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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
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आज हमारी निशानी
********
आज बड़ा गंभीर प्रश्न हमारे सामने आकर
हमारी आँखों में आँखें डालकर हमसे पूछ रहा है
कि बता रे तू आज का मानव- तुझे क्या हो गया है?
हमने कहा - हमें क्या हुआ बरखुरदार
और वैसे भी होना क्या था?
हमारे पुरखे बेवकूफ थे, बस! ये हमें समझ आ रहा है
बस उसी का भूल सुधार कर रहे हैं,
प्रेम-प्यार, भाईचारा, एकता में भला रखा क्या है?
हम आज उसका नामोनिशान मिटा रहे है
अपने पुरखों की करनी का दंड भला हम क्यों भोगें?
वो जो लकीर खींचते रहे उम्र भर
हम उसी लकीर को और बड़ा भला क्यों खींचे?
वो दौर और था, जब वे पैदा हुए
भूखे, प्यासे, अभावों में जिए
सुख-सुविधाएं मयस्सर नहीं हुईं
क्योंकि वे इस लायक ही नहीं रहे।
बस मान-मर्यादा, सामंजस्य, एकता, सहयोग
अपनापन, मानव मूल्यों की गाँठ कसकर पकड़े रहे,
समय के साथ बढ़ ही नहीं सके
और फिर हमें देकर ही क्या गए?
जो हम उनको अपने लिए नज़ीर मानें, उसी पर राह चलें।
अब समय बदल गया, तो हम भी बदल गये हैं
दकियानूसी सोच से निरंतर आगे बढ़ रहे हैं
अपने सुख-समृद्धि के लिए जतन करने में लगे हैं,
अपनों की लाशों पर पैर रखकर
आगे बढ़ने में संकोच नहीं कर रहे हैं,
रिश्ते नाते हमें महज़ किताबी लगते हैं
सच कहें तो ये सब महज खिताबी हैं
जिससे कभी पेट नहीं भरता
ईमानदारी से कहूँ, तो आज इसे कोई भाव भी नहीं देता।
इसीलिए तो रिश्ते बेमानी, स्वार्थी हो रहे हैं
किसी के मरने जीने से अब हम व्याकुल नहीं हो रहे हैं
प्रेम, प्यार, भाईचारा, संवेदना, मर्यादा को
बहुत गहराई में दफन कर दिए हैं,
बिना स्वार्थ किसी को नमस्कार भी नहीं कर रहे हैं।
पड़ोसी की मौत पर भी अब हम
बेवजह परेशान नहीं हो रहे हैं,
क्योंकि हम तो अपनों की मौत पर भी
अब आँसू बहाने का समय तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
क्योंकि हम सब इतने व्यस्त हो गए हैं
कि ये सब अब हमें समझ ही नहीं आ रहे हैं।
वैसे भी क्या रखा है? इन सब पचड़ों में पड़ने के
भला मरने के बाद कौन देखने आ रहा है,
फिर समय के साथ चलना आज की जरूरत है
जो पीछे रह गया, उसे मुड़कर कोई देखता भी नहीं
जब तक जियो, सिर्फ अपना देखो
यही आज की जरूरत और बुद्धिमानी है
जिसे इतनी भी समझ नहीं, वो सबसे बड़ा अज्ञानी है।
इसलिए ऐ प्रश्न! तू इन बेकार के लफड़े में मत फँस
वरना तेरी भी खत्म जिंदगानी है,
इतिहास तो महज एक कहानी है
तेरा प्रश्न ही आज के समय के हिसाब से
सच मान बिल्कुल ही बेमानी है,
जो मैंने कहा- यही आज हमारी निशानी है,
और आज हम सबकी एक सी कहानी है ।

सुधीर श्रीवास्तव

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चापलूसी
*********
कौन सुनता है
आज उसकी पीड़ा,
जिसे चापलूसी करना नहीं आता,
क्योंकि उनको तो बस यही भाता है।
अच्छा है सीख लो चापलूसी करना
उस ईश्वर की,
जो है सबका दाता,
और आपका भी कुछ नहीं जाता।

