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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(31)

दोहा मुक्तक
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अवसर
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अवसर आया देखिए, लीला प्रभु की जान।
जिसका जैसा भाव है, वैसा उसका मान।
आज अवध में सज रहा, भव्य राम दरबार।
भक्त सभी हैं कर रहे, प्रभो राम का ध्यान।।

गंगा माँ को आज हम, झुका रहे हैं शीश।
बदले में हम चाहते, बस उनसे आशीष।
मैली नित करते हुए, शोर मचाये नित्य।
अवसर केवल खोजते, और निकालें खीस।।
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रिश्ते
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रिश्ते अब सबको लगें, जैसे कोई रोग।
सभी स्वार्थ में रंग रहे, चाहें सुख का भोग।
कैसी लीला है प्रभो, रंग भए बदरंग।
या हम केवल मान लें, महज एक संयोग।।

रिश्ते देने हैं लगे, अब रिश्तों को घाव।
रिश्तों में अब दीखता, ना मर्यादित भाव।
हर रिश्ते में बन रही, संदेही दीवार।
खोता जाता देखिए, प्रेम प्यार सद्भाव ।।
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कबीर
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वाणी कटु जितनी रही, उतने उत्तम भाव।
कुछ ने कहा प्रसाद है, कुछ ने गहरा घाव।
समय-समय की बात है, या फिर प्रभु का खेल।
आज सभी उनको पढ़ें, वाणी सुनते चाव।।

हिंदू- मुस्लिम में कभी, नहीं कराते भेद।
दिखलाते ये सभी को, मानव मन का छेद।
मंदिर मस्जिद अर्थ का, समझाया था पाठ।
कहते करते जो रहे, नहीं जताया खेद।।
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अवसाद
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सरल सहज हो भावना, मन में नहिं संताप।
वरना ये अवसाद ही, बन जायेगा पाप।
संतोषी जीवन जिएँ, मस्त मगन भरपूर।
धन्यवाद प्रभु का करें, क्या कर लेगा शाप।।

हर प्राणी अवसाद में, जीने को मजबूर।
समय चक्र में उलझकर, खुद से होता दूर।
माया ये अवसाद की, समझ रहे हम-आप।
चाहे अनचाहे फँसे, दंभ में निज हैं चूर।।

