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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(16k)

धर्म ध्वजा लहराया
**********
पच्चीस नवंबर दो हजार पच्चीस का दिन
जब अयोध्याधाम में जन-जन के राम
प्रभु श्रीराम के भव्य-दिव्य मंदिर के शिखर पर
धर्म ध्वजा पूरी गरिमा से फहराया गया,
उस पल हर सनातनी का माथा
प्रभु श्रीराम के श्री चरणों में श्रद्धा से झुक गया,
सनातन धर्म का नव इतिहास रच गया।
जब सदियों का सपना आज पूरा हो गया
जैसे फिर से रामराज्य वापस धरा पर आ गया,
कल्पना के राम कहने वालों को काठ मार गया,
राम और राम मंदिर विरोधियों को
एक बार फिर साँप सूँघ गया।
सब कुछ सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हो गया,
रामराज्य के नये युग का श्री गणेश हो गया।
अनगिनत रामभक्तों के पांच सौ सालों की तपस्या
त्याग, संघर्ष, बलिदान और धैर्य
सफलता की नई इबारत लिख गया।
इसका अहसास हम सबको भी हुआ
जब देश के प्रधान सेवक ने
ध्वजारोहण के बाद हाथ जोड़कर
लहराते ध्वज को पूरी श्रद्धा से नमन किया,
कँपकंपाते हाथ और मुखमंडल पर
दिखी भावुकता और आत्मसंतोष से महसूस हुआ।
तब मेरे मन में एक अलग ही भाव आया
क्या मोदी जी को प्रधानमंत्री जनता ने बनाया
या ये है जन-जन के श्री राम की माया।
जो भी है, इस पर माथापच्ची बेकार है
ये समूचे सनातन धर्म का सौभाग्य है
जो सनातन के प्रतीक राममंदिर पर
आज फिर से धर्म ध्वजा तो लहराया,
जो सिर्फ हमें ही नहीं सारी दुनिया को नजर आया
और हर प्राणी ने श्रद्धा, विश्वास और
बड़े सुकून से प्रभु श्रीराम को शीश झुकाया
विवाह पंचमी का उत्सव भी संग में मनाया।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा मुक्तक
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चलो मृत्यु से हम करें, मिलकर दो-दो हाथ।
आपस में सब दीजिए, इक दूजे का साथ।
मुश्किल में मत डालिए, नाहक अपनी जान,
वरना सबका एक दिन, घायल होगा माथ।।

दिल्ली में विस्फोट से, दुनिया है हैरान।
इसके पीछे कौन है, सभी रहे हैं जान।
मोदी जी अब कीजिए, आर-पार इस बार,
नाम मिटाओ दुष्ट का, चाहे जो हो तान।।

वो भिखमंगा देश जो, बजा रहा है गाल।
शर्म हया उसको नहीं, भूखे मरते लाल।
युद्ध सिवा उसको‌ नहीं, आता कोई काम,
गलती उसकी है नहीं, पका रहा जो दाल।।

हम तो हारे हैं नहीं, कैसे कहते आप।
सीट भले आई नहीं, मानें क्यों हम शाप।
अभी टला खतरा नहीं, लोकतंत्र से यार,
हम भी कहते गर्व से, हुआ चुनावी पाप।।

मोदी आँधी में उड़े, खर-पतवारी रंग।
सोच-सोच सब हो रहे, गप्पू पप्पू संग।
जनता ने ऐसा दिया, चला बिहारी दाँव,
जीते-हारे जो सभी, परिणामों से दंग।।

ये कैसा परिणाम है, टूट रहा परिवार।
कल तक जो थे दंभ में, बना रहे सरकार।
आज बिखरता देखिए, भटक रहे हैं लोग,
एक चुनावी फेर में, कहाँ गया दरबार।।

धर्म ध्वजा फहरा रहा, रामराज्य के नाम।
जन मानस है कह रहा, अब होगा सुखधाम।
अब अपने कर्तव्य का, करो सभी निर्वाह,
तभी करेंगे राम जी, सबके पूरण काम।।

आज स्वार्थ का दौर है, फैला चारों ओर।
अँधियारा भी किसी का, है चमकीला भोर।
सावधान जो है नहीं, वह खायेगा चोट,
बहुरुपिए ही कर रहे, सबसे ज्यादा शोर।।

समय-समय की बात है, देख लीजिए रंग।
मौन साध कर देखिए, नहीं होइए दंग।।
जीवन के इस सूत्र का, हुआ नहीं है शोध,
इसीलिए तो पड़ रहा, सर्व रंग में भंग।।

सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

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मृत्युलोक रत्न उपाधि
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कल आनलाइन एक पत्र
मैंने मृत्यु को भिजवाया,
जिसका जवाब तत्काल आया,
धैर्य रखिए जनाब, लिस्ट लंबी है
आपका नाम लिस्ट में ही कहीं नहीं है
आप यमराज के मित्र हो
इसलिए आपको जवाब दे दिया
वरना अभी तो अधिकांश का मेल भी नहीं देख पाया।
काम का बोझ इतना है, कि सब गड्ड-मड्ड हो रहा है,
ईमानदारी से कहूँ तो कुछ उलटफेर भी चल रहा है
लाइन में आगे वाले को पीछे ढकेलकर
पीछे वाला पहले आने के लिए मरा जा रहा है।
ऊपर से आनलाइन का बड़ा लफड़ा है,
डिजिटल अरेस्ट का भी खतरा है।
इसलिए हमारा सारा काम-काज
सोलहवीं शताब्दी के हिसाब से चल रहा है,
सिर्फ ई-मेल की व्यवस्था का
तकनीकी उपयोग हो रहा है।
ये तो अच्छा है कि आपका मेल मैंने देख लिया
वरना अनर्थ हो जाता,
हो सकता है, अब तक आपका टिकट भी कट जाता।
शुक्र है कि कारण बताओ नोटिस से मैं बच गया।
अब आप मेरा कहना मानो
और मेल भेजने का कष्ट कभी न करो,
सुविधानुसार आपको ले आऊँगा।
बस! आप स्वस्थ, मस्त, व्यस्त रहो
यमराज से नोक -झोंक करते रहो
कविताओं का पुलिंदा बनाकर रखते रहो,
यहाँ भी एक भव्य कवि सम्मेलन करवा दूँगा,
प्रतिष्ठित सम्मान, उपाधि भी आपको दिलवा दूँगा,
कोई नहीं तो मैं ही मृत्युलोक रत्न उपाधि,
मोमेंटो और एक खूबसूरत शाल के साथ
आपको सम्मानित कर दूँगा।
आप चिंता बिल्कुल मत करो
प्रचारित, प्रसारित भी करवा दूंगा
आपका नाम मृत्युलोक में भी चमका दूँगा,
राज की बात है रहने दीजिए
आपको वीवीआईपी सुविधाएँ भी दिलवा दूँगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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फार्मूला
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जिद्दी हो, तो जिद करते रहिए,
मन की तसल्ली की खातिर
जो मन में आये, करते रहिए,
नासमझों को मनाने का
हर संभव प्रयास करते रहिए।
बड़ी फुर्सत में हो तो, ये भी सही है प्यारे,
बेवजह रुठने वालों को जबरन याद करते रहिए,
मासूमियत की आड़ में बेकार हर अदा होगी,
प्यार के साथ तनिक विवाद भी करते रहिए।
जिन्हें आपकी चाहतों, अदाओं, कोशिशों को
नजरंदाज करने की आदत है,
उनसे ज्यादा तो नहीं, बस! दो- दो हाथ भी करते रहिए,
या फिर उन सबसे आँख फेरने का हुनर
तत्काल ही सीख लीजिए,
यदि गुरु की दरकार हो तो आकर हमसे मिलिए।
मगर अपने बीपी, शुगर पर नियंत्रण रखिए
संयम संग सदा हँसते-मुस्कराते रहिए,
कभी-कभार हमको भी मना लिया करो जनाब
इसके लिए यदि रुठना जरुरी है
तो उधार में फार्मूला बाँटते रहिए।

