Quotes by Sudhir Srivastava in Bitesapp read free

Sudhir Srivastava

Sudhir Srivastava

@sudhirsrivastava1309
(19)

हास्य
यमराज का सुझाव : स्व पिंडदान
*********
सचमुच मित्र क्या होता है?
यह पूरी तरह मैं आज ही समझ पाया,
गुस्से के साथ खूब आनंद भी आया।
मानिए न मानिए आपकी मर्जी!
पर पहली बार किसी का सुझाव
सचमुच मेरे मन को भाया,
अब आप अधीर न होइए जनाब
यह सुझाव आपकी तरफ से नहीं
मेरे प्यारे मित्र यमराज की तरफ से आया।
अब इसमें ईर्ष्या द्वैष जैसी बात तो नहीं कोई
जो आपके मन में दुश्मनी का भाव ले आई।
माना की लोकतांत्रिक व्यवस्था में
हम-आप, सब पूरी तरह आजाद हैं,
तब आप सब ही बताइए
यमराज को क्यों नहीं ये अधिकार है?
खैर.....! छोड़िए बेवजह विवाद हो जायेगा
और मेरा मित्र मुझे दोषी मानकर मुझसे दूर हो जायेगा,
सब कुछ सह लूँगा, पर यमराज से दूर होकर
खुश तो बिल्कुल नहीं रह पाऊँगा।
चलिए छोड़िए इन बेकार की बातों को
और यमराज के सुझाव पर आप भी गौर कीजिए
उसने जो मुझे सुझाव दिया- उसे भी सुन‌ लीजिए,
यमराज ने मुझे बस इतना भर सुझाया-
जब तक जीना है, जीते रहना आप प्रभु
पर सबसे पहले मेरी बात पर भी ध्यान दीजिए
बस! एक नेक काम अपने आप कर लीजिए
और अपने सारे काम छोड़-छाड़कर
सबसे पहले अपना अपने आप से पिंडदान कर लीजिए,
फिर सूकून की साँस लीजिए।
पहले तो हड़बड़ाया, फिर मुस्कराया
ऐसा देख यमराज को बहुत गुस्सा आया,
कहने लगा- वाह हहहहहहह प्रभु! आप मुस्कुरा रहे हो
या मेरा उपहास कर रहे हो,
माना कि आप मेरे मित्र हो, कुछ भी कर सकते हो
पर मेरे सुझावों पर विचार भी तो कर ही सकते हो।
पहले मेरी बात ध्यान से सुनिए-फिर मुँह खोलिए
तार्किक ढंग से मेरे सुझावों को दरकिनार कीजिए।
फिर मैं आप का हर निर्णय मान लूँगा,
और क्षमा याचना के साथ अपना सुझाव
बिना किसी तर्क वितर्क के वापस ले लूँगा,
अन्यथा जीते जी आपको अपना पिंडदान करने के लिए
हर हाल में विवश तो कर ही दूँगा।
यमराज की बात सुन अब मुझे भी लगने लगा
इतना प्यारा तो कोई अपना नहीं सगा,
उससे अपनी बात आगे बढ़ाने का आग्रह
मगर पहले जलपान का आफर दिया।
यमराज ने आफर ठुकराया, सीधे मुद्दे पर आया।
आपके लोक की माया विचित्र होती जा रही है
इसकी तस्वीर आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है,
जीते जी जो पानी भी पूछना नहीं चाहती,
पिंडदान की बात तो उसके ख्वाब में भी नहीं आती है,
यह सब कोरी बकवास और अंधविश्वास समझती है,
ढंग से दाह संस्कार तो कर नहीं पाती
फिर पिंडदान उनके लिए भला कैसी थाती?
वैसे भी आज हर रिश्ता स्वार्थ पर टिक गया है
कौन मरता, कौन जीता किसको मतलब है,
क्या आपके भेजे में इतना भी नहीं आता है?
फिर आपका अपना है ही क्या
जिसका कोई लालच करेगा
या आपके बाद जिससे किसी का कुछ हला भला होगा,
और आने वल में उसके काम आयेगा।
हजार दो हजार कविताएं कहानियाँ, लेख, आलेख
और यमराज मेरा यार सहित आपके अपने
दस बारह गद्य-पद्य संग्रह सहित
चार छ: सौ साहित्यिक पुस्तकों को कोई भाव नहीं देगा,
आपकी मौत के बाद और दाह संस्कार से पहले
ये सब रद्दी के ठेले पर जा रहा होगा।
आपके अपनों की नजर में यह सब कूड़े का ढेर
और अनावश्यक जगह घेरने वाला हो जाएगा।
फिर भी आप सोचते हैं कि कोई आपका पिंडदान करेगा?
तो मेरे भी दावे पर विश्वास कीजिए
कड़ुआ सच सबके सामने आ जायेगा,
जब आपका दास संस्कार चंदे से
और किराए पर कराया जायेगा।
अब आपको सोचना है कि करना क्या है?
मरकर बिना पिंडदान के भटकना है
या सूकून की साँस लेते हुए यमलोक में रहना है,
अब इसके बाद मुझे कुछ नहीं कहना है,
बस! मुझे यमलोक वापस निकलना है।
मैंने उठकर उसका हाथ पकड़ कर कहा -
तू अभी कैसे चला जायेगा,
मेरे पिंडदान की जिम्मेदारी तब कौन निभायेगा?
इसके लिए तुझसे बेहतर यह जिम्मेदारी
भला और कौन निभाएगा?
तू तो मेरा यार, मेरा शुभचिंतक, मेरा भाई है
तेरे सुझावों पर अमल करने की
अब मैंने भी कसम खायी है,
तेरी बदौलत ही सही, पिंडदान की ये घड़ी आई है
मेरे यार तू इतना चिंतित क्यों होता है?
मेरे लिए यह सब न लगेगी जगहंसाई है
अब तो मुस्करा दे मेरे यार यमराज
तेरे यार के पिंडदान की शुभ घड़ी
आखिर तेरे हिस्से में जो आई,
मुझे भी सा लगने लगा है
इसी में है अब मेरी भलाई।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