समय बड़ा बलवान है, हर प्राणी बेचैन।
भाग दौड़ में सब लगे, नहीं किसी को चैन।
और अधिक के लोभ में, करते भागम-भाग।
हर कोई इसमें फंसा, दिन हो या फिर रैन।
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सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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मानवता की पीड़ा
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अब आप इसे क्या कहेंगे?
बदलाव की बयार या समय की विडंबना।
आप कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं
पर बड़ा प्रश्न मुँह बाये खड़ा है,
अंतर्द्वंद्व में उलझा पड़ा है,
अपने अस्तित्व पर हो रहे हमले के विरुद्ध
लड़ते हुए गिरते-पड़ते खड़ा है।
हमसे आपसे ही नहीं हर किसी से पूछ रहा है
पूछ क्या रहा है? बेचारा गिड़गिड़ा रहा है
अपने मान-सम्मान-स्वाभिमान की खातिर
हाथ जोड़ अनुरोध कर रहा है।
मैं मानवता, आपका बगलगीर हूँ
पूरी ईमानदारी से पूछता हूँ,
कि आज मुझ पर इतना अत्याचार क्यों हो रहा है?
हर कोई मुझसे अपना दामन क्यों छुड़ा रहा है?
बेवजह मुझे बदनाम क्यों किया जा रहा है?
बड़ी ढिठाई से मेरा दामन दागदार करने पर
कौन सा खजाना समेटा जा रहा है?
आखिर कोई तो बताए कि मेरा अपराध क्या है?
मुझसे भला किसको, कैसे, कितना नुक़सान हो रहा है?
मुझे पता है आप मुँह नहीं खोलेंगे
खोलेंगे तो सिर्फ़ जहर ही उगलेंगे
या फिर अपने स्वार्थ, सुविधा का लेप ही घोलेंगे,
इससे अधिक की उम्मीद भी नहीं मुझको
तुम हमको तौलोगे तो हम भी चुपचाप नहीं बैठेंगे?
तुम हम पर वार करोगे
तो क्या हम चुपचाप हमेशा ही सहते रहेंगे?
भ्रम में मत रहिए जऩाब- ऐसा बिल्कुल नहीं होगा,
अपने अस्तित्व को मैं कभी मिटने नहीं दूंगा,
चंद लोगों के सिर चढ़कर भी खूब बोलूँगा
अपने अस्तित्व की चमक को फिर भी जिंदा रखूँगा,
जो मुझसे खेलेगा, उसे पास भी नहीं आने दूँगा।
जो मेरा मान रखेगा, उसे शीर्ष पर पहुँचा दूँगा
उसके नाम का डंका दुनिया में बजवा दूँगा,
अपने नाम 'मानवता' का नया इतिहास लिखूँगा।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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गर्मी की प्रचंडता
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चिलचिलाती धूप, असहनीय गर्मी का प्रहार
व्याकुल है हर प्राणी, पशु-पक्षी, पेड़़-पौधे
कीड़े-मकोड़े, कीट पतंगे सब असहाय से हो गये हैं,
किससे कहें अपनी पीड़ा, अपना दर्द
जब धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी
इंसान खुद को भगवान से कम कहाँ समझता है,
अपनी सुख-सुविधा के लिए
अपने ही कुल्हाड़ी मार रहा है,
और कुछ भी समझ नहीं रहा है।
कौन दोषी है, कितना कम या ज्यादा
यह सब उछल- उछल कर खुद कह रहा है।
पर मैं तो खुद को दोषी मानकर
प्रभु से अनुरोध कर रहा हूँ
साथ ही गर्मी के लिए गर्मी को दोष भी नहीं दे रहा हूँ,
गर्मी तो हमारी उदडंता का शिकार हो रहा है
बहुत कोशिश के बाद भी जल रहा है
हमसे मौन निवेदन कर रहा है,
जिसे हम नकारते जा रहे हैं जब
तब वो भी कराह रहा है,
हमें दुखी नहीं करना चाहता है
इसके लिए मन ही मन रो भी रहा है,
प्रभु जी हमें माफ करो न करो
पर बुद्धि- विवेक को थोड़ा और विस्तार दे दो
अपने ही पैरों में खुद ही कुल्हाड़ी मारने की
हमारी सोच को हर लो,
विकास की अंधी दौड़ में दौड़ने से बचा लो,
कम से कम अपने और अपनों के लिए
प्रेम,प्यार, सद्भाव जगा दो,
प्रकृति पर हर प्राणी का समान अधिकार है
हमारे व्यवहार में यह भाव जगा दो
गर्मी जला रही है, जलाने दीजिये,
प्रचंडता का नृत्य कर रही है, तो करने दीजिये
क्योंकि हम ही कौन सा दूध में धुले हुए हैं
अपनी मनमानियाँ खूब करते जा रहे हैं।
वो तो अपने स्वभाव के अनुरूप व्यवहार कर रहा है,
दोहरा मापदंड भी तो नहीं अपना रहा है
फिर भी बेचारा हमारी गालियाँ चुपचाप सहन रहा है
ईमानदारी से सिर्फ अपना काम कर रहा है।
अब यह हम आप क्यों नहीं समझते'
कि गर्मी में गर्मी का प्रचंडता का
नृत्य नहीं होगा तो क्या होगा?
अब जब आज यह बड़ा प्रश्न मुँह बाये खड़ा है
प्रचंड गर्मी में सब कुछ जलने की कगार पर जा रहा है
तो इसमें आखिर दोष किसका है?
सोचना समझना भी हमें आपको है
कि स्वार्थी विकास की आड़ में
प्रकृति से छेड़छाड़ अब से नहीं करना है,
वरना गर्मी के प्रचंड ताप में जलना भुनना है
जीने के लिए जीना है या मरते हुए जीना है
अथवा अपना वैमनस्य वाला कृत्य नहीं छोड़ना है
ईमानदारी से कह रहा हूँ यही सही समय है,
जब फैसला हमको -आपको करना है।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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दोहा - कहें सुधीर कविराय
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धार्मिक
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मंगल को मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे ज्ञानी संत हो, या कोई अज्ञान।।

