Quotes by Sudhir Srivastava in Bitesapp read free

Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(11.7k)

गोवर्धन पूजा
***********
दीपावली के अगले दिवस
गोवर्धन पूजा का विधान है,
जो इसके महत्व को नहीं समझता
वो सचमुच बड़ा नादान है।
ये पर्व सीधा प्रकृति से जुड़ा है
मानवों से इसका सीधा संबंध है
गोवर्धन पूजा में गोधन की पूजा का प्रावधान है
शास्त्रों में गाय को गंगा सम पवित्र बताया गया है
गौ माता को देवी लक्ष्मी स्वरूपा कहा गया है।
देवी लक्ष्मी सुख-समृद्धि, धन-धान्य देती हैं,
तो गौमाता अपने दूध से स्वास्थ्य धन प्रदान करती हैं,
गौमाता सम्पूर्ण मानवों के लिए
पूज्यनीय, आदरणीय और श्रद्धेय होती हैं।
गौमाता के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने हेतु ही
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को
गोर्वधन की पूजा होती है,
जिसके प्रतीक स्वरूप में हमारी गौमाता होती हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

अन्नकूट
********
मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने
गोकुलवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए
अपनी कनिष्ठा ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया
और गोप-गोपिकाओं में प्रसन्नता का भाव जगाया,
सातवे दिन उसे नीचे रखा,
और तभी गोवर्धन पूजा के बाद प्रतिवर्ष
अन्नकूट उत्सव मनाने का आदेश सुनाया,
तभी से अन्नकूट का उत्सव मनाया
और समय के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी
इसका महत्व बताया
जो आज भी जारी है,
दीपोत्सव के साथ ही अन्नकूट की भी
जन-जन करने लगता तैयारी है,
योगेश्वर कृष्ण की महिमा न्यारी है।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

यमराज कहता है - राम आयेंगे
**********
दीपोत्सव की छटा देख
यमलोक से मित्र यमराज मेरे पास आए,
दीपावली की बधाइयां शुभकामनाओं के साथ
मिठाई का डिब्बा पकड़ाकर कहने लगे -
प्रभु! सब कह रहे हैं कि 'राम आयेंगे'
अब आप बताओ- भला राम जी गए कहाँ थे?
जो फिर से आयेंगे,
अब तो उनका भव्य मंदिर भी बन गया है
सेवा-सत्कार, पूजन-आरती भी नियमित हो ही रहा है,
फिर उन्हें आने-जाने की जरूरत क्या है?
चलो मान भी लें, कि राम जी आयेंगे
तो भला इसमें इतना अजूबा क्या है?
मंदिर उनका, अयोध्या उनकी, लोग उनके
घर और राज्य भी उनका अपना।
वे जब चाहें कहीं भी आयें या जायें,
भला उन्हें रोकने वाला कौन है?
मैंने इशारे से उसे रोका और पूछा -
सच बता -तेरे कहने का मतलब क्या है?
यमराज अपनी रौ में कहने लगा
मेरे मतलब की चिंता छोड़िए और सिर्फ इतना बताइए
कि अब जब राम जी आते या जाते हैं
तो आप लोगों को इतना दर्द क्यों होता है?
बड़े खैरख्वाह हैं, तो फिर जाने ही क्यों दे रहे हैं?
अरे यार! उनका अपना जीवन, अपनी भावनाएं हैं,
ऊब जाते होंगे, तो घूमने चले जाते होंगे
इसी बहाने अपने राज्य की खोज खबर भी ले लेते होंगे।
क्या पता रामराज्य की आड़ में
आप लोग क्या-क्या गुल खिलाते होंगे?
बदनाम तो बेचारे श्री राम जी ही होंगे।
मैं तो कहता हूँ कि अच्छा है कि अब वे किसी पर भी
आँख मूँदकर भरोसा नहीं करते हैं,
क्योंकि आप लोग विश्वास के लायक ही नहीं है।
उसकी बात सुन मुझे गुस्सा आ गया
और मैं अकड़ में पूछ बैठा - तू ऐसा क्यों कह रहा है?
यमराज ने जवाब दिया - गलत क्या कह रहा हूँ?
मुझे भी खबर है कि आपके धरती लोक पर
आज क्या कुछ नहीं हो रहा है,
लूट खसोट, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, अत्याचार, हिंसा,
जाति-धर्म के नाम पर अराजकता
बहन-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़
और जाने क्या-क्या अपराध हो रहा है,
अब तो रिश्तों का खून भी आये दिन होने लगा है
मानवीय संवेदनाओं का अस्तित्व मिट रहा है,
स्वार्थ के झंडाबरदारों का विस्तार हो रहा है
इतना काफी है या और कुछ बताऊँ?
यमराज की बात सुन मेरा सिर शर्म से झुक गया
ज़बान पर ताला सा लग गया।
मुझे मौन देख यमराज बोला-
मित्र! प्रभु राम जी को अपना काम करने दीजिए,
उनके आने-जाने पर नजर मत रखिए,
कुछ करना है, तो अपने चाल चरित्र को
एकदम पाक-साफ रखिए,
राम जी की गरिमा का भी थोड़ा ख्याल रखिए,
रामराज्य के सपने को फिर से साकार करने में
ज्यादा नहीं तो अपना गिलहरी प्रयास करिए।
सच मानिए! राम जी कहीं नहीं गये थे
जो बार-बार आने-जाने में आप उलझे रहे हैं,
अपने भीतर के राम को देखने में तो शर्माते हैं
आखिर इतनी सीधी सी बात, समझ क्यों नहीं पाते हैं?
आप मेरे मित्र हैं, इसलिए इतना कर सकता हूँ,
आपकी अब तक की गलतियाँ, माफ़ करवा सकता हूँ
क्योंकि राम जी मेरी बात मान लेंगे,
मेरे अनुरोध पर आपको एक बार माफ तो कर ही देंगे,
यह और बात है कि इसके लिए
मुझे दंडित करने पर विचार भी जरुर करेंगे।
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,
क्योंकि राम जी मुझे तो हमेशा की तरह
इस बार फिर भी माफ कर ही देंगे।
अब मैं आपसे विदा लेकर,
सीधे राम जी के चरणों में जाकर नतमस्तक होता हूँ
जन- मन और आपके साथ
अपने भी कल्याण, सुख-समृद्धि,
और खुशहाली की कामना करता हूँ,
देख लीजिए मैं भी तो राम जी की जय-जयकार करता हूँ,
आप सबके सुर में सुर मिलाता हूँ,
राम आयेंगे, आखिर यही बात तो मैं भी कहता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

दीपोत्सव की सार्थकता
********
दीपों के महापर्व दीपावली पर हर ओर प्रकाश फैला है,
दीपों, मोमबत्तियों, बिजली के झालरों,
रंग बिरंगे कलात्मक बल्बों से
फैली रोशनी से तमस मिटा है।
घर, आंगन, चौबारे, द्वारे
घर को मुंडेर, ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर, गुरुद्वारे सजे हैं,
सरकारी, गैर सरकारी भवन भी
सज-धजकर इठला रहे हैं।
चारों और बच्चे, बूढ़े, युवा, स्त्री-पुरुष
फुलझडियां जलाये जा रहे हैं, पटाखे फोड़े जा रहे हैं।
अमीर हो या गरीब हर कोई
अपने सामर्थ्य के अनुसार हर कोई दीपावली मना रहा है,
रंगोलियाँ सजाई गई हैं,
घर, दुकान, प्रतिष्ठान में पूजा-पाठ का अनुष्ठान हो रहा है,
लक्ष्मी-गणेश को मनाने का उपक्रम हो रहा है।
तरह तरह की मिठाइयां खरीदी गई हैं
विभिन्न तरह के पकवान घर -घर में बने हैं।
अपने और अपनों के जीवन में उत्कर्ष के जतन हो रहे हैं
देश- दुनिया, समाज की खुशहाली की
सब अपने अपने ढंग से दुआ कर रहे हैं,
सीमा पर खड़े सैनिकों से खुद को जोड़ रहे हैं
एक दीप उनके नाम का भी जला रहें है,
शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि
उनकी याद में एक दीप जलाकर दे रहे हैं।
गरीब, बेबस, लाचारों के साथ दीपावली मना रहे है,
समरसता, मानवता का नया अध्याय लिख रहे हैं,
प्रभु राम को सिर्फ याद भर नहीं कर रहे हैं,
बल्कि उनके पदचिन्हों पर चलने का
यथा संभव प्रयास भी कर रहे हैं,
दीपों के इस महापर्व को सार्थक कर रहे हैं
सनातन संस्कृति को अमर कर रहे हैं,
महज एक दीप जलाकर भी मुस्कुरा रहे हैं।
अपने बड़ों से आशीर्वाद लें रहे हैं,
तो छोटों को प्यार दुलार कर आशीर्वाद दे रहें है,
एक- एक दीप जलता हुआ मुस्करा रहा है
दीपोत्सव जन-मन को नव संदेश दे रहा है।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

यमराज मुख्यमंत्री बनेगा
**********
आज सुबह यमराज का फोन
दुआ- सलाम के बाद फ़रमाया
प्रभु मुझे भी चुनाव लड़ना है,
जीत-हार की चिंता छोड़
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का इम्तिहान लेना है।
मैंने कई पार्टियों से टिकट माँगा
लेकिन सबने ठेंगा दिखा दिया।
कारण उनके मापदंडों पर मैं खरा नहीं उतरा
जनबल की तो कोई कमी ही नहीं है,
मगर किसी दल के टिकट की खातिर
इसकी कोई अहमियत ही नहीं।
धनबल, बाहुबल का वफादार मैं कभी रहा नहीं
एक तो राजनीति में नौसिखिया, ऊपर से ईमानदार होना
मेरे टिकट की राह का राह का रोड़ा बन गया,
कौन समझाए आपके यहाँ के राजनीतिक दलों को,
किसी दल ने मुझे टिकट न देकर
यमलोक के बब्बर शेर को छेड़ दिया,
दुर्भाग्यवश मुझे अपना राजनीतिक दुश्मन बना लिया है।
अब मैं अपना राजनीतिक दल बनाऊँगा
अपने चेलों को हर सीट पर चुनाव लड़ाऊँगा
जीत के सारे हथकंडे अपनाऊँगा,
सारे राजनीतिक दलों को उनकी औकात दिखाऊँगा।
देखता हूँ! कौन मेरे दल को टक्कर देता है,
और मुझे मुख्यमंत्री बनने से रोक सकता है।
जरुरत पड़ी तो विधायकों को खरीद लूँगा
शराफत से बिक गये, तो ठीक है
वरना दूसरे हथकंडे भी अपनाने में संकोच नहीं करुँगा,
अपहरण कराकर यमलोक में बंधक बनाऊँगा,
उन्हें शपथ ही नहीं लेने दूँगा।
आप मेरे मित्र हो, इसलिए आपको बताता हूँ
आपसे किसी तरह का सहयोग भी नहीं चाहता हूँ
मेरे प्रचार की चिंता आप बिल्कुल न करें
बस मैं तो केवल आपका आशीर्वाद चाहता हूँ।
प्रचार के लिए दुष्ट आत्माएं मेरे आदेश के इंतजार में हैं,
जिनके अपने दल से टिकट कटे
वे सब मेरी पार्टी से टिकट पाने के लिए कतार में खड़े हैं।
बस! आप आदेश संग आशीर्वाद दे दो
तिजोरी भरने का जो मौका मिला है
उसका लाभ उठाने की बाखुशी सहमति दे दो।
संकोच छोड़ दो प्रभु! मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा
यह और बात है कि आपकी खड़ाऊं पहनकर ही
अपनी सरकार यमलोक से चलाऊँगा,
सारे तंत्र को यमलोक में ले जाने का प्रस्ताव
शपथ ग्रहण के साथ ही पास करवाऊँगा ।
जनता और प्रदेश की खातिर नये कानून बनाऊँगा,
हर तरह के अपराधियों को जेल नहीं
सीधे नरक में भिजवाऊँगा।
जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा का विवाद नहीं होने दूँगा
विवाद होने से पहले ही उसकी जड़ में मट्ठा डलवा दूँगा,
विरोधियों को ईडी, सीबीआई के चक्कर में फँसा दूँगा।
उन सबकी राजनीति का सत्यानाश कर दूँगा,
आपकी कसम किसी को खाने नहीं दूँगा
इसके लिए खुद भी नज़ीर बन इतिहास लिखूँगा।
वैसे तो राजनीति से मुझे मोह नहीं है
आपके लोक के धन से
यमलोक के विकास की तनिक सोच भी नहीं।
बस! मेरे चेले चाहते हैं, कि मैं इस बार मुख्यमंत्री बनूँ
और इसके लिए आपकी लोकतांत्रिक व्यवस्था है
कि पहले चुनाव लड़कर विधायक तो बनूँ।
अब आपके पास कोई और जुगाड़ हो तो
मैं बेवजह चुनाव ही क्यों लड़ूँ?
यमलोक का धन और अपना समय बर्बाद क्यों करूँ?
यमराज की बात सुन मुझे गुस्सा आ गया
तो मैंने भी कह दिया - तू बिल्कुल चुनाव लड़
जुगाड़ तो मैं भी कर सकता हूँ,
पर मुख्यमंत्री तुझे बनना है,
तो कुछ मेहनत तू भी तो कर।
मेरी बात सुन यमराज खुश हो कहने लगा -
बस प्रभु! अब फोन रखता हूँ,
चुनाव जीतने के बाद जब आपकी खड़ाऊँ लेने आऊँगा
तब अपने शपथ ग्रहण समारोह में
आपका आमंत्रण भी साथ लेकर आऊँगा।
क्योंकि आपकी उपस्थिति के बिना
मैं शपथ ही नहीं ले पाऊँगा,
क्योंकि मित्रता पर दाग लगाकर जी नहीं पाऊँगा,
यमराज का नाम एक बार बदनाम हो गया
तो जनता को भला मुँह कैसे दिखाऊँगा?
आप मेरे मित्र हो, का सुरीला गीत कैसे गाऊँगा?

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

दीपोत्सव और यमराज की इच्छा
*********
जब से अयोध्याधाम में दीपोत्सव आयोजन की खबर
मेरे मित्र यमराज की लगी,
तबसे उनके आँखों की नींद है भगी।
बेचारे दीपोत्सव कार्यक्रम में जाना चाहते हैं,
राम की पैड़ी पर दीप जलाना चाहते हैं,
पर किसी को उनकी भावनाओं का ख्याल ही नहीं,
कोई भी उन्हें अनुमति दिलाने को तैयार ही नहीं।
बेचारे हैरान परेशान दर-बदर भटक रहे हैं
अनुमति के लिए हाथ जोड़कर
हर किसी से बड़ी शराफत से अनुरोध कर रहे हैं,
पर अफसोस कहीं से भी भाव ही नहीं पा रहे हैं।
थक-हार कर मेरे पास आये
एकदम मुरझाए हुए मुँह लटकाए,
हाथ जोड़ कहने लगे -प्रभ! मुझे माफ़ कीजिए
और मेरे अरमानों पर अब आप ही ध्यान दे दीजिए।
सोचा था कि इस बार आपको परेशान न करुँ?
अनुमति की खुशखबरी के साथ ही आपसे मिलूँ।
पर मैं तो बेवकूफ ठहरा, जो नाहक भटक रहा था
यह जानते हुए भी कि इस धरा पर
आपके सिवा मेरा कोई और शुभचिंतक नहीं है,
बस यही भूल मेरा सबसे बड़ा गुनाह बन गया।
भूल सुधार के साथ आपकी शरण में आया,
अब बस आप ही कुछ जुगाड़कर सकते हैं
ऐन-केन-प्रकारेण किसी तरह अनुमति दिलवा सकते हैं।
मैं भी अयोध्याधाम के भव्य दीपोत्सव का
इस बार साक्षात दीदार करना चाहता हूँ,
यमलोक के कल्याण हेतु भगवान राम के नाम
सौ- दो सौ दीप जलाना चाहता हूँ।
वैसे मैं भी कितना मूर्ख हूँ,जो आपको यह सब बताकर
नाहक अपना और आपका भी समय व्यर्थ कर रहा हूँ।
मेरा तो आपको सब पता रहता है
इसीलिए तो हम दोनों का आपस में इतना गहरा रिश्ता है।
मैंने लापरवाही से कहा -
तेरा प्रवचन खत्म हुआ हो तो अब मेरी भी सुन,
यमराज हाथ जोड़कर बोला - जी प्रभु!
कहिए मेरे लिए क्या आदेश है?
मैंने कहा - कुछ चाय-पानी पीना हो तो पी ले
और चुपचाप वापस निकल ले,
तू दीपोत्सव में जाएगा,
सौ- दो सौ नहीं हजार - दो हजार दीप
खुशी - खुशी दीप जलाने का
ससम्मान अवसर भी पाएगा।
इतना ही नहीं सरयू स्नान का लाभ भी उठाएगा
अब यह मत पूछना - यह सब कैसे होगा?
तू मेरा मित्र है- योगी जी के लिए इतना ही काफी है
तेरे लिए विशेष पास और अनुमति का आदेश कर देंगे,
मेरी नाक कटने से तो बचा ही लेंगे।
वैसे भी इतने भर के लिए कौन-सा उन्हें
रावण से युद्ध करने पड़ेंगे ।
तुझे पता नहीं है -अपने योगी जी बेचारे बड़े भोले हैं
राम जी के नाम पर कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं,
इसीलिए तो वो देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
पर तुझे भी इतना ध्यान रखना होगा
तुझे अकेले नहीं मेरे साथ ही चलना होगा,
दीपोत्सव का आनंद सिर्फ मेरी साया में ही लेना होगा।
कोई उदंडता, नियमों का उलंघन बर्दाश्त नहीं होगा,
वरना हम दोनों के वापसी का टिकट तत्काल कटेगा,
तेरे साथ मेरा भी सपना मिट्टी में मिल चुका होगा,
मेरी नाक कटेगी, तो योगी जी को भी दुख होगा।
तू योगी जी को नहीं जानता
वे कहने में कम करने में ज्यादा विश्वास करते हैं,
इसीलिए तो राम जी उन्हें इतना मानते हैं।
यमराज साष्टांग दंडवत हो कहने लगा
समझ गया प्रभु! अब चलता हूँ
यमलोक में यह खुशखबरी देता हूँ
और दीपोत्सव की अपनी तैयारी को अंतिम रूप देता हूँ,
उससे पहले आपका और योगी जी
दोनों का बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ,
मर्यादा पुरुषोत्तम की कृपा के लिए
उनको भी कोटि-कोटि नमन वंदन करता हूँ,
जय श्रीराम के उद्घोष के साथ यमलोक लौटता हूँ।
और फिर यथा समय वापस आकर आपसे मिलता हूँ
और फिर आपके साथ ही अयोध्याधाम चलकर
दीपोत्सव के दीदार संग दीप प्रज्जवलन करता हूँ
यमलोक की खुशहाली और राम कृपा के लिए
अपनी अर्जी सीधे हनुमान जी को देता हूँ,
अपने आपका जीवन धन्य करता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

सोशल मीडिया की माया
***********
ये सोशल मीडिया भी बड़ा अजीब है
किसी को भी चैन से रहने नहीं देता
औपचारिकताओं की चाशनी में डुबोए रहता है,
बड़ी सफाई से हमारी भावनाओं का
हृदय परिवर्तन कर देता है।
सौ खून भी जैसे माफकर पाक-साफ कर देता है,
और तो और हमें श्रेष्ठ औलाद के आवरण में
सबके बीच जबरन लाकर पेश कर देता है।
अब आप कहेंगे - आप कहना क्या चाहते हैं?
बातों की जलेबी बनाने पर आमादा क्यों हैं?
तो जनाब! तनिक धैर्य तो रखिए
और ध्यान से मेरी बात सुनते हुए
मेरी जलेबी का रस तो चूसिए।
ईमानदारी से बताइए कि सोशल मीडिया पर जो लोग
अपने स्वर्गीय माँ बाप को बड़ी शिद्दत से याद करते हैं,
एक पल भी न भूलने की दुहाई देते हैं
उन्हें याद कर घड़ियाली आँसुओं की आड़ में
फोटो लगाकर, विनम्र श्रद्धांजलि देकर
बेहिसाब ढिंढोरा पीटते हैं,
वो सच के कितना करीब होता है
क्या हम-आप सब नहीं जानते ?
जीते जी जिस माँ- बाप की उपेक्षा की
उन्हें अपमानित करने के साथ
घुट-घुटकर जीने को मजबूर किया,
उनके अपने ही घर में उन्हें पराया कर दिया,
उन्हें थोड़ा सा समय तक न दे सके
प्यार से दो शब्द भी नहीं बोले,
उनके अंतर्मन में झाँकने तक की जहमत नहीं उठाई।
स्वार्थ और स्वच्छंदता की आड़ में
सुख-सुविधाओं से वंचित किया,
दो वक्त का भोजन, दो जोड़ी कपड़े और
दवाइयों के इंतजाम की आड़ में
जाने क्या-क्या उन्हें नहीं सुनाया?
जाने कितने मां- बाप को इन्हीं औलादों ने
बड़े गर्व से वृद्धाश्रम तक पहुँचाया।
तो कुछ की मृत्यु का समय भी
इन्हीं औलादों की कारगुजारियों से
सच मानिए -समय से पूर्व ही आया,।
इतना तक ही होता तो और बात थी
कुछ ने माँ-बाप के अंतिम संस्कार में
शामिल होने का कष्ट तक नहीं उठाया
और समयाभाव का बहाना बनाया,
तो किसी का बड़े ने, किसी का छोटे ने
विवशतावश किसी तरह निपटाकर गंगा नहाया।
अरे भाई! ये कलयुग है
यह बात भी हम-आप जैसी औलादों ने
अपने-अपने माँ-बाप को बताया,
जब औलादों के होते हुए भी
अंतिम संस्कार पड़ोसी, मोहल्ले या रिश्तेदारों ने कराया।
तो कुछ का अंतिम संस्कार
किसी तरह लावारिशों की तरह
जैसे-तैसे प्रशासन ने निपटाया।
और सोशल मीडिया पर देखिए
तो ऐसा लगता है कि हमने तो
श्रवण कुमार को भी पीछे छोड़ दिया,
अपने जीवित माँ-बाप का मृत्यु तक इतना ख्याल किया।
शुक्र है कि हममें इतनी तो शर्म अभी शेष है
जो हम खुद को राम नहीं कहते
पर क्या राम से कम नाम हमने कमाया?
ये सोशल मीडिया का युग है साहब
सच तो यह है कि हमें तनिक भी शर्म नहीं आया,
क्योंकि हमने तो लाइक, कमेंट के अनुसार
सर्वश्रेष्ठ औलाद होने का भारत रत्न पाया।
मगर हमें अपनी औकात तब समझ में आया
जब हमारी औलादों ने भी हमारे साथ
यही किस्सा पूरी ईमानदारी से दोहराया
और हमें पुरखों का ही पाठ पढ़ाया
कि जो जिसने बोया, उसके हिस्से में वही तो आया,
यह ग़लत भी कैसे हो सकता है भाया,
ये हैं सोशल मीडिया की माया
जिसे आइना भी नहीं देख पाया।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

व्यंग्य - मातृभूमि
*********
मातृभूमि का मतलब क्या होता है?
जब आज यमराज ने बताया,
वो सुनकर मुझे जमकर पसीना आया।
आपको भी बताता हूँ,
जो कहकर उसने मेरा उपहास उड़ाया
मगर मित्र होने का फ़र्ज़ भी निभाया।
यमराज ने बिना लाग-लपेट के धमकाया
प्रभु! मातृभूमि क्या होती है, आप क्या जानो?
ग़लत कहूँ, तो मेरी बात मत मानो,
वैसे आप मानोगे नहीं, पता है मुझे ।
क्योंकि आप तो जिस मिट्टी में जन्मे, पले-बढ़े
जिसका अन्न खाया, पानी पिया
पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान पाया
और आज बड़ी -बड़ी बातें करते हो
उसी मातृभूमि की दुहाई भी देते हो।
अपनी उसी मातृभूमि का अपमान करते हो
और बेहयाई से अट्टहास भी करते हो
उसकी कोख को लजाते हुए तनिक नहीं शर्माते हो,
उसके दूध का कर्ज़ कुछ इस तरह चुकाते हो,
कि बेशर्म बन उसका आँचल तार-तार करते हो,
चंद रुपयों के लिए अपना ईमान तक बेंच देते हो।
अपनी उसी मातृभूमि का
सौदा करने में भी नहीं शर्माते हो,
अपनी मातृभूमि के दुश्मनों के सामने
कुत्तों सरीखे दुम हिलाते हो,
और खुद को मातृभूमि का बड़ा रक्षक बताते हो।
तुमसे अच्छे तो वो दुश्मन हैं
जो कम से कम अपना ईमान तो रखते हैं,
तुम्हारी तरह भेड़िए की खाल तो ओढ़कर नहीं घूमते हैं
जो करते हैं, उसे डंके की चोट पर करते हैं।
अच्छा है! कि आपकी मातृभूमि पर मैं नहीं जन्मा
वरना दस बीस हत्याओं का अपराध रोज करना पड़ता
आप जैसे न जाने कितनों की जान रोज लेना पड़ता,
शुक्र है प्रभु, कि मेरे यमलोक में ऐसा नहीं होता
वरना मैं तो घुट- घुटकर ही मर जाता
आत्माओं को मारने का वैसे भी कोई मतलब नहीं होता,
बस इसी बात का संतोष है,
कि मेरे यमलोक में ऐसा अपराध नहीं होता।
सौभाग्यशाली हूँ कि आप जैसों का बगलगीर नहीं हूँ,
पर दुःख भी होता है, कि आप मेरे मित्र हैं
जिसकी आत्मा का इतना मैला चित्र है।
मैंने यमराज के सामने हाथ जोड़कर सिर झुका लिया
ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया
सचमुच यमराज ने मुझे और गिरने से बचा लिया,
मित्रता के आइने में मेरा असली रुप मुझे दिखा दिया
मातृभूमि के प्रति जिम्मेदारियों का मतलब समझा दिया।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

