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Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(19)

कहूँ या न कहूँ

बड़े असमंजस में हूँ, कहूँ या न कहूँ
डरता हूँ आपके नाराज होने के डर से,
आपसे अपनी नजदीकियों से।
पर करूँ भी तो क्या करूँ?
कहे बिना मुझसे रहा भी तो नहीं जाता,
यह जानते हुए भी कि सच आपको जरूर चुभेगा।
पर इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि आप ही नहीं हर कोई, जो मुझे जानते हैं
मैं साफ सुथरे शब्दों में कहने का रोगी हूँ,
सच के दुष्परिणामों का भुक्तभोगी हूँ।
जाने कितनों से दूर हो चुका हूँ,
नित आलोचनाओं का शिकार होता हूँ,
पर अपनी आदत से बाज नहीं आता हूँ।
आज की तरह असमंजस में भी नहीं रहा कभी
बस! इसीलिए तो आपकी सलाह माँगता हूँ,
आप कुछ भी कहो, पर मैं तोजो सच है, कहे देता हूँ
कहूँ न कहूँ की उहापोह के भंवर से
बाहर निकलकर उन्मुक्त विचरता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

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राष्ट्र नायक अटल
*****
प्रखर वक्ता, मृदभाषी, दृढ़ निश्चयी, सिंद्धांत पुरोधा,
नीति नियम के महारथी, अटल नाम के थे सारथी।
दूरदृष्टा अटल ने पोखरण परमाणु परीक्षण से
अमेरिका को भी हैरान कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर हिंदी का परचम फहरा दिया।
चतुर्भुज सड़क योजना और नदी जोड़ो परियोजना से
राष्ट्र के विकास को गाँवों से सीधे जोड़ने
और जल संरक्षण को बृहद आयाम दे दिया।
कारगिल युद्ध में पाक को नाकों चने चबवा दिया।
उनके बेबाक भाषण शैली, चुटीले अंदाज का
पक्ष हो या विपक्ष, इस अजातशत्रु का दीवाना था,
कवि हृदय अटल पहले विदेश मंत्री और फिर
तीन बार प्रधानमंत्री बन देश का नेतृत्व किया।
पद्य विभूषण और भारत रत्न से उन्हें नवाजा गया,
नाम के अनुरुप ही अटल जी का नाम
भारत की आत्मा में रच बसकर अटल हो गया,
राष्ट्र नायक अटल जी का नाम सदा-सदा के लिए
धूमकेतु सा अटल बन जीवंत हो गया
अटल नाम अटल और अमर हो गया।

सुधीर श्रीवास्तव

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हास्य - यमराज का वादा
*********
अभी-अभी यमलोक से यमराज का फोन आया
क्षमा याचना के साथ बड़े प्यार फरमाया
प्रभु! गुस्सा करने के बजाय विचार कीजिएगा
फिर अपना मुँह खोलिएगा।
मैंने भी जवाब में फरमाया
अच्छा होगा घर ही आ जाइए श्रीमान।
साथ-साथ चाय पियेंगे
आमने-सामने बैठकर संवाद करेंगे।
बड़े भोलेपन से यमराज ने मेरा प्रस्ताव ठुकराया
और सीधे अपनी बात पर आया
और गंभीरता अपनी बात कहने लगा।
हूजूर! मान लीजिए आप मर गये
बिना किसी हील-हुज्जत के
मेरे साथ यमलोक आ गये
उसके बाद सोचिए! आपके अपने परिवार वाले
शुभचिंतक, अड़ोसी-पड़ोसी, रिश्तेदार, इष्ट मित्र
भला क्या करेंगे?
मैं भड़क गया और लगभग चीखते हुए बोला -
मगर मैं मरा तो नहीं हूँ न
तेरे साथ यमलोक भी नहीं पहुँचा हूँ न
फिर तेरे कहने सुनने पर भला कान ही क्यों दूँ?
अब तू फोन रख या मैं ही रख दूँ?
यमराज व्यंग्य भरे भाव से बोला -
वाह हहहहहहह प्रभु!
कब तक सच से मुँह चुराएंगे ?
सच का सामना करने से बचकर रह पाएंगे?
एहसान मानिए मेरा - जो समय पूर्व आगाह कर रहा हूँ,
जीते जी कल का वास्तविक दृश्य
आपको चुपचाप दिखाना चाह रहा हूँ,
इतना एहसान फरामोश तो पहले न थे आप
जो अपने सबसे प्यारे मित्र को दुत्कार रहे हैं।
वैसे भी तो मुझे फोन रखना ही है,
उससे पहले अपने मन की बात भी कहना है
आप मानो न मानो, पर मेरा वादा
आपकी यमलोक यात्रा में खूब रोड़े अटकाऊँगा।
आपको यमलोक ले जाने के लिए मैं खुद नहीं आऊँगा
अपने किसी चेले चपाटे की ड्यूटी लगाऊँगा
बड़ा घमंड है न आपको अपने आप पर
अब मैं भी आपको अपनी औकात दिखाऊँगा
यमलोक के द्वार पर आपको लंबा इंतजार करवाऊँगा।
अब यहीं से हमारी आपकी दोस्ती खत्म
यह बात दुनिया को चीख-चीख कर बताऊँगा,
यमराज और उसकी ताकत क्या है?
यह आपको ही नहीं दुनिया को भी कदिखाऊँगा
पर अफसोस आपकी यारी कभी भूल नहीं पाऊँगा
और दुबारा आपकी चाय पीने की तो बात छोड़िए
भूलकर भी मिलने नहीं आऊँगा,
विश्वास कीजिए प्रभु? अपना वादा जरूर निभाऊँगा
और आपको सच का आइना
देर सबेर जरुर दिखाऊँगा,
और तब आपको मैं बहुत याद आऊँगा।

