी अयोध्या की।
महेश्वर धाम तपस्या की।
जिसके तट से ज्ञान मिला।
रेवा के तट को न्याय का आधार मिला।।
स्वाति सिंह साहिबा।

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ये कुल्हड़ की चाय भी बचपन से मिला देती है।
मिट्टी में आज भी खुशबू है बरकरार,
यह बात वो फिर से याद दिला देती है।।
चाय भी कहांँ एक दिन की मोहताज होती है।
दिन की  हसी शुरुआत तो इसी के साथ होती हैं।।...


स्वाति सिंह साहिबा।

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जब पीली सरसों खेतों में खिलती है।
तब बसंत का रूप ये धरा धरती है।।
जब आमों पर मांजर का अंकुरण होता है।।
जब गेहूँ और जौ में बाली लहराती है।
तब ये धरा बसंती रुप धर इठलाती है।।
प्रेम के बीज दिलों में पनपने लगते हैं।
रंग बिरंगी तितलियों पर भंवरे मंडराने लगते हैं।।
जब सारी सृष्टि ऋतुराज का अभिनन्दन करती हैं।।
तब बसंत का रूप ये धरा धरती है।।

-Swati Solanki Shahiba

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रिश्तों की चुभन

गुजरे वक्त के साथ क्या क्या गुजर जाता हैं।
कुछ अपनों का साथ कैसे छुट जाता हैं।
अपनें ही करते हैं अपनों से जुदाँ
तमाशबीन बन क्यूं लेते है फिर मजा।
हंसती मुस्कुराती जिंदगी हो जाती है तबाह,
छोटी सी गलतफहमी को जब मिलती है थोड़ी हवा।
कुछ रिश्तें सिर्फ फूलों की आड़ में  शूल होते हैं,
जो सदा आपकों चुभन का एहसास देते हैं।।

-Swati Solanki Shahiba

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मत मनाओ तूम रोज डे,
बस रोज़ अपना थोड़ा वक्त दे देना।
मत करना कभी प्रपोज मुझे,
बस अपनी तकलीफ मुझसे ज़रूर बयां करना।
मत लाना कभी मेरे लिए चोकलेट,
बस दिन में एक बार मेरे साथ खाना खा लेना।
नहीं चाहती कोई टेडी या किमती चिज़,
बस कभी जल्दी घर भी आ जाना।।
नहीं चाहती कोई ऐसा वादा जो तुम्हें कोई तकलीफ़ दे,
बस अपनी हर तकलीफ में अपना भागी जरुर बनाना।
नहीं चाहती कि हर समय तुम्हारी बांहों में रखो,
बस शुकून से अपने कंधे पर अपना सर रखने देना।
प्यार का इजहार करने के लिए अधरो को मिलाने की जरूरत नहीं।
बस फिकर की मोहर मेरे माथे पर जरूर लगा देना।
मत बनना मेरे वेलेंटाइन ।
बस मेरे हमसफ़र हमेशा बने रहना।।

-Swati Solanki Shahiba

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जान जाती है एक औरत हर किसी की परेशानी दिल की।
अफसोस इस बात का है ,
उसके माथे पर आई शिकन किसी को दिखाई नहीं देती।।
क्या मंजर होता है, वह भी दुनिया का ।
एक तड़पती बेबस लड़की बेआबरू होती,
अपनों के बीच में ही,
पर  हर कोई तमाशा देखता है उसके बेइज्जती का ।
क्यों ?उसके लिए किसी के मुंह से आह तक नहीं निकलती।
क्यों?
एक लड़की अपनी मौत का कारण जानते हुए भी मौन हो जाती है ।
आखिर क्यों??
शायद इसीलिए
एक लड़की मां की कोख में ही मार दी जाती है।। आखिर क्यों??????

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और कितने मुखौटे,
धरे है तूने अपने तन पर।
राजदार तू खुद है अपनी सारी बेईमानों का।
फिर भी रखता है तू सब का हिसाब,
बड़ी शिद्दत से सब की अच्छाइयों का।।
किसने दिया है तुझे हक,
कि तु करें हिसाब दूसरों की ईमानदारी का,
है हिम्मत तो खुद से कर एक ईमानदारी
गिरेबान में अपने झांक और
हटा यह बेईमानी का मुखौटा जो तूने पहना है।
है हिम्मत ,है हिम्मत तो बात कर
आमने सामने पूरी सच्चाई से,
गीदड़ भभकी देना बंद कर
निकाल के फेक यह गीदड़ का मुखौटा।
सामने बैठ ओढ़कर सच्चाई का मुखौटा।।
दिखावे के मुखौटे से तु दुनिया के सामने भला बनता है,
पर क्या कभी खुद से तू नजरे मिला पाता है।।
शर्म कर ,शर्म कर और थोड़ी इंसानियत धर,
फेंक के दिखावट का मुखौटा इंसानियत की कदर कर।
पर तू रहने दे यह तेरे बस की बात नहीं है,
पर तू रहने दे यह तेरे बस की बात नहीं है।
सच्चाई के साथ जीना यह  तेरी औकात नहीं

स्वाति सिंह साहिबा

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