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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(14.8k)

दोहा मुक्तक
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मर्यादा
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मर्यादा का अब कहाँ, रखता मानव ध्यान।
कारण वो तो हो गया, आज बड़ा विद्वान।
देख-देख कर सभ्यता, डरी हुई आज,
कलयुग का यह ज्ञान है, या फिर है पहचान।।

मर्यादा का ढोल क्यों, पीट रहे हैं आप।
जान-बूझ या भूल कर, इतना ज्यादा पाप।
नहीं जानते क्या भला, या बनते अंजान,
कल में ही बन जायेगा, आज भूल अभिशाप।।
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सभ्यता
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आज सभ्यता रो रही, दोषी हैं हम-आप।
नहीं ज्ञान का बोध है, शीश ले रहे पाप।
जाने कैसा समय है, कैसे -कैसे लोग,
आज स्वयं के नाम का, करते रहते जाप।।

बता रही है सभ्यता, कैसे होंगे आप।
करते कितना पुण्य हैं, कितना करते पाप।
पर्दा जितना डालते, सब होता बेकार,
कितना मिलता आपको, नित्य बड़ों का शाप।।
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विविध
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नाहक ही नाराज़ हो, क्या कर लोगे आप।
दिलवा दूँ क्या आपको, मैं भी कोई शाप।।
कहना मेरा मान लो, रहना यदि खुशहाल,
आप यार यमराज का, करते रहिए जाप।।

कुछ लोगों के रोग का, कोई नहीं इलाज।
जिनके मस्तक है सजा, जूतों का नव ताज।।
समझाना बेकार है, ये सब बड़े महान,
करो खोज मिलकर सभी, क्या है इनका राज।।

दीप पर्व देता हमें, नव जीवन संदेश।
इस पावन त्योहार का, अद्भुत है परिवेश।
राम प्रभो को कीजिए, आप सभी तो याद,
मन से मित्र मिटाइए, अपने सारे क्लेश।।

बेमानी है आपका, इतना सोच विचार।
सबकी अपनी सोच है, अलग-अलग आधार।
व्यर्थ आप हलकान है, लगता हमें विचित्र,
बुद्धिमान इतने बड़े, समझ लीजिए सार।।

राजनीति के रंग का, अजब-गजब है रंग।
जनता भौचक देखती, होती दिखती दंग।
इतनी भोली है नहीं, जितनी दिखती आज,
कहना पड़ता इसलिए, पी रखी है भंग।।

दर्शन पाने का नहीं, करिए आप विचार।
अपने चाल चरित्र का, पहले देख विकार।।
भला ढोंग से क्या कभी, होता है कल्याण,
नहीं देखते स्वयं जो, अपने ही संस्कार।।

चलो मृत्यु से हम करें, मिलकर दो-दो हाथ।
आपस में सब दीजिए, इक दूजे का साथ।
मुश्किल में मत डालिए, नाहक अपनी जान,
वरना सबको पड़े, सदा पकड़ना माथ।।

दिल्ली में विस्फोट से, दुनिया है हैरान।
इसके पीछे कौन है, सभी रहे हैं जान।
मोदी जी अब कीजिए, आर-पार इस बार,
नाम मिटाओ धरा से, चाहे जो हो तान।।

वो भिखमंगा देश जो, बजा रहा है गाल।
शर्म हया उसको नहीं, भूखे मरते लाल।
युद्ध सिवा उसको‌ नहीं, आता कोई काम,
गलती उसकी है नहीं, पका रहा जो दाल।।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य-व्यंंग्य
बेइज्जती का भारत रत्न
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बिहार चुनाव परिणामों से आहत
एक बड़ी पार्टी के स्वनाम धन्य युवराज ने
हार के कारणों की समीक्षा बैठक में
राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया,
यह सुनकर बैठक में शामिल लोगों को सांप सूंघ गया।
सब एक साथ उठकर खड़े हो गए
और हाथ जोड़कर फरियाद करने लगे
माई बाप हमें अनाथ मत कीजिए
आप राजनीति से संन्यास मत लीजिए
आपकी की अगुवाई में हम चुनाव ही तो हार रहे हैं
पर मुफ्त में उल्टे सीधे आरोप भी तो
आप खुल्लम खुल्ला लगा रहे हैं,
और सबूत भी नहीं दे पा रहे हैं,
बदनामी का ठीकरा अपने सिर पर लेने का
इतिहास लिख रहे हैं,
अपनी हरकतों से लोगों का ध्यान खींच रहे हैं
अपने साथ औरों की भी तो लुटिया डुबो रहे हैं,
अपनी पार्टी की हार का रिकॉर्ड बना रहे हैं,
और तो और जमानत पर देश-विदेश
घूमने का मजा भी तो आप ले रहे हैं।
गलतियों पर गलतियाँ करते जा रहे हैं
पर सबक सीखने को तैयार नहीं हैं
अपनी मूर्खता का रिकार्ड बना रहे हैं।
पर आप तो पैदाइशी शहंशाह है
आप राजनीति से दूर जाने का ऐलान कर
ये कैसा अपराध करने जा रहे हैं,
सोचने समझने का काम विरोधियों और जनता का है,
बैठे-बिठाए उन्हें एक नया मुद्दा दे रहे हैं।
देश की चिंता, विकास की बात आप सोच नहीं सकते
तब हँसी का पात्र बनने से भी दूर कैसे जा सकते हैं?
हम सबको बेरोजगार करके आप खुश नहीं रह सकते।
अभी तो पार्टी में बहुत जान है,
इसकी अर्थी को काँधा देने से पहले
चाहकर भी कहीं नहीं जा सकते।
आपको हमारी बात माननी ही पड़ेगी,
वरना हम अनशन, भूख हड़ताल, विरोध प्रदर्शन करेंगे
देश भर में चक्का जाम करेंगे,
पार्टी की अवमानना के लिए आपके खिलाफ
न्यायालय की शरण में जाएंगे,
आखिर आप से बड़ा बेवकूफ हम दूसरा कहाँ से लायेंगे?
आप जो उल्टे सीधे ज्ञान बाँटते घूमते हो,
समय पर एक भी काम नहीं करते हो,
ऊपर से पीछा छुड़ाने का कुचक्र करते हो?
हम बेवकूफ नहीं हैं, जो आपको जाने देंगे
जब तक आपको खानदान सहित
बेइज्जती का भारत रत्न नहीं दिलवा देंगे,
पार्टी का अंतिम संस्कार
आपके हाथों करवा कर ही दम लेंगे
अपनी इस महान पार्टी का नाम
इतिहास में लिखवाकर ही हम विश्राम लेंगे,
और तब आपको राजनीति से दूर जाने की
ससम्मान सर्वानुमति दे देंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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यमलोक मंत्रालय का प्रस्ताव
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बिहार चुनाव परिणामों के बाद
मित्र यमराज पहुँच गये मोदी जी के पास,
बधाइयाँ दी, लड्डू खिलाया, माला पहनाया
और बिना देर किए यमलोक मंत्रालय का सुझाव दे दिया,
मोदी जी मुस्कराए, फिर फरमाए
महोदय! आपका प्रस्ताव सराहनीय
किंतु सरकार के लिए मुश्किलों का सबब है।
अभी तो अल्पसंख्यक मंत्रालय के लिए
नेता चिराग लेकर खोजना पड़ता है,
फिर यमलोक मंत्री भला हम कहाँ ढूँढ़ने जायेंगे ?
या किसी आत्मा को निर्यात कर यमलोक मंत्री बनाएंगे,
इसके बारे में भी आप कुछ बताएंगे, कोई नाम सुझाएंगे
जिसे इसके लिए सहर्ष तैयार भी कर पायेंगे।
या फिर ये जिम्मेदारी निभाने के लिए
खुद ही तैयार होकर आये हैं।
मोदी जी की बात सुन यमराज खुश हो कहने लगा,
आप मंत्रालय का ऐलान कीजिए
यमराज मित्र का नाम पहले यमलोक मंत्री के लिए
बिना हिचक घोषित कर दीजिए,
यथाशीघ्र शपथ दिलवाइए,
यमलोक मंत्रालय के लिए नया भवन बनवाइए
बिना टेंडर ये काम मुझसे मुफ्त करवाइए,
सरकारी धन भी बचाइए
उस धन को राष्ट्र के विकास में लगाइए।
यदि आप ऐसा करेंगे, तो इतिहास बनेगा
क्योंकि मेरा यार बिना किसी सुविधा सहूलियत के
मुफ्त में अपने मंत्रालय का काम करेगा,
कोई वेतन-भत्ता, आवास या वाहन भी नहीं लेगा
बिना स्टाफ के सब कुछ अकेले काम करेगा
यथा संभव कानून व्यवस्था में भी
अपना स्वैच्छिक सहयोग देगा,
पर कानून व्यवस्था को बिल्कुल बिगड़ने नहीं देगा।
अब आप सोचिए कि क्या करना है
यमलोक मंत्रालय बनाना है या मेरी नाक कटवाना है,
बहाना बना कर मुझे धीरे से टरकाना है,
और मेरे यार को सदमा पहुँचाकर
एक सर्वश्रेष्ठ प्रस्ताव को कूड़ेदान में पहुँचाना है।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य -मुझे अनशन करना है
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अभी-अभी मित्र यमराज आये
जाने क्यों थे, एकदम बौखलाए,
मैंने कहा - क्या हुआ यार
जो भागते हुए यहाँ आए।
यमराज ने बताया - कुछ खास नहीं
बस मुझे अनशन करना है
अन्ना हज़ारे से मुकाबला करना है,
आपको सिर्फ मेरा साथ देना है
और कल का केजरीवाल बनना है।
उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा तो आया
फिर भी मैं मुस्कराया और समझाया
तुझसे अनशन का भूत कहाँ टकराया।
आखिर तेरे अनशन का उद्देश्य क्या है?
अनशन की सलाह देने वाले शुभचिंतक का नाम क्या है?
यमराज झुँझलाया - मुझे कुछ नहीं पता
बस! मुझे अनशन करना है।
मुझे भी नाम- शोहरत चाहिए
मीडिया सोशल मीडिया में प्रचार, प्रसार चाहिए ।
कारण आप सोचते रहिए
अनशन की कागजी प्रक्रिया को पूरी कर
सीधे दिल्ली के रामलीला मैदान में आइए।
मैं अनशन करने वहीं जा रहा हूँ
भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी आपको दे रहा हूँ,
जाने किस-किस को धमका कर यहाँ आया हूँ
अब आप मना मत करना
वरना मोदी जी के पास जाऊँगा
पप्पू को भारत रत्न मिलना चाहिए, समझाऊँगा।
लीजिए! अब कारण भी बता रहा हूँ।
बेचारा हैरान परेशान हो रहा है,
वो जो चाहता है, उसे मिल ही नहीं रहा है
चुनाव दर चुनाव हार रहा है
नाहक हँसी का पात्र बन रहा है,
क्या अनशन का यह उचित आधार नहीं है?
देखते जाइए! मेरे अनशन से सरकार हिल जायेगी
इसके आगे हर समस्या बौनी हो जायेगी,
तब ही आपके प्रधानमंत्री को अक्ल आयेगी।
वे दल-बल के साथ दौड़ें-भागे मेरे पास आयेंगे
मुझे जूस पिलाकर अनशन तुड़वायेंगे,
पप्पू को भारत रत्न देने का हुक्म सुनाएंगे।
यमराज की बात सुन मैंने अपना माथा पीट लिया
ऐसा लगा जैसे इसने नशा कर लिया,
मैंने उसे पकड़ कर बाँध दिया
शाम तक खाना-पानी भी नहीं दिया,
समय के साथ भूख-प्यास से उसका नशा उतर गया,
उसने मासूमियत से कहा -
प्रभु! मुझे आपने इस तरह बाँध क्यों दिया ?
या भूख-प्यास से मारने का विचार कर लिया?
क्या मैंने कोई बड़ा अपराध कर दिया?
जो आपने मुझे इस तरह की सजा दे दिया।
मैंने उससे कहा- नहीं यार! मैंने तो कुछ नहीं किया
पर तेरे अनशन की जिद ने
मुझसे ये अपराध जरुर करा दिया
और मैं ऐसा करने को विवश हो गया।
यमराज हाथ जोड़कर बोला -
प्रभु! आपने जो किया, अच्छा किया
अब मुझे माफ़ी देकर आजाद करो
कुछ खाने-पीने का तत्काल इंतजाम करो,
भूख-प्यास से मेरी जान जा रही है,
मुझे अनशन वनशन से क्या मतलब
वैसे भी वो मेरा सगेवाला तो है नहीं,
फिर भारत रत्न कोई खिलौना भी नहीं?
जो किसी ऐरे गैरे को दे दिया जाना चाहिए,
फेल डिवीजन पास पप्पू को तो
सौ जन्मों बाद भी नहीं मिलना चाहिए।
हाँ! उसको मेरी मुफ्त की सलाह पर
तत्काल अमल करना चाहिए,
अब उसे संन्यासी बन जाना चाहिए
भगवा पहनकर धूनी रमाना चाहिए,
अपने खानदान के पापों का प्रायश्चित करना चाहिए।
मुफ्त की सलाह के लिए उसे मेरा धन्यवाद करना चाहिए,
मुझे अपना गुरु मान लेना चाहिए।
पर उससे इस तरह की उम्मीद रखकर
मुझे तो बेवकूफों वाला कोई काम भी नहीं करना है।
वैसे भी कोई काम तो वो ढंग से कर ही नहीं पायेगा
इसलिए पप्पू को बेरोजगार ही रहना चाहिए।
अब मैं भी अनशन का विचार छोड़ रहा हूँ
आपका इतना तो सम्मान कर ही रहा हूँ,
भोजन की थाली का इंतजार कर रहा हूँ।
इतना जरूर है कि आपने मुझे अनशन से बचाकर
बड़ा अपराध करने से बचा लिया है,
इसके लिए आपका बारंबार आभार, धन्यवाद कर रहा हूँ
दोनों हाथ जोड़, शीश झुकाकर प्रणाम कर रहा हूँ
फिर कभी अनशन की बात सपने में भी नहीं सोचूंगा
इस बात का आज वचन भी दे रहा हूँ
अपनी नादानी के लिए फिर से क्षमा माँग रहा हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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मृत्यु से मुलाकात करते हैं
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आइए! फुर्सत में दिख रहे हैं,
तो कुछ काम ही करते हैं
फिर आज तो मुझे भी कोई काम नहीं है
तो चलो मृत्यु से ही मुलाकात करते हैं
और अपना समय पास करते हैं।
कुछ अपनी कहते, कुछ उसकी सुनते हैं
अपने जज्बातों का आदान-प्रदान करते हैं
शिकवा शिकायतों से अपना मन ही हल्का करते हैं।
अब इसमें इतना संकोच कैसा?
हम वो हैं, जो इतिहास लिखने का दम रखते हैं।
अरे भाई चिंता क्यों करते हों?
मृत्यु के नाम से थर-थर काँपते क्यों हो?
चलो तुम्हारी जान-पहचान संग यारी भी करा देते हैं,
अपने इस शुभचिंतक की एक कप चाय पीते हैं
समय रहा तो खा-पीकर वापस आते हैं
एक समय का ही सही, अपने घर का राशन बचाते हैं।
अब इतना भी क्या शर्माना?
आज का यही है नया जमाना,
जीवन हो या मृत्यु, हर किसी से रिश्ता निभाना
जिसने इतना भी न जाना,
उसके लिए आज भी है ज़माना वही पुराना,
जिसने मृत्यु को नहीं जाना
सच मानो उसका जीवन हुआ बेगाना।
कर लेता है जो मृत्यु से यारी
वो ही अपने जीवन में जाता अच्छे से पहचाना।
इसीलिए आओ! समय का उपयोग करते हैं
फुर्सत में जब आज हम-दोनों ही हैं,
संग-संग चलकर मृत्यु से मुलाकात करते हैं,
हम कैसे जीते हैं, सारी दुनिया को दिखाते हैं
यारी-दोस्ती का एक और अध्याय लिखते हैं,
हम समय का दुरुपयोग नहीं करते,
उसका सदुपयोग करने के लिए हम जाने जाते हैं।
भेंट मुलाकात में ही समय बिताते हैं।
मृत्यु को भी नया आइना दिखाते हैं,
अपने जलवे का नमूना आज मृत्यु को भी दिखाते हैं
अरे यार तू इतना डरता क्यों है?
लगता है तू मृत्यु से बहुत डरता है?
जबकि डरना तो उसे चाहिए,
हम उससे मिलने नहीं, उस पर एहसान करने चल रहे हैं।
हमारे आवभगत का सौभाग्य पाने का
उसे एहसान मानना चाहिए,
हमारे यार को भी हमारे जैसा ही सम्मान देना है,
यह बात मृत्यु को भी गाँठ बाँध लेना चाहिए,
जब हम मृत्यु से तनिक भी नहीं डरते
तो तुझे भी बिल्कुल नहीं डरना चाहिए,
समय-समय पर इनसे-उनसे
भेंट मुलाकात कर समय काटते रहना चाहिए,
मृत्यु के साथ मिलकर अपना समय
हंसते -मुस्कराते हुए पास करना चाहिए,
कुछ और नहीं तो कभी-कभार
उस पर एहसान करते रहना चाहिए,
इसीलिए मृत्यु से मिलते रहना चाहिए।

सुधीर श्रीवास्तव

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नारा / स्लोगन
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शिक्षा का ना कोई मोल।
जीवन बन जाये अनमोल।।

बाँटो सदा ज्ञान का प्रकाश।
मिलेगा मन को संतोषाकाश।।

बाँटो जितना बढ़ेगा उतना
संग मिले सम्मान भी उतना।।

शिक्षक हमको शिक्षा देते।
जीवन की खुशियां भी देते।।

हर जन-मन एक वृक्ष लगाए।
हरी-भरी धरती मुस्काए।।

प्रदूषण को दूर भगाओ।
जन- जीवन को स्वस्थ बनाओ।।

ध्वनि प्रदूषण मत फैलाओ।
बीमारी को दूर भगाओ।।

जल जंगल जमीन बचाओ।
जिम्मेदारी आप निभाओ।।

कंक्रीट के जंगल बढ़ते।
कैसा मानव जीवन गढ़ते।।

ताल तलैया कुँए खो रहे।
खुशहाली के दौर रो रहे।।

बाग-बगीचे कहाँ बचे हैं।
केवल अब इनके चर्चे हैं।।

अब परिवार नहीं मिलते हैं।
बच्चे बालकपना खोते हैं।।

दादा-दादी, नाना-नानी।
इनकी केवल बची कहानी।।

पति पत्नी भी नये दौर में।
रहना चाहें अलग ठौर में।।

दौर हाइवे आज है आया।
वृक्षों की सामत है लाया।।

धर्म - संस्कृति का पोषक बनना।
निज जीवन को पावन रखना।।

मात -पिता आराध्य हमारे।
उनके बच्चे सबसे प्यारे।।

आपरेशन सिंदूर हुआ था।
पाकिस्तान बहुत रोया था।।

आपरेशन सिंदूर था भारी।
आई पाक के काम न यारी।।

सिंधु नदी का पानी रोका।
शूल पाक सीने में भोंका।।

भागम-भाग मचा जीवन में।
जैसे मानव है सदमे में।।

राजनीति का खेल निराला।
एक दूजा करता मुँह काला।।

राम अयोध्या आज पधारे।
रोशन हुए चौक-चौबारे।।

बच्चे समय से बड़े हो रहे।
नहीं किसी की बात सुन रहे।।

रिश्ते भी अब भाव खो रहे।
स्वार्थ सभी के बड़े हो रहे।।

मात- पिता लाचार हो रहे।
बच्चे उनसे दूर हो रहे।।

जाति-धर्म का खेल न खेलो।
ईश्वर अल्लाह आप न तोलो।।

राम रहीम में भेद नहीं है।
मानो कहना यही सही है।।

लव जिहाद का जाल है फैला।
जाने कितना मन है मैला।।

सुधीर श्रीवास्तव

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जीवन लक्ष्य
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जीवन का लक्ष्य निर्धारित कीजिए
उसके लिए किसी और पर आश्रित मत रहिए,
ये जिंदगी आपकी है
तो फिर इसकी बागडोर अपने हाथ ही रखिए।
सिर्फ लक्ष्य का नाटक मत करिए ।
लक्ष्य निर्धारित करने से पहले
खूब सोच विचार कर लीजिए,
क्या वास्तव में लक्ष्य पाने को आप तैयार हैं
खुद को खूब ठोंक बजाकर देख लीजिए
फिर ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प कीजिए,
पूरी शिद्दत, लगन से इसे हासिल कीजिए।
लक्ष्य भी ऐसा बनाइए
जो आपके सपनों से मेल खाता हो
न की आपका लक्ष्य ही
रोज-रोज आइना दिखाने को आतुर दिखता हो।
तब जीवन का लक्ष्य सफलता दिला सकता है
तब ही आपकाजीवन का लक्ष्य
सफलता का आयाम लिख सकता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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मोदी जी भारत रत्न दे दो
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कल मेरे मित्र यमराज ने अजूबा काम किया
मोदी जी को एक पत्र भेज दिया
पत्र की मातृभारती मुझे भी उपलब्ध करा दिया,
जिसे पढ़कर पहले तो मैं मुस्कराया
पर ईमानदारी से कहूँ तो फिर गुस्सा भी खूब आया।
उसने जो लिखा आप भी सुनिए
हंसिए, नाराज होइए या मजाक उड़ाइए
मगर पहले उसके पत्र का मजमून तो सुन लीजिए।
यमराज ने लिखा - सबके प्यारे मोदी जी
यमराज का प्रणाम स्वीकार कीजिए
और मेरी छोटी सी माँग पर यथाशीघ्र विचार कीजिए।
आप सबको कुछ न कुछ दे ही रहे हैं,
कुछ को माँग पर तो कुछ को बिना माँगे ही दे रहे हैं,
पर मैं जो चाहता हूँ, वो ऐसे आप दोगे या नहीं,
फिर भी शर्मोहया छोड़कर माँगकर रहा हूँ,
ज्यादा कुछ नहीं,
बस! अपने लिए सिर्फ भारत रत्न चाह रहा हूँ।
मगर आप परेशान न हों,
मैं भी बदले में कुछ दे ही रहा हूँ
यमलोक रत्न के लिए आपके नाम का
खुल्लम खुल्ला प्रस्ताव दे रहा हूँ।
आप कुछ भी करो, बस मुझे भारत रत्न दे दो
असली नहीं तो नकली ही दे दो,
हाथ जोड़कर कर फरियाद कर रहा हूँ,
प्यारे मोदी जी बस इतना सा एहसान कर दो।
चाहें तो खुफिया तंत्र से
मेरे चाल-चरित्र की जाँच करवा लें

सीबीआई -ईडी से पूछताछ करवा लें,
मेरे गरीब खाने पर छापा डलवा लें,
बैंक खाते सीज करा दें,
धन- संपत्ति की रिपोर्ट मंगवा लें।
आप कहो तो अपने मित्र से प्रस्ताव भिजवा दूँगा,
मिलने का समय दो तो साक्षात दर्शन भी दे दूँगा।
आप लोगों या विपक्ष की चिंता बिल्कुल मत करो
मैं एक साथ सबको सँभाल लूँगा,
जो ज्यादा चटर-पटर करने की कोशिश करेगा
उन सबके मुँह पर अलीगढ़िया ताला लगवा दूँगा,
आप इस समय जिसके बारे में ज्यादा सोच रहे हैं
उसके पीछे अपने चेलों को छोड़ दूँगा,
उसका हुक्का-पानी तक बंद करवा दूँगा
वैसे मुझे पता है, आप जो सोच भर लेते हैं
उसे पूरा करके ही साँस लेते हैं,
तो क्या मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते हैं?
वैसे राज की बात बताऊँ
मैं आपके बहुत काम आ सकता हूँ,
आपकी जगह चुनाव प्रचार कर सकता हूँ
लोगों को गुमराह कर सकता हूँ,
आपके लिए भीड़ जुटा सकता हूँ
वोट दिलवा सकता हूँ, सरकार बनवा सकता हूँ
भारत रत्न के लिए आपकी कुर्सी लेकर
आपके साथ हमेशा चल सकता हूँ,
उस पर किसी और बैठने से
हमेशा के लिए रोक सकता हूँ,
मतलब साफ़ है कि भारत रत्न के लिए
मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
अब आप मुझे बताइए तो सही
इतनी योग्यताओं के बाद भी
भारत रत्न भला क्यों नहीं पा सकता हूँ?
यूँ तो ट्रंप अमेरिका रत्न देना चाहते हैं,
नोबेल पुरस्कार वाले चैन से जीने नहीं दे रहे हैं,
मुल्ला मुनीर भी 'निशान-ए-पाकिस्तान' देना चाहता है,
पर सामने आने से डर भी रहा है।
ईमानदारी से कहूँ तो मैं सम्मान का भूखा भी नहीं हूँ
और सिर्फ भारत रत्न चाहता हूँ।
आपसे बड़ी उम्मीद से फरियाद कर रहा हूँ,
वरना मैं अच्छे-अच्छों को घास भी नहीं डाल रहा हूँ,
इज्जत का सवाल आड़े आ जाता है
इसलिए पत्र के द्वारा अपनी बात कह रहा हूँ।
अब इतना सोच विचार करना है
तो मैं अपनी फरियाद वापस ले रहा हूँ,
मगर यमलोक रत्न आपको ही दिया जाएगा
इसका सार्वजनिक ऐलान के साथ
अपनी भावनाओं पर भी अंकुश लगा रहा हूँ,
और आपको बहुत शुभकामनाएं दे रहा हूँ
चिंता मत करिए मुझे कोई दु:ख नहीं हो रहा है,
क्योंकि आपके हाथों में भारत का भविष्य
पूर्ण सुरक्षित दिखने के साथ-साथ
विकास की नई गाथा लिख रहा है,
नये भारत की नई कहानी दुनिया को सुना रहा है
और जाने क्यों ऐसा लग रहा है
जैसे रोज-रोज एक नया भारत रत्न मुझे मिल रहा है,
इसका मुझे गर्व भी हो रहा है,
यूँ तो अपने मित्र के सिवा किसी के आगे झुकता नहीं हूँ
पर आपको एक बार नहीं,
बार-बार शीष झुकाने का दिल कर रहा है,
अब मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ,
आपने इतना समय मेरा पत्र पढ़ने में बर्बाद किया,
इसके लिए आपका धन्यवाद करता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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देव दीपावली
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कार्तिक मास की पूर्णिमा को
देव दीपावली मनाया जाता है,
इसके पीछे त्रिपुरासुर राक्षस के अत्याचारों से
देवताओं को मुक्त कराने के उद्देश्य से
भोलेनाथ शिव द्वारा उसके वध को माना जाता है।
देवताओं ने काशी में दीप जलाकर
विजय का उत्सव दीप जलाकर मनाया था,
तभी से इसे देव दीपावली कहा जाने लगा था।
मन के नकारात्मक भावों को दूर करने के लिए
गंगा स्नान की परंपरा और घाटों पर दीप जलाकर
उत्सव रुपी देव दीपावली मनाने की परंपरा है
यह उत्सव अद्भुत अनुभव कराता है।
इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी है
प्रकाश के अंधकार पर और ज्ञान के अज्ञान पर
विजय को प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
देव स्थान पर दीपक जलाया जाता है,
जिसे हमारे द्वारा दीपदान भी कहा जाता है।
इस दिन एक, इक्कीस, इक्यावन अथवा
एक सौ आठ दीप जलाये जाते हैं,
जिसे हम-आप सभी शुभ मानते हैं,
इससे अधिक दीपक भी हम
स्वेच्छा से जलाने के स्वतंत्रत हैं।
इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं
और इन्हीं दीपों के प्रकाश में अपनी
पावन उपस्थिति का भाव जगाते हैं।
मान्यता है कि इस रात भगवान विष्णु तो
क्षीरसागर में विश्राम भी करते हैं।
देव दीपावली के दिन शाम को पूजा-पाठ के बाद
पीली वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है,
किसी निर्धन, गरीब, असहाय को खाने-पीने की चीजों
या धन का दान करने का सुखद परिणाम मिलता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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आनंद
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आनंद क्या है?
हर किसी के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं।
जो इसे जिस भाव में लेता है , आत्मसात करता है,
वो वैसे ही आनंद में जीता है।
कोई अपने सुख, तो कोई औरों के सुख में,
कोई सेवा भाव, तो कोई समाज, राष्ट्र की सेवा में
आनंद का सुख पा जाता है।
इतना ही नहीं कुछ ऐसे भी हैं
जो दीन-दुखियों, रोगियों, असहायों की
सेवा से असली आनंद उठाते हैं,
तो कुछ उन बुजुर्गो का सहारा बन
अपना जीवन धन्य बनाते हैं,
जिनसे उनके अपने ही मुँह मोड़ लेते हैं।
यह दुनिया बड़ी अजीब है साहब
यहाँ तरह-तरह के अपराध करने में भी
असीम आनंद उठाएं जाते हैं,
नकली चोले की आड़ में भी
नव आनंद खोजे जाते हैं,
और तो और
अब तो आनंद भी बाजारीकरण का
शिकार होते दिख ही जाते हैं।
इतिहास गवाह है कि आनंद का अनुभव
निज अंर्तमन से महसूस होता है,
जिसे शब्दों में ढालने का हर प्रयास
सिर्फ अधूरा-अधूरा सा आभास देता है,
और उलझाकर छोड़ देता है।

सुधीर श्रीवास्तव

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