सुधीर श्रीवास्तव

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विश्व कविता दिवस (२१मार्च) विशेष हास्य कविता
यमराज और मैं : गुरु चेला
************
अभी -अभी मेल पर
यमराज का संदेश आया,
विश्व कविता दिवस पर प्राप्त
यमराज की बधाइयां शुभकामनाओं से
सच मानिए! मेरा दिल भर आया।
साथ ही एक अनुरोध भी था
जिसे आप सबको बताया हूँ
बड़े सलीके से जो उसने लिखा
बड़े प्यार से पढ़कर सुनाता हूँ।
मेरे प्रिय मित्र यमराज ने लिखा -
प्रभु जी! आपके अलावा कोई अपनी कविता में
मेरा एक बार भी जिक्र तक नहीं करता।
ये तो मेरे साथ सरासर नाइंसाफी है
मेरे लोकतांत्रिक अधिकारों पर
खुल्लम-खुल्ला कुठाराघात है।
मैं कब तक यह दर्द भला सह पाऊँगा?
आपके सम्मान की खातिर कब तक चुप रह पाऊँगा?
अब आप ही कुछ कीजिए
मेरे भविष्य की खातिर कुछ यत्न कीजिए,
कवियों कवयित्रियों को समझाइए
सबके बीच मेरा महत्व बढ़ाइए।
वरना मेरे सब्र का बाँध टूट जायेगा
और मेरी उपेक्षा करने वाले
नामुराद कवियों/कवयित्रियों का यमलोक में
आना प्रतिबंधित हो जायेगा।
मेरे चेले- चपाटे भी अब मेरा उपहास कर रहे हैं
आपकी आड़ में मुझे चिढ़ा रहे है,
और तो और धरना प्रदर्शन तक की धमकी दे रहे हैं,
लेखकों, साहित्यिकारों को यमलोक में
मिलने वाली विशेष सुविधा
तत्काल खत्म करने की माँग कर रहे हैं।
हे प्रभु! अब आप ही मेरा मार्गदर्शन कीजिए
मेरे सम्मान की खातिर कोई बीच का मार्ग सुझाइए
वरना अनर्थ हो जायेगा,
सच मानिए! यमलोक में अराजकता का
तांडव रोज- रोज ही बढ़ता जायेगा।
फिर आप मुझे दोष मत दीजिएगा,
वैसे एक सरल सा सुझाव मैं भी दे सकता हूंँ
जिसे राज रखने में ही आपका भला होगा,
मुझसे अच्छा भला और कौन आपका गुरु होगा?
सो या तो आप मेरी सलाह मानिए
और तत्काल मेरे गुरु पद पर आसीन हो जाइए,
और जी भर कर रोब जमाइए,
अब इसमें यदि असुविधा लगे तो
तत्काल मुझे अपना गुरु स्वीकार कर लीजिए।
और बड़े भौकाल से धरती से यमलोक तक
बेख़ौफ़ भ्रमण कीजिए,
दोनों मिलकर जी भरकर मौज मनाएंगे,
धरती से यमलोक तक जमकर उत्पात मचाएंगे,
अपनी औकात हम अनोखे ढंग से दुनिया को दिखायेंगे
इतना ही नहीं हम दोनों ही ब्रह्मांड रत्न बन जायेंगे।

