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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(18.1k)

सच ही लिखेंगे
*************
कुछ लिखने की सोच तो रहा हूँ
पर समझ नहीं आ रहा है कि लिखूँ क्या?
क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?
ज्यादा नहीं थोड़ा अहसान कर सकते हैं?
मगर आप तो करोगे नहीं?
क्योंकि आपके हाव-भाव यही तो कह रहे हैं।
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा
आज नहीं तो कल जरूर लिखूँगा ।
मगर जब भी लिखूँगा, आपका पर्दाफाश ही करुँगा?
यह मत सोचिए कि मुझे कुछ पता नहीं है
सब कुछ जानता हूँ आपके बारे में
आपके नकली मुखौटे या चाल, चरित्र, चेहरे की
सब जानता हूँ, सारा कच्चा चिठ्ठा खोल कर रख दूँगा।
फिर भी थोड़ा इंतजार कर रहा हूँ
कि शायद अब भी आप सुधर जाएँ,
अपनी कमियों का अहसास कर सुधार में जुट जाएँ।
यदि आप ऐसा करेंगे भी
तो किसी पर अहसान बिल्कुल नहीं करेंगे,
बल्कि अपनी ही छवि में सुधार करेंगे।
हमारा क्या है? हम तो हैं ऐसे,
जैसा कि आप भी अच्छे से जानते हैं
आज लिखें या कल, पर सच ही लिखेंगे।
तब आप सबसे पहले दोष तो मुझे ही देंगे,
मगर मैं भी क्या करुँ, आदत से मजबूर हूँ,
आइने की धूल हटाकर सामने कर देंगे
और आपका इतिहास दुनिया को अच्छे से पढ़ा देंगे।
वैसे भी कौन सा आप मेरे बड़े खैरख्वाह हो
जो मेरा तंबू उखाड़ कर फेंक दोगे,
सच कहता सिर्फ खुद पर शर्मिन्दा होंगे
और मुझे जी भर कर गालियाँ देते हुए
मुंँह छिपाते इधर-उधर फिरोगे
क्योंकि आप चाहकर भी रोक नहीं पाओगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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मायूसी
*********
मायूसी महज एक विचार, एक भाव है
हमारी नकारात्मकता और आत्मिक कमजोरी है,
खुद पर अविश्वास मिश्रित डर है।
मायूसी को हम-आप बढ़ावा देते हैं
उसे अपने सिर पर बिठाते हैं,
उसके स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाए देते हैं
खुद पर हावी होने का अवसर देते हैं।
वरना मायूसी इतनी मजबूत नहीं है
जो हम पर भारी पड़ जाये,
और खूँटा गाड़ कर बैठ जाये।
यदि हम उसे अवसर ही न दें तो
मायूसी खुद मायूस होकर वापस लौट जाएगी।
अच्छा है मायूसी को भाव देना बंद कीजिए
अपने आप पर इतना तो विश्वास कीजिए,
मायूसी यदि हठधर्मी पर उतर आए
तो उससे दो दो हाथ करने का हौसला कीजिए।
मायूसी आपसे है, आप मायूसी से नहीं
यह भाव निज मन में जगाए रखें,
तब मायूसी खुद-बखुद मायूस हो जायेगी
जब उसकी दाल ही नहीं गल पायेगी,
तब वो हमारी आपकी बगलगीर बनने की
भला सोच ही कब पायेगी?
हमारे आपके पास कौन सा मुँह लेकर आयेगी,
मजबूरी में ही सही दूर ही रहेगी
और जैसे तैसे अपना मुँह ही तो छिपायेगी,
मगर आसपास नजर नहीं आयेगी।