सुधीर श्रीवास्तव

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बारात आमंत्रण
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लीजिए, स्वीकार कीजिए
मेरी अंतिम यात्रा का निमंत्रण,
जिसे आप मेरे जीवन की
दूसरी बारात भी कह सकते हैं, और नहीं भी
यह आपका सर्वाधिकार है।
पर यह भी सच है कि किसी ने आपको
ऐसा निमंत्रण नहीं दिया होगा
जो मैं आपको अग्रिम दे रहा हूँ,
जिसका समय, तिथि, मुहूर्त सब समय के गर्भ में है
पर एक दिन यह बारात भी निश्चित है।
चार कंधों पर बड़ी शान से
आप सब मुझे लेकर मेरी बारात में चलोगे,
और चुपचाप मुझे ही अकेला छोड़ घर लौट आओगे।
पर मुझे अकेला छोड़ आने का
तनिक भी मलाल मत करना,
क्योंकि मैं तो शहंशाह की तरह
दूसरी दुनिया में चला जाऊँगा।
आप सब मुझे देख नहीं पाओगे
मिलना चाहोगे, पर मिल नहीं पाओगे,
बात करना और शिकवा, शिकायत भी करना चाहोगे, पर अफसोस, ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर पाओगे,
कुछ दिन याद करोगे, फिर एक दिन भूल जाओगे।
सब अपने-अपने कर्मों का खेल है,
हम तो चले जायेंगे, आप यहीं रह जाओगे,
हम तो वहाँ से भी आप सबको देख पायेंगे,
चाहेंगे, मगर आपके किसी काम नहीं आ पायेंगे,
हम वहाँ और आप यहाँ जीवन बिताएंगे
पर अफसोस कि अपनी इस बारात का
हम लुत्फ बिल्कुल भी नहीं उठा पायेंगे,
और इस दुनिया को अलविदा कह
चुपचाप अपनी नई दुनिया में रम जायेंगे
अपने कर्मों के हिसाब से सुख-दुख का
भरपूर आनंद उठायेंगे,
आप सबको अपना आभार धन्यवाद वहीं से पहुँचाएंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहे
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भगवान चित्रगुप्त जी
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चित्रगुप्त भगवान की, महिमा बड़ी अपार।
अधर्म -धर्म का रखें, लेखा वो तैयार।।

कागज कलम दवात संग, ब्रह्मा का वरदान।
चित्रगुप्त के न्याय का,अद्भुत नियम विधान।।

हाथ जोड़ विनती करूँ, चित्रगुप्त भगवान।
क्षमा भूल करके मेरा, कर दो अब कल्याण।।
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विविध
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मर्यादा में हम सभी, करें प्रेम व्यवहार।
विनय करें यमराज जी, माँ दुर्गा के द्वार।!