यमराज का देहदान
***********
अभी अभी मेरे मित्र यमराज पधारे
खुश इतना थे जैसे तोड़ लिए हों चाँद तारे।
मैंने हमेशा की तरह प्यार से बिठाया, जलपान कराया
और चाय न पिला पाने का खेद भी
साथ में व्यक्त कर दिया,
स्थानापन्न व्यवस्था के नाम पर एक गिलास सत्तू
नमक मिर्च के साथ घोल कर दिया,
बंदा बड़ा होशियार निकला
और सत्तू का महत्व शायद जानता था
इसीलिए बड़े भोलेपन से एक गिलास और माँग लिया,
लगे हाथ मेरे हिस्से का भी बेशर्मी से गटक गया,
कोई बात नहीं आखिर मेरा यार है,
तो उससे कैसा गिला- शिकवा?
थोड़ी देर तक अपने पेट पर मस्ती से हाथ फेरता रहा,
मेरी तारीफों के पुल बनाया रहा,
आनंद आ गया प्रभु, एकाध कुंतल मुझे भी दे दो,
मैंने पूछा - तू इतना क्या करेगा?
वाह प्रभु! इतना भी नहीं जानते
या जानबूझकर नहीं समझते।
अपने चेले चपाटों के लिए ले जाऊँगा
अपने साथ-साथ उन्हें भी गर्मी भर
रोज एक -एक गिलास पिलाऊँगा
और मिलकर खूब आनंद उठाऊँगा।
पर प्रभु! आप मेरा एक काम कर दीजिए
मेरे भी देहदान का सार्वजनिक ऐलान कर दीजिए,
कागजी खानापूर्ति भी लगे हाथ करवा दिया
और एक प्रमाण पत्र भी दिलवा दीजिए।
मैं यमलोक में देहदान जागरूकता अभियान चलाऊँगा
यमलोक में भी देहदान की ज्योति जलाऊँगा,
अपना जीवन धन्य बनाऊँगा,
अपने राष्ट्र-समाज के कुछ तो काम आऊँगा।
यमराज की बातें सुन मेरी आँख भर आई,
मैं कहने को विवश हो गया - तू सचमुच महान है भाई।
वास्तव में तेरी सोच ऊँची है
लोग तुझसे डरते हैं, क्योंकि उनकी नियत खोटी है,
कम से कम तू राष्ट्र- समाज के लिए इतना तो सोचता है
तभी तो देहदान की खातिर आया है,
मन में कोई गिला शिकवा, शिकायत, लालच नहीं
खुद के देहदान की खातिर पवित्र मन के साथ
स्वयं ही चलकर आया है,
हम मानवों के लिए एक नजीर भी लाया है
कि यमराज खुद चलकर देहदान के लिए आया है।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