दर पर भारी भीड़ है, हनुमत जी के आज।
रामभक्त रक्षा करें, शीष सजायें ताज।।

शनी देव हैरान हैं, देख पाक के रंग।
कुछ तो करना पड़ेगा, इस पापी के संग।।
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जन्मदिन
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लंबी तेरी उम्र हो, ऊँचा तेरा नाम।
हर बाधा को पार कर,लिखो नया आयाम।।

जीवन में खुशियां मिले, हर पल हर दिन रात।
सारी दुनिया ही करें, तेरे काम की बात।।

खुशियों की बरसात हो, हर पल, हर दिन रात। ईश्वर देवे आपको, इतनी सी सौगात।।

खुशियों की सौगात का, भरा रहे भंडार।
ईश्वर की इतनी कृपा, जाने जग संसार।।
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जीवन साथी/वैवाहिक वर्षगांठ
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मेरी भी शुभकामना, और संग में ज्ञान।
जीवन साथी को सदा, देते रहना मान।।

जीवन भर का साथ है, नहीं भूलना आप।
एक दूजे के नाम का, करते रहना जाप।।

जीवन का उत्कर्ष है, रिश्तों का ये सार।
जिसके बल पर चल रहा, रिश्तों का व्यवहार।।

जीवन साथी शब्द में, छिपा हुआ है सार।
इस रिश्ते की नींव में, खोज रहे हम तार।।

मान-मनौव्वल संग में, खूब करो छलछंद।
सीमा भीतर स्वयं को, रखना तुम पाबंद।।

एक दूजे का आजकल, रखते कितना ध्यान।
हमको लगता हमीं को, सबसे ज्यादा ज्ञान।।
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मजदूर
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मजदूरी वो कर रहा, करता नहीं गुनाह।
जीवन चलता यूं रहें, नहीं अधिक की चाह।।

दिन भर मजदूरी करे, फिर भी भरे न पेट।
उम्मीदें कब छोड़ता, ईश्वर देगा भेंट।।

बच्चों के अरमान भी, टूट रहे हैं नित्य।
इस जीवन का क्या भला, आखिर है औचित्य।।

जाड़ा, गर्मी एक सा, वारिश का हो वार।
इनकी खातिर नित्य ही, मजदूरी त्योहार।।

सबसे ज्यादा काम भी, करता है मजदूर।
और वही सबसे अधिक, होता है मजबूर।।

मन मसोस कर जा रहा, करने को जो काम।
पाक साफ मन से जपे, अपने प्रभु का नाम।।

दीन हीन मजदूर हैं, कहते हैं कुछ लोग।
जो घमंड में चूर हैं, मान रहे संयोग।।
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आपरेशन सिंदूर
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बिना युद्ध के देश ने, मार लिया मैदान।
दुश्मन की तो छोड़िए, दुनिया है हैरान।।

आभा में सिंदूर के, चुँधियाया है पाक।
घुटनों पर वो आ गया, ये सिंदूरी धाक।।

गीदड़ भभकी का उसे, ऐसा मिला जवाब।
घुटनों पर वो आ गया, ये सिंदूरी ख्वाब।।

गोली अब जो एक भी, आयी सीमा पार।
गोला लेकर जायेंगे, आतंकी के द्वार।।

मोदी जी ने कह दिया, नहीं चाहते युद्ध।
इसका मतलब ये नहीं, बनें रहेंगे बुद्ध।।

आतंकी बेचैन हैं, समझ न आए नीति।
रास उसे आई नहीं, आतंकिस्तानी रीति।।

हमने जड़ पर जब किया, था अपना प्रहार।
पता नहीं था थोक में, मिला मुफ्त उपहार।।

पहलगाम से हिल गया, था जब सारा देश।
मोदी जी ने पढ़ लिया, भारत का संदेश।।

सीने में जलती रही, मोदी जी के आग।
पर संयम छोड़ा नहीं, सुना न कोई राग।।

मोदी के ऐलान से, हुआ पाक में शोक।
किसमें इतना हौसला, मोदी पथ ले रोक।।

मोदी जी ने चल दिया, हिंदुस्तानी दाँव।
पाकिस्तानी कर रहे, जैसे कौआ काँव।।

गीदड़ भभकी दे रहे, बनकर कुत्ते शेर।
जिन्हें नहीं है कुछ पता, बनने वाले ढेर।।

पाक बड़ा नापाक है, दुनिया को है ज्ञात।
कुछ की आँखें बंद हैं, कुछ करते प्रतिघात।।

बिना युद्ध ही हो रहा, दुश्मन अपना पस्त।
जैसे पाकिस्तान का, सूर्य हो रहा अस्त।।
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विविध
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रिश्ते भी देते कहाँ, अब रिश्तों को भाव।
देकर मरहम हाथ में, करते जमकर घाव।।