कहते हैं यमराज जी, करो मातु का ध्यान।
सीख ज्ञान का दे रहीं, उसको भी लो जान।।

अभी-अभी यमराज जी, पहुँचे माँ दरबार।
शीश झुका कहने लगे, करिए मम उद्धार।।

बात हमारी तुम सुनो, मम प्रियवर यमराज।
आओ मिलकर हम करें, इस दुनिया पर राज।।

पुरखों ने जिसके किया, सबका बंटाधार।
वही रंग दिखला रहे, घूम-घूम हर बार।।

बुद्धिहीन कुछ लोग हैं, बने हुए अभिशाप।
खुद को ईश्वर मानते, भरे कर्म में पाप।।

कारण चक्का जाम का, आज बनी है मात।
इसके पीछे लोग जो, चाह रहे हैं लात।।

जिसे नहीं कुछ ज्ञान है,भौंक रहे वो लोग।
कुर्सी कुंठा राग है, या फिर नया प्रयोग।।

सत्ता जिनसे दूर है, वे सब हैं बेचैन।
भोली जनता को ठगें, कपट भरे ये नैन।।

बड़े बुजुर्गों का सदा, आप करो सम्मान।
जान बूझकर क्यों भला, बनते हो नादान।।

बच्चे नादानी करें, तो सबको स्वीकार।
बड़े करें तो शर्म है, उचित नहीं व्यवहार।।

मनमानी करना नहीं, इसका रखिए ध्यान।
समय आज का कह रहा, यही उचित है ज्ञान ।।

मत करिए अभिमान सब, देता कष्ट अपार।
नहीं किसी का है हुआ, इससे बेड़ा पार।।

मन मलीन क्यों कर रहा, समय बड़ा बलवान।
थोड़ा सा तो धैर्य रख, मत बन तू नादान।।

दुविधा में हैं हम सभी, कुंठित मन के भाव।
दिखलाते फिर क्यों भला, खुशहाली के चाव।।

जननी वो मेरी लगे, यह कैसा मम भाव।
उसके आँचल में लगे, शीतल सारे घाव।।

जीवन में अनुराग का, किसे रहा अब मोह।
मानव का सबसे बड़ा, बनता यही बिछोह।।

समय चाहता आपसे, मान और सम्मान।
तभी आपका हर समय, रख पाएगा ध्यान।।

बड़बोले पन में गया, जो था उसके हाथ।
बिखर रहा परिवार भी, कौन रहे अब साथ।।

धोखा भी तो काम है, करते रहिए मित्र।
चाहे जैसा आपका, होवै चाल चरित्र।।

ज्ञानी हम कितने बड़े, नहीं जानते यार।
बात अलग यह और है, खाते रहते मार।।

मेरे लिए तो आप ही, ज्येष्ठ श्रेष्ठ विद्वान।
मूरख हमको जानकर, नित रखिएगा ध्यान।।

झुककर जो रहता सदा, पाता है नित मान। सभी श्रेष्ठ उनको कहें, जिसको जितना ज्ञान।।

व्यर्थ समय क्यों कर रहे, करके अच्छे काम।
बूझ समझकर क्यों भला, होते हो बदनाम।।

कंठी माला पहनकर, ढ़ोगी लगते आप।
राह उचित अब चल जरा, क्यों करते नित पाप।।

चिंतन मनन विचार का,सुखद मिले परिणाम।
राह उचित अब चल जरा, श्रेष्ठ दिखे हर काम।।

सकल जगत परिवार है, जिनको इसका ज्ञान।
निंदा नफरत क्यों करें, श्रेष्ठ गुणी विद्वान।।

वेदी उनकी पुष्प से, सजे हजारों साल।
हर शहीद की याद में, जलती रहे मशाल॥
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दीवाली
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दीप पर्व देता हमें, नव जीवन उत्कर्ष।
फैलाएं मिल हम सभी, चहुँदिश में नव हर्ष।।

हर कोने से दूर हो, अंधकार का राज।
तभी सफल हो पर्व में, दीप जलाना आज।।

दीवाली पर प्रेम का, भेजें शुभ संदेश।
कहता है यमराज भी, त्यागो मन के क्लेश।।

एक दीप ऐसा जले, मिटे तमस चहुँओर।
अरुणिम धवल उजास से, भर जाये हर भोर।।

जब भी दीप जलाइए, रखिए इतना ध्यान।
रामचंद्र जी से जुड़ा, हम भक्तों का मान।।

समरसता का दे रहा, दीवाली संदेश।
अपने भारत का रहे, सदा यही परिवेश।।

जो निर्बल असहाय हैं, उनको रखिए साथ।
आये जब मुश्किल घड़ी, थामें उनका हाथ।।

दीवाली त्योहार का, रखना हमको ध्यान।
राम प्रभो का है जुड़ा, सबसे पहले मान।।
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करवा चौथ
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पति परमेश्वर बन गया, सारा पुरुष समाज।
करवा माई कर कृपा, एक दिवस का राज।।

