Quotes by Sumit Bherwani in Bitesapp read free

Sumit Bherwani

Sumit Bherwani

@sumitbherwani20gmail.com113613
(6)

शून्य के शिखर पर खड़ा एक व्यक्ति,
ना पाने का कुछ, ना खोने की भीति।
अतः अत्यंत यह अति, विस्मरणीय इति!
यथास्थिति को पार कर, जानकर, कर स्वयं से प्रीति।
जीता जगत उसने, किया पुरुषार्थ जिसने,
कर्म- धर्म चक्र ब्रह्मांड का संजोए,
यही तो है सफ़ल बनने की रीति।

क्या हुआ, क्यों हुआ, इतनी भयभीति एक व्यक्ति,
शून्य तो है 'शिव' बनने की नीति!
यही तो है केंद्र भू का, अवकाश का,
जिसने निर्माण किया अनंत का!

तो पकड़ इसे, पुनः कर सृजन स्वयं का,
जय- विजय की प्रत्यंचा छोड़े, शीश उठायें,
जल- अनल को आत्मा में समाए,
जीत ह्रदय समस्त जगत के!!

शून्य के शिखर पर खड़ा एक व्यक्ति,
ना पाने का कुछ, ना खोने की भीति!!

-Sumit Bherwani

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"What If an M. B. A Aspirant or An Entrepreneur write a letter to his crush!! "

See the Scenario 👇👇
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प्रिय Angel (metaphorically used),

था मैं सीधा साधा, ना देखता किसी नार को, पर सादगी ने तेरी, मेरे इस व्यवहार का कर दिया PARADIGM SHIFT,

UNICORN जैसी अदाओं ने कर दिया मेरे दिल का DISRUPTION!

ना सवँरता- सजता था कभी, और Put the best face सा रहता हूँ अभी.

ना सोता, ना खाता समय पर, रहता मुझे हर दिन तेरी यादो का Monday Morning Sickness!

तेरे BILLION DOLLAR IDEA समान प्रेम ने कर दिया मेरे दिल को तेरी कंपनी समान दिल में Amalgamate इसीलिए कहता हूं कर दो मेरी आत्मा का Merger तुम्हारी आत्मा से!!

हाँ!! ले रहा हूँ सलाह INCUBATORS से क्योंकि हूँ Fresher प्यार के इस Enterprise में!!

इतना ना तड़पाओ, Don't boil the ocean and please accept my portfolio!

अब बस तेरी हामी भरने की जरूरत है, Aha moment की जरूरत है!!

हाँ कर दो ना......

अपने प्यार के START-UP का BOOTSTRAP करेंगे,

अपना नया Eco-system बनाएंगे,

और प्यार में सफल होने के बाद तुमे इस प्रेम की कंपनी का C.E.O बनाएंगे,

बाद में जल्द से जल्द अपनी निशानियो की different 'CATEGORIES' launch करेंगे!!!!


तुम्हारा,
Want to be partner

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કલમ, "કમળ" ની લખે કીચડ વિશે!
ગંદગી ગળાકાપ તત્વો ની માયા છે સીંચે,
સત્ય અસત્ય નો અંતર ખેંચે!
નિદ્રા મા, ઘોર અંધારા માં પ્રકાશ ના તત્વો છે ચિંદે,
એટલે તો કલમ કમળ ની લખે કીચડ વિશે!

@sumit

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अच्छा "लगे रहो मुन्नाभाई" फिल्म देखी ही होगी आपने? इस फिल्म में कैसे मुन्ना और सर्किट अपने जीवन में आए संकट को "गांधीगिरी" से टालते है।

यही देख तो मुझमें भी अहिंसा की भावना जगी थी।
कैसे जगी? चलो मैं आपको अपने बचपन में ले चलता हूं, जब हम गर्मियों की छुट्टियों में बड़ा-सा टोला बनाकर मैदान में क्रिकेट खेलने जाया करते थे। अच्छा, तो हुआ यूं कि एक बदमाश व असभ्य लड़का रोज़ हमारी क्रिकेट खेलने की पिच पर "मूत्र-विसर्जन" करता।हम भी उसे कुछ नहीं बोलते पर बस "विनम्रता" से एक छोटी सी स्माइल देकर, खुद मिट्टी डालकर उसकी गंदगी साफ कर देते!

वह असभ्य लड़का रोज़ आता और हमारी पिच खराब करता! एक दिन जब हमारी गेंद कांटो वाली झाड़ियों में फंस गई तो किसी से नहीं निकल रही थी, तभी हमें उस लड़के से मदद मांगने की तरकीब सूझी! उस लड़के से हमने गेंद निकलवाने की मदद मांगी, उसने हामी भरी और गेंद निकल गई। हम सबने उसे Thank You कहा और उसे हमारे साथ खेलने के लिए मनाया। अगले दिन वह असभ्य लड़का "सभ्य" बन चुका था और हमारा मित्र भी!
अभी आपके मन में ख्याल आ रहा होगा कि हमने किस तरह की गांधीगिरी की? तो मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अगर आपको आपके दुश्मन से मित्रता करनी है तो उसे सीधे तौर पर उनकी गलतियां मत समझाओ बल्कि उससे आप कोई मदद मांगो। इससे उस व्यक्ति को अपनेपन सी फीलिंग होगी और वह सुधर भी जाएगा!!!