सुधीर श्रीवास्तव

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आप मेरे शुभचिंतक हैं
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आजकल मेरे जीवन की अजीब पहेली है
दर्द चिंता आँसुओं में डूबी मेरी सहेली है
समझ आता नहीं ये क्यूँ बनती साँप सीढ़ी है।
उसकी सूरत जेहन में चिपक सी गई है
लगता ऐसा वो मेरी आत्मा सी हो गई है
कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं हो रही है
पर उससे अपनी रिश्तेदारी सी हो गई है
वो मौन होकर भी बहुत कुछ कह देती है
दूर जाने के रास्ते में दीवार खड़ी कर देती है
जाने अंजाने आँसुओं का सैलाब आ जाता है
टूटने से बचा कैसे हूँ ये भी समझ में नहीं आता।
कोई इसका हल बताकर बस इतना अहसान कर दो
उलझनों के भँवर जाल से मुक्त होने का मार्ग दे दो।
आप सभी ज्ञानी, गुरुजन, बुद्धिमान, विवेकवान हैं
हर समस्या का सरल, सहज समाधान दे सकते हैं,
मेरी उलझन, मेरी समस्या का सटीक हल दे सकते हैं
आप मेरे शुभचिंतक है, क्या इतना भी नहीं कर सकते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा -
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चित्रगुप्त जी
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मानस ब्रह्मा पुत्र हैं, चित्रगुप्त शुभ नाम।
हर प्राणी के कर्म का, लेखा- जोखा काम।।

चित्रगुप्त जी का दिवस, गुरूवार है आज।
पहले शीश झुकाइए, दूजा फिर सब काज।।
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कर्म
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जिसका जैसा कर्म है, उसका वैसा भाग्य।
बिना कर्म होता कहाँ, जीवन का वैराग्य।।

भाग्य कर्म के बाद ही, देता सबका साथ।
बिना कर्म के भाग्य भी, नहीं थामता हाथ।।

मन में जब विश्वास हो, फलदायक तब कर्म।
जान लीजिए आप भी, जीवन का ये मर्म।।

नहीं कर्म अपने जिसे, होता है विश्वास।
देती उसको घात है, छोटी -छोटी आस।।

दोष नहीं देना कभी, सबके अपने कर्म।
सबका अपना भाग्य है, सबका अपना धर्म।।
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फागुन/होली हुड़दंग
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आया फागुन मास है, लेकर नव उत्साह।
होली के हुड़दंग का, चढ़ने लगा उछाह।।

