शून्य के शिखर पर खड़ा एक व्यक्ति,
ना पाने का कुछ, ना खोने की भीति।
अतः अत्यंत यह अति, विस्मरणीय इति!
यथास्थिति को पार कर, जानकर, कर स्वयं से प्रीति।
जीता जगत उसने, किया पुरुषार्थ जिसने,
कर्म- धर्म चक्र ब्रह्मांड का संजोए,
यही तो है सफ़ल बनने की रीति।
क्या हुआ, क्यों हुआ, इतनी भयभीति एक व्यक्ति,
शून्य तो है 'शिव' बनने की नीति!
यही तो है केंद्र भू का, अवकाश का,
जिसने निर्माण किया अनंत का!
तो पकड़ इसे, पुनः कर सृजन स्वयं का,
जय- विजय की प्रत्यंचा छोड़े, शीश उठायें,
जल- अनल को आत्मा में समाए,
जीत ह्रदय समस्त जगत के!!
शून्य के शिखर पर खड़ा एक व्यक्ति,
ना पाने का कुछ, ना खोने की भीति!!
-Sumit Bherwani