मृत्यु! तू भूलकर रही है
***********
ऐ मृत्यु! तू इतना सकुचाती क्यों है?
पास नहीं आती क्यों है?
क्या गिला शिकवा शिकायत है हमसे?
जो रुठी हुई दूर रहती है हमसे।
आ मेरे पास आ, मेरे सारे संदेह मिटा,
जब मैं तुझसे डरता नहीं हूँ
तब तू इतना घबराती क्यों है?
दूर बैठी निहारती है सूनी आँखों से
आखिर तुझे इतना डर है किससे?
हंसते मुस्कुराते हुए तू आ,
अपनी सुरीली तान में एक मधुर गीत तो गा,
मन की हर दुविधा को तू कर अलविदा।
कोई और बात है तो वो भी बता
बीती बातों को अब तू कर अलविदा,
अब और असहज न कर मुझे
खुशी खुशी तेरा स्वागत करुंगा
तेरे सम्मान में एक बड़ा आयोजन करवा दूँगा,
तेरे वजूद का नया इतिहास लिख दूँगा।
बस! बहुत हो चुका आँख-मिचौली का खेल
अब तू आ, मैं तुझसे करुँगा मेल,
शर्माना, इतराना और हठधर्मी छोड़
हताशा-निराशा, असमंजस के भँवरजाल से निकल
और हँसते मुस्कुराते मेरे पास आ,
दोनों मिलकर खूब हुड़दंग करेंगे,
धरती, आकाश-पाताल, यमलोक तक सबको दंग करेंगे,
तू डर, दहशत नहीं, सच्ची दोस्त है
जो बिना भेदभाव हर प्राणी से अपनी दोस्ती निभाती है,
लाख शिकायतें हो तुझे उनसे
फिर भी तू सबसे दोस्ती निभाती तो है,
पर अब तो मुझे भी तुझसे शिकायत है,
मेरी शालीनता, सहजता, मनुहार का
तू अब तक उपहास क्यों कर रही है?
कब से तेरी राह देख रहा हूँ मैं,
और तू बड़ा नखरे दिखा रही है,
ऐसा तो नहीं तू हमसे राजनीति कर रही है
या खुद ही राजनीति के खेल में उलझ गई है,
या मुझे बहुत सीधा-साधा सरल समझ रही है,
यदि सचमुच ऐसा है, तो तू बड़ी भूलकर रही है,
और मेरे पास आने से कतरा रही है।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