उड़ने लगे हैं इन दिनों, रंग अबीर-गुलाल।
बिना किसी संकोच के, रंगे जा रहे गाल।।

फागुन मास में चढ़ रहा, सबको बड़ा सुरूर।
सब ही अपने लग रहे, भला कौन है दूर।।

चढ़ने लगा है इन दिनों, सबको नया बुखार।
पहले रंग हैं पोतते, बाद में प्यार दुलार।।

समय साथ ही खो रहा, फागुन का उत्साह।
पहले जैसा अब कहांँ, रंगों भरा उछाह।।

होली के हुड़दंग से, दूर हो रहे लोग।
रंगों के त्योहार को, लगे मानने रोग।।

रंगों के इस पर्व को, करना मत बदरंग।
रंग खेलिए प्यार से, करिए सबको दंग।।

सूखे रंगों का करें, होली में उपयोग।
कीमत जल की जानिए, बढ़े नहीं कर रोग।।

मर्यादा में खेलना, रंग अबीर-गुलाल।
दीन- दुखी बीमार का, मत रँगना तुम गाल।

रिश्तों का भी कीजिए, आप सभी सम्मान।
रंगों के त्योहार का, मत करना अपमान।।

होली प्रिय त्योहार है, जान रहे हम आप।
सभी मिटाएं रंग से, मन के सब संताप ।।

फागुन का संदेश है, होली आई पास।
रंगों का त्योहार दे, सबका है विश्वास।।

जबरन किसी कपोल पर, नहीं लगाओ रंग।
खुशियों के त्योहार में, घोल रहे क्यों भंग।।

बैर -भाव सब भूलकर, खूब करो हुड़दंग।
प्रेम प्यार से पोतिए, मिलकर होली रंग।।

अभी अभी यमराज जी, आये मेरे द्वार।
रंग पोत कहने लगे, चुकता हुआ उधार।।

होली पर यमलोक में, मचा हुआ हुड़दंग।
एक एक को पकड़कर, लगा रहे सब रंग।।

बिस्तर पर यमराज को, मैंने पोता रंग।
दर्पण में निज देखकर , हुआ बहुत मैं दंग।।

सुबह-सुबह यमराज जी, पहुँचे प्रभु के धाम।
रंग पोत प्रभु गाल पर, भोला बन किया प्रणाम।।

रंग अबीर-गुलाल का, करिए सब उपयोग।
प्रेम प्यार सद्भाव का, करिए नव्य प्रयोग।।

हंगामा मत कीजिए, रखिए होली मान।
होली के त्योहार का, रंग बिरंगा ज्ञान।।

होली पर यमराज जी, दुखी बहुत हैं आज।
छुट्टी में भी पड़ रहा, करना उनको काज।।

छुट्टी में भी पढ़ रहे, बच्चे हैं मायूस।
अभी परीक्षा दौर है, किसको दें हम घूस।।

दहन होलिका में करो, अपने सब छल छंद।
ईर्ष्या नफरत द्वेष सब, आज कीजिए बंद।।

कुटिल होलिका का हुआ, बंद सभी अध्याय।
आप सभी हम जानते, जो इसका पर्याय।।

होली की शुभकामना ,स्वीकारें श्रीमान।
होली के संदेश का, समझूँ नहीं विधान।।

दंभ आप सब कीजिए, अवसर आया आज।
निंदा नफ़रत द्वैष के, संग होलिका साज।।

होली पर मेरा तुझे, रंग भरा आशीष।
खुशियों की सौगात हो, मिले ईश बख्शीश।।

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हिंदुस्तान - 2221
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अपने हिंदुस्तान का, आज चमकता नाम।
समय साथ अब बन रहा, नित नूतन ये धाम।।

इज्जत से अब ले रहा, विश्व हमारा नाम।
मोदी ने दिखला दिया, हिंदुस्तानी काम।।

हमको हिंदुस्तान का, ऊँचा करना भाल।
कहलायें तब गर्व से, अपनी माँ के लाल।।

दुख - सुख में होता खड़ा, सदा हमारा देश।
सत्य सनातन धर्म है, मानवता परिवेश।।

बड़े ध्यान से सुन रहे, हमको दुनिया देश।
जब होते हैं कष्ट में, या कोई हो क्लेश।।

उम्मीदों से देखती, सारी दुनिया आज।
केवल हिंदुस्तान ही, बचा सकेगा लाज।।
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विविध
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करें साधना धैर्य से, तभी मिले परिणाम।
वरना सब बेकार है, व्यर्थ आपका काम।।

बिन साधन होती कहाँ, अपना कोई काम।
चाहे जितनी साधना, जपो राम का नाम।

अंधा बाँटे रेवड़ी, बड़े मजे से आज।
और मजे वो कर रहा, दूजा नहीं है काज।।

राम नाम के साथ ही, साधन की दरकार।
करते रहिए साधना, बनकर के गुमनाम।।

सोच समझ पहले करें, चाह रहे क्या आप।
तभी साधना में रमें, लेकर ईश का नाम।।

मंगल को मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे जैसे भी करो, बदलो भले विधान।।

