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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(14)

व्यंग्य
हिंदी मान या सिर्फ मेहमान
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हिंदी हमारा मान है, सम्मान है
हमारा ही नहीं भारत का गौरव गान है,
हिंदी की बिंदी हम सबका सम्मान, स्वाभिमान है।
पर यह विडंबना भी तो है
कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी
हम हिंदी को उसका स्थान नहीं दिला पाये,
जिसकी हकदार है हिंदी
वो सम्मान कहाँ दे पाये।
हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा मनाकर
हम खुद को ही गुमराह कर रहे,
मन की तसल्ली के लिए बस हिंदी दिवस का
केवल झुनझुना बजा रहे।
विश्व पटल पर हिंदी को स्थापित नहीं कर पाए
क्योंकि हम ईमानदार प्रयास का साहस नहीं जुटा पाए,
या यूँ कहें कि हम आप सब
औपचारिकताओं में जीने के आदी हो गए हैं,
सम्मान स्वाभिमान की फ़िक्र हम करते कहाँ हैं
सिर्फ दिखावे का ढोल पीटकर खुश हो जाते हैं।
हिंदी माथे की बिंदी, देश का गौरव, राजभाषा है
सच कहें तो यह सिर्फ ढकोसला है।
ईमानदारी से आंकलन तक नहीं कर पाते
हिंदी के वास्तविक स्थान का ऐलान करने का
साहस तक नहीं जुटा पाते।
पहले स्थान पर होने का आंकड़ा तक नहीं रख पाते,
वैश्विक स्तर पर हम हिंदी के पक्ष में
मजबूत दीवार की तरह नहीं अड़ पाते।
हिंदी दिवस सप्ताह पखवाड़ा मनाकर सो जाते
हिंदी मेरा आपका देश का मान है
अपने आप कहकर मुस्कुरा कर रह जाते,
हम हिंदी पर बड़ा गुमान करते हैं,
और विभिन्न आयोजनों की आड़ लेकर
बड़ी सफाई से खुद को शर्मिंदगी से बचा लेते हैं,
और इतना भर कहकर रह जाते
कि हिंदी हमारा मान सम्मान है।
अब यह सोचने समझने की जरूरत है
कि ये हिंदी का सम्मान या अपमान है
या हिंदी सिर्फ हमारी मेहमान है।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई - हिंदी
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बड़ी सरल है हिंदी भाषा।
हम सबकी हिंदी अभिलाषा।।
हिंदी बिंदी चमक रही है।
हिंदी भाषा दमक रही है।।

सीधी साधी बोली बानी।
कहते सब हिंदी के ज्ञानी।।
बहु भाषा की जननी हिंदी।
भेदभाव ना करती हिंदी।।

सबको मीठी लगती हिंदी।
माथे की जैसे ये बिंदी।।
हिंदी विश्व पटल पर छाई।
लगती मीठी जस पुरवाई।।

आओ इसका मान बढ़ायें।
मस्तक इसके तिलक लगायें।।
हम सब मिल इसके गुण गाएं।
नित विकास की कथा सुनाएं।।

राष्ट्र भाषा का स्थान दिलायें।
चाहे करना जो पड़ जाये।।
तुलसी अरु कबीर की भाषा।
गांधी बाबा की अभिलाषा।।

जन जन ने इसको है सींचा।
पर मुट्ठी को कभी ना भींचा।।
आज घड़ी फिर से आयी है।
हिंदी संदेशा लायी है।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई छंद - बुद्धि

बड़े बड़े हैं बुद्धि ‌ प्रदाता।
हमको समझ कहाँ कुछ आता।।
गणपति लीला जिसने जानी।
कहलाता वो ही है ज्ञानी।।

अज्ञानी मैं तुम मम स्वामी।
मुझको तारो हे अंतर्यामी।।
तेरे चरण शरण तब आया।
जब सारे जग ने ठुकराया।।

रिद्धि सिद्धि के तुम हो स्वामी।
शिव गौरी सुत हो बहु नामी।।
पूजन प्रथम तुम्हारी होती।
सफल काज मिलते हैं मोती।।

बुद्धि प्रदाता तुमको मानें।
गणपति हम तुमको अब जाने।।
विद्या बल विवेक के दाता।
तुमसे है हर जन का नाता।

बुद्धि हीन हैं हम बहु स्वामी।
लोभी दुष्ट प्रपंची कामी।।
गणपति बेड़ा पार लगाओ।
भव सागर से पार कराओ।।