#Gandhigiri #story

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तेरी यादों में मै नजरबंद।

था मैं इतना अकलमंद,

जो तेरे आने से हुआ छंद विछंद।

तुझे पाने के लिए पढ़े कई प्रेमग्रंथ!

तू थी जैसे राधा, कान्हा की तरह प्रेम किया, पर पा ना सका तुझे ऐसे मेरा दिल हुआ खंड खंड।

#love #lovestory #poem

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"वो गुजरी थी....!"
(प्रेम कविता)

वो गुजरी थी, हां गुजरी थी ना मेरे कनखियों के किनारे से।

उसकी चाल लगी जैसे "अंगारे" से।

मैने पीछे मुड़कर देखा, हां देखा ना पर वो चली गई थी किसी समय के "सुरंग" में!

पहली बार ऐसा महसूस हुआ जैसे कठोर से दिल का जलती हुई मोम की तरह पिघल जाना।

पहली बार ऐसा प्रतीत हुआ मानो आग का पानी से मिलन होना!

वो फिर दिखी? हां दिखी ना मेरे गहरे से समन्दर वाले ख्यालों में "जलपरी" की तरह।

मैने उससे अपनी इच्छाएं मांगी, मांगी ना पर वो चली गई मेरे सुंदर से ख्यालों के कांच की तरह टूटने से!

वो फिर दिखी, हां दिखी ना, जैसे ईद में चांद का दिखना।

बिन बारिश में भी मिट्टी की खुशबूओं का फैलना!

उसने मुझसे आंखे मिलाई, हां मिलाई ना जैसे तपते हुए सूरज को आंखे मूंद कर देखना।

ऐसा लगा मानो, उड़ते हुए पतंगों का हवाओं से मिलना!

ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी की याद में हिचकियां होना।

हम दोनों हंसे, हां हंसे ना, मानो किसी नई प्रेम कहानी की शुरूआत होना!

(प्रेम कविता)

#kavyotsav2 #kavyotsav #प्रेम #काव्योत्सव #काव्योत्सव2

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"मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!"

समय के पंखों को ओढ़कर मैं सपनों के "आकाशगंगा" में उड़ना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

ना कल की कोई फिक्र, ना दिल में औरों के लिए 'छल' का कोई जिक्र,

ना रंग से, ना पैसों से, ना कोई जातपात से, बनाए जाते मित्र खेल-खेल में!

भूख की तो चिंता छोड़ो, खा लिया करते थे उन मिट्टी से बने "टीलों" को...!

पाठशाला था जैसे दूसरा "घर" तो वहां के शिक्षक थे हमारा दूसरा "परिवार"।

शिक्षकों के ना आने के कारण होती कक्षा में "वर्ग-व्यवस्था", तो पूरे चरम पर आ जाती हमारी "बाल्यावस्था"!

बारिश में मिट्टी की सोंधी खुशबू को मानो शरीर पर "इत्र" की तरह मल देते, कागज़ की नाव में कभी अपने "मन" को भी तैरा लिया करते थे।

पाठशाला की होती अगर आखिरी "परीक्षा", तो उस दिन ऐसा प्रतीत होता मानो जीत ली हो कोई कठिन सी "प्रतिस्पर्धा" !

गर्मियों की छुट्टियों में "ट्वेल्थ मेन" की तरह शामिल कूलर का फिर से गूंजना, गोले वाले की टीन-टीन सुनकर तेज़ी से उसकी ओर दौड़ना और दिनभर खेलते रहना....!

डोरेमोन की "टाइम मशीन" में बैठकर फिर से उन संकरी गलियों में क्रिकेट खेलना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

मां की गोद "स्वर्ग", तो पापा के दिए दो रुपए जितनी भी 'पॉकेट मनी' से मानो दुनिया खरीद ले ऐसी होती "हसरत"!

भाई की पिटाई पर हसना और बहन की रक्षा में बड़ों से भी उलझ जाना!

बचपन के "साम्राज्य" में हुआ करते थे राजा, पर अब जवानी में भरा हुआ "मन" रूपी तालाब भी लगता है सूखा।

मैं "शकलक बूम बूम" वाली पेंसिल से बचपन की "अदृश्य" हुई यादें बनाना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं।

कभी "बस्तों" में किताबों का वज़न भी हल्का लगता, पर अब तो लोगों की उम्मीदों के भार ऐसे लगते मानों किसी "गधे" पर सामान है ढोया !

कभी "कागज़" के जहाजों से तारों को तोड़ लाया करते थे, अब तो ये तारें टूटने का नाम ही नहीं लेते !

मैं विक्रम के साहस से जवानी की "मिथ्या" को सुलझाना और बेताल के उलझे हुए "सवालों" में फिर से उलझना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

समय के पंखों को ओढ़कर मैं सपनों के "आकाशगंगा" में उड़ना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

#Kavyotsav2 #childhoodmemories

(भावनाप्रधान कविता)

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