पति पत्नी के मध्य में, होता कैसे खेल।
एक दिवस पतिदेव का, बाकी दिन तो रेल।।

व्रत रखती हैं पत्नियां, कटती पति की जेब।
फिर भी पत्नी कह रही, इनमें सारे ऐब।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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समय को इज़्ज़त दीजिए
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समय-समय की बात है,
जो अक्सर हम लोगों से सुनते
और खुद भी कहते रहते हैं,
पर समय को अहमियत
अपने अनुकूल समय में ही देते हैं,
प्रतिकूल समय में तो समय को जी भर कर कोसते हैं।
कभी विचार किया है कि क्या अनुकूल समय
आपके साथ रहने और खुशियांँ देने ही आया है,
और वो आपको छोड़कर नहीं जाएगा,
या प्रतिकूल समय सिर्फ दुख देने आया है
और आपके साथ कुण्डली मार कर
आपका हमसफर बन सदा के लिए साथ रह जाएगा?
ऐसा तो कभी भी नहीं होता
जो आया है, उसका जाना निश्चित है।
कोई भी समय हो, उसको भी जाना ही है
यही हाल सुख-दुख का है,
दोनों में एक भी जीवन भर साथ नहीं देता है।
फिर भी हम दोहरा मापदंड अपनाते हैं,
क्योंकि हम सब समय की गति को
समझना ही कब चाहते हैं?
दोष देने के लिए समय और ईश्वर को
सबसे अनुकूल और सरल पाते हैं,
फिर भी समय को अनुकूल-प्रतिकूल के
तराजू में तौलने से कहाँ बाज नहीं आते हैं?
बेवजह समय की गति को हम पकड़ना चाहते हैं
खुद को सिर्फ गुमराह करते हैं।
वर्तमान समय भी चला ही जायेगा
आने वाला समय का पहिया भी घूम जायेगा,
फिर आपका हँसना रोने में
और रोना हँसी में बदल जायेगा।
अच्छा है वर्तमान समय को स्वीकार कीजिए
खुश रहने के साथ समय को इज़्ज़त दीजिए,
इससे आपका कुछ चला भी नहीं जायेगा
पर समय को देखने का नजरिया जरुर बदल जाएगा,
तब आपके साथ आपका हर समय भी मुस्करायेगा,
और समय आपका हमसफर बन साथ निभाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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भाड़ में जाओ
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जीवन में कुछ करना
और सफलता के शिखर पर चढ़ना है,
तो मेरी तरह समझदार बनिये
समय के साथ चलना सीखिए,
समय परिस्थिति के अनुरूप ढलना सीखिए
और तो और गिरगिट की तरह रंग बदलना सीखिए।
क्योंकि तब आप कुछ नहीं कर पायेंगे,
भूखे-प्यासे ही बेमौत मर जायेंगे,
अड़ोसी-पड़ोसी की बात तो छोड़िए
आपके अपने ही किसी काम नहीं आयेंगे।
सब आपको ताने देंगे, दुत्कारेंगे
आपसे अपने रिश्ते को सख्ती से नकारेंगे,
धक्के मार- मारकर भगायेंगे, आइना दिखाएंगे
पर भूख मिटाने के लिए आपको
दो सूखी रोटी भी मुँह पर नहीं मार पाएंगे।
अब आपको सोचना है
सिर्फ बेवकूफी वाले काम ही करना है
या समय के अनुरूप ढलना और खुद को बदलना है,
मौका मिले तो किसी का भी
गला रेतने को तैयार रहना है।
अपनों के चक्कर में पड़कर
अपना और अपने बीबी बच्चों का
सिर्फ जीवन बर्बाद करना है।
एहसान तो आप मानोगे नहीं,
एहसान फरामोश जो है,
पर इसका तो बोध मुझे पहले से ही था
इसलिए मुझे फर्क नहीं पड़ेगा।
मेरा जो काम था, मैंने कर दिया
यह सोच कर कि दरिया में डाल दिया,
अब आप सोचो कि शुरुआत अभी करना है
या धक्के खाकर अपमानित होने के बाद ही
सच को स्वीकार करना है,
और फिर समय गँवाने का अफसोस करना है,
वैसे भी दुबारा आपको सलाह देने के लिए
मैं तोअब कभी आऊँगा नहीं
भाड़ में जाओ, क्योंकि तुम्हें तो ऐसे ही मरना है।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा मुक्तक
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मर्यादा
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मर्यादा का अब कहाँ, रखता मानव ध्यान।
कारण वो तो हो गया, आज बड़ा विद्वान।
देख-देख कर सभ्यता, डरी हुई आज,
कलयुग का यह ज्ञान है, या फिर है पहचान।।

मर्यादा का ढोल क्यों, पीट रहे हैं आप।
जान-बूझ या भूल कर, इतना ज्यादा पाप।
नहीं जानते क्या भला, या बनते अंजान,
कल में ही बन जायेगा, आज भूल अभिशाप।।
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सभ्यता
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आज सभ्यता रो रही, दोषी हैं हम-आप।
नहीं ज्ञान का बोध है, शीश ले रहे पाप।
जाने कैसा समय है, कैसे -कैसे लोग,
आज स्वयं के नाम का, करते रहते जाप।।

बता रही है सभ्यता, कैसे होंगे आप।
करते कितना पुण्य हैं, कितना करते पाप।
पर्दा जितना डालते, सब होता बेकार,
कितना मिलता आपको, नित्य बड़ों का शाप।।
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विविध
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नाहक ही नाराज़ हो, क्या कर लोगे आप।
दिलवा दूँ क्या आपको, मैं भी कोई शाप।।
कहना मेरा मान लो, रहना यदि खुशहाल,
आप यार यमराज का, करते रहिए जाप।।

कुछ लोगों के रोग का, कोई नहीं इलाज।
जिनके मस्तक है सजा, जूतों का नव ताज।।
समझाना बेकार है, ये सब बड़े महान,
करो खोज मिलकर सभी, क्या है इनका राज।।

दीप पर्व देता हमें, नव जीवन संदेश।
इस पावन त्योहार का, अद्भुत है परिवेश।
राम प्रभो को कीजिए, आप सभी तो याद,
मन से मित्र मिटाइए, अपने सारे क्लेश।।

बेमानी है आपका, इतना सोच विचार।
सबकी अपनी सोच है, अलग-अलग आधार।
व्यर्थ आप हलकान है, लगता हमें विचित्र,
बुद्धिमान इतने बड़े, समझ लीजिए सार।।