सुधीर श्रीवास्तव

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मेरी कलम
***************
ये आपने आप ने क्या किया?
मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया
मेरी कलम की धार को छूने का साहस कर दिया।
मैं तो आपको कुछ बताना नहीं चाहता था
फिर भी अब आज बता ही देता हूँ,
ध्यान से सुनिए और होशोहवास में रहिए।
जैसा मैं और मेरा व्यक्तित्व है
वैसे ही मेरी कलम और उसकी धार है,
न चाहते हुए भी ठाने रहती रार है।
मेरी कलम लीक से हटकर चलने को उत्सुक रहती है
कैकेई, मंथरा और रावण भी बेबाकी से लिखती है,
जो अपनी आँखो से देख लेती है,
बस! उसे लिखने को मचल उठती है।
मेरे चक्कर में बेचारी जाने कितनी आँखों में चुभती
आलोचनाओं का शिकार होती
पीठ पीछे गालियाँ भी खाती है,
पर अपनी आदत से बाज नहीं आती है।
मगर जब अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाती
तब आम हो या खास अपनी रौ में आकर
सबको धमकाने पर उतर आती है,
यमराज तक को उसकी औकात बताने में भी
तनिक संकोच नहीं करती है।
सच तो यह है! कि मेरी कलम सिर्फ लिखती ही नहीं
हँसाती, रुलाती, गुदगुदाती और आइना भी दिखाती है,
जो लिखना चाहती है, बेलौस लिखती है
कोई कितना भी बड़ा तुर्रम खाँ हो
कभी किसी से नहीं डरती है।
इतना तक ही होता तो भी ठीक था,
मेरी कलम शुभचिंतक बन मुझको भी राह दिखाती है,
यमराज मित्र होने के मेरे गुरुर को भी
पल भर में ही मटियामेट कर देती है,
स्वार्थ के बीच का अंकुरण से पहले ही
अस्तित्व मिटाकर खुश हो जाती है,
सच कहूँ तो मेरा अंदाज निराला है,
कलम और यमराज मित्र की यारी से ही जीवन चलता है।
अब यह आपके सोचने का विषय हो सकता है
कि आखिर कलम और यमराज संग
मेरा इतना याराना भला निभता कैसे है?
पर मैं तो इन्हीं दोनों को जीवन का देवता मानता हूँ
और हाथ जोड़कर सुबह - शाम प्रणाम करता हूँ,
अपने कलम की गौरव गाथा को अब यहीं विश्राम देता हूंँ,
आप सब यही चाहते हैं न
तो मैं भी फिर मिलने के वादे के साथ विदा लेता हूँ,
अपनी प्रिय कलम और मित्र यमराज का भी
कोटि-कोटि आभार, धन्यवाद करता हूँ,
और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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राष्ट्रपिता होने का दंड
***************
अभी मैं नींद की गोद में जा ही रहा था
कि प्रिय मित्र यमराज आ गये,
बड़े इत्मीनान से सोफे पर पसर गये।
मैंने पूछा - कहो मित्र कैसे आना हुआ
या पेट पूजा के चक्कर में आगमन हुआ।
यमराज ने कहा - प्रभु! मैं बड़े असमंजस में हूँ
जो खाया पिया वो हजम हो गया
पर मेरा असमंजस दूर नहीं हुआ।
आप लोग राष्ट्रपिता की जयंती मनाते हो
और राष्ट्रमाता का नाम तक छुपाते हो।
चलो मान भी लूँ, तो फिर यह भी पता लगना ही चाहिए
कि राष्ट्र पुत्र और राष्ट्र बहू किसको कहोगे?
या सिर्फ राष्ट्रपिता की माला ही जपोगे?
यमराज की बात सुन मैं चकरा गया
जो खाया पिया था, सब गायब हो गया ।
फिर उसे समझाया - नाहक तूने आने का कष्ट उठाया
नेहरू गाँधी की आत्मा तो यमलोक में ही है
फिर इसका उत्तर तू उनसे क्यों नहीं ले पाया?
यमराज व्यंग्य बाण चलाते हुए बोला -
वाह प्रभु! मैं आपको बेवकूफ दिखता हूँ
जो आधी रात आकर मैंने आपको जगाया?
मैंने नेहरु की आत्मा से पूछा तो उनका उत्तर था
मुझे क्या पता कि गाँधी जी को राष्ट्रपिता किसने बनाया?
फिर गाँधी जी से जब मैंने पूछा
कि आप राष्ट्रपति कैसे बन गए?
तो बेचारे गाँधी जी रुआँसे हो कहने
राष्ट्रपिता बनकर भला, मैंने कौन सा सुख मैंने पाया।
तू धरती लोक आता जाता रहता है
तू ही बता कि राष्ट्रपिता की आड़ लेकर
मुझे क्या-क्या नहीं कहा जा रहा है,
आरोप लगाया जा रहा है, गालियाँ दी जा रही हैं
यहाँ तक कि मेरी हत्या भी हो गई ,
पर क्या आज भी सूकून की साँस लेने का
वास्तव में मैंने अधिकार पाया?
इससे अच्छा तो मैं बापू ही ठीक था
पर जाने किस पाप के दंड स्वरूप
राष्ट्रपिता का तमगा मेरे हिस्से में आया ।
न कल सुकून था और न आज ही है
जाने कितने घाव अभी तक दिए जा रहे हैं
अपनी सुविधा, स्वार्थ के अनुसार ही
हम लोगों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं,
फिर सारा दोष भी मेरे ही मत्थे मढ़े जा रहे हैं।
मेरी स्थिति ठीक रावण जैसी हो गई है,
जिसे राम जी ने मारकर तार दिया था
फिर भी लोग हर साल उसका पुतला बनाकर जला रहे हैं
उसकी आत्मा का सुख-चैन लगातार छीन रहे हैं,
ठीक वैसे ही मुझे भी
जहाँ-तहांँ पुतला बना खड़ा कर दे रहे हैं।
कभी माला पहनाकर बड़ा मान देते हैं
तो कभी हमारी मूर्तियों की आड़ लेकर
हमें अपमानित उपेक्षित, खंडित कर रुला रहे हैं,
मेरे मन की पीड़ा भला वो लोग क्या जाने?
जो मुझे सूकून से रामधुन भी नहीं गाने दे रहे हैं।
राष्ट्रपिता की आड़ में बापू की आत्मा को रुला रहे हैं
अफसोस तो इस बात का है
कि हमसे राष्ट्रपिता का तमगा छीन भी नहीं रहे हैं,
और हमें धरती और यमलोक के बीच
फुटबॉल बना कर खेल खेल रहे हैं।
पहले हमको मारकर यमलोक भेज दिया
अब लगता है, यहाँ भी हमें मारने का
नया षड्यंत्र रचे जा रहे हैं,
राष्ट्रपिता होने का यह कैसा सिला दिया जा रहा है?
मेरी पीड़ा को हर दिन कुरेद- कुरेदकर
कौन सा नया इतिहास लिखा जा रहा है?
इतना कहकर यमराज खुद रोने लगा
यमराज के मुँह से बापू की पीड़ा सुनकर
मैं भी द्रवित हो गया
और हाथ जोड़ कर बापू की आत्मा की शांति के लिए
मौन प्रार्थना और मोक्ष की कामना करने में लगा,
उनकी आत्मा के दर्द को महसूस कर सोचने लगा
क्या सचमुच बापू को राष्ट्रपिता की ओट में
इस कदर छला जा रहा है?
उनकी आत्मा को आज भी छलनी किया जा रहा है
बेचारे गाँधी जी की आत्मा का अपमान कर
राष्ट्रपिता होने का ये कैसा अन्याय किया जा रहा है?

सुधीर श्रीवास्तव

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यमराज चालीसा
************

-: दोहा :-
बात हमारी तुम सुनो, मेरे प्रिय यमराज।
आओ मिलकर हम करें, इस दुनिया पर राज।।

-: चौपाई :-
मित्र राज यमराज हमारे। तुम लगते हो सबसे प्यारे।।१
इसका राज न कोई जाने। बेवकूफ मुझको सब माने।।२

मुझे फर्क पड़ता न कोई। अच्छा है ये किस्सा गोई।।३
जैसे चलता चलने देना। हमें किसी से क्या है लेना।।४

आखिर तुमसे डरना कैसा। माँग रहे क्या उनसे पैसा।।५
मृत्यु देव तुम माने जाते। आप नरक अधिपति कहलाते।।६

भैंसा वाहन चढ़कर चलते। गदा,पाश को धारण करते।।७
लाल वस्त्र तुम धारण करते। सब प्राणी जन तुमसे डरते।।८

पिता तुम्हारे सूर्य कहाते। अरु संज्ञा तेरी हैं माते।।९
अवतारी तुम धर्म कहाते।मृत्यु नियम पालन करवाते।।१०

तुम निवास यमलोक में करते। पितृलोक भी जिसको कहते।।११
तुम्हें नरक का राजा मानें।न्याय धीश मृत आत्मा जानें।।१२

कर्म लेख सबका रखवाते। स्वर्ग-नरक सबको पहुँचाते।।१३
पुनर्जन्म की माया रचते। प्राणी जिसको कहाँ समझते।।१४

जो जन जैसा कर्म है करता।उसको वैसा फल है मिलता।।१५
चित्रगुप्त जी जैसा लिखते। अक्षरश: तुम पालन करते।।१६

कोई नाम नहीं लेता है। प्राणी तुमसे बस डरता है।।१७
इतना भी वो नहीं समझता। अंतिम साथी तू ही बनता।।१८

इसमें दोषी किसको माने।सबके अपने राग तराने।।१९
कोई तुमको ना पहचाने। पर अपराधी पहले माने।।२०

सबकी अपनी-अपनी लीला। यम लीला से पड़ता पीला।।२१
कर्म -धर्म की ये दुनिया है। हर प्राणी बनता गुनिया है।।२२

नहीं मित्रता तुमसे करता। दूरी जाने क्यों है रखता।।२३
सबके प्राण समय पर हरते । भेद-भाव तुम कभी न करते।।२४

तुम कब इसकी चिंता करते। मस्त मगन अपने में रहते।।२५
नहीं शिकायत किसी की करते। मर्यादा में खुद को रखते।।२६

नियम धर्म का पालन करते। आप किसी से कभी न डरते।।२७

यूँ तो भूल चूक ना करते। समय मान उसका भी रखते।।२८

कभी आप न आलस करते। काम नियम से निश्चित करते।।२९
समय काल की फ़िक्र न करते। अपना भेद छुपाकर रखते।।३०

आवभगत कोई नहिं करता। अंतिम साथी यम से डरता।।३१

नहीं चाहता यम की बाँहें, भले कठिन जीवन की राहें।।३२

जो प्राणी तुमको है ध्याता। अंत समय में वो मुस्काता।।३३
नाहक तुमसे जो नहिं डरता। अंत समय में हँसता रहता।।३४

महिमा यम की जिसने जानी।कहती दुनिया उसको ज्ञानी।।३५
अद्भुत अनुपम आप कहानी। चाह रहा मैं जिसे सुनानी।।३६

जो जन यम का आदर करता। कभी नहीं वो किसी से डरता।।३७
सुख-दुख में सम भावी रहता। कभी नहीं असमय वो ढहता।।३८

शीश चरण निज आप झुकाता। कहता जो है आप विधाता।।३९
जो भी दिल में तुम्हें बसाता।संग आपके सदा सुहाता।।४०

-: दोहा :-
जय जय श्री यमदेव जी, करो जगत उद्धार।
आप क्षमा करते रहो, मम अनुचित व्यवहार।।