बुद्धिहीन नर पशु कहलाता।
जग में मान कभी नहिं पाता।।
बुद्धि विवेकी जिसका नाता।
वो सम्मान सदा जग पाता।।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा -कहें सुधीर कविराय
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धार्मिक
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कृष्ण जन्म अब हो गया, छाया चहुँदिश हर्ष।
फैलेगा अब नित्य ही, खुशियों का उत्कर्ष।।

मन से कीजिए प्रार्थना, प्रभु का करके ध्यान।
जीवन के हर कष्ट का, होगा तब संधान।।

दीन दुखी जो भी करें, ईश्वर से अरदास।
पूरी हो हर कामना, जब मन में विश्वास।।

शनिदेव देते नहीं, सदा किसी को कष्ट।
केवल उतना दंड दें, जितना वो पथ भ्रष्ट।।

माता रानी कीजिए, कृपा सभी पर आप।
हर प्राणी का हो भला, मिटे शोक संताप।।

जप -तप के ही साथ में, करिए मानव कर्म।
नहीं किसी को कष्ट हो, मानवता का धर्म।।
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विविध
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करो सामना आप ही, रखो पावनी आस।
जीत आपकी हो तभी, कृष्ण सारथी खास।।

सदा सर्वदा युद्ध से, रखो फासला आप।
रखें भावना शांति की, पूर्ण कामना जाप।।

मानेगा तब शत्रु भी, करो सामना मित्र।
जायेगा तब वो समझ, अड़ा सामने चित्र।।

मानेगा तब शत्रु भी, करो सामना मित्र।
जाएगा तब समझ वो, अड़ा सामने चित्र।।

राम और रहमान का, खेल रहे जो खेल।
जाति धर्म की आड़ में, रोप रहे विषबेल।।

प्रकृति कह रही नित्य ही, सुनो लगाकर ध्यान।
अब भी जागे यदि नहीं, व्यर्थ जायगा ज्ञान।।

हरियाली का हम करें, रोज रोज संहार।
सह पाते हैं हम नहीं, उसका एक प्रहार।।

अपने मीठे बोल से, बनते अपने मीत।
मीठे बोलो शब्द दो, लो सबका दिल जीत।।

धन दौलत से है बड़ा, निज मानव विश्वास।
नाहक चिंता कर रहे, रखो ईश से आस।।

गंजों के बाजार में, बिकती कंघी खूब।
तकनीकों के ताल में, सभी रहे हैं डूब।।

राम नाम मम सम्पदा, राम नाम ही आस।
जपूंँ राम का नाम मैं, कर उन पर विश्वास।।

प्रभु सुमिरन करते रहें, संग में सारे काम।
रखो व्यस्त तुम स्वयं को, मन रखिए प्रभु नाम।।

दुख से नाता जब रहे, तब जीवन का भान।
रोकर मिलता है नहीं, कभी किसी को ज्ञान।।

धन दौलत से घर भरा, धरा यहीं रह जाय।
सच्चे झूठे कर्म का, बोझ साथ हो भाय।।

पढ़ते रहें किताब सब, मन रख शुद्ध विचार।
बनते वही महान हैं, जिनका सद व्यवहार।।

मन रख भाव कबीर का, चलते रहिए आप।
हो निदान हर कष्ट का, बिना किसी संताप।।

मातु पिता को आपने, घर से दिया निकाल।
अब तुमको क्यों मित्रवर, जैसे पड़ा अकाल।।

तुम भी रहो सचेत अब, जाना है उस धाम।
जहां ले रहे मातु-पितु, निज ईश्वर का नाम।।

जीवन एक किताब है,जाने सकल जहान।
जग प्रसिद्ध यह पाठ का,है अनेक विज्ञान।।

बनते वही महान हैं, जो पढ़ते रहे किताब।
मन पुनीत हो भावना, वैसा मिले जवाब।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई छंद - माता पिता और हम
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सदा याद माँ बाप रहेंगे।
तभी हमारे भाग्य खुलेंगे।।
भले आज वो साथ नहीं हैं।
हमसे वो दूर ही सही हैं।।

हम पर नजरें सदा गड़ाए।
भूख प्यास वे रहें भुलाए।।
हमको लेकर चिंतित होते।
अश्कों से निज मुख को धोते।।

मातु पिता संबल हैं होते।
भले दूर हमको ना दिखते।।
साया बने साथ ही रहते।
यही बात हम नहीं समझते।।

यही भूल हम सब हैं करते।
और दोष उनको ही देते।।
मानो तो हम अज्ञानी हैं ।
या फिर शायद विज्ञानी हैं।।