सुधीर श्रीवास्तव

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शिखर पुरुष डा. राजेन्द्र प्रसाद जी
***********
तीन दिसंबर को अठारह सौ चौरासी को
जन्में थे बाबू राजेन्द्र प्रसाद,
जीरादेई गाँव, जिला सीवान, बिहार राज्य को
इसीलिए तो करते हैं हम सब याद।
कमलेश्वरी देवी माता उनकी,
पिता थे सहाय शंकरदयाल,
स्वतंत्र भारत का प्रथम राष्ट्रपति यही बना था लाल।
एक महान वकील, शिक्षक और लेखक
जिसने अपना जीवन समर्पित कर दिया,
पूरी तरह देश सेवा के नाम ।
भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान देकर
किया था श्रेष्ठतम काम,
1962 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
भारत रत्न हुआ उनके नाम।
महान नेता, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षा शास्त्री
सादगी, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता से
उन्हें मिला महान नेता का मान-सम्मान,
1950 से 1962 तक बारह वर्ष तक
राष्ट्रपति पद किया शोभायमान।
शिक्षा, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता को
बढ़ावा देने में बड़ा योगदान दिया,
संविधान सभा के अध्यक्ष बने
भारतीय संविधान के निर्माण में
महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया,
संविधान सभा बैठकों की अध्यक्षता
संविधान के मसौदे पर चर्चा-परिचर्चा में
अग्रणी रहकर सक्रियता से भाग लेकर
अपनी नेतृत्व क्षमता और समझ से
संविधान निर्माण में श्रेष्ठतर योगदान दिया,
अपनी पुस्तक "इंडिया डिवाइडेड" से भी
दुनिया में बड़ा नाम, सम्मान, पहचान प्राप्त किया
28 फरवरी 1963 को उनके देहावसान से
एक दैदीप्यमान दीपक बुझ गया।
उनकी सादगी, दूरदृष्टि, कर्मशीलता और नेतृत्व क्षमता
आज हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है,
उनके आदर्शों को आत्मसात करते हुए
देश सेवा में अपना योगदान ही हमारा उद्देश्य है।
ईश्वर हमारी प्रार्थना को स्वीकार करें
हममें सादगी, ईमानदारी, देश सेवा का भाव भरें,
आज बाबू राजेन्द्र प्रसाद जी की जयंती पर
हम सब उन्हें नमन वंदन करते हैं,
उनके व्यक्तित्व, कृतित्व को याद करते हैं
उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेते हैं
और अपने श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हैं,
बड़ी शिद्दत से हम सब भारतवासी
शिखर पुरुष बाबू राजेन्द्र प्रसाद जी को याद करते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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किनारा
*******
किनारा करने की वजह का मूल्यांकन जरुरी है,
या किनारा करने की सिर्फ मजबूरी है,
जो भी है, आजकल रिश्तों में बढ़ रही दूरी है।
अपने अपनों से किनारा कर रहे हैं,
बेवजह के आरोप लगा खुद को सही बता रहे हैं,
पर कौन समझाए हमारी सोच को?
जो हम अपने माता-पिता से भी किनारा कर रहे हैं,
अपनों को ही अपना दुश्मन मान लें रहे हैं।
रिश्तों में औपचारिकताओं का बोलबाला बढ़ रहा है,
और तो और मानव मशीन बनता जा रहा है,
अपने और अपनों की बात तो छोड़िए
वो तो अपने आप से भी किनारा कर रहा है।
संवेदनाओं को ढकेल कर किनारे कर रहा है,
प्रतिस्पर्धा में अपने हित और भविष्य को भी
ताक पर रखने को आतुर हो रहा है,
आधुनिकता के इस दौर में मानव
तकनीक की मशीन बनने की ओर स्वयं ही बढ़ रहा है।
मानव ही मानव को दफन कर रहा है
परिवार समाज से किनारा कर रहा है,
इस चक्कर में उल्टे सीधे तर्क दे रहा है
अपने आपमें से ही उलझता जा रहा है,
ऐसा लगता है कि बुद्धि विवेक से हीन हो रहा है।