हाथ जोड़ विनती करूं, खड़ा आपके द्वार।
सबसे पहले आपका, आया मुझे विचार।।

अपनों पर भी अब कहाँ, हमको है विश्वास।
कारण सबको पता है, करना फिर क्यों आस।।

कौन मानता आपको, जिसके हैं हकदार।
स्वार्थ सिद्धि के खेल में, फँसना है बेकार।।

आप निहत्था जानकर, करना नहीं प्रहार।
आत्मशक्ति उसका बड़ा, सहना मुश्किल वार।।

अपनी लीला देख लो, जिसका नहीं प्रभाव।
जहाँ आम अरु खास के, होता मध्य दुराव।।

साधन अरु संपन्न हो, इसका बड़ा गुरूर।
सबको पता है मित्रवर, तुम हो मद में चूर।।
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मोबाइल
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मोबाइल पर हो रहा, आज बड़ा अन्याय।
बेचारा वो है बना, कोई नहीं सहाय।।

मोबाइल भी हो रहा, यारों बड़ा अधीर।
रंग खेलना चाहता, सुनिए उसकी पीर।।
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नारी
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आदिशक्ति का रुप है, नारी बड़ी महान।
इनसे पार न पा सके, कोई सकल जहान।।

नारी तेरे रूप का, ये कैसा विज्ञान।
माँ पत्नी बेटी बहन, सबका अलग विधान।।

पत्नी पीड़ित यमराज जी, दुखी बहुत हैं आज।
छुट्टी लेकर कर रहे, घर के सारे काज।।

माँ पत्नी के बीच में, पिसता पुरुष समाज।
समझ नहीं आता उसे, बचे कौन विधि लाज।।

बहना लड़ती नित्य ही, भैया जी हैरान।
छेड़-छाड़ करती सदा, फैलाती मुस्कान।।

पति-पत्नी में हो रहा, रोज-रोज ही द्वंद्व।
आप बताओ अब हमें , कैसे हो यह बंद।।

बहन बेटियाँ नोचती, मेरे सिर के बाल।
बड़ी कृपा यमराज की, बची हुई जो खाल।।

नारी महिमा का करें, नित्य सभी गुणगान।
भोर सायं यमराज भी, करते यही बखान।।

महिलाओं के झुंड में, सन्नाटे का राज।
हेडलाइन है बन गया, अखबारों में आज।।

बदले नारी मूड निज, बदले पल-पल रंग।
इनके चाल चरित्र से, कंप्यूटर भी दंग।।
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व्यवहार
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वाणी अरु व्यवहार में, भेद रखें जो लोग।
उनके जीवन का यही, बने कलंकित रोग।।

हम सबके व्यवहार में, समता का हो भाव।
कहना मेरा मानिए, कभी न कोई घाव।।

प्रेम प्यार व्यवहार का, कोई नहीं विकल्प।
करना हमको मित्रवर, बस केवल संकल्प।।

मातु-पिता अब हो रहे, दीन - हीन लाचार।
कारण इसका एक है, बच्चों का व्यवहार।।

वाणी में कटुता भरी, सबके मन में आज।
बनता है व्यवहार भी, जैसे कोढ़ में खाज।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई छंद
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विविध
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गंगा डुबकी चलो लगाएँ।
अमृत स्नान का पुण्य कमाएं।।
आखिर कल किसने देखा है।
लंबी कितनी ये रेखा है।।

महाकुंभ सौभाग्य हमारा।
संगम तट फैला उजियारा।।
हम भी डुबकी एक लगायें।
मुक्ति पाप से पाकर आयें।।

दिनकर जी का कहना मानो।
उनकी महिमा को भी जानो।।
समय व्यर्थ मत आप गँवाओ।
निज जीवन खुशहाल बनाओ।।

नीति नियम से दिनकर आते।
कभी नहीं वो हैं पछताते।।
समय पालना उनसे सीखें।
कहो कहानी कृष्ण सरीखें।।

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चौपाई छंद - मनमानी
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करो नहीं कोई मनमानी।
कहते हैं ज्ञानी विज्ञानी।।
अपना जीवन सफल बनाओ।
हर पल प्रभु के तुम गुण गाओ।।

जीवन को खुशहाल बनाओ।
मर्यादा को भूल न जाओ।।
आप सभी को खुशियां दोगे।
तभी आप खुशहाल रहोगे।।

मनमानी की आदत छोड़ो।
निज जीवन से नाता जोड़ो।।
मनमानी पड़ती है भारी।
काम नहीं आती है यारी।।