यही समय का खेल निराला।
औरों का मुख लगता काला।।
जीवन में फैला है जाला।
जाप करें लेकर हम माला।।

सुधीर श्रीवास्तव

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पर्यावरणीय दोहे
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हर प्राणी बेचैन है, धरती हुई अधीर।
इंद्रदेव कर के कृपा, बरसा दो कुछ नीर।।

अंगारों की हो रही, धरती पर बरसात।
इंद्रदेव की हो कृपा, तभी बनेगी बात।।

हीट बेव से बढ़ रही, नयी  समस्या  नित्य।
अग्नि कांड है जो बढ़ा, और नहीं औचित्य।।

पशु-पक्षी  बेचैन हैं, बढ़ा सूर्य  का  ताप।
धरा दंश है झेलती,करते सभी प्रलाप।।

जल ही जीवन जानिए, सुंदर  है  प्रतिमान।
जल बिन जीवन है कहाँ, नहीं किसी को ज्ञान।।

जल की महिमा है बड़ी, दिखे जरूरत आज।
लगे  नहीं  इससे  बड़ा, दूजा  कोई  काज।

जल संकट  का  हो  रहा, रोज  रोज  विस्तार।
जगह जगह दिखता हमें, बढ़ता इस पर रार।।

सकल सृष्टि पोषक यही  , बूंद  बूंद  जलधार।
तन मन पोषित हो रहे,सजते जीवन सार।।

जल से होती यह धरा, हरी  भरी  खुशहाल।
नहीं बहाएँ व्यर्थ यह, रखना हमको ख्याल।।

धरती से यदि मिट गया, जल निधि का अस्तित्व।
बिन जल  क्या होगा भला, जीवन रूपी  तत्व।।

बिन जल कल होगा नहीं, आप लीजिए जान।
संरक्षण मिल सब करो, यही आज का ज्ञान।।

धरती  माँ  बेचैन  हैं, व्याकुल  हैं  सब  जीव।
प्रभु बस इतना कीजिए, बचा लीजिए नींव।।

भावी संतति के लिए, वृक्ष  लगाओ  आप।
जिससे जग जीवन बचे,घटे सूर्य का ताप।।


आज प्रकृति के चक्र का, बिगड़ गया अनुपात।
जब  से हम  करने  लगे, प्रकृति  संग  उत्पात।।

तपती धरती  के  लिए, हम  सब  जिम्मेदार।
समझो समुचित सार को, करो उचित  व्यवहार।।

कहे प्रकृति नित -नित यही, सुनो लगाकर ध्यान।
अब भी जागे यदि नहीं, व्यर्थ जाएगा ज्ञान।।

हरियाली का क्यों करें, रोज रोज संहार।
सह पाते हैं जब नहीं, उसका एक प्रहार।।

नदियों को हम मानते, निज जीवन का प्राण।
रौद्र रूप जब धारती, कर देती निष्प्राण।।

जिसने रोपा पौध है, उसका ही  सब काम।
रखवाली भी वो  करे, दे जल सुबहो शाम।।

आज उपेक्षित हो रही, नदियां सारे देश।
नहीं समझ हम पा रहे,देना क्या संदेश।।

नदियाँ नाले सह रहे,आज प्रदूषण मार।
दुश्मन बन बाधित करें, उनका जीवन सार।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई छंद - राम नाम
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राम नाम जप आप कराओ।
मुक्ति विघ्न बाधा से पाओ।।
कृपा करेंगे हनुमत दासा।
सदा रहे मन में विश्वासा।।

पूजा पाठ कठिन नहिं कोई।
राम कृपा जब मस्तक होई।।
मानव हित जब काम करोगे।
खाली झोली तभी भरोगे।

मानवता का पाठ पढ़ाना।
स्वयं इसे तुम भूल न जाना।।
तभी राम जी कृपा करेंगे।
मानव मन में सदा रहेंगे।।

मर्यादा में रहना सीखो।
इसके बिना नहीं तुम चीखो।।
नाहक उँगली नहीं उठाओ।
झूठे ना आरोप लगाओ।।

तभी राम जी ध्यान धरेंगे।
हर मानव के कष्ट हरेंगे।।
राम नाम का मान बढ़ाओ।
मर्यादा के गुण तुम लाओ।।

राम नाम तब ही तुम लेना।
किसी और पर थोप ना देना।
तभी राम का नाम फलेगा।
जो झूठा वो सदा जलेगा।।