सुधीर श्रीवास्तव

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किनारा
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किनारा करने की वजह का मूल्यांकन जरुरी है,
या किनारा करने की सिर्फ मजबूरी है,
जो भी है, आजकल रिश्तों में बढ़ रही दूरी है।
अपने अपनों से किनारा कर रहे हैं,
बेवजह के आरोप लगा खुद को सही बता रहे हैं,
पर कौन समझाए हमारी सोच को?
जो हम अपने माता-पिता से भी किनारा कर रहे हैं,
अपनों को ही अपना दुश्मन मान लें रहे हैं।
रिश्तों में औपचारिकताओं का बोलबाला बढ़ रहा है,
और तो और मानव मशीन बनता जा रहा है,
अपने और अपनों की बात तो छोड़िए
वो तो अपने आप से भी किनारा कर रहा है।
संवेदनाओं को ढकेल कर किनारे कर रहा है,
प्रतिस्पर्धा में अपने हित और भविष्य को भी
ताक पर रखने को आतुर हो रहा है,
आधुनिकता के इस दौर में मानव
तकनीक की मशीन बनने की ओर स्वयं ही बढ़ रहा है।
मानव ही मानव को दफन कर रहा है
परिवार समाज से किनारा कर रहा है,
इस चक्कर में उल्टे सीधे तर्क दे रहा है
अपने आपमें से ही उलझता जा रहा है,
ऐसा लगता है कि बुद्धि विवेक से हीन हो रहा है।

सुधीर श्रीवास्तव

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धर्म ध्वजा लहराया
**********
पच्चीस नवंबर दो हजार पच्चीस का दिन
जब अयोध्याधाम में जन-जन के राम
प्रभु श्रीराम के भव्य-दिव्य मंदिर के शिखर पर
धर्म ध्वजा पूरी गरिमा से फहराया गया,
उस पल हर सनातनी का माथा
प्रभु श्रीराम के श्री चरणों में श्रद्धा से झुक गया,
सनातन धर्म का नव इतिहास रच गया।
जब सदियों का सपना आज पूरा हो गया
जैसे फिर से रामराज्य वापस धरा पर आ गया,
कल्पना के राम कहने वालों को काठ मार गया,
राम और राम मंदिर विरोधियों को
एक बार फिर साँप सूँघ गया।
सब कुछ सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हो गया,
रामराज्य के नये युग का श्री गणेश हो गया।
अनगिनत रामभक्तों के पांच सौ सालों की तपस्या
त्याग, संघर्ष, बलिदान और धैर्य
सफलता की नई इबारत लिख गया।
इसका अहसास हम सबको भी हुआ
जब देश के प्रधान सेवक ने
ध्वजारोहण के बाद हाथ जोड़कर
लहराते ध्वज को पूरी श्रद्धा से नमन किया,
कँपकंपाते हाथ और मुखमंडल पर
दिखी भावुकता और आत्मसंतोष से महसूस हुआ।
तब मेरे मन में एक अलग ही भाव आया
क्या मोदी जी को प्रधानमंत्री जनता ने बनाया
या ये है जन-जन के श्री राम की माया।
जो भी है, इस पर माथापच्ची बेकार है
ये समूचे सनातन धर्म का सौभाग्य है
जो सनातन के प्रतीक राममंदिर पर
आज फिर से धर्म ध्वजा तो लहराया,
जो सिर्फ हमें ही नहीं सारी दुनिया को नजर आया
और हर प्राणी ने श्रद्धा, विश्वास और
बड़े सुकून से प्रभु श्रीराम को शीश झुकाया
विवाह पंचमी का उत्सव भी संग में मनाया।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा मुक्तक
**************
चलो मृत्यु से हम करें, मिलकर दो-दो हाथ।
आपस में सब दीजिए, इक दूजे का साथ।
मुश्किल में मत डालिए, नाहक अपनी जान,
वरना सबका एक दिन, घायल होगा माथ।।

दिल्ली में विस्फोट से, दुनिया है हैरान।
इसके पीछे कौन है, सभी रहे हैं जान।
मोदी जी अब कीजिए, आर-पार इस बार,
नाम मिटाओ दुष्ट का, चाहे जो हो तान।।

वो भिखमंगा देश जो, बजा रहा है गाल।
शर्म हया उसको नहीं, भूखे मरते लाल।
युद्ध सिवा उसको‌ नहीं, आता कोई काम,
गलती उसकी है नहीं, पका रहा जो दाल।।

हम तो हारे हैं नहीं, कैसे कहते आप।
सीट भले आई नहीं, मानें क्यों हम शाप।
अभी टला खतरा नहीं, लोकतंत्र से यार,
हम भी कहते गर्व से, हुआ चुनावी पाप।।

मोदी आँधी में उड़े, खर-पतवारी रंग।
सोच-सोच सब हो रहे, गप्पू पप्पू संग।
जनता ने ऐसा दिया, चला बिहारी दाँव,
जीते-हारे जो सभी, परिणामों से दंग।।

ये कैसा परिणाम है, टूट रहा परिवार।
कल तक जो थे दंभ में, बना रहे सरकार।
आज बिखरता देखिए, भटक रहे हैं लोग,
एक चुनावी फेर में, कहाँ गया दरबार।।

धर्म ध्वजा फहरा रहा, रामराज्य के नाम।
जन मानस है कह रहा, अब होगा सुखधाम।
अब अपने कर्तव्य का, करो सभी निर्वाह,
तभी करेंगे राम जी, सबके पूरण काम।।

आज स्वार्थ का दौर है, फैला चारों ओर।
अँधियारा भी किसी का, है चमकीला भोर।
सावधान जो है नहीं, वह खायेगा चोट,
बहुरुपिए ही कर रहे, सबसे ज्यादा शोर।।

समय-समय की बात है, देख लीजिए रंग।
मौन साध कर देखिए, नहीं होइए दंग।।
जीवन के इस सूत्र का, हुआ नहीं है शोध,
इसीलिए तो पड़ रहा, सर्व रंग में भंग।।

सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

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मृत्युलोक रत्न उपाधि
************
कल आनलाइन एक पत्र
मैंने मृत्यु को भिजवाया,
जिसका जवाब तत्काल आया,
धैर्य रखिए जनाब, लिस्ट लंबी है
आपका नाम लिस्ट में ही कहीं नहीं है
आप यमराज के मित्र हो
इसलिए आपको जवाब दे दिया
वरना अभी तो अधिकांश का मेल भी नहीं देख पाया।
काम का बोझ इतना है, कि सब गड्ड-मड्ड हो रहा है,
ईमानदारी से कहूँ तो कुछ उलटफेर भी चल रहा है
लाइन में आगे वाले को पीछे ढकेलकर
पीछे वाला पहले आने के लिए मरा जा रहा है।
ऊपर से आनलाइन का बड़ा लफड़ा है,
डिजिटल अरेस्ट का भी खतरा है।
इसलिए हमारा सारा काम-काज
सोलहवीं शताब्दी के हिसाब से चल रहा है,
सिर्फ ई-मेल की व्यवस्था का
तकनीकी उपयोग हो रहा है।
ये तो अच्छा है कि आपका मेल मैंने देख लिया
वरना अनर्थ हो जाता,
हो सकता है, अब तक आपका टिकट भी कट जाता।
शुक्र है कि कारण बताओ नोटिस से मैं बच गया।
अब आप मेरा कहना मानो
और मेल भेजने का कष्ट कभी न करो,
सुविधानुसार आपको ले आऊँगा।
बस! आप स्वस्थ, मस्त, व्यस्त रहो
यमराज से नोक -झोंक करते रहो
कविताओं का पुलिंदा बनाकर रखते रहो,
यहाँ भी एक भव्य कवि सम्मेलन करवा दूँगा,
प्रतिष्ठित सम्मान, उपाधि भी आपको दिलवा दूँगा,
कोई नहीं तो मैं ही मृत्युलोक रत्न उपाधि,
मोमेंटो और एक खूबसूरत शाल के साथ
आपको सम्मानित कर दूँगा।
आप चिंता बिल्कुल मत करो
प्रचारित, प्रसारित भी करवा दूंगा
आपका नाम मृत्युलोक में भी चमका दूँगा,
राज की बात है रहने दीजिए
आपको वीवीआईपी सुविधाएँ भी दिलवा दूँगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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फार्मूला
*******
जिद्दी हो, तो जिद करते रहिए,
मन की तसल्ली की खातिर
जो मन में आये, करते रहिए,
नासमझों को मनाने का
हर संभव प्रयास करते रहिए।
बड़ी फुर्सत में हो तो, ये भी सही है प्यारे,
बेवजह रुठने वालों को जबरन याद करते रहिए,
मासूमियत की आड़ में बेकार हर अदा होगी,
प्यार के साथ तनिक विवाद भी करते रहिए।
जिन्हें आपकी चाहतों, अदाओं, कोशिशों को
नजरंदाज करने की आदत है,
उनसे ज्यादा तो नहीं, बस! दो- दो हाथ भी करते रहिए,
या फिर उन सबसे आँख फेरने का हुनर
तत्काल ही सीख लीजिए,
यदि गुरु की दरकार हो तो आकर हमसे मिलिए।
मगर अपने बीपी, शुगर पर नियंत्रण रखिए
संयम संग सदा हँसते-मुस्कराते रहिए,
कभी-कभार हमको भी मना लिया करो जनाब
इसके लिए यदि रुठना जरुरी है
तो उधार में फार्मूला बाँटते रहिए।

सुधीर श्रीवास्तव

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बारात आमंत्रण
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लीजिए, स्वीकार कीजिए
मेरी अंतिम यात्रा का निमंत्रण,
जिसे आप मेरे जीवन की
दूसरी बारात भी कह सकते हैं, और नहीं भी
यह आपका सर्वाधिकार है।
पर यह भी सच है कि किसी ने आपको
ऐसा निमंत्रण नहीं दिया होगा
जो मैं आपको अग्रिम दे रहा हूँ,
जिसका समय, तिथि, मुहूर्त सब समय के गर्भ में है
पर एक दिन यह बारात भी निश्चित है।
चार कंधों पर बड़ी शान से
आप सब मुझे लेकर मेरी बारात में चलोगे,
और चुपचाप मुझे ही अकेला छोड़ घर लौट आओगे।
पर मुझे अकेला छोड़ आने का
तनिक भी मलाल मत करना,
क्योंकि मैं तो शहंशाह की तरह
दूसरी दुनिया में चला जाऊँगा।
आप सब मुझे देख नहीं पाओगे
मिलना चाहोगे, पर मिल नहीं पाओगे,
बात करना और शिकवा, शिकायत भी करना चाहोगे, पर अफसोस, ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर पाओगे,
कुछ दिन याद करोगे, फिर एक दिन भूल जाओगे।
सब अपने-अपने कर्मों का खेल है,
हम तो चले जायेंगे, आप यहीं रह जाओगे,
हम तो वहाँ से भी आप सबको देख पायेंगे,
चाहेंगे, मगर आपके किसी काम नहीं आ पायेंगे,
हम वहाँ और आप यहाँ जीवन बिताएंगे
पर अफसोस कि अपनी इस बारात का
हम लुत्फ बिल्कुल भी नहीं उठा पायेंगे,
और इस दुनिया को अलविदा कह
चुपचाप अपनी नई दुनिया में रम जायेंगे
अपने कर्मों के हिसाब से सुख-दुख का
भरपूर आनंद उठायेंगे,
आप सबको अपना आभार धन्यवाद वहीं से पहुँचाएंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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