हास्य - मुझे यमलोक ले चल
***********
आज रात मेरे मन में विचार आया
क्यों न यमराज को बुलाया जाये,
एक प्रस्ताव सुझाया जाये।
उसके समझ में आ जाये
इस तरह समझाया जाये।
मैंने यमराज को फोन लगाया
हाल-चाल के बाद अपने पास बुलाया,
यमराज हड़बड़ाया, बहुत घबराया
प्रभु! आज पहली बार आप मुझे अपने आप बुला रहे हो
कहीं ठर्रा तो नहीं पी लिए हो,
जो इतनी रात गए घर बुला रहे हो,
या कोई साजिश रच रहे हो
और भौजाई से मेरे हाथ-पैर
तुड़वाने का पक्का इंतजाम कर रहे हो।
नहीं यार! मैं तेरे लिए ऐसा सोच भी कैसे कर सकता हूँ?
तेरे चक्कर में मैं भला
अपनी बीबी से पिटने का इंतजाम
खुद क्यों और कैसे कर सकता हूँ?
वैसे तुम्हें बुलाने का एक विशेष कारण है।
मेरे मन में एक विचार आया है
जिसे आमने-सामने बैठकर तुझसे कहना चाहता हूँ,
बस यार! अब तुम अभी आ जाओ
नाहक समय व्यर्थ न गवाँओ,
भोर हो गई तो सब व्यर्थ हो जायेगा,
मेरे विचार गुम होने का खतरा बढ़ जायेगा,
नया इतिहास रचने से हम दोनों का नाम
बहुत पीछे चला जाएगा।
बड़ी शराफत से यार यमराज आ गये
चुपचाप मेरे बगलगीर हो गये,
धीरे से मेरे कान में फुसफुसाये,
कहो लंबरदार! काहे हमें बुलाए?
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा, दुलराकर बताया
यार! अब तू मुझे अपने साथ यमलोक ले चल भाया।
धरती लोक से तेरे यार का जी बहुत ऊब गया है
यमलोकी जीवन का लोभ जग गया है।
यमराज भड़ककर खड़ा हो गया
ये तुझे क्या खुराफात सूझ गया,
तू मेरा मित्र हैं, इसलिए इतना सह गया।
वरना अनर्थ हो जाता
धरती लोक से अब-तक तेरा हर रिश्ता टूट जाता,
भोर के साथ तू इतिहास हो जाता।
फिर लंबी साँस लेकर शाँति से ज्ञान बाँटने लगा
प्रभु! यदि मैं आपकी बात मान भी लूँ
तो क्या सब हल हो जायेगा?
आपका विचार भला फल जाएगा?
आपको इतना भी ज्ञान नहीं कि ऐसा होते ही
धरती लोक की तो छोड़िए
यमलोक में भी हड़कंप मच जाएगा।
भोलेनाथ का क्रोध मुझ पर गिर जाएगा
चित्रगुप्त जी का सारा हिसाब किताब बिगड़ जायेगा
धरती आकाश,,-पाताल में उथल-पुथल मच जाएगा।
मैंने समझाया - मेरे यार तू शाँत हो जा
ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं होगा।
मैं वहाँ पहुँचकर भोलेनाथ से अनुमति ले लूँगा
चित्रगुप्त जी से अपने पाप- पुण्य का लेखा-जोखा
हाथ जोड़ कर आनलाइन करवा लूँगा,
बस! तू राजी भर हो जा
बाकी सब कुछ मैं संभाल लूँगा।
यमराज हाथ जोड़कर बोला -
यार तू मुझे माफ़ कर- मुझसे न हो पायेगा
दोस्त होकर यह पाप तू मुझसे ही करायेगा?
और सबसे बड़ी बात तो यह है
कि फिर धरती लोक पर चाय पीने
और मन की भड़ास निकालने मैं कहाँ आऊँगा?
तू मेरा यार है, गर्व से कैसे कह पाऊँगा?
जीते जी क्या मैं मर नहीं जाऊँगा?
इतना कहकर वह अपनी रौ में आ गया -
बस बहुत सुन चुका मैं तेरी बक-बक
अब चुपचाप घोड़े बेचकर सो जा,
वरना भाभी जी को अभी जगाकर तेरी करतूत बताऊँगा
और धीरे से वापस निकल जाऊँगा,
तब तू बहुत पछतायेगा
मगर मैं तेरे हाथ बिल्कुल नहीं आऊँगा।
फिर हँसते हुए कहने लगा
आखिर तू मेरा यार है ! क्या तुझे ऐसे ही ले जाऊँगा ?
तुझे धूम-धड़ाके, गाजे-बाजे संग
धरती से यमलोक तक लंबे काफिले में ले जाऊँगा,
फिलहाल तो मैं चला -
तेरी वजह से बेवजह यहाँ-वहाँ असमय ही
मैं किसी की डाँट तो बिल्कुल नहीं खाऊँगा।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