राजनीति के रंग का, अजब-गजब है रंग।
जनता भौचक देखती, होती दिखती दंग।
इतनी भोली है नहीं, जितनी दिखती आज,
कहना पड़ता इसलिए, पी रखी है भंग।।

दर्शन पाने का नहीं, करिए आप विचार।
अपने चाल चरित्र का, पहले देख विकार।।
भला ढोंग से क्या कभी, होता है कल्याण,
नहीं देखते स्वयं जो, अपने ही संस्कार।।

चलो मृत्यु से हम करें, मिलकर दो-दो हाथ।
आपस में सब दीजिए, इक दूजे का साथ।
मुश्किल में मत डालिए, नाहक अपनी जान,
वरना सबको पड़े, सदा पकड़ना माथ।।

दिल्ली में विस्फोट से, दुनिया है हैरान।
इसके पीछे कौन है, सभी रहे हैं जान।
मोदी जी अब कीजिए, आर-पार इस बार,
नाम मिटाओ धरा से, चाहे जो हो तान।।

वो भिखमंगा देश जो, बजा रहा है गाल।
शर्म हया उसको नहीं, भूखे मरते लाल।
युद्ध सिवा उसको‌ नहीं, आता कोई काम,
गलती उसकी है नहीं, पका रहा जो दाल।।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य-व्यंंग्य
बेइज्जती का भारत रत्न
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बिहार चुनाव परिणामों से आहत
एक बड़ी पार्टी के स्वनाम धन्य युवराज ने
हार के कारणों की समीक्षा बैठक में
राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया,
यह सुनकर बैठक में शामिल लोगों को सांप सूंघ गया।
सब एक साथ उठकर खड़े हो गए
और हाथ जोड़कर फरियाद करने लगे
माई बाप हमें अनाथ मत कीजिए
आप राजनीति से संन्यास मत लीजिए
आपकी की अगुवाई में हम चुनाव ही तो हार रहे हैं
पर मुफ्त में उल्टे सीधे आरोप भी तो
आप खुल्लम खुल्ला लगा रहे हैं,
और सबूत भी नहीं दे पा रहे हैं,
बदनामी का ठीकरा अपने सिर पर लेने का
इतिहास लिख रहे हैं,
अपनी हरकतों से लोगों का ध्यान खींच रहे हैं
अपने साथ औरों की भी तो लुटिया डुबो रहे हैं,
अपनी पार्टी की हार का रिकॉर्ड बना रहे हैं,
और तो और जमानत पर देश-विदेश
घूमने का मजा भी तो आप ले रहे हैं।
गलतियों पर गलतियाँ करते जा रहे हैं
पर सबक सीखने को तैयार नहीं हैं
अपनी मूर्खता का रिकार्ड बना रहे हैं।
पर आप तो पैदाइशी शहंशाह है
आप राजनीति से दूर जाने का ऐलान कर
ये कैसा अपराध करने जा रहे हैं,
सोचने समझने का काम विरोधियों और जनता का है,
बैठे-बिठाए उन्हें एक नया मुद्दा दे रहे हैं।
देश की चिंता, विकास की बात आप सोच नहीं सकते
तब हँसी का पात्र बनने से भी दूर कैसे जा सकते हैं?
हम सबको बेरोजगार करके आप खुश नहीं रह सकते।
अभी तो पार्टी में बहुत जान है,
इसकी अर्थी को काँधा देने से पहले
चाहकर भी कहीं नहीं जा सकते।
आपको हमारी बात माननी ही पड़ेगी,
वरना हम अनशन, भूख हड़ताल, विरोध प्रदर्शन करेंगे
देश भर में चक्का जाम करेंगे,
पार्टी की अवमानना के लिए आपके खिलाफ
न्यायालय की शरण में जाएंगे,
आखिर आप से बड़ा बेवकूफ हम दूसरा कहाँ से लायेंगे?
आप जो उल्टे सीधे ज्ञान बाँटते घूमते हो,
समय पर एक भी काम नहीं करते हो,
ऊपर से पीछा छुड़ाने का कुचक्र करते हो?
हम बेवकूफ नहीं हैं, जो आपको जाने देंगे
जब तक आपको खानदान सहित
बेइज्जती का भारत रत्न नहीं दिलवा देंगे,
पार्टी का अंतिम संस्कार
आपके हाथों करवा कर ही दम लेंगे
अपनी इस महान पार्टी का नाम
इतिहास में लिखवाकर ही हम विश्राम लेंगे,
और तब आपको राजनीति से दूर जाने की
ससम्मान सर्वानुमति दे देंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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