राम नाम बदनाम करो ना।
सत्य बोल से कभी डरो ना।।
मानव की इसमे खुशहाली।
भरती झोली कभी न खाली।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई छंद - माता रानी

माता रानी आप पधारो।
जग के सारे कष्ट निवारो।।
पाप - अधर्म बहुत है होता।
होकर दुखी है सज्जन रोता।।

अब तो आप धरा पर आओ।
सभी अधर्मी मार गिराओ।।
तुमको ही कुछ करना होगा।
मानव के दुख हरना होगा।।

नहीं और से आस बची है।
गम की नई लकीर खिंची है।।
मैया मेरी आप बताओ।
हमको नूतन मार्ग दिखाओ।।

आखिर ऐसा क्यों होता है?
आखिर धर्म कहाँ सोता है।।
होते अब अधर्म बहुतेरे।।
पाप कर्म अब रहते घेरे।।

मातृशक्ति हर चीख रही है।
पूँछ रही क्या ग़लत सही है।।
अपना अस्त्र उठाओ माता।
जोड़ो इनसे अपना नाता।।

सुधीर श्रीवास्तव

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जन्माष्टमी विशेष - फिर जन्म लेना
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हे माखन चोर कृष्ण कन्हैया नंद के लाला
अब जब धरा पर आपका आगमन हो ही रहा है
तब क्या हम अबलाएं फिर से
ये भरोसा कर सकती हैं?
कि अब हमारा मान सम्मान सुरक्षित रहेगा,
कोई हमारा चीर हरण नहीं कर पायेगा
हमारी अस्मत को कोई नहीं रौंद जायेगा
और अब हमें बेमौत मरना भी नहीं होगा।
अब हमारी रक्षा के नाम पर
अब कोई तमाशा भी नहीं होगा
बेहयाई से हमारा नंगा नाच नहीं कराया जायेगा?
क्या आज हमारे सवालों का जवाब मिल पायेगा?
या हमारा तमाशा आगे भी यूँ ही बनता रहेगा।
हे कृष्ण! अब मौन तोड़ो, कुछ तो बोलो
या तुम भी हमारा उपहास करोगे,
कौरवों की भीड़ का हिस्सा बन अट्टहास करोगे?
हे मधुसूदन! यदि तुम्हें भी मौन ही रहना है
तो फिर कृष्ण जन्माष्टमी,
जन्मोत्सव मनाने का आखिर मतलब क्या है?
हे विष्णु अवतारी, हे केशव
तुम भी तो कुछ शर्म करो या अपना मुँह छिपाते फिरो,
अच्छा तो यह होगा कि तुम अब जन्म ही न लो,
धरा पर अवतरित होने का विचार त्याग दो,
कम से कम हमारी उम्मीदें तो जिंदा रहेंगी
लुटते पिटते हुए भी तनिक आस तो रहेगी।
हे वासुदेव! माना कि हम लाचार हैं
फिर भी लड़ती हैं कलयुगी भेड़ियों से
कभी जीतती, तो कभी हार भी जाती हैं
और बहुत बार तो दम भी तोड़ देती हैं
पर कभी हार नहीं मानती हैं,
तुम्हारी तरह मुँह तो नहीं चुराती हैं।
हे कृष्ण! हमारी पीड़ा का यदि तुम्हें
तनिक भी अहसास हो रहा है
तो धरा पर आने से पहले सोच विचार कर लेना
हमारे लिए कुछ करना हो तो ही आना
बेवजह हमारी उम्मीदों का उपहास मत करना।
या फिर चुपचाप देवकी के गर्भ में ही छुपे रहना
बस हमारा इतना ही है कहना।
जिसे तुम सुनना, समझना और कुछ हो तो करना
या फिर चैन की बंशी ही बजाते रहना,
और हमें हमारे हाल पर छोड़ देना,
धरा पर आने से पहले हमारे हरेक सवाल पर
विचार जरूर से जरूर कर लेना।
हम तुम्हें यूँ ही छोड़ेंगे भी नहीं,
मेरे सवालों का जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा,
इसलिए कोई नादानी करने से पहले
सौ सौ बार सोच लेना और फिर धरा पर जन्म लेना,
तब ही अपने जन्मोत्सव का आनंद लेने धरा पर आना
इस जन्माष्टमी को हमें भी कुछ उपहार दे देना,
हमारे साथ साथ अपनी भी लाज बचा लेना,
पापियों, अधर्मियों, अपराधियों, देशद्रोहियों का
धरा से नामोनिशान मिटा देना,
अपने अवतरण का औचित्य दुनिया को बता देना,
फिर चाहे माखन चुराना, गैय्या चराना या फिर
गोपियों संग रासलीला रचाना,
पर हमें फिर से न भूल जाना।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

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दोहा - राखी / रक्षाबंधन
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भगिनी जब आ जायेगी, लेकर खुशियाँ साथ।
कर में राखी बांधकर, रखे शीश मम हाथ।।

रिश्ता भाई बहन का, पावन और पवित्र।
सभी चाहते हैं सदा, बना रहे ये चित्र।।

कच्चे धागों ने लिखा, आज नया इतिहास।
दुनिया में अनमोल है, यह सुंदर अहसास।।

तिलक लगाया माथ में, राखी बांधी हाथ।
अश्रु गिरे उसके चरण, पावनता के साथ।।

रिश्तों का बंधन नहीं, रिश्तों का आधार।
पावन और पवित्र है, धागों का संसार।।

राखी का त्यौहार है, रिश्तों का आधार
बना रहे संसार में, पावन ये त्यौहार।।

देती वो आशीष है, ये उसका संस्कार।
उल्लासित दोनों बहुत, करते वो स्वीकार।।

तिलक लगा कर माथ पर, राखी बांधे हाथ।
पैरों पर आंसू गिरे, पावनता के साथ।।

रिश्तों का बंधन नहीं,बस रिश्ता आधार।
पावन और पवित्र है, धागों का त्योहार।।

खुशियों की बौछार ले, तिथि आई उन्नीस।
है राखी त्योहार यह, अद्भुत अनुपम बीस ।।

भ्रातृ बहन संबंध का, अनुपम यह त्योहार।
चहुँदिश में उल्लास है, गूँज रहा संसार।।

भगिनी भ्राता को सदा, भाता राखी पर्व।
सजा कलाई भ्रातृ की , भगिनी करती गर्व।।

भाई दे सौगात जो, बहना को संसार।
बना रहे संबंध यह, ईश्वर का आभार।।

मुझे भूल जाना नहीं, भैया मेरे आप।
वरना सोचूँगी सदा , कुछ तो हुआ है पाप

आई बहना भ्रातृ के, राखी लेकर द्वार।
दोनों को ऐसा लगा, खुशियाँ मिली हजार।।

घर- घर में फैला हुआ, यारों हर्ष अपार।
सज धज कर बहनें खड़ीं, राखी का त्योहार।।

खुशियों का यह पर्व है,राखी का त्योहार।
बहना दे आशीष के, संग में अपना प्यार ।।

उत्साहित दोनों बड़े, भ्राता भगिनी आज।
राखी के उल्लास में, भूले सारा काज।।

राखी के इस पर्व पर, विनय करुं कर जोड़।
मात-पिता जब न रहें, तुम मत देना छोड़।।

भ्राता तू ही कल मेरा, होगा माई बाप।
ऐसा कुछ करना नहीं, लगे मुझे अभिशाप।।

अपनी सौगातें लिए, आई बहनें आज।
अद्भुत सुंदर रूप में, राखी थाली साज।।

हर मन में उल्लास का, छाया आज खुमार।
राखी का त्योहार है, भ्रातृ बहन का प्यार।।

खुशियों की बौछार ले, तिथि आई उन्नीस।
है राखी त्योहार यह, अद्भुत अनुपम बीस ।।

शीश झुका तेरे चरण, बहना मेरा आज।
हाथ रखो मम शीश पर, सुधरे जीवन साज।।

नमन करूं मैं आपको, करो आप स्वीकार।
बस इतनी करिए दुआ, हो मेरा उद्धार।।

पावन राखी पर्व पर, शीश झुकाऊँ आज।
बस इतना आशीष दो, पूरन हो सब काज।।

चरण तुम्हारे है झुका, शीष भ्रात का आज।
बस अपना आशीष दो, बन जाये हर काज।।

मेरे सिर पर तुम सदा, रखना अपना हाथ।
जन्म जन्म मिलता रहे, बहना तेरा साथ।।

राखी पावन पर्व है, देता मैं आशीष।
खुशियों के सौगात की, नित्य तुम्हें बख्शीश।।

राखी पावन पर्व पर, मेरा है आशीष।
खुशियों के सौगात की, वर्षा हो नित शीश।।

रक्षाबंधन दिवस पर, मेरा है आशीष।
खुशियों के सौगात की, वर्षा हो नित शीश।।

रक्षाबंधन बाँधती, बहनें सब की आज।
और संग में दें दुआ, भाई का हो राज।।

सुधीर श्रीवास्तव

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