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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
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चौपाई
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तुमने जब है रंग दिखाया।
बड़ा मज़ा मुझको है आया।।
पर हमको दुख बहुत हुआ है।
कल होना वो आज हुआ है।।

आखिर तुमको क्या कहना है।
धार इसी कब तक बहना है।।
अपनी कोशिश जारी रखना।
बोझा मन पर भारी रखना।।

जाने क्या-क्या भूल गए हैं।
लाज-शर्म सब घोल पिए हैं।।
क्या कोई अपराध किया है।
भूल सभी की माफ किया है।।

संसद का अब काम नहीं है।
लगता है आराम नहीं है।।
सड़कों पर इनको अब लाओ।
इनको सच का रुप दिखाओ।।

माननीय जी इतना कीजै।
पहले काम दाम फिर लीजै।।
जनता तो है भोली-भाली।
हाथ सदा रखते हैं खाली।।

आज समय का देखो खेला।
लगा हुआ है चहुँदिश मेला।।
समय साथ ही चलना होगा।
सबको आज बदलना होगा।।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा मुक्तक
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आजादी
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आजादी का पर्व हम, मना रहे हैं आज।
हर भारतवासी करे, गर्व तिरंगा साज।।
चाह रहे हैं हम सभी, उन्नति पथ पर देश,
दुनिया में एक दिवस हो, अपना भारत राज।।

आजादी के पर्व का, करो सभी सम्मान।
भेद-भाव की आड़ में, करो नहीं अभिमान।।
जाने कितने कुर्बान हुए, तब आजादी आई,
राष्ट्र माथ ऊँचा करें, ये ही बड़ा गुमान।।
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विविध
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मुक्तक लिखना आज है, नहीं आपको याद।
रखते इतनी आस क्यों, लिखें सिफारिश बाद।।
भ्रम का आप शिकार हो, बनते बड़ा विशेष,
देते क्या तुम मंच को, दाना, पानी, खाद।।

क्यों लगता है मित्रवर, बड़े श्रेष्ठ हो आप।
ज्ञानी बनकर कर रहे, आखिर इतना पाप।।
समय चक्र के फेर में, जिस दिन आये नंमित्र,
घन घमंड जो आज है, बने यही अभिशाप।।

अब बिकते सम्मान भी, गली-गली में आज।
कुछ लोगों के पास है, यही आज बस काज।।
भले नहीं वो कर सकें, उच्चारण भी शुद्ध,
ऐसे लोगों को लगे, आया उनका राज।।

हम तो इतना व्यस्त हैं, भूले भूख अरु प्यास।
राम भरोसे चल रहा, नहीं किसी से आस।।
सबसे ज्यादा खास हैं, हमीं शहर में आज,
ईर्ष्या करते लोग जो, लगता है मम रास।।

माफ़ मुझे कर दीजिए, भूलें मेरा गुनाह।
नाहक अपने शीश पर, लेते मेरी आह।।
व्यर्थ उलझने से भला, क्या पाओगे मित्र,
होना केवल वही है, जो मेरी है चाह।।

धोखा देने से भला, पाए क्या हो आप।
केवल अपने शीश पर, चढ़ा लिया है पाप।।
रोने का क्या फायदा, अब सब है बेकार,
आगे ऐसा हो नहीं, यही है पश्चाताप।।

ज्ञानी जो भी लोग हैं, उनसे लीजै ज्ञान।
ऐसा हो सकता तभी, बने रहो नादान।।
शीश झुका कर शरण में, उनके रहिए आप,
इतना निश्चित मान लो, बढ़ जायेगा मान।।

खुद पर यदि विश्वास हो, तभी मिलेगी राह।
बिन इसके बेकार है, मन की कोई चाह।।
निंदा नफरत से सदा, मंजिल जाती दूर,
बरबादी को जन्म दे, मिले किसी की आह।।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य व्यंंग्य - यमलोक व्यापी अभियान
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आज अलख सुबह मित्र यमराज आये
जाने क्यों थे बड़े मुरझाए,
मैंने उसे प्यार से बैठाया
खुद दो कप चाय बनाकर लाया
इज्जत से ट्रेन में नमकीन के साथ लेकर आया,
यमराज उठा और मेरे हाथों से ट्रे लेते हुए कहने लगा -
आप भी न प्रभु! नाहक परेशान हो जाते हैं
इतनेलाड़ प्यार से रुला देते हैं,
अब बैठिए, आप भी चाय पीजिए
साथ ही यह तो बताइए कि आपका भविष्य क्या है?
मैं चौंक गया - यह कैसा सवाल है?
फिर मेरे भविष्य की तुझे इतनी चिंता क्यों है ?
यमराज अकड़ गया - यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है।
बस! मुझे तेरे बुढ़ापे की चिंता है
इसलिए कि तू बेटियों का बाप है,
लगता है यह तेरे लिए बड़ा अभिशाप है।
मुझे गुस्सा आ गया - अब तू चाय पी
और चुपचाप मेरे घर से निकल जा।
यमराज बिल्कुल नहीं हड़बड़ाया चाय पीते हुए बोला - यार! तू नाहक अपना बीपी बढ़ा रहा है,
मेरे कहने का आशय समझ ही नहीं रहा है।
मैं तो बस इसलिए परेशान हूँ
कि कल जब तू बेटियों के हाथ पीले कर विदा कर देगा,
तबका सोचा है कि तुम दोनों को क्या होगा?
कौन तुम्हारी देखभाल करेगा और ध्यान रखेगा?
फिर कल को तुम दोनों में कोई एक
इस दुनिया से विदा हो गया,
तब दूसरा अकेले कैसे रहेगा?
किसके भरोसे जियेगा या फिर किसके साथ रहेगा?
मैं गंभीर हो गया - फिर मुस्कराया
तेरी चिंता थोड़ी जायज थोड़ी नाजायज है,
आजकी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं,
वैसे भी बेटियों के लिए माँ बाप सबसे करीब होते हैं,
आज की बेटियों बेटों जैसी हो गई हैं,
हर काम बेझिझक हौसले से कर रही हैं
रुढ़ियों को तोड़ माँ -बाप का दाह-संस्कार भी कर रही हैं।
फिर तू ही बता! बेटों में कौन सा सुर्खाव के पर लगे हैं।
अब आज का समय बहुत बदल गया है यार
यह हम सबको समझने की जरूरत है,
आज के कितने बेटे बुढ़ापे में माँ-बाप को
उचित मान-सम्मान संग महत्व देते हैं?
उनके स्वाभिमान को तार-तार नहीं करते हैं?
अपनी सीमा में रहकर मर्यादित व्यवहार करते हैं?
खून के आँसू नहीं रुलाते हैं?
जीते जी मौत के मुँह में नहीं ढकेलते हैं?
क्योंकि अब वे बच्चे नहीं
बड़े कमासुत और समझदार हो गये हैं,
जिन्हें अपने बुजुर्ग माँ- बाप बोझ जैसे लग रहे हैं
ऐसा दिखाने का स्वांग रच रहे हैं
कि अब अपने माता-पिता ही सबसे बड़े दुश्मन हो गये हैं।
बेटियां हैं तो कम से कम इतना संतोष तो है
बुढ़ापे में बेटे-बहू को कोसने से तो फुर्सत है।
उम्मीदों के टूटने का कोई डर तो नहीं है,
जीते जी मरने का अफसोस का दंश नहीं सहना है
अंतिम संस्कार के लिए कम से कम
बेटे के इंतजार में नहीं सड़ना हैं।
फिर तू तो है न? आखिर तू क्या करेगा?
क्या यारी के नाम पर सिर्फ स्वार्थ के गीत ही गायेगा?
और हमें आसानी से भूल जाएगा?
क्या तू भी कल हमारे काम नहीं आयेगा?
वैसे तू नहीं चाहेगा तो भी हम दोनों यमलोक आ जायेंगें।
वहीं तेरे घर में धूनी रमायेंगे,
तेरा ही खाकर जमकर हुड़दंग मचाएंगे,
तेरे सवालों का जवाब पाने के लिए
यमलोक व्यापी अभियान चलाएंगे,
सरेआम चर्चा कराएंगे
अपने मित्र यमराज के जयकारे लगाएंगे,
दोनों मिलकर एक नया इतिहास बनायेंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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लघुकथा -पुश्तैनी मकान
******"
भतीजे की शादी में दस साल बाद गाँव लौटे रमन को अपना गाँव घर पहचान में ही नहीं आ रहा था। अधिसंख्य कच्चे मकान पक्के हो चुके थे, पक्की सड़कें, नालियां, हर घर में बिजली आदि को देख उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यही उसका वो गाँव है, जिसे छोड़कर वो गया था। उसके पिता ही नहीं कई सारे लोग दुनिया छोड़ गए, जिनकी गोद में खेल-कूद कर वह बड़ा हुआ था।
बड़े भाई की जिद थी कि वह गांव छोड़कर कहीं नहीं जायेगा। अपने श्रम से उसने पुश्तैनी घर को पक्का कराया, अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाई। पिताजी की मान मर्यादा को बनाकर रखा। यही नहीं उसने छोटे भाई के हिस्से को भी जिम्मेदारी समझकर संभाला।
रमन बड़ेभाई से लिपटकर रो रहा था, उसने जो खोया, उसके भरपाई तो संभव नहीं थी। फिर भी उसे अपने पुश्तैनी घर के साथ पिता जैसे बड़े भाई की बाँहें उसे हौसला दे रही थीं। उसे ऐसा महसूस हो रहा कि बहुत कुछ खोकर भी अभी भी उसके पास बहुत कुछ है। जिसे अब वहकिसी भी हाल में नहीं खोयेगा।
उसने दृढ़ संकल्प के साथ अपने आँसू पोंछे और भाई से क्षमा माँगी।
बड़े भाई जब ने उसे आश्वस्त किया, तब उसे लगा कि पिता जी ऊपर से उसे अपना आशीर्वाद दे रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
- Sudhir Srivastava

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श्रीकृष्ण धरा पर आओ
**********
आज सुबह मित्र यमराज
भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के आयोजन में
शामिल होने के लिए मुझे बुलाने आ रहा थे,
रास्ते भगवान श्रीकृष्ण मिल गये
यमराज के तो जैसे भाग्य खुल गए।
यमराज ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया
और फिर अपनी पर आ गया,
देखो प्रभु ! बड़े दिनों से आपको खोज रहा हूँ
अपने तमाम प्रश्नों को लेकर भटक रहा हूँ,
अब गायब मत हो जाना,
मेरे सवालों का जवाब देकर ही जाना।
मुझे पता है कि आपकी लीला बड़ी निराली है,
इसीलिए तो आपको अब तक खोजता आ रहा हूंँ,
बड़ी मुश्किल से अब आप मिल ही गये हो
तो पहले यह बता दो, आप कहाँ विचर रहे हैं?
क्या ट्रंप- पुतिन वार्ता की मध्यस्थता करके लौट रहे हैं,
या अपने जन्मोत्सव की तैयारियों का
जायजा लेते फिर रहे हो?
जो भी हो! मुझे क्या फर्क पड़ता है ?
बस! मुझे तो आप इतना भर बता दो
कि आपकी जन्मभूमि का विवाद कब हल होगा?
या और कितना लंबा चलेगा?
कृष्ण जी तो अपने में मगन मंद-मंद मुस्कुराते रहे।
यमराज समझ गया और फिर कहने लगा
आप कनहीं बताना चाहते तो भी कोई बात नहीं
कुछ और पूछता हूँ, कम से कम इसका ही उत्तर दे दो
आप कल्कि अवतार कब ले रहे हो?
दिन, दिनांक, माह, वर्ष ही बता दो।
यमराज को देखते हुए कृष्ण जी फिर भी मुस्कराते रहे।
यमराज की बेचैनी बढ़ने लगी
वह भगवान कृष्ण के चरणों में गिर पड़ा
और कातर स्वर में कहने लगा
मैं समझ गया हूँ प्रभु!
आप कुछ बताकर मेरा भाव नहीं बढ़ाना चाहते हो,
या फिर मुझसे बचकर निकल जाना चाहते हो।
या धरती पर बढ़ते पाप की ओर
ध्यान ही नहीं देना चाहते हो।
एक द्रौपदी की लाज बचाकर बड़ा गुमान कर रहे हो,
आज जो हो रहा है, क्या उसे देख नहीं पा रहे हो,
या धरतीवासियों को गुमराह कर रहे हो।
कितनी मातृ-शक्तियों की लाज रोज-रोज लुट रही है
नन्हीं - मुन्नी बच्चियां, दादी नानी की उम्र की नारियां भी
अब तो रोज ही लुट पिट कर बेइज्जत हो रही हैं
सिर्फ अस्मत ही नहीं, प्राणों से भी हाथ धो रही हैं,
कहीं भी, कभी भी डर-डर कर जी रही हैं।
इतना ही नहीं, धरती पर क्या कुछ नहीं हो रहा?
जिसे आप देख नहीं पा रहे हो
या फिर नीति-अनीति, धर्म -अधर्म की बात भूल गए हो।
हर वर्ष धरती पर अपने जन्मोत्सव से
बड़ा मगन हो सिर्फ बाँसुरी बजा रहे हो।
हे प्रभु! अब मौन छोड़ो और कुछ लीला करो
धरा पर आओ और पापियों को दंड दो
धरती का बोझ अब कुछ कम करो।
समय आ गया है कि आप गंभीरता से विचार करो,
नाहक अपना नाम और खराब न करो।
भगवान कृष्ण ने मौन तोड़ उत्तर दिया
वत्स! मैं सब कुछ देख, सुन, समझ रहा हूँ
तेरे मन की पीड़ा को भी अच्छे से महसूस कर रहा हूँ
पर कलयुग को भी
अपने रंग दिखाने का अवसर दे रहा हूँ,
धरती पर जो कुछ भी हो रहा है
उसके एक-एक पल का हिसाब-किताब रख रहा हूँ
और सही समय का इंतजार कर रहा हूँ।
मैं आऊँगा, मुझे आना ही है, यह भी निश्चित है
पापियों के पाप का घड़ा भरता जा रहा है
जो मुझे भी उद्वेलित कर रहा है,
नारियों की पीड़ा मेरे अंर्तमन को झिंझोड़ रही है।,
कैसे तुझे बताऊँ कि कैसे अपनी बेबसी से लड़ रहा हूँ
धरा पर आने के लिए समय से दो-दो हाथ कर रहा हूँ,
अपने आने के नियत समय का
बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ।
यमराज उठकर खड़ा हो गया और कहने लगा
प्रभु! मैं इतना ज्ञानी नहीं
जो आपकी गूढ़ बातों का रहस्य जान सकूँ,
मैं तो बस सिर्फ इतना चाहता हूँ
कि आप शीघ्रताशीघ्र धरा पर आओ,
जो भी करना ठीक समझते हो, करो
कम से कम अब तो अपनी जिम्मेदारी निभाओ,
बहन बेटियों की लाज बचाओ
पापियों का नाश करो, धरा पर खुशहाली लाओ
और फिर चाहे माखन चुराओ, बाँसुरी बजाओ,
गाय चराओ, रासलीला रचाओ या फिर लीला दिखाओ,
मगर अब फिर से धरा पर आ जाओ,
अब और न इंतजार कराओ,
धरती के प्राणियों संग मुझ पर भी
अपनी थोड़ी बहुत कृपा बरसाओ,
हे गीता के उपदेशक अब मान भी जाओ,
और आकर अपना सुदर्शन चक्र चलाओ।

सुधीर श्रीवास्तव

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व्यंग्य
जन्माष्टमी का दिखावा
**************
आज जब हम सब भगवान श्रीकृष्ण का
पाँच हजार पाँच सौ बावनवाँ जन्मोत्सव मना रहे हैं,
तब आप मानो न मानो कोई बड़ा काम नहीं कर रहे हैं।
क्योंकि जब हम हों या आप
नीति-अनीति, धर्म-अधर्म का भेद जो नहीं कर पा रहे हैं,
अपने आपको शहंशाह समझ रहे हैं।
माँ- बहन- बेटियों में डर भर रहे हैं
बेईमानी के सारे काम ईमानदारी से कर रहे हैं
और बड़े गर्व से साल दर साल
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मना रहे हैं।
हर कदम पर भ्रष्टाचार, अत्याचार,
अनाचार, व्यभिचार, दुर्व्यवहार कर रहे हैं,
अपने ही माता-पिता का अपमान कर रहे हैं
जी भर कर उनकी अपेक्षा अनादर से
उनका जीना हराम कर रहे हैं,
वृद्धाश्रम में ढकेल कर बड़ा घमंड कर रहे हैं।
छोटे बड़े का अंतर भूल रहे हैं
बिना सोचे विचारे कुछ भी बोल रहे हैं,
दूसरों को रुलाकर हम-आप हँस रहे हैं,
बुद्धि, विवेक, सभ्यता, मर्यादा ताक पर रख रहे हैं,
अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ रहे हैं,
स्वार्थ की रेल पर सफर कर रहे हैं।
घर-बाहर डरी-सहमी, लुटती-पिटती
बहन, बेटियों का दर्द हम-आप महसूस नहीं कर पा रहे हैं,
और तो और अपने कृत्यों से हम ही उन्हें डरा रहे हैं।
लूट-खसोट को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ रहे हैं,
दूसरों की धन सम्पत्ति बड़े चाव से हथिया रहे हैं
अपने ही भाइयों का हक मार रहे हैं,
फिर भी इतना समझ नहीं पा रहे हैं
कि हम भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव क्यों मना रहे हैं।
शायद हम-आप इस भ्रम में जी रहे हैं
ऐसा लगता है कि जैसे हम-आप तो
जगत नियंता को भी गुमराह करने में समर्थ हो गये हैं,
गीता के उपदेशों का उपहास कर रहे हैं,
जैसे हम-आप योगेश्वर श्रीकृष्ण को आइना दिखा रहे हैं।
अपराध करके भी पाक-साफ बन रहे हैं,
औरों को बेईमान बताने में सबसे आगे दौड़ रहे हैं
और खुद को ईमानदारी के बड़े झंडाबरदार बन
बेशर्मी से उछल-उछल कर नंगा-नाचकर रहे हैं
फिर भी बड़े उत्साह से जन्माष्टमी मना रहे हैं।
बड़ा सवाल है कि हम आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?
क्या हम आप इतना भी नहीं समझ पा रहे हैं
या सब कुछ जानबूझकर कर रहे हैं
और सिर्फ दिखावा कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं
पाक-साफ दिखने दिखाने का शौक पूरा कर रहे हैं,
भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाकर
उन पर ही अहसान कर रहे हैं,
क्योंकि दिखावा ही सही,
उनके जन्मोत्सव को हम-आप
साल-दर-साल भव्य से भव्यतम ही तो बना रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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बड़ी लकीर बनाना है
***********
लालकिले से मोदी जी का भाषण सुनकर
मित्र यमराज सीधे मेरे पास आये,
कम से एक किलो लड्डू की डिमांड के साथ
उन्यासीवें स्वतंत्रता दिवस की बधाइयां दी
और फिर कहने लगे - प्रभु,
मोदी जी का संदेश नहीं सुना तो हमसे सुनिए
और आप भी उस पर अमल करिए।
इतना ही नहीं अपनी लेखनी से
साहित्यिक धर्म के साथ राष्ट्र धर्म का भी निर्वाह करिए।
मैंने कहा - अरे यार! सीधे मुद्दे पर आ
बेवजह होशियारी का गाना मत गा।
मोदी जी ने क्या कहा- सीधे-सीधे ये बता
या फिर चुपचाप लापता हो जा।
यमराज कहने लगा- आज मोदी जी ने कहा
कि किसी की छोटी लकीर पर ध्यान मत दीजिए
अच्छा है अपनी लकीर को बड़ा करने का काम कीजिए,
बस! अब आप मुझे इसका मतलब समझा दीजिए,
क्या पता यमलोक में भी किसी काम आ जाए,
कुछ लोगों को नया रोजगार मिल जाए।
मैंने उसे समझाया - मोदी जी का आशय
एकदम साफ-सुथरा है,
जिसे हम सबको ईमानदारी से जीवन में उतारना है
किसी की लकीर छोटी करने के चक्कर में
अपनी उर्जा नाहक व्यर्थ नहीं करना है,
बस! अपनी लकीर बड़ी करने पर ध्यान देना है,
किसकी लकीर कितनी छोटी या बड़ी है
यह सोचना हमारा काम नहीं है।
हमें तो बस इस पर ध्यान लगाना है
कि अपनी लकीर कैसे बड़ी,
और बड़ी औ...औ...र बड़ी बनाना है,
छोटी-बड़ी के चक्कर में समय नहीं गँवाना है,
समाज, राष्ट्र के हितार्थ अपने को खपाना है।
ये नये जमाने का भारत है,
दोस्त हो दुश्मन, सबको यही दिखाना है,
तिरंगे की ताकत का लोहा मनवाना है।
इसके लिए हर एक भारतवासी को
बिना थके, बिना रुके बस चलते और चलते जाना है
भारत को विश्व गुरु बनाने में
हर किसी को अपनी-अपनी भूमिका निभाना
और अपनी लकीर को बड़ी और बड़ी करते जाना है,
भारत को दुनिया का चमकदार आइना बनाना है।

सुधीर श्रीवास्तव

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ये नया भारत है
*************
आज का भारत बिल्कुल बदल गया है।
क्योंकि लीक से हटकर चलने लग गया है।
सिर उठाकर, आँखों में आँखें डालकर बात करता है,
समय परिस्थिति के अनुसार
राष्ट्रहित में त्वरित निर्णय लेता है।
मानवता की नित नई इबारत लिखता है,
तो दुश्मनों को खून के आँसू रुलाता है,
गीदड़ भभकियों से नहीं डरता है।
ईंट का जवाब पत्थर से देता है,
आपरेशन सिंदूर से नई तस्वीर पेश करता है।
डरने की बात अब बीती बात हो गई है,
किसी को डराने में भी विश्वास नहीं करता है,
अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करता।
आज का भारत, नया भारत
अब पूरी तरह बदल गया है,
अपने फैसले खुद करता है,
बेवजह किसी के दखल का करारा जवाब देता है,
भारत आजादी का नया इतिहास लिख रहा है।
विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान कर रहा है
वैश्विक मंचों पर अपनी ताकत का लोहा मनवा रहा है,
वैश्विक स्तर पर अपनी चमक से छाता जा रहा है,
कौन क्या कह रहा इसकी फिक्र नहीं करता।
राष्ट्र प्रथम का सीना ठोंक कर संदेश देता है।
बेवजह कहीं भी दखलंदाजी नहीं करता है,
खुद पर इतना विश्वास करता है,
हर परिस्थिति से निपटने में खुद को समर्थ समझता है,
अपने कर्म से नये भारत की नई लकीर खींच रहा है,
आजादी का अर्थ समझता और दुनिया को समझाता है।
आज का भारत कितना बदल गया है।
नित-नित सारी दुनिया को बड़े प्यार से बताता है
आज का आजाद भारत इतना बदल गया है
कि रोज नया इतिहास लिख रहा है,
तिरंगे की ताकत से दुनिया को चौंका रहा है,
आजादी के रणबाँकुरों को शत शत नमन कर रहा है,
जयहिन्द, वंदेमातरम का जयघोष कर ही नहीं रहा है
सारी दुनिया से भी करा रहा है,
आज का भारत बिल्कुल बदल गया है।

सुधीर श्रीवास्तव

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कच्चे धागों की ताकत
***********
कविता से जुड़ा आभासी रिश्ता
जब वास्तविकता के धरातल पर उतरा,
तब उम्मीदों से अधिक परवान चढ़ गया
और आज नेह बँधन में बँधकर
नूतन आयाम तक पहुँच गया।
जीवन के उत्तरार्ध में ईश्वर का
अनुपम, अनोखा प्रसाद मिल गया,
सहसा विश्वास नहीं होता
पर सच से मुँह भी तो मोड़ा नहीं जा सकता।
क्योंकि कल तक अनजान, अपरिचित चेहरे और नाम
आज विश्वास का आधार बन गये,
बिना किसी भेद-भाव, जोर दबाव के
रिश्तों की डोर में मजबूती से बँध गये,
राखी की डोर से और मजबूत कर गये।
आज किसी की बहन, तो किसी के भाई हो गये
अपने कर्तव्यों, जिम्मेदारियों को स्वत: ओढ़ गये
एक अन्जाने परिवार का हिस्सा बन गये।
माता-पिता, बहन- बेटी, भाई- बहन,
भतीजा- भतीजी, मामा- भांजा, भांजी
बुआ- फूफा, मौसी - मौसा के नये रिश्ते
विश्वास की बदौलत मजबूत हो गये।
यह ताकत सिर्फ राखी के धागों में ही हो सकती है।
जो किसी को किसी की बहन या भाई बना देती है,
किसी बेटी को एक और मायके का सूकून दे जाती है,
अन्जान लोगों को रिश्तों के अटूट बंधन में
मजबूती से बाँधकर वो मुस्करा देती है।
कल तक जो एक दूसरे को जानते पहचानते तक नहीं थे
एक दूजे से मिलने या बातचीत करने तक में झिझकते थे,
नैतिकता, मर्यादा और सामाजिक बंधनों का
भरपूर सम्मान करते हुए आगे बढ़ते।
वही आज लड़ते-झगड़ते, शिकवा -शिकायतें करते
सुख-दुख, तीज- त्योहार में भी साथ होते हैं,
अपने अधिकार जताते, जिद करते
कर्तव्य पर भी खुशी-खुशी आगे बढ़ते हैं,
राखी के सौगातों का आभार धन्यवाद करते हैं
रिश्तों को पूरा सम्मान देते और पाते हैं,
रिश्तों में अब तक की कमी भी भूल जाते हैं,
जब राखी के धागों से नये रिश्ते, नये बँधन
नव विश्वास की नींव पर
जब नवजीवन आधार के फूल खिलाते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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रक्षाबंधन का यमराज उपहार
*************
आज दोपहर बाद मित्र यमराज आये,
समझ नहीं आया! क्यों थे मुँह लटकाए,
मैंने कारण पूछा - तो भावुक हो गए
और खुद को संयत करते हुए कहने लगे
प्रभु जी! आप तो रक्षाबंधन पर्व मना रहे हो
मेरी पीड़ा को समझ ही नहीं पा रहे हो।
मैंने कहा -चल भाई! मैं नासमझ हूँ, तो तू ही समझा दे
अपने मुँह लटकाने का कारण समझा दे।
यमराज निवेदन करते हुए बोला -
प्रभु! मैं भी रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहता हूँ
अपनी कलाई पर बहन की राखी सजाना चाहता हूँ।
पर अफसोस कोई भी बहन इसके लिए तैयार नहीं है,
अनुनय विनय के बाद भी डरकर छिप जा रही है,
मुझे अपना भाई कहने तक में झिझक रही है।
अब आप ही कुछ उपाय करो
मेरे मन के भावों को साकार करो।
मैंने हँसते हुए कहा - बस इतनी सी बात है
तो मैं तत्काल तुझे इसका हल देता हूँ,
अपनी छुट्टकी से तुझे अभी राखी बँधवा देता हूँ,
अपनी जिम्मेदारी भी तेरे साथ बाँट लेता हूँ।
यमराज मुस्कराया - सच प्रभु! ऐसा हो सकता है?
मैंने कहा - हो सकता नहीं होने जा रहा है
तू हाथ तो बढ़ा, तुझ पर भी
बहन की राखी का क़र्ज़ चढ़ने जा रहा है।
छुटकी ने आग्नेय नेत्रों से मुझे घूरते हुए कहा -
क्या आपका क़र्ज़ हो गया पूरा?
मैं भाई यमराज को राखी बाँधती हूँ
आपकी तरह उनका भी लाड़-प्यार चाहती हूँ
आज से ये भी मेरा भाई है
दुनिया देख ले, अब उसकी भी सूनी नहीं कलाई है।
मेरे लिए तो ये बड़े गर्व की बात है
कि भाई यमराज और आप पहले से यार हैं,
इस वर्ष के रक्षाबंधन पर्व का
ये मेरे लिए सबसे अनमोल उपहार है।

सुधीर श्रीवास्तव

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