छिपे शेर की खाल में, गीदड़ कितने आज।
लगता उनको चल रहा, केवल उनका राज।।

आँसू देकर आज क्यों, खुश हो इतने यार।
तुमको भी इस दौर से, होना कल दो चार।।

अपनी यारी मृत्यु से, बढ़ा लीजिए आप।
नहीं रहेगा आपके, जीवन में अभिशाप।।

बड़ी शिकायत आपको, हमसे तुमको यार।
नहीं समझते मित्र क्यों, इस जीवन का सार।।

हमने जिन पर किया था, आँख मूँद विश्वास।
उन सबने दिखला दिया, लंबा बाईपास।।

अपनी ग़लती मानना, क्या है मेरा गुनाह।
नहीं जानते मित्रवर, मेरे मन की थाह।।

समझ नहीं आता मुझे, उसकी कैसी सोच।
या फिर बुद्धि विवेक को, आया कोई मोच।।

अपने कृत्यों पर नहीं, जिनको आती शर्म।
और आप हैं पूछते, उनका क्या है धर्म।।

शायद तुम हो भूलते, परिवर्तन की नीति।
मिलना तुमको भी वही, डाल रहे जस रीति।।

हमने जब भी आपको, झुक कर किया प्रणाम।
बैठे ठाले हो गया, नाहक ही बदनाम।।

निंदा नफरत भूलकर, करिए अपना काम।
मिले सफलता आपको, संग मिलेगा नाम।।

अपनी करनी देखना, सबसे पहला काम।
इससे सुंदर कुछ नहीं, जीवन का आयाम।।

लक्ष्मी जी आयीं अभी, बड़े ठाठ से मित्र।
परिजन सारे खींचते, खुशियों के नव चित्र।।

रिश्ते भी खोने लगे, हर दिन अपने भाव।
नित्य नये हैं दे रहे, उल्टे सीधे घाव।।

अपने ही विश्वास का, गला घोंटते आज।
विषय शोध का है बड़ा, क्या है इसका राज।।

हमने जिनको है दिया, बड़े प्रेम से भाव।
वे ही हमको दे रहे, सबसे ज्यादा घाव।।

नीति नियम सिद्धांत को, भूल रहे हैं लोग।
दुख का कारण है यही, जिसे रहे सब भोग।।

बलिबेदी पर स्वार्थ के, चढ़े जा रहे लोग।
बदले में हैं पा रहे, तरह तरह के रोग।।

जीवन में किसको भला, मिलता है सुख चैन।
किसकी बुझती प्यास है, सूखे सबके नैन।।

चलते-चलते थक गये, गंगा तीरे आप। शाँत भाव से बैठकर, करिए माला जाप।।

अधिकारों का अब नहीं, रहा किसी के मोल।
है क्या झूठी ये तुला, या झूठा है तोल।।

कर्तव्यों का आजकल, किसे रहा अब बोध।
सबसे पहले चाहिए, होना इस पर शोध।।

चिंता लेकर चल रही, हमें चिता की ओर।
ज्ञानी-अज्ञानी सभी, पाते अंतिम छोर।।

आप शिकायत कर रहे, ईश्वर से दिन-रात।
चिंतन भी तो कीजिए, उनके कुछ जज़्बात।।

सुख-दुख जीवन खेल है, खेल रहे हम आप।
जो कल कहता पुण्य था, आज कहे वो पाप।।

ईश्वर भी होते दुखी, देख हमारे ढंग।
सोच-सोच हैरान हैं, कैसे बदला रंग।।
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गर्मी
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गर्मी को हैं हम सभी, दोषी मानें मित्र।
खींचा भी तो आपने, कल में इसका चित्र।।