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चौपाई छंद- पिचकारी
*"******
रंग अबीर-गुलाल लगाओ।
सब मिल होली आप मनाओ।।
रंग भरी पिचकारी लाओ।
रंग आप जमकर बरसाओ।।

खेल रहे हैं बच्चे होली।
सूरत उनकी लगती भोली।।
सब पर खूब रंग बरसाते।
उछलकूद हुड़दंग मचाते।।

आओ हम सब होली खेलें।
निंदा नफ़रत ईर्ष्या ठेलें।।
रंग भरी पिचकारी लायें।
गुझिया पापड़ जमकर खायें।।
*******
चोपाई छंद - होली
*********
आओ मिलकर रंग लगाएँ।
होली का त्योहार मनाएँ।।
भेद-भाव को मार भगाएँ।
दीन-दुखी को गले लगाएँ।।

नहीं रंग में भंग घोलना।
मीठे प्यारे शब्द बोलना।।
होली का सम्मान करेंगे।
यही भाव हम सभी रखेंगे।।

मर्यादा में खेलो होली।
नहीं बोलना तीखी बोली।।
मन के सारे भेद मिटाओ।
शीश झुकाओ गले लगाओ।।

वृद्ध और बीमार बचाओ।
रंग कभी मत पकड़ लगाओ।
माथे सबके तिलक लगाओ।
ले आशीष सदा मुस्काओ।।

होली का हुड़दंग अनोखा।
लगता सबको चोखा - चोखा।।
मौका कहकर मदिरा पीते।
अपनी दुनिया में सब जीते।।

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चौपाई छंद- चौसर (211 भगण)

कुटिल शकुनि ने जाल बिछाया।
दुर्योधन को भी समझाया।।
पाँडव चौसर खेल बताया।
शकुनी ने निज जाल बिछाया ।।

फँसे जाल में सारे पाण्डव।
मगन बहुत थे सारे कौरव।
भंग हुई कुल की मर्यादा।
शर्मसार पाँडव थे ज्यादा।।

सभा मौन सब शीश झुकाए।
कौरव वंश बहुत मुस्काए।
पड़ी द्रौपदी पर ये भारी।
नींव महाभारत की डारी।।

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चौपाई छंद - महिमा
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भोले की महिमा है न्यारी।
कहलाते भोले भंडारी।।
शिव की कृपा सहज मिलती है।
रोग शोक सबका हरती है।।

मातु-पिता की महिमा जानो।
अंतर्मन से तुम पहचानो।।
हर दुविधा से बचे रहोगे।
ठोकर खाकर नहीं गिरोगे।।

महिमा की महिमा न्यारी है।
यारी भी पड़ती भारी है।।
आप सभी हम इसके प्यारे।
कभी दुलारे कभी पछारे।।

शिव की महिमा जिसने जानी।
वो ही बन जाता विज्ञानी।।
भोले-भाले औघड़दानी।
महिमा जिनकी सबने जानी।।

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चौपाई छंद - पैसा
*********
रिश्तों से पैसा है प्यारा ।
बिन पैसा झूठा है सारा ।।
पैसा कम तो मोल नहीं है।
मानो बिल्कुल बात सही है।।

पैसों ने है दुनिया बदली ।
काली चादर लगती उजली।।
पैसों ने आँखें ज्यों फेरी ।
दुर्गत होती जग में मेरी।।

मानवता पर पैसा भारी।
पैसों की ताकत है सारी।।
रहे दूर हो रिश्ते सारे।
बचकर रहते हैं बेचारे।।

रिश्ते पैसों पर पलते हैं।
इसके बिन वो कब चलते हैं।।
पैसों का है खेल निराला।
ईश्वर ही सबका रखवाला।।

जिसके पास नहीं है पैसा।
आज भाव वे जानें कैसा।।
सब जानें पैसे की माया।
पैसा पहले पीछे जाया।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई
*********
लक्षण २२१
********
लक्षण सबके बिगड़ गये हैं।
अपने से ही अड़े हुए हैं।।
धन घमंड में नहीं कमी हैं।
पूरे जग ही धूल जमी है।।

लक्षण दिखते अति कटु कैसे।
राक्षस कुल हों सब जैसे।।
मर्यादा कब उन्हें सुहाती।
सत्य बात भी भाव न पाती।।

