अच्छा "लगे रहो मुन्नाभाई" फिल्म देखी ही होगी आपने? इस फिल्म में कैसे मुन्ना और सर्किट अपने जीवन में आए संकट को "गांधीगिरी" से टालते है।
यही देख तो मुझमें भी अहिंसा की भावना जगी थी।
कैसे जगी? चलो मैं आपको अपने बचपन में ले चलता हूं, जब हम गर्मियों की छुट्टियों में बड़ा-सा टोला बनाकर मैदान में क्रिकेट खेलने जाया करते थे। अच्छा, तो हुआ यूं कि एक बदमाश व असभ्य लड़का रोज़ हमारी क्रिकेट खेलने की पिच पर "मूत्र-विसर्जन" करता।हम भी उसे कुछ नहीं बोलते पर बस "विनम्रता" से एक छोटी सी स्माइल देकर, खुद मिट्टी डालकर उसकी गंदगी साफ कर देते!
वह असभ्य लड़का रोज़ आता और हमारी पिच खराब करता! एक दिन जब हमारी गेंद कांटो वाली झाड़ियों में फंस गई तो किसी से नहीं निकल रही थी, तभी हमें उस लड़के से मदद मांगने की तरकीब सूझी! उस लड़के से हमने गेंद निकलवाने की मदद मांगी, उसने हामी भरी और गेंद निकल गई। हम सबने उसे Thank You कहा और उसे हमारे साथ खेलने के लिए मनाया। अगले दिन वह असभ्य लड़का "सभ्य" बन चुका था और हमारा मित्र भी!
अभी आपके मन में ख्याल आ रहा होगा कि हमने किस तरह की गांधीगिरी की? तो मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अगर आपको आपके दुश्मन से मित्रता करनी है तो उसे सीधे तौर पर उनकी गलतियां मत समझाओ बल्कि उससे आप कोई मदद मांगो। इससे उस व्यक्ति को अपनेपन सी फीलिंग होगी और वह सुधर भी जाएगा!!!
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