जीवन को हमने किया, जान बूझ बेहाल।
तभी आज हम हो रहे, गर्म तवे सा लाल।।

पशु-पक्षी बेचैन हैं, दें मानव को दोष।
उनके मन भी फूटता, समझो उनका रोष।।

खुद ही अपने कर्म पर, आप कीजिए गौर।
याद करो एक बार तो, बीते कल का दौर।।

गर्मी से क्यों कर रहे, भाई दो- दो हाथ।
सोचो कितना आपने, फोड़ा उसका माथ।।
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विनम्र श्रद्धांजलि
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श्रद्धा के दो शब्द ही, हम दे सकते आज। हाथ छुड़ाकर क्यों गईं, रहा नहीं अरु काज।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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संस्मरण - मुस्कान
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04 जनवरी '2025 रात्रि 8 बजे एक मेरी एक आनलाइन गोष्ठी चल रही थी, जिसके मध्य ही एक फोन आया, जिसे मैंने नज़र अंदाज़ कर दिया। पुनः लगभग 9.15 बजे मुँहबोली बहन का फोन आया कि हम, दीदी, अपनी सहेली और बच्चों के साथ अयोध्या धाम से लौट रहे हैं, आप लोगों से मिलने घर आ रहे हैं। रास्ता बताइए।
मेरे लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था, साथ ही विश्वास भी नहीं हो रहा था, क्योंकि भयंकर ठंड के साथ उस समय वो जहाँ थी, वहाँ से घर तक पहुँचने में लगभग एक घंटे लगने थे। फिर 80 किमी. हमारे यहाँ से आगे भी जाना था।
खैर.....! श्रीमती जी को अवगत कराया। तो उन्होंने कहा - आने दीजिए, क्या दिक्कत है?
मैंने कहा - नहीं कोई दिक्कत नहीं। पर मुझे नहीं लगता कि इतनी ठंड में वो आयेगी। फिर पहली बार आ रही है।
श्रीमती जी ने आश्वस्त किया - परेशान मत होइए। सब हो जायेगा।
इंतजार करते करते जब समय सीमा पार होने लगी तब मैंने उसे फोन किया तो उसने बताया कि वो आगे निकल गई थी, फिर लौट रही है, बस पहुँचने वाली है। और अंततः लगभग 10.30 बजे घर पहुँच ही गई। तब थोड़ी निश्चिंतता हुई। क्योंकि उसका आगमन पहली बार हुआ था।
घर पहुंचते ही दीदी ने कहा - कि अयोध्या से चलते समय ही मैंने कह दिया था कि मुझे भैया-भाभी से मिलकर ही जाना है, चाहे जितनी भी देर हो। यह सुनकर मन भावुक हो गया।
आवभगत की औपचारिकता, बातचीत और हालचाल के मध्य ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार ये लोग आये हैं। सब इस तरह से घुल-मिल गये, अपनत्व और अधिकार का जो परिदृश्य दिखा। उसे शब्दों के दायरे में बाँध पाना कठिन है। पूरी तरह पारिवारिक मिलन जैसा था। श्रीमती जी ने भोजन की व्यवस्था कर अधिकारपूर्वक खाना खिलाकर ही उन्हें विदा किया।
इस संक्षिप्त आकस्मिक मुलाकात ने जो आत्मीय बोध कराया, उसकी मधुर स्मृतियाँ बरबस ही मीठी सी मुस्कान दे ही जाती हैं।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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हास्य - मुझे एल. ओ. पी. बनना है
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आज दोपहर मित्र यमराज आया
बिना किसी सभ्यता के बार-बार द्वार खटखटाया,
भन्नाते हुए श्रीमती जी ने द्वार खोला
उन्हें देख बेचारे के तो तोते उड़ गए।
बड़े सलीके से उन्हें प्रणाम किया
मुझसे मिलने का प्रस्ताव दिया,
श्रीमती जी का पारा तो वैसे ही गर्म था
ज़वाब में लावा सा फूट पड़ा।
मिलो न, जी भरकर मिलो, गलबहियाँ डालो,
खुराफात करो, आग लगाओ, मेरा भी सुख चैन छीनो,
एक अकेला वो कम है
दोनों मिलकर मेरे सिर पर खूब चने भूनो।
बड़ा दुर्भाग्य है जो उसकी बीबी हूँ,
पर लगता है, मैं तेरी सौतन हूँ,
तेरे आने-जाने का कोई समय ही नहीं
कितना है गलत या कितना सही।
ऐसा कर तू उन्हें भी अपने साथ ले जा
तेरा भी आने-जाने का समय बचेगा
और मेरे सिर का बोझ भी हल्का होगा।
इतना सुनकर बेचारा चुपचाप सुनता रहा
और धीरे से मेरे पास आकर कहने लगा -
प्रभु! फिलहाल चलता हूँ,
जल्दी ही आकर मिलता हूँ।
तब तक आप कुछ जुगाड़ करो
और मेरे एल ओ पी बनने का मार्ग प्रशस्त करो।
अब मुझे भी एल ओ पी बनना है
मोदी जी की नाक में दम करना है,
राष्ट्र भक्ति के गीत गाना है,
दुश्मन देश का भारतीय पैरोकार बनना है।
वर्तमान एल ओ पी से कुछ नहीं होने वाला
यह बात आप दुनिया को समझाना और बताना,
यमलोक से आपका मित्र राजनीति में आने वाला है
मोदी जी की कुर्सी हिलाने वाला है
सीधे एल ओ पी बनकर संसद में जाने वाला है
राजनीति के क्षेत्र में है नया इतिहास बनाने वाला है,
कोई कुछ भी करे या न करें
पर अब ऐसा ही होने वाला है
राजनीति के क्षेत्र में भूचाल आने वाला है।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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हास्य
यमलोक में वृक्षारोपण
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अभी-अभी मित्र यमराज मेरे पास आया
और बड़े प्यार से फरमाया-
प्रभु! आपको यमलोक चलना है।
मैं चकराया - कहीं भाँग खाकर तो नहीं आया
जो मुझे लेने यूँ ही चला आया।
यमराज मासूमियत से हाथ जोड़कर कहने लगा
प्रभु ! आप भी न कुछ भी बोल देते हो
सब कुछ जानते हुए भी भड़क जाते हो
अपने मित्र का दिल दुखाने से भी बाज नहीं आते हो।
मैंने झुँझलाते हुए कहा -
यार! जो कहना है, साफ- साफ बोल
अभी चलना हो तो ये भी झटपट बोल
पहेलियाँ मत बुझा, मुझे और भी काम है,
जिसके बदले मुझे कुछ दाम मिलने वाला है।
अब तू कहे तो अपना नुकसान कर लूँ
और लगे हाथ तेरे साथ अभी यमलोक चल दूँ,
तू साथ चल या नहीं क्या फर्क पड़ेगा
वैसे भी रास्ते में मुझसे कोई लड़ने भी नहीं आयेगा गा।
बस प्रभु! अब आप एकदम चुप हो जाइए
पहले मेरी बात ध्यान से सुनिए,
फिर जो बकना है बकिए।
आपको तो कुछ पता नहीं है
कि यमलोक का वातावरण भी बहुत दूषित हो रहा है
वहाँ भी पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है,
बाढ़, सूखा, भूकंप, भूस्खलन,
बादल फटने की घटनाओं में
अचानक इजाफा होने लगा है,
मौसम का चक्र अनियमित होने लगा है,
लगता है धरती का असर वहाँ भी पहुँच गया है।
मगर मैं ऐसा होने नहीं दूँगा,
जो भी करना पड़े करुँगा
साम, दाम, दंड, भेद के सब हथकंडे अपनाऊँगा
इस पर्यावरण दिवस से वृक्षारोपण का
राष्ट्रीय अभियान शुरू करुँगा,
हर आत्मा को एक-एक वृक्ष का रोपण अनिवार्य कर दूँगा,
जल, जंगल, जमीन पर बढ़ते अतिक्रमण हटवाने का
नया आदेश जारी कर दूँगा,
कोरोना के यमलोक में घुसने के सारे रास्ते बंद कर दूँगा
पर किसी यमलोक का वातावरण दूषित होने नहीं दूँगा।
बस-बस! अब ठहर जा मेरे बाप
जब सब कुछ तुझे ही करना है तो फिर मैं क्या करुँगा?
क्या मुझे वृक्षों को पानी देना होगा?
नहीं प्रभु! आपको कुछ भी नहीं करना है
बस! ससम्मान मेरे साथ चलना है
केवल वृक्षारोपण अभियान का शुभारंभ करना है।
यदि आप मेरा प्रस्ताव स्वीकार करेंगे
तो सच मानिए! अपने मित्र पर बड़ा अहसान करेंगे।
पर मैं आपको बाध्य भी नहीं करुँगा
चुपचाप वापस चला जाऊँगा,
बस यमलोक में वृक्षारोपण की योजना
ठंडे बस्ते में डाल यहीँ छोड़ जाऊँगा।
मैंने उसे रोकते हुए कहा -
अरे नहीं रे! तुझे ऐसा कुछ नहीं करना पड़ेगा,
क्योंकि मैं तेरे साथ चलूँगा
अब तू मुझे इतना भर बता दें
मुझे कब आना है, मैं खुद ही आ जाऊँगा
तेरे वृक्षारोपण प्रस्ताव को अमली जामा पहनाऊँगा
क्योंकि मैं तुझे किसी भी कीमत पर
दु:खी जो नहीं देख पाऊँगा।
यहाँ तो वैसे भी प्रदूषण से हाल बुरा है
कम से कम यमलोक में तो
शुद्ध प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले पाऊँगा।
यमराज ने मुझे टोका -ऐसा सोचना भी मत,
वहाँ आपको भला रुकने कौन देगा?
अभियान की शुरुआत के साथ ही
आपको वापस यहीं भिजवा दूँगा,
समय-समय पर वृक्षारोपण प्रगति की फोटो
सोशल मीडिया पर डलवाता रहूँगा।
जिसे देख-देख कर आप खुश होते रहना
भविष्य के लिए आश्वस्त जरुर हो जाना
जब तक धरती पर प्रदूषण का जहर पीना है
जमकर पीते हुए जीते रहना,
जब यमलोक में स्थायी निवास करने का विचार बने
तब बेहिचक मुझे याद करना
और मेरे साथ हमेशा के लिए यमलोक चलना
हरी- भरी यमलोक वाटिका में आनंद से रहना।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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हास्य - बाय-बाय कर रहा हूँ
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आज वास्तव में मैं दुखी हूँ,
क्यों दुखी हूँ, ये भी खुद ही बता रहा हूँ,
आपके लिए भले इसका कोई मतलब न हो
पर मेरी तो साँसें उखड़ रही हैं।
हो भी क्यों न? होना भी चाहिए
क्योंकि आज पहली बार मित्र यमराज ने
मेरे संदेश का कोई जवाब नहीं दिया,
कहीं वो नाराज़ तो नहीं हो गया
किसी मुश्किल में तो नहीं फँस गया,
या फिर ऐसा तो नहीं कि कोरोना की चपेट में आ गया,
और घर में ही क्वारंटाइन हो गया।
आखिर मुझे इतना डर क्यों लग रहा है?
और आप लोगों को मजाक सूझ रहा है
जो मेरी समस्या समझ नहीं पा रहे हैं
बेवजह खींसे निपोर रहे हैं,
यकीनन आप मेरे शुभचिंतक नहीं रह गये हैं।
शायद यमराज से ईर्ष्या कर रहे हैं
वो मेरा मित्र हैं, बस इसी से जल-भुन रहे हैं,
पर जान लीजिए! ये अच्छा नहीं कर रहे हैं।
आप क्या सोचते हैं कि वो हमसे रुठ जायेगा?
हमसे मित्रता तोड़कर खुश हो जाएगा?
तो यकीनन आप सब बड़े मुगालते में हैं,
या हम दोनों के मित्रता सूत्र को जानते ही नहीं हैं।
सच है कि मैं उसको लेकर परेशान हूँ
और वो बड़ा मजे में है, तो ऐसा भी बिल्कुल नहीं है।
मुझे पता है कि वो भी हैरान परेशान हो रहा होगा
मेरा मन आप सबसे बात करते हुए मुझे संकेत दे रहा है
कि वो अभी मुझसे मिलने आ रहा है,
और लीजिए! वो दरवाजे पर आ भी गया है।
अब मैं आप लोगों से विदा ले रहा हूँ,
तत्काल अपने प्यारे मित्र के स्वागत में जा रहा हूँ।
आप सबका बहुत आभार, धन्यवाद कर रहा हूँ,
चाय पीना हो तो आप भी आ जाइए, बिल्कुल न शर्माइए
मित्र यमराज के साथ आपका इंतजार करुँगा,
नहीं आना चाहते तो भी कोई बात नहीं
फिलहाल तो मैं आप सबको बाय - बाय कर रहा हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव ( यमराज मित्र)

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व्यंग्य - खुद रोयेगा, मुझे भी रुलाएगा
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आज पहली बार मैंने यमराज की दु:खी देखा
इतना असहज मैंने उसे पहले कभी न देखा था
बेचारा कुछ बोल भी नहीं पा रहा था।
मैंने हौसला बढ़ाया, शीतल जल पिलाया
अपने पास बैठाकर दुलराया
कुछ देर में ऐसा लगा कि बंदा अब कुछ लाइन पर आया।
मैंने प्यार से पूछा - ऐसा क्या हो गया भाया
जिसने मेरे यार की चूलें हिलाया।
उसने जो बताया, वो हमारे लिए तो आम बात है,
हमारे यहाँ वैसे भी कौन, किसको भाव देता है,
अपने अब अपने नहीं रहे
वे ही दुश्मन बनते सबसे बड़े,
मान सम्मान तो अब कथा कहानियों में अच्छे लगते हैं
मर्यादा के दिन तो कब के लद चुके हैं।
संवेदनाओं का दौर भी अब जा रहा है,
विश्वास की आड़ में स्वार्थ का नृत्य नसरेआम रहा है,
रिश्ते भी रिश्तों का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं
आये दिन रिश्तों का खून होने की खबरें
समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर छप रहे हैं,
जाने किस दौर में हम आप जा रहे हैं
जानवर भी अब हमें चिढ़ाने लगे हैं।
यमराज की बात सुनकर मैंने उसे समझाया -
तू भी आदत डाल ले भाया,
अच्छा होगा - सतर्कता संग सावधान हो जा यार
हो सके तो यमलोक में एक प्रस्ताव भी पास करवा ले।
वरना तू और व्याकुल होता ही जाएगा,
वहाँ की व्यवस्था में भी जब सेंध लग जायेगा
धरती लोक का असर यमलोक तक पहुँच जायेगा।
फिर यहाँ और वहाँ में अंतर क्या रह जाएगा?
क्या तेरे और तेरे चेलों के लिए खतरा नहीं बढ़ जाएगा?
पूरी ईमानदारी से कहता हूँ,
तब तू भी कुछ नहीं कर पायेगा,
मुझसे भी तेरी समस्या का कोई हल नहीं मिल पायेगा,
तब तू खुद तो रोयेगा ही, मुझे भी रुलाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

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हास्य - पढ़ा लिखा बेवकूफ हूँ
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आप मानते हैं कि मैं बेवकूफ हूँ
अच्छा है, पर आपकी सोच का दायरा कितना छोटा है
कम से कम मेरी योग्यता भी तो देख लेते
और बेवकूफ होने का तमगा तो सम्मान से देते।
मैं तो खुद ही कहता हूँ कि मैं बेबकूफ हूँ
पर आपको जो नहीं पता तो मैं खुद बता देता हूँ
कि मैं ऐसा - वैसा नहीं,पढ़ा लिखा बेवकूफ हूँ।
मेरा भी एक अपना एक स्थापित स्तर है
आम बेवकूफों की श्रेणी में मुझे बिल्कुल मत रखिए। वरना मुसीबत में फँस जायेंगे
मेरा अपमान करने-कराने के बदले
कोर्ट कचेहरी के चक्कर लगाते रहे जायेंगे ,
फिर आप हमको ही जी भरकर गरियायेंगें
जिसे हम बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे,
फिर किसी को आपके नाम की सुपारी
ईमानदारी से देने को विवश हो जायेंगे,
फिर आप ही नहीं आपके अपने भी आपको धिक्कारेंगे
आपका जीना हराम कर देंगे
बार-बार यही उलाहना देंगे।
क्या जरूरत थी किसी बेवकूफ को बेवकूफ कहने की
कहना ही था तो कम से कम उसका स्तर तो जान लेते
थोड़ा बहुत छानबीन भी कर लेते।
फिर तो आप खुद ही बेवकूफ बन जाएंगे
अपनी बेवकूफी किसी को बता भी नहीं पाएंगे,
और हम जैसे बेवकूफों को
बेवकूफ कहने से पहले अपने कान पकड़ेंगे
और ऐसी भूल करने से पहले सौ बार सोचेंगे।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र

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