राजनीति के लक्षण कैसे।
निहित स्वार्थ के पुतले जैसे।।
राम भरोसे जनता सारी।
त्राहिमाम करती बेचारी।।

चोरी करके श्रेष्ठ बने हैं।
लक्षण उनके बड़े घने हैं।।
बच कर रहना इनसे भाई।
वरना कल होगा दुखदाई।।

मेरे लक्षण तुम मत देखो।
अपना हित केवल तुम पेखो।।
वरना कल को पड़े यही भारी।
काम नहीं आयेगी यारी।।

********
मृत्युलोक 2121
********
मृत्युलोक की महिमा न्यारी।
सबकी है अपनी तैयारी।।
पड़ते इक दूजे पर भारी।
कहते तुमसे मेरी यारी।।

मृत्युलोक का खेल निराला।
सबका मुख होता है काला।।
पाक साफ जो स्वयं दिखाते।
पीछे खंजर खूब चलाते।।

मृत्युलोक में जो आया है।
पाप-पुण्य समुचित पाया है।।
सुख-दुख भोग रहे हैं सारे।
जैसे जिसके कर्म हैं प्यारे।।

मृत्युलोक से डर कैसा है।
अपने पास बहुत पैसा है।।
डरते जो कंगाल यहाँ हैं।
ईश्वर दिखता धरा कहाँ है।।

खेल तमाशा खूब दिखाओ।
लूट पाट कर रोब जमाओ।।
नहीं किसी के धौंस में आओ।
पथ की हर बाधा निपटाओ।

सुधीर श्रीवास्तव

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दोहा मुक्तक

मुझे बुरा जो कह रहे, उनका है आभार।
इससे उत्तम और क्या, हो सकता उपहार।
तेज कदम से भागते , मंजिल जिनकी दूर।
इससे सुंदर है कहाँ, पावन जिनका भार।।

रंग बदल कर आप भी, बदल लीजिए ताज।
जीवन में सबसे बड़ा, उत्तम है यह काज।
लोग भले ही आपको, करे नित्य बदनाम।
अनदेखा उनको करें, ठेलठाल कर लाज।।

आज सुबह यमराज ने, दिया निमंत्रण एक।
साथ-साथ यह भी कहा, मत देना तुम फेंक।
जाना अगली बार है, इतना रखना याद।
चलना मेरे साथ में, लाठी डंडा टेक।।

राजनीति के खेल का, ये कैसा परिणाम।
कल तक जिसका नाम था, आज हुआ गुमनाम।
जनता ने दिखला दिया, उनको उनकी राह।
भले विरोधी कर रहे, नाहक उनको बदनाम।।

आप सभी अच्छे भले, तो मैं क्या हूँ यार।
मैं भी तो आखिर आ गया, सज-धजकर तैयार।
समझा दे कोई मुझे, अंदरखाने बात।
बिना लाग-लपेट के, बतला दो क्या रार।।

आज स्वयंभू बन रहे, तरह तरह के लोग।
इसको दुस्साहस कहें, या माने संयोग।
मानूँगा विद्वान मैं, जिसको इसका ज्ञान।
वरना सबके लिए ही, यही बड़ा दुर्योग।।

महाकुंभ के नाम पर, नित्य नये आरोप।
सत्य सनातन के लिए, यही बड़े प्रकोप।
सद्बुद्धि इनको नहीं, आयेगी इस जन्म।
बुद्धिमान बनते बड़े, जैसे कोई तोप।।

सुधीर श्रीवास्तव

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चौपाई
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ममता
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माँ की ममता को हम जाने।पर माँ को माँ भी तो माने।।
उनके आँसू पड़ेंगे भारी। नहीं काम की कोई यारी।।

ममता का मत मोल लगाओ। घन घमंड को दूर भगाओ।।
तब जीवन खुशहाल रहेगा।कमी नहीं कुछ कभी रहेगा।।

समता ममता सुंदर नाता। नशा नहीं इसका है छाता।।
सबके मन को ये है भाता। दूर रहा जो पास है आता।।

सदमा लगता सबको भारी। नहीं किसी से इसकी यारी।।
अपनी रखना सब तैयारी। हृदय बसाओ कृष्ण मुरारी।।