हास्य - यमलोक में मृत्यु भोज
********
तपती दुपहरी में अभी-अभी यमराज मेरे पास आया
पसीने से तर-बतर यमराज को मैंने प्यार से बैठाया
ए. सी.- कूलर साथ-साथ चलाया
तब जैसे उसके जान में जान आयी।
श्रीमती जी के कोप से बचने का
शार्टकट फार्मूला मैंने अपनाया,
गुड़ का डिब्बा तो सिरहाने रखा ही था,
दो लीटर पानी का बोतल फ्रिज से निकाल लाया,
सम्मान से अपने प्यारे मित्र को जलपान कराया।
बँदा बड़ा शरीफ निकला
डिब्बे का सारा गुड़ साफ कर गया,
दो लीटर पानी की पूरी बोतल
एक साँस में ही गटक गया।
फिर बड़े प्यार से सोफे पर पसर गया,
जैसे आज बड़ी फुर्सत में आ गया।
पर यहाँ मैं ग़लत था साबित हो गया
मेरी गारंटी है कि आप भी ग़लत हो
हम आप जैसा सोचते हैं, वैसा बिल्कुल नहीं है।
क्षणिक विश्राम के बाद बँदा उठकर बैठ गया
और बोला - प्रभु! आपका कल्याण हो गया ,
मेरे दिमाग में आपकी खातिर
एकदम नया विचार आ गया।
हुक्म हो तो सामने लाऊँ
और अपने विचार को शब्दशः सुनाऊँ।
मैंने हथियार डाल दिया -चल भाई अब बक ही दे
नहीं भी चाहूँ तो क्या ऐसा हो सकता है?
कि तू मुझे बख़्श दे।
उसने सिर खुजाते हुए कहा- सो तो है प्रभु
यही तो अपना विशेष गुण है।
खैर छोड़िए? आपके सामने अपनी तारीफ क्या करुँ?
अच्छा है सीधे-सीधे अपना विचार आपसे साझा करुँ।
मैं भी लाचार था, उसका विचार सुनने को तैयार था।
आप भी चाहो तो सुन सकते हो
डर लग रहा हो तो पतली गली से निकल सकते हो।
जो भी है शराफत का परिचय दीजिए
पर मेरे मित्र यमराज को डिस्टर्ब बिल्कुल न करिए।
बड़े सम्मान से यमराज कहने लगा
प्रभु! धरती पर तो मृत्यु भोज का चलन है
पर यमलोक में ऐसा बिल्कुल नहीं है,
मुझे तो कभी कोई बुलाता भी नहीं है,
इसलिए मृत्यु भोज का तनिक अनुभव भी नहीं है।
पर अब मैं भी सोचता हूँ
कि यमलोक में भी मृत्यु भोज की नींव डाल दूँ,
आपके मृत्यु भोज का प्रबंध
धरती के बजाय यमलोक में करके
एक नया इतिहास रच दूँ,
और इसकी शुरुआत करने के लिए
आपका नाम प्रचारित कर दूँ,
इतने भर से आपका नाम इतिहास में लिखा जायेगा
साथ में मेरा भी थोड़ा बहुत नाम हो जायेगा,
धरती का तो मुझे पता नहीं,
पर यमलोक में मृत्यु भोज का
जब भी इतिहास लिखा जाएगा ,
सच मानिए! आपका नाम इसके जनक के रूप में
बड़े सम्मान से लिखा जायेगा,
और आपके साथ मेरा नाम भी अमर हो जाएगा।
यमराज की बात सुनकर मैंने बड़े प्यार से कहा -
इसके लिए तो मुझे मरकर तेरे साथ चलना पड़ेगा
या कोई और विकल्प है, जो मुझे चुनना पड़ेगा।
बड़ी मासूमियत से यमराज कहने लगि-
प्रभु! आप मेरे मित्र हो
फिर इतनी चिंता क्यों करते हैं?
आपको जीते जी यमलोक ले चलूँगा
फिर आराम से वहीं बैठकर बाकी
आगे का विचार कर सारा प्रबंध कर लूँगा।
वैसे भी आपको मरने की जरूरत नहीं पड़ेगी
मैं आपके जीते जी ही मृत्यु भोज का आयोजन कर लूँगा,
यमलोकी आत्माओं को तरह-तरह के पकवान जिमाऊँगा,
तब तक आपको एक सिंहासन पर
मुख्य अतिथि के रूप में बैठाऊँगा
सेवा में सौ-पचास सेवादार लगा दूँगा,
भोज के बाद चुपचाप ससम्मान
आपको आपके बिस्तर पर छोड़ जाऊँगा।
सच मानिए! मजा आ जायेगा
धरती पर हाहाकार मच जायेगा
जब इसका समाचार अखबार, टीवी,
सोशल मीडिया में विस्तार से आ जाएगा,
आप मरोगे भी नहीं और यमलोक में
आपके नाम का मृत्यु भोज हो जाएगा,
इतिहास लिखने वालों को भी यहाँ- वहांँ
मुफ्त में एक नया विषय मिल जाएगा।
फिलहाल तो मैं चलता हूँ
मना करने का आपके पास कोई विकल्प नहीं है,
ये बात आपसे बेहतर भला कौन जानता ह
तभी तो आपके पास केवल मैं ही बेरोकटोक आता जाता हूँ,
आप और हम मित्र हैं, ये बात सबको गर्व से बताता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

दोहा मुक्तक

मंगलमय मंगल करो, पवनपुत्र हनुमान।
चाहे जैसे भी करो, बदलो भले विधान।
हाथ जोड़ विनती करूँ, खड़ा आपके द्वार।
सबसे पहले आपका, आया मुझको ध्यान।।

अपनों पर भी अब कहाँ, हमको है विश्वास।
कारण सबको पता है, फिर क्यों रखना आस।
लाख तसल्ली आप दो, पर सब है बेकार।
जीवन में अब तो बना,अर्थ सभी से खास।।

कौन मानता आपको, जिसके हो हकदार।
स्वार्थ सिद्धि के खेल में,भटका है संसार।
चंचलता से जग भरा, रखता माया लोभ ।
जान बूझ मत कीजिए,प्रभु निज बंटाधार।।

करें साधना धैर्य से, तभी मिले परिणाम।
वरना सब बेकार है, व्यर्थ आपका काम।
सोच समझ पहले करें, चाह रहे क्या आप।
तभी साधना में रमें, लेकर हनुमत नाम।।

बिन साधन होता कहाँ, अपना कोई काम।
चाहे जितनी साधना, जपो राम का नाम।
राम नाम के साथ ही, साधन की दरकार।
करते रहिए साधना, बनकर के गुमनाम।।

अंधा बाँटे रेवड़ी, बड़े मजे से आज।
खूब मजे वो कर रहा, दूजा है नाराज।
हम सब नाहक कर रहे, नासमझी में शोर।
अंधे को है लग रहा, हल्ला कारज साज।।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

हास्य - व्यंग्य
ये वक्फ की संपत्ति है
********
चिलचिलाती धूप में भागा-भागा
यमराज सीधा मेरे कमरे में आया,
मैं सो रहा था -झिंझोड़ कर जगाया और कहने लगा
वाह हहहहहहह प्रभु! आप चैन से सो रहे हो
या अपने मित्र की दुर्दशा पर व्यंग्य कर रहे हो।
आपका तो कुछ पता ही नहीं चलता
कब किस पाले में खड़े हो जा रहे हो?
भनक तक नहीं लगने दे रहे हो,
अब तो लगता है वक्फ के नाम पर
आप ही यमलोकी जमीनों पर कब्जे करवा रहे हैं।
यदि ऐसा नहीं है तो सच- सच बताओ
भला मंद - मंद मुस्कुरा क्यों रहे हो?
मैंने बड़े प्यार से उसे अपने पास बिठाया
गुड़ की प्लेट और एक बोतल पानी उसकी ओर बढ़ाया
उसने आग्नेय नेत्रों से मुझे घूरा
फिर प्लेट का सारा गुड़
और पानी की पूरी बोतल गटक गया।
फिर इत्मीनान से कहने लगा
सुनो प्रभु! ऐसा बिल्कुल नहीं चलेगा
आपकी सरकार को वक्फ बिल का ताजातरीन कानून
हर हाल में वापस लेना ही पड़ेगा
या धरती पर नया यमलोक निर्मित करना पड़ेगा।
आप जाओ और मोदी-शाह को समझाओ
तत्काल वक्फ बिल वापस कराओ
या यमलोक में भी वक्फ बिल संशोधन पास कराओ।
अब आप कहोगे - ऐसा कैसे हो सकता है?
तो मैं कहता हूँ क्यों नहीं हो सकता है ।
जब से आपकी संसद में ये बिल पास हुआ है
और महामहिम ने हस्ताक्षर कर
उसे कानूनी रुप दे दिया है,
तब से यमलोक में वक्फ के नाम पर खुल्लम खुल्ला
जमीन कब्जाने का नया दौर शुरू हो गया,
मेरे चेले-चपाटे बेघर हो गए हैं
मेरे हाल तो और भी बिगड़ते जा रहे हैं,
कभी यहाँ, तो कभी वहाँ रहकर काम चला रहा हूँ,
धरती से जाने वाली आत्माओं के साथ
खानाबदोशों सी जिंदगी जी रहा हूँ।
मगर अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा है,
आप कुछ कीजिए, न कीजिए मेरी बला से
मैं भी आपके इस महल के बाहर
"ये वक्फ की संपत्ति है" का बोर्ड लगवा रहा हूँ
आपको तत्काल प्रभाव से बेघर कर रहा हूँ
और अभी से यमलोक की वैकल्पिक व्यवस्था
यहीं से संचालित करने का प्रबंध कर रहा हूँ।
आपके पूरे परिवार को सड़क पर ला रहा हूँ
सिर्फ भाभी जी को इस निर्णय से अलग रख रहा हूँ
अपने विशेषाधिकार का मैं भी तो प्रयोग कर रहा हूँ।
अब आप चुपचाप उठिए
बिना किसी सामान को लिए इस घर से निकल जाइए
वक्फ बिल वापस कराइए
या फिर किसी नदी नाले में डूबकर मर जाइए
और इस नये यमलