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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(660)

आधार कार्ड निष्क्रिय
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जीवन में भले ही हमें आपको
कुछ और मिले न मिले,
पर मृत्यु से साक्षात्कार जरुर होगा,
आप भले ही कैसे हों, कैसा भी सोचते हों
या फिर व्यवहार करते हों।
उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
उसे आना ही है, जो कि उसका ही प्रस्ताव है,
जिसे वो कभी भी नहीं वापस लेता
हम चाहें भी तो, वो हमें अवसर तक नहीं देता।
क्योंकि वो ऐसा ही है
अपने दामन पर दाग जो पसंद ही नहीं करता,
अपने मान- सम्मान, पसंद नापसंद से
एक निश्चित फासला बना कर रखता।
तभी तो अपने नैतिक कर्तव्य का पालन
पूरी ईमानदारी से कर पाता है,
हर किसी से रिश्ता जोड़ लेता है
जीवन का अंतिम मीत बन
अपना फर्ज निभा लेता है।
यह और बात है कि हम आप
कभी प्रसन्नता से उसका इंतजार भी नहीं करते
उसके स्वागत की कोई तैयारी भी नहीं रखते
उसके आने की खुशी का पूर्व में
किसी को निमंत्रण भी नहीं देते।
क्योंकि उसे तो आना ही होता है,
इसीलिए निर्विकार भाव से आ ही जाता है
हमसे यारी गाँठ हमें अपने साथ ले जाता है।
बस उसी पल से हमारा सांसारिक रिश्ता
हमेशा के लिए खत्म हो जाता है,
और हमें मरा घोषित कर दिया जाता है
हमारा आधार कार्ड निष्क्रिय मान लिया जाता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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जीवन अवसान की ओर
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यह विडम्बना है या हमारी सोच का तरीका
यह जानते हुए भी कि जन्म के साथ ही
हमारी जीवन यात्रा अपनी मंजिल की ओर
सतत बढ़ने लगती है।
हर पल, क्षण, सेकेंड, मिनट, घंटे,
महीने, वर्ष के साथ ही हमारी उम्र
अपने अवसान की ओर बढ़ती रहती है।
और हम बड़े गर्व से कहते हैं
कि हमारी उम्र बढ़ रही है,
इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं
कि वास्तव में हमारी उम्र घट रही है।
शायद हम इसी गुमान में अपनी खुशियाँ खोज रहे हैं,
सच से दो-दो हाथ करते हुए इठलाते हैं।
अच्छा है! यदि आप खुद को भरमाते नहीं
सच का सच में सम्मान करते हैं,
जीने के लिए अपने तरीके का उपयोग करते हैं,
घटती उम्र के बढ़ने का गुरूर नहीं करते हैं
जीवन के हर पल को ईश्वर का उपहार समझते हैं,
ईश्वरीय व्यवस्था में अवरोधक बनने का
प्रयास या दुस्साहस नहीं करते हैं,
अपने ढंग से जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं,
उम्र घट रही है या बढ़ रही है
इसके फेर में नहीं फँसते हैं,
ये मानव जीवन ईश्वर ने जो दिया हमको
इसके लिए हम उनका आभार धन्यवाद करते हैं
बारंबार नमन वंदन करते हैं,
अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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सावन या श्रावण
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श्रावण मास या सावन का महीना
यह माह भगवान शिव की पूजा, आराधना
और उनकी कृपा आशीर्वाद पाने के लिए
सबसे उत्तम माना जाता है।
इस माह के सोमवार की बड़ी महत्ता है,
इस मास के सभी सोमवार को बड़ा महत्व मिलता है,
स्त्री पुरुष सभी भक्तिभाव से यथासंभव
भगवान शिव की पूजा, आराधना, जलाभिषेक,
रुद्राभिषेक और व्रत, अनुष्ठान करते हैं,
भगवान शिव भी उनकी मनोकामनाएं
उनकी श्रद्धा विश्वास और समर्पण के अनुरूप
सदैव पूरी भी करते हैं।
वैसे भी जन- मानस की भी यह मान्यता है
कि श्रावण मास शिव जी को विशेष प्रिय है।
भगवान भोलेनाथ स्वयं ही यह कहते हैं
कि मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है।
इसका माहात्म्य सुनना, समझना, मनन, योग्य है
इसी मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है
जिसका महात्म्य श्रवण मात्र भी सिद्धि प्रदान करता है
इसीलिए इसे श्रावण कहते हैं।
श्रावण मास अपने आप में विशेष है
बदलाव के इस दौर में काँवड यात्राएं भी
नवरुप- रंग बिखेर रही हैं,
भगवान शिव जी के प्रति श्रद्धा विश्वास समर्पण की
एक नई अवधारणा का परचम लहरा रही हैं।
आम जनमानस स्व इच्छा से कांवड़ उठाता है
आज के दौर में अपने भक्तों का ये भाव
भगवान भोलेनाथ को खूब भाता है,
आम हो या खास, स्त्री हो या पुरुष
श्रावण मास का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है
तभी तो श्रावण मास में अभूतपूर्व हर्षोल्लास दिखता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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भूत भविष्य और वर्तमान
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हमारा जीवन घूमता है
भूत भविष्य वर्तमान के पहिए पर,
जिसके इर्द-गिर्द पैनी नजर रखता है
हमारे चिंतन का साफ दर्पण।
पर विडंबना देखिए?
हम जीते तो वर्तमान में, चिंता भविष्य की करते हैं,
और शोक भूत का सोच- विचार कर करते हैं।
कभी सोचते भी नहीं कि वर्तमान भी भूत होगा
भविष्य भी आने वाले समय में वर्तमान होगा
और फिर वो वर्तमान भी भूत हो जायेगा।
मगर अफसोस कि हम ईमानदारी से
वर्तमान में जी भी नहीं पा रहे हैं,
और रोना भूत का रोते रहते हैं
भविष्य की चिंता में दुबले हुए जाते हैं।
हम यह समझ ही नहीं पा रहे हैं
कि वर्तमान में जिएं, भूत का ग़म या गर्व न करें
भविष्य को लेकर बिल्कुल उतावले न हों।
समय के साथ वर्तमान, भूत
और भविष्य भी वर्तमान हो जायेगा
यह चक्र निरंतर चलता ही आ रहा है
और आगे भी सतत चलता ही जायेगा।
किसी का भूत, किसी का वर्तमान
और किसी का भविष्य होता है,
कोई पाता, कोई खोता, तो कोई हँसता, कोई रोता है
यही तो जीवन का चक्र है,
जिसका हमें पता भी नहीं होता।
वैसे भी भूत, भविष्य, वर्तमान
किसी के इंतजार में भला कब रुकता है?
फिर हमें आखिर इतना सदमा क्यों है?
बेहतर है, भूत का धन्यवाद करें
वर्तमान का खुलकर आनंद लें
और भविष्य का स्वागत नव प्रभात सा करें।
जीवन से कोई शिकवा, शिकायत न करें
जीवन जिएँ, ढोयें नहीं, रोयें नहीं
अपने वर्तमान से खुश रहें,
जीवन से मित्रवत व्यवहार करें,
भूत, भविष्य, वर्तमान के फेर में न फँसे
सच मानिए जीवन आसान हो जाएगा
जीने का वास्तविक आनंद तब ही अच्छे से आयेगा,
भूत ही नहीं भविष्य के साथ वर्तमान भी
खुद तो मुस्कराएगा और आपको भी हँसायेगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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शिव आयेंगे
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अभी अभी मित्र यमराज का फोन आया
सगर्व उसने मुझसे शिकायत करने लगा
प्रभु! कहाँ सो रहे हो, क्या आलसी हो गये हो।
मैंने उससे कहा- तू ऐसा क्यों बोल रहा है?
क्या मेरा सारा काम अब तू ही कर रहा है?
मुझे पता है, तू क्या कहना चाहता है
शिव आयेंगे यही बताना चाहता है।
यमराज झेंपते हुए बोला - हाँ प्रभु!आप तो अंर्तयामी हो
बिना कहे ही सब जान लेते हो,
मेरा अहसान मानो कि आप मेरे मित्र हो
तभी तो इतने समझदार हो।
मानता हूँ यार, अहसान भी मानता हूँ
अब मेरी बात ध्यान से सुन
तेईस जुलाई को शिवतेरस और
छब्बीस जुलाई को महाशिवरात्रि है,
शिव के भक्तों का सैलाब सड़कों पर है
उन सबका लक्ष्य शिवालय और शिव मंदिर है
कांवड़ियों के काँधों पर गंगाजल से भरा पात्र है
शिव को जल अर्पण का सभी का एक अदद विश्वास है
आम हो या खास, अमीर हो गरीब, स्त्री हो या पुरुष
बूढ़े, बच्चे, जवान सबके मन में लड्डू फूट रहे हैं,
शिव आयेंगे, इसीलिए सब शिव की राह देख रहे हैंं,
वैसे तो हर प्राणी अपने आप में शिव है
पर मानवीय संवेदनाओं का यही तो ज्वार है।
जिसे अपने भगवान भोलेनाथ समझते हैं,
इसीलिए तो अपने भक्तों के हृदय में बसते हैं
हर किसी पर अपनी कृपा बरसाते हैं,
सबके कल्याण का भाव ही नहीं
शिव आयेंगे, यह विश्वास भी जगाते हैं।
बीच में ही यमराज बोल पड़ा
बस! प्रभु समझ गया - इसीलिए तो हर शिव भक्त
भोलेनाथ की जय जयकार करते हैं
बम-बम भोले, ऊँ नमः शिवाय का जयघोष करते हैं
और हम आप भी हर हर महादेव गाते हैं,
और अब हम जय भोलेनाथ बोलकर फोन रखते हैं,
शिव बाबा की अगुवानी के लिए जल्दी ही आकर
हम भी आपके साथ ही चलते हैं,
अपनी राम कहानी औघड़ दानी को सुनाते हैं,
हम-आप मित्र हैं, यह भी भोलेनाथ को बताते हैं,
शिव के धाम तक अपनी और अपनी यारी की
खूब जय-जयकार कराने की एक राह बनाते हैं,
भगवान शिव के चरणों में सिर रखकर
हम- आप मिलकर फरियाद करते हैं,
शिव आयेंगे, का बैनर पोस्टर सारे देश में लगवाते हैं, मीडिया, सोशल मीडिया में अपना भौकाल जमाते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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व्यंग्य - रावण का गुमान
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सड़कों पर शिवभक्त कांवड़ियों का सैलाब उमड़ा था
जिसे देखने का मन यमराज का भी मचल उठा था।
बड़ी शराफत से वह एक घने वृक्ष पर
आकर चुपचाप बैठ गया,
बगल की डाल पर छुपकर बैठे
रावण को देखकर चौंक गया।
बड़े सम्मान से रावण को प्रणाम किया
और यहाँ छुपने का कारण पूछा-
कहने लगा- महाराज! क्या ये आपको शोभा देता है?
रावण दुखी स्वर में बोला
अच्छा तो नहीं लगता यार
पर तू ही बता क्या नाहक है मेरी पीड़ा का सार।
साफ-साफ कहो महाराज!
चोरी चुपके यहाँ आने का मकसद क्या है?
वैसे तो मैं तेरे सवालों का जवाब दूँ, यह मेरा अपमान है,
पर असलियत में मेरा सम्मान ही अब कहाँ बचा है?
हर साल विजय दशमी पर मेरा पुतला जलाया जाता है
उसके बाद आये दिन मानवरुपी रावणों द्वारा
मेरा नाम लगातार खराब किया जाता है,
आज जो जितना बड़ा रावण है,
वो उतना ही मुझे बदनाम करता है,
रावण को अपने पाँव की जूती समझता है,
अब तू कहेगा - इससे क्या फर्क पड़ता है?
तो सुन इससे रावण की छवि का ग्राफ गिरता है।
आज तू भी अपनी आँखों से देख ले-
कांवड़ियों की इस भारी भीड़ में भी
कुछ बहुरुपिए रावणों के तुझे दर्शन कराता हूँ,
अपनी असल पीड़ा का बोध कराता हूँ
चोरी चुपके इस पेड़ पर छुपने यही राज है,
जो बेमन से मैं तुझे बताता हूँ।
भोलेनाथ का सबसे बड़ा भक्त हूँ
इसलिए कुछ ज्यादा ही आहत होता हूँ,
अपने भगवान से भी नहीं कह सकता हूँ
अपनी बेबसी पर सिर्फ रो सकता हूँ।
यमराज हाथ जोड़ कर बोला -
अब कुछ मत कहिए महाराज
मैंने भी सब कुछ अपनी आँखों से देख सुन लिया,
अब मैं वापस अपने काम पर चलता हूँ,
रावण जल्दी बोला- फिर मैं ही अकेला क्या करुँगा यहाँ?
मेरे भगवन मुझे क्षमा करना
मैं भी अपने राज्य की ओर प्रस्थान करता हूँ।
चाहे जितने रावण हो जाएं इस धरती पर
पर अपनी शिव भक्ति का आज भी मैं
अपने आपका बड़ा सौभाग्य समझता हूँ,
लाख बदनामी के बाद रावण आज भी जिंदा है
और आगे भी रहेगा, इसका गुमान करता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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यमराज की कांवड़ यात्रा
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कांवड़ियों की भीड़ देखकर यमराज अकुलाया
उसके भी मन में कांवड़ यात्रा का विचार आया।
मुझे फोन मिलाया और फ़रमाया
प्रभु! मैं भी कांवड़ उठाऊँ? भोले को जल चढ़ा आऊँ?
मैंने समझाया - पहले सोच-विचार कर ले
अपने स्थानापन्न का भी इंतजाम कर लें
ऐसा न हो कि सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाये,
तू भोले को जल चढ़ाने जाये
और वहाँ तुझे देखकर भोलेनाथ को गुस्सा आ जाये।
यमराज मायूस होकर कहने लगा
प्रभु!अब आप ही कुछ जुगाड़ लगाइए
मेरे अरमानों को परवान चढ़वाइए,
कैसे भी मुझे कांवड़ यात्रा का सरल उपाय बताइए।
अब तू इतना जिद कर रहा है, तो आ जा
चुपचाप मेरे कंधे पर सवार हो जा,
मार्ग में ज्यादा उछल-कूद मत करना
मुझे छोड़ कर इधर उधर मत फुदकना।
जब मैं भोलेनाथ को जल चढ़ाऊँ
तो तू भी मेरे लोटे को पकड़े रहना।
हम दोनों का ही कल्याण हो जायेगा
कांवड़ यात्रा का आनंद ही नहीं
भोलेनाथ का आशीर्वाद भी मिल जायेगा,
हम दोनों को एक साथ
कांवड़ यात्रा का सुख मिल जायेगा
और आमजन जान भी नहीं पायेगा
भगवान भोलेनाथ को गुस्सा भी नहीं आयेगा,
मेरे साथ तेरा भी नाम सुर्खियों में आ जायेगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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कांवड़ यात्रा
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पग-पग पर विश्वास
चहुँदिश भोलेनाथ के जयकारों की गूंँज,
रंग-बिरंगे, तरह-तरह के काँवड लेकर जाते
नाचते गाते शिवभक्तों का जन सैलाब।
श्रद्धा और विश्वास से सराबोर, भरपूर जोशो जूनून
हर सांस में शिव संग माँ गंगा,
नंगे पांव, श्रद्धा से भरपूर अविचलित
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हर उम्र के काँवड़िए
देवों के देव महादेव के गूँजते जयकारे
शिवालयों, शिव मंदिरों में उमड़ते शिवभक्त।
काँवड़ यात्रा श्रद्धा, विश्वास, संकल्प का अनुष्ठान
गंगा जल से भरी कांवड़, शिव के प्रति समर्पण
यही है कांवड़ यात्रा का मतलब ।
और मिलती है हर शिवभक्त को भगवान शिव की कृपा
जिससे हर्षित शिव भक्त खुद का सौभाग्य मानते हैं,
अपने ही नहीं, परिवार, समाज,
राष्ट्र, संसार की खुशहाली के लिए
सब मिलकर शिव से फरियाद करते हैं,
शिव जी भी मौन मुस्कराहट के साथ
अपने हर भक्त पर अपार कृपा बरसाते हैं,
कांवड़ यात्रियों को भोलेनाथ खूब भाते हैं।
आइए! हम आप भी शिव जी को रिझाते हैं
कांवड़ियों के संग बोल बम ,बोल बम के
जयकारे लगाते, नाचते गाते हैं
अपना और अपनों का जीवन धन्य बनाते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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फोटो पर हार
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यह कैसी विडंबना है
जिसे हम आप स्वीकार नहीं करते
या यूँ कहें, करना ही नहीं चाहते।
क्योंकि हमें तो आदत है
सच को दूर ढकेलने की
अपने स्वार्थ सुविधा और दंभ में खेलने की।
पर क्या इतने भर से सच बदल जायेगा?
जो वास्तव में होना निश्चित है
वह इतने भर से लुप्तप्राय हो जायेगा?
ऐसा सोचिए भी मत, दिवास्वप्न देखिए मत
भ्रम से बाहर निकलिए और विचार कीजिए
सत्य की सत्यता को ईमानदारी से स्वीकार कीजिए।
आज चाहे जितना उछल कूद कर लीजिए,
धन-दौलत, सुख-सुविधाओं का घमंड कर लीजिए,
मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा का ढिंढोरा पीट लीजिए
या जो मन में आये, वो सब भी कर लीजिए।
पर यह सच स्वीकारने का साहस भी कीजिए
कि कल तो फोटो पर हार चढ़ना ही है,
हमारा अस्तित्व तो मिटना ही है,
फिर कोई अपना पराया नहीं होगा,
कोई हमारा नाम भी नहीं लेगा।
सब हमको चंद दिनों में भूल जायेंगे
और हम सबके लिए इतिहास बन जायेंगे
हमेशा के लिए अस्तित्व विहीन हो जायेंगे,
फोटो में दीवार पर लटके रहे जायेंगे
यदा-कदा औपचारिकताओं के पुष्प हार
हमारे फोटो पर चढ़ाए जायेंगे,
और हम हों या आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे
सिर्फ फोटो से एकटक देखते रह जायेंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा - गुरु ज्ञान
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जीवन में हम सब करें, कुछ तो ऐसा काम।
जीवन सुरभित हो उठे ,हर्षित हों घनश्याम।।

भौतिक जीवन में बहुत, मिलते हैं संताप।
गुरू कृपा से दूर हो, तन मन का अभिशाप।।

गुरू कृपा से ही बने, उत्तम जीवन राग।
मुश्किल कितनी हो बड़ी, मत उससे तू भाग।।

गुरू कृपा से ही मिले, जीवन पंथ अनन्य।
चरण पकड़ जा गुरु शरण , सांसें होगी धन्य।।

मातु पिता की सीख का, मत करना अपमान।
गुरु शिक्षा को संग में, भवतारण ले मान।।

मातु पिता गुरु पूर्णता, इतना लीजै जान।
शीष चरण इनके झुके, यही आज का ज्ञान।।

कितना भी कर लीजिए, महिमा गुरू बखान।
फिर भी सारा जग रहे, निश्चित ही अंजान।।

गुरु चरण में स्वयं को, सौंप दीजिये आप।
बस इतना ही जानिये, मन में रहे न पाप।।

मन में रखते जो सदा, अपने गुरु का ध्यान।
भव बाधा से मुक्त रह, मुश्किल हो आसान।।

सुधीर श्रीवास्तव

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