यमराज चालीसा
*************
-: दोहा :-
बात हमारी तुम सुनो,मित्र मेरे यमराज।
आओ मिलकर हम करें, इस दुनिया पर राज।।

-: चौपाई :-
मित्र राज यमराज हमारे। लगते मुझको सबसे प्यारे।।१
इसका राज न कोई जाने। बेवकूफ मुझको सब माने।।२

मुझे फर्क पड़ता न कोई। अच्छा है ये किस्सा गोई।।३
जैसे चलता चलने देना। हमें किसी से क्या है लेना।।४

आखिर तुमसे डर है कैसा। माँग रहे क्या उनसे पैसा।।५
मृत्यु देव तुम माने जाते। आप नरक अधिपति कहलाते।।६

भैंसा वाहन चढ़कर चलते। गदा,पाश को धारण करते।।७
लाल वस्त्र तुम धारण करते। सब प्राणी जन तुमसे डरते।।८

पिता तुम्हारे सूर्य कहाते। अरु संज्ञा तेरी हैं माते।।९
अवतारी तुम धर्म कहाते।मृत्यु नियम पालन करवाते।।१०

तुम निवास यमलोक में करते। पितृलोक भी जिसको कहते।।११
तुम्हें नरक का राजा मानें।न्यायाधीश मृतात्मा जानें।।१२

कर्म लेख सबका रखवाते। स्वर्ग-नरक सबको पहुँचाते।।१३
पुनर्जन्म की माया रचते। प्राणी जिसको कहाँ समझते।।१४

जो जन जैसा कर्म है करता।उसको वैसा फल है मिलता।।१५
चित्रगुप्त जी जैसा लिखते। अक्षरश: तुम पालन करते।।१६

नाम तुम्हारा कोई न लेता । सारा जग तुमसे है डरता ।।१७
इतना भी वो नहीं समझता। अंतिम साथी तू ही बनता।।१८

इसमें दोषी किसको माने।सबके अपने राग तराने।।१९
कोई तुमको ना पहचाने। पर अपराधी पहले माने।।२०

सबकी अपनी-अपनी लीला। यम लीला से पड़ता पीला।।२१
कर्म -धर्म की ये दुनिया है। हर प्राणी बनता गुनिया है।।२२

नहीं मित्रता तुमसे करता। दूरी जाने क्यों है रखता।।२३
सबके प्राण समय पर हरते । भेद-भाव तुम कभी न करते।।२४

तुम कब इसकी चिंता करते। मस्त मगन अपने में रहते।।२५
नहीं शिकायत किसी की करते। मर्यादा में खुद को रखते।।२६

नियम धर्म का पालन करते। आप किसी से कभी न डरते।।२७
यूँ तो भूल चूक ना करते।हो जाये तो मान भी लेते।।२८

कभी आप न आलस करते। काम नियम से निश्चित करते।।२९
समय काल की फ़िक्र न करते। अपना भेद छुपाकर रखते।।३०

आवभगत कोई नहिं करता। अंतिम साथी यम से डरता।।३१
नहीं चाहता मम की बाँहें, भले कठिन जीवन की राहें।।३२

जो प्राणी तुमको है ध्याता। अंत समय में वो मुस्काता।।३३
नाहक तुमसे जो नहिं डरता। अंत समय में हँसता रहता।।३४

महिमा यम की जिसने जानी।कहती दुनिया उसको ज्ञानी।।३५
अद्भुत अनुपम आप कहानी। चाह रहा मैं जिसे सुनानी।।३६

जो जन यम का आदर करता। कभी नहीं वो किसी से डरता।।३७
सुख-दुख में सम भावी रहता। कभी नहीं असमय वो ढहता।।३८

शीश चरण निज आप झुकाता। कहता जो है आप विधाता।।३९
जो भी दिल में तुम्हें बसाता।संग आपके सदा सुहाता।।४०

-: दोहा :-
जय जय श्री यमदेव जी, करो जगत उद्धार।
आप क्षमा करते रहो, मम अनुचित व्यवहार।।

हाथ जोड़ विनती करुँ, झुका रहे ये शीष।
बस इतनी सी चाह है, मानूँ तव बागीश।।

।। इति यमराज चालीसा समाप्तम्।।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

आज हमारी निशानी
********
आज बड़ा गंभीर प्रश्न हमारे सामने आकर
हमारी आँखों में आँखें डालकर हमसे पूछ रहा है
कि बता रे तू आज का मानव- तुझे क्या हो गया है?
हमने कहा - हमें क्या हुआ बरखुरदार
और वैसे भी होना क्या था?
हमारे पुरखे बेवकूफ थे, बस! ये हमें समझ आ रहा है
बस उसी का भूल सुधार कर रहे हैं,
प्रेम-प्यार, भाईचारा, एकता में भला रखा क्या है?
हम आज उसका नामोनिशान मिटा रहे है
अपने पुरखों की करनी का दंड भला हम क्यों भोगें?
वो जो लकीर खींचते रहे उम्र भर
हम उसी लकीर को और बड़ा भला क्यों खींचे?
वो दौर और था, जब वे पैदा हुए
भूखे, प्यासे, अभावों में जिए
सुख-सुविधाएं मयस्सर नहीं हुईं
क्योंकि वे इस लायक ही नहीं रहे।
बस मान-मर्यादा, सामंजस्य, एकता, सहयोग
अपनापन, मानव मूल्यों की गाँठ कसकर पकड़े रहे,
समय के साथ बढ़ ही नहीं सके
और फिर हमें देकर ही क्या गए?
जो हम उनको अपने लिए नज़ीर मानें, उसी पर राह चलें।
अब समय बदल गया, तो हम भी बदल गये हैं
दकियानूसी सोच से निरंतर आगे बढ़ रहे हैं
अपने सुख-समृद्धि के लिए जतन करने में लगे हैं,
अपनों की लाशों पर पैर रखकर
आगे बढ़ने में संकोच नहीं कर रहे हैं,
रिश्ते नाते हमें महज़ किताबी लगते हैं
सच कहें तो ये सब महज खिताबी हैं
जिससे कभी पेट नहीं भरता
ईमानदारी से कहूँ, तो आज इसे कोई भाव भी नहीं देता।
इसीलिए तो रिश्ते बेमानी, स्वार्थी हो रहे हैं
किसी के मरने जीने से अब हम व्याकुल नहीं हो रहे हैं
प्रेम, प्यार, भाईचारा, संवेदना, मर्यादा को
बहुत गहराई में दफन कर दिए हैं,
बिना स्वार्थ किसी को नमस्कार भी नहीं कर रहे हैं।
पड़ोसी की मौत पर भी अब हम
बेवजह परेशान नहीं हो रहे हैं,
क्योंकि हम तो अपनों की मौत पर भी
अब आँसू बहाने का समय तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
क्योंकि हम सब इतने व्यस्त हो गए हैं
कि ये सब अब हमें समझ ही नहीं आ रहे हैं।
वैसे भी क्या रखा है? इन सब पचड़ों में पड़ने के
भला मरने के बाद कौन देखने आ रहा है,
फिर समय के साथ चलना आज की जरूरत है
जो पीछे रह गया, उसे मुड़कर कोई देखता भी नहीं
जब तक जियो, सिर्फ अपना देखो
यही आज की जरूरत और बुद्धिमानी है
जिसे इतनी भी समझ नहीं, वो सबसे बड़ा अज्ञानी है।
इसलिए ऐ प्रश्न! तू इन बेकार के लफड़े में मत फँस
वरना तेरी भी खत्म जिंदगानी है,
इतिहास तो महज एक कहानी है
तेरा प्रश्न ही आज के समय के हिसाब से
सच मान बिल्कुल ही बेमानी है,
जो मैंने कहा- यही आज हमारी निशानी है,
और आज हम सबकी एक सी कहानी है ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More