हाथ जोड़ विनती करुँ, सदा झुकाऊं माथ।
बस इतनी सी चाह है, रहें आप मम साथ।।

।। इति यमराज चालीसा सम्पूर्णम्।।

सुधीर श्रीवास्तव

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यमराज का चक्रव्यूह
***********
आज पहली बार यमराज का व्हाट्स एप मैसेज आया,
जिसे देख मैं चकराया
आखिर उसे मुझ पर इतना प्यार क्यों आया?
सुनकर आप भी चौंक जाएंगे
और कहेंगे इसमें क्या खास बात है भाया?
बस इसी बात से तो मैं घबराया।
अरे आज का मेरा दिन बीतने पर
बधाई देने का विचार उसके मन में क्यों आया?
दिन तो कल तक भी एक -एक दिन बीत ही रहा था
पर आज का दिन बीतने के साथ
मैंने कौन सा इतिहास मैंने रचाया।
मैंने फोन घुमाया, यमराज को बुलाया
उसने सुप्रभात कहकर अभी आने में
अपनी असमर्थता जताया
और कहने लगा प्रभु! परेशान मत हो
मैं तो आपको बता रहा था
कि आपके यमलोक आने का समय
एक और दिन करीब आ गया,
मैंने सोचा आपको पहले ही बता दूँ?
इशारे से ही थोड़ा सचेत कर दूँ,
यार हूँ तो कम से कम यारी निभा दूँ।
मुझे क्या पता था आप समझ ही नहीं पा रहे हैं
दस- बीस दिन को अपने एक से दिन जोड़ रहे हैं।
मुझे गुस्सा आ गया - तू मुझे बेवकूफ समझता है
मेरे ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है,
तुझे बड़ी जल्दी है, तो अपना कोई चेला भेज दें
हर दिन को दस-दस दिन के हिसाब से जोड़ ले।
यमराज गिड़गिड़ाया - न प्रभु ऐसा नहीं हो सकता
अभी तो यहाँ सब कुछ अस्त-व्यस्त है
आपके बंगले की सिर्फ दीवार ही बन सकी है,
ऊपर से बजट की भी थोड़ी कमी है,
अब ऐसे में आपको कहाँ रखूंगा ?
जनता निवास में आपको थोड़े ही रहने दूँगा।
धरती लोक का उसूल यहाँ नहीं है
हम अपने यार को पूरा सम्मान देते हैं
उसे हर तरह की खुली छूट देते हैं।
उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं
उसके लिए पूरा वीआईपी इंतजाम करते हैं।
मेरे चेले भी उसी व्यवस्था में लगे हैं
हर छोटी-बड़ी चीज पर पैनी नजर रखे हुए हैं
बेचारे दिन रात लगे हैं
आपके आगमन की खुशी में दुबले हुए जा रहे हैं।
तो मुझे भी बता मुझे कब ले चलेगा?
या अभी और मूँग दलेगा?
न प्रभु! अभी कुछ कह नहीं सकता
अभी आपको लाने का उचित प्रबंध नहीं कर सकता।
एक साथ सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है
अभी तो वहीं तिथि को लेकर जूतम पैजार मची है
किसी को जल्दी पड़ी है, तो कोई समय देना चाहता है
दो तो अभी बुलाकर आपकी कविता सुनना चाहता है
और तुरंत वापस भेज देना चाहता है,
एक आपको वाकई ओवर देकर
आपसे धरा पर आकर आपके साथ
एकाध हफ्ते रहना चाहता है।
मैंने बीच में उसे रोक कर कहा -
सच-सच बता तू क्या चाहता है?
यमराज शरमाते हुए बोला - प्रभु आप सब जानते हैं
दावत खिलाएं बिना आप कब मानते हैं,
पर इस बार आपको मुश्किल होगी
भौजाई की गालियां आपको मिलेंगी
क्योंकि इस बार मैं अकेला नहीं
मेरी फौज भी मेरे साथ होगी,
मुफ्त की दावत का आनंद लेगी।
इतना कहकर उसने फोन काट दिया
और मुझे चक्रव्यूह में फँसा दिया,
बड़ा होशियार समझता था मैं खुद को
उसने तो बड़े प्यार मुझे ही चारो खाने चित्त कर दिया
यार होने का पूरा अधिकार जता दिया।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य - यमलोक रत्न सम्मान
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सुबह-सुबह मित्र यमराज का आगमन हुआ
उसे देखते ही मैं जल - भुन गया,
क्योंकि मेरे तो चाय का खर्च बढ़ गया।
पर मैं भी आदत से मजबूर था
वैसे भी इस दुनिया ही नहीं, उस दुनिया में भी
वो ही तो मेरा सबसे प्यारा यार है,
ईमानदारी से कहूँ तो यमराज ही सबसे बड़ा दुश्मन
और सबसे नजदीकी रिश्तेदार भी है।
मगर ठहरिए! मेरे बारे में आप जो धारणा बना रहे हैं
बेहिचक उस पर अटल रहिए
मगर मेरे यार के खिलाफ एक भी शब्द
कहने से पहले सौ बार सोच विचार कर लीजिए।
मैं सब कुछ सह लूँगा
पर अपने यार के अपमान का मुँहतोड़ जवाब दूँगा,
आपसे मेरा रिश्ता क्या है? या कितने करीब का है
यह सब मैं भूल जाऊँगा?
और हाँ! मुझे धमकाने की तो सोचना भी मत
क्योंकि आपके काँधे पर मैं श्मशान भी नहीं जाऊँगा,
आपकी जानकारी के लिए पहले ही बता दूँ
कि यमलोकी आत्माओं के कँधे पर चढ़कर
सशरीर यमलोक चला जाऊँगा।
सोचता था आपको यमराज के आने का कारण बताऊँगा
पर आप लोग तो इस लायक हो ही नहीं
कि अपने यार की तारीफ कर
आपको अपना दोस्त बनाऊँ।
अरे यार कुछ तो शर्म करो, और घर जाओ
ताकि मैं अपने मित्र को अब चाय पिलाऊँ, नाश्ता कराऊँ,
इतना बेवकूफ नहीं हूँ मैं
कि मित्र की आड़ में आप सबको भी चाय पिलाऊँ,
नाश्ता कराऊँ और नाहक अपना खर्चा बढ़ाऊँ।
इतना ही नहीं, कल को यमलोक में भी
तुम्हारे लिए वीआईपी व्यवस्था का जुगाड़ लगाऊँ,
और यार यमराज की गालियाँ खाऊँ,
बदले में तुम सबसे बेवकूफी का भारत रत्न तो नहीं
यमलोक रत्न का सम्मान पा, अपना सिर खुजाऊँ,
और सचमुच का बेवकूफ कहलाऊँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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नवरात्रि विशेष
यमराज की फरियाद - जन-मन का उद्धार
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आज सुबह मित्र यमराज ने मुझसे पूछा -
प्रभु! क्या आप भी नवरात्रि में कुछ पूजा पाठ
और देवी माँ के नाम पर व्रत-उपवास करते हो?
मैंने भी उत्तर दिया - सवाल पूछने का यह कैसा समय है?
जब प्रश्न पत्र बँट गया तब तुम पूछ रहे हो
कि आज किस विषय का प्रश्न पत्र मिला है।
तू मेरा यार है, इसलिए बता दें रहा हूँ,
एहसान मान, पूरी ईमानदारी से सच बोलने जा रहा हूँ,
पूजा -पाठ, व्रत- उपवास मैं नहीं करता
बस! देवी माँ को मन ही मन याद कर लेता हूँ,
और ठूँस- ठूँसकर अपना पेट भरता हूँ।
यमराज नाराज हो कहने लगा
बड़े बेशर्म हो यार-
तुम तो देवी माँ का भी अपमान करते हो
ठूँस-ठूँसकर खाने के प्रोग्राम को
दस दिन विराम भी नहीं दे सकते हो
मैंने उसे प्यार से समझाया - तू गलत सोच रहा है यार
मैं दिखावा बिल्कुल नहीं कर सकता
पूजा-पाठ, व्रत- उपवास का छलावा नहीं करता
महज नवरात्रि में ही बड़ा पाक- साफ
और देवी भक्त दिखने-दिखाने का स्वाँग नहीं रचता,
जैसा भी हूँ, वैसा ही रोज दिखने का प्रयत्न करता हूँ।
अपने मन-वचन-कर्म से ईमानदार रहता हूँ
किसी का अपमान नहीं करता,
मानव धर्म का नित्य पाठ करता हूँ
माँ-बाप का मान- सम्मान करता हूँ
यथासंभव सेवा सत्कार करता हूँ।
किसी का हक भी नहीं मारता हूँ
ईमानदारी से जीने की पूरी कोशिश करता हूँ,
बहन-बेटियों को पूरा मान-सम्मान देता हूँ।
तेरी नज़र में भले ही मैं अपराध करता हूँ
तू कहे तो अपना अपराध भी मान लेता हूँ,
पर देवी माँ की नजरों में गिरने का
कोई भी काम नहीं करता हूँ,
सिर्फ नंबर बढ़वाने वाला काम करने का
तनिक विचार भी नहीं करता हूँ,
माँ-बाप, बड़े-बुजुर्गों ही नहीं
जगत जननी माँ के भी करीब रहता हूँ।
अपना मन पाक-साफ रखता हूँ,
खुद को देवी माँ का बड़ा भक्त समझता हूँ,
अब तू बता! क्या मैं कोई गुनाह करता हूँ?
यमराज सिर खुजाते हुए बोला -
यार! तू तो ज्ञानी बन ज्ञान देने लगा
संतों महात्माओं की तरह प्रवचन करने लगा।
पर तेरे प्रवचन से मुझे कोई मतलब नहीं है,
लगता है कि नवरात्रि में मेरे खाने पीने का
तेरे पास कोई इंतजाम ही नहीं है।
वैसे तू कह तो ठीक ही रहा है,
पर देवी माँ के लिए इसका कोई प्रोटोकॉल ही नहीं है।
जो जैसा चाहे करे , न करे, कम या ज्यादा करें
सबका अपना -अपना विवेकाधिकार है।
फिलहाल तो अपना प्रश्न वापस लेकर
इस वार्तालाप को विराम देता हूँ,
देवी माँ के मंदिर जाकर
माथा टेकने के बाद अपने काम पर निकलता हूँ,
देवी माँ हम दोनों का कल्याण बाद में करें
पहले जन-मन के उद्धार की फरियाद करता हूँ,
जय माता दी, जय माता दी का जयकारा लगाने की
सभी से हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूँ,
अपने यार की कसम अपना हर अपराध स्वीकार कर
आप सबको प्रणाम कर अब विदा लेता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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मोबाइल चासीसा
***********
-:दोहा:-
जय मोबाइल मातु की, महिमा बड़ी महान।
तन, मन, धन से कीजिए, सेवा ही पहचान।।

-: चौपाई :-
जय जय जय मोबाइल माता।
आप जगत की भाग्य विधाता ।।१
जिसने महिमा आप की जानी।
आज वही कहलाता ज्ञानी।।२
आप हमारा ज्ञान बढ़ाती।
जीवन साथी भाव जगाती॥३
तुम बिन जीवन सूना लगता।
नयन शून्य में तकता रहता।।४
लेखन हमसे आप कराती।
दूर देश उसको ले जाती।।५
नई - नई खबरें हो लाती।
दुनिया की बनकर तुम थाती।।६
खबर और पुस्तकें पढ़ाती।
गूगल बाबा से मिलवाती।।७
कथा कीर्तन हमें सुनाती।
फिल्मी गाने भी हो गाती।।८
तरकश में बहु तीर तुम्हारे।
घर बाहर संसार सहारे।।९
सुख- दुख भी तुम ही देती हो।
समय खूब सबका लेती हो।।१०
रिश्तों में तुम खाई बनती।
कच्ची -पक्की पूड़ी छनती।।११
घर सूने वीराने लगते।
माया तेरी सबको ठगते।।१२
ध्यान तुम्हारा बीबी रखती।
जो भी वो दे खानी पड़ती ।।१३
नव पीढ़ी है बड़ी दीवानी।
लगता उसकी तुम हो नानी।।१४
अपराधी भी इज़्ज़त देते।
मगर समय पर जो ना चेते।।१५
तुम ही उनकी दुश्मन बनती।
जब तुम दोनों में है ठनती।।१६
नव रिश्तों को जोड़ रही हो।
मनचाहा तब तोड़ रही हो।।१७
आनलाइनी माया रानी।
थक जाता जग सुनो कहानी।।१८
खत्म बैटरी जब हो जाती।
बड़े -बड़ों की नींद उड़ाती।।१९
डेटा जैसे तुम पी जाती।
बीपी बेकाबू हो जाती।।२०
निद्रा की दुश्मन हो पूरी।
नाहक इतना तनी अधूरी।।२१
दिल दिमाग में बसी हुई हो,
नियम धर्म पर कसी हुई हो।।२२
उनको रोगी आप बनाती।
अस्पताल में आप सुलाती।।२३
रहती उनको खूब चिढ़ाती।
देकर लालच हो भरमाती।।२४
नशा सदृश तुम रहती छाई।
लगता है अब तुम बौराई।।२५
भीख सरीखा मांगूँ डाटा।
पड़े गूंथना मुझको आटा।।२६
ध्यान पढ़ाई में कम लगता।
बार-बार तुमको ही तकता।।२७
जाने जगत तुम्हारी माया।
सूनी रहती तुम बिन काया।।२८
लेन देन की तुम हो रानी।
रूठ गई तो खत्म कहानी।।२९
भूल चूक थोड़ी जब होती
पीड़ा तब झंझट बन रोती।।३०
बिना तुम्हारे काम न चलता।
जीवन अब ये दुश्मन लगता।।३१
चिट्ठी पत्री लील गई तुम।
घूम घूम कर हिला रही दुम।।३२
जितना जीवन रंग सजाया।
बड़ा जाल लगता फैलाया।।३३
जितना भी तू काम है आती।
उतना ही हो हमें रुलाती।।३४
जब मन आता धोखा देती।
कर देती तू जीवन रेती।।३५
माना हो तुम बहु हितकारी।
पर तुम कल की हो बीमारी।।३६
आज भले हम समझ न पाएं।
रहती हो तुम दाएं-बाएं।।३७
हम मानव हैं मानो माता।
हमीं तुम्हारे भाग्य विधाता।।३८
सूझ बूझ से जीवन जीना।
वरना जहर पड़ेगा पीना।।३९
माना हम हैं भोले-भाले।
उससे ज्यादा दिल के काले।।४०

-: दोहा :-
प्रेम भाव से हम करें, मोबाइल गुणगान।
इसका मतलब यह नहीं, तू हो गई महान।।

।।•इति मोबाइला चालीसा संपूर्णम्•।।

सुधीर श्रीवास्तव

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यमराज का श्राप
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कल अचानक फोन कर
मेरा यार यमराज मुझसे कहने लगा -
प्रभु आपका समाज कहाँ जा रहा है?
आधुनिकता की ओट में,
सभ्यता, संस्कार, मर्यादा, संवेदना से विहीन हो रहा है।
बड़ा सवाल है कि धरा के सबसे बुद्धिमान प्राणियों की
आँखों का पानी सूखता क्यों जा रहा है?
क्या उन्हें अपने सामने विनाश का दलदल भी
बिल्कुल ही नहीं दिख रहा है?
या उन्हें अपना भविष्य बड़ा सुरक्षित लग रहा है?
मैंने उससे पूछा - तू ऐसा क्यों बोल रहा है?
और तुझे ऐसा भला लग ही क्यों रहा है?
यमराज भड़क गया - मुझे पता था प्रभु!
आपको भी मिर्ची लग जायेगी,
क्योंकि सच बात आपको भी बिलकुल नहीं सुहाएगी।
पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,
मिर्ची लगे या बम फूटे, जो दिखता है, वही कह रहा हूँ
बुजुर्गो की उपेक्षा, अपमान से मैं भी हैरान हूँ
आप मेरे यार हो, इसलिए बता रहा हूँ,
जो अपने माँ-बाप, बुजुर्गों का अपमान कर रहे हैं,
उनके दिल को छलनी कर रहे हैं
उन्हें जीते जी मौत के मुँह में ढकेल रहे हैं,
उन सबको थोक भाव में आज मैं श्राप देता हूँ,
उनका भी बुढ़ापा खराब हो, दिन रात कामना करता हूँ,
बुजुर्गों के अपमान का बदला लेने का
यमलोक में अलग से इंतजाम करता हूँ,
आपको भी सावधान करता हूँ
और अब फोन को विश्राम देता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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