महाकुंभ महिमा अति न्यारी। भीड़ नित्य आती है भारी।।
चाहे जितनी हो तैयारी। जन समुद्र में लगे फरारी ।।

ममता होती सब पर भारी, चाहे जितनी हो तैयारी।।
माँ की ममता सबको तारी। ममता ही खाती भी गारी।।

आज सोचना हमको होगा। सबने ममता का सुख भोगा।
फिर ममता क्यों अब है रोती। आँख में आँसू फटी है धोती।।

ममता नित अपमानित होती। कर्तव्य साथ ही नित है रोती।।
बच्चे भूखे कभी न सोते। ममता को अपमानित करते।।
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संगत
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सत संगति की महिमा जानो। जन-मन को भी तुम पहचानो।।
जैसी संगत होती भाई।वैसे मिलती सदा भलाई।।

राम नाम की महिमा जानो। कण कण राम बसे तुम मानो।।
जिसकी जैसी संगत होती। वैसे पाता पाथर मोती।।

दंभ नहीं तुमको है करना। ईश्वर से हर पल ही डरना।
प्रगति पंथ आ स्वयं मिलेगा। संकट सारे ईश हरेगा।।

लोभ मोह से हमको बचना।थोड़े में ही है खुश रहना।
नियम धर्म का पावन कहना। खुश रहना अरु प्रभु को जपना।।

आप बड़ों का कहना मानो। उनके अनुभव को पहचानो।
मान सदा तुम उनका रखना। मर्यादा से जीवन जीना।।

अज्ञानी बन कर सीखोगे। तभी ज्ञान का पाठ पढ़ोगे।
दर्पी बनकर नहीं मिलेगा। दंभ आपको स्वयं छलेगा।।
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जलधर
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बहती जल की पावन धारा। सारे जग का जीवन सारा।।
जब- तब इसका चढ़ता पारा। छिन्न भिन्न करता जग सारा।।

सूख रहे जल स्रोते सारे। दुर्दिन के लक्षण ये धारे।।
समय अभी है जागो भाई। सिर्फ नहीं दो आप दुहाई।।

व्यर्थ नहीं जल आप बहाओ। भला आप कल क्यों पछताओ।
अब तो सबको जगना होगा। सही नहीं है जो कल होगा।।

बुद्धिमान अब सब बन जाओ। अगली पीढ़ी आप बचाओ।।

कल तुम पर आरोप लगेगा। शीश आपका स्वयं झुकेगा।
औलादें जब देंगी ताना। छिन्न- भिन्न तब होगा बाना।।

जल ही जीवन सभी जानते। अफसोस यही जो नहीं मानते।
आप सभी रोको बर्बादी। तब ही जीवन की आजादी।।
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शंकर
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शिव शंकर की महिमा न्यारी। कहते सब भोले भंडारी।।
रहते रूप विचित्र बनाए। सब के मन को अति हर्षाए।।

तन भभूति बाघम्बर धारी। शीश चंद्र सोहे अति न्यारी।।
गले नाग की शोभा प्यारी। हस्त बहुत त्रिशूल है भारी।।

डम डम डमरू सुंदर लागे। नेत्र खोल शिव शंकर जागे।।
शिव आराधन करते सारे। कष्ट दूर सब भव से तारे ।।

शिव शंकर हैं बहुत निराले। मस्त मलंग लगे अति प्यारे।।
लोटा भर जल से खुश होते, भाँग धतूरा उनको भाते।।
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नायक
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नायक अब नेता बन जाते। जनता को हैं अति भरमाते।।
जनता इनको ईश्वर माने। भेद भला कब इनका जाने।।

नायक बनना सरल नहीं है। सच मानो यह बड़ा कठिन है।।
सहना कष्ट बड़ा है भारी। सबसे रखना निज की यारी।।

नायक वो ही आज बड़ा है। जो जनमानस साथ खड़ा है।।
स्वार्थ नहीं जिसका निज होता। साथ सभी के हँसता- रोता।।

नायक महिमा बड़ी निराली। बड़े प्रेम से खाये गाली।।
मुँह में राम हाथ में छूरी। रखिए इनसे थोड़ी दूरी।।

सुधीर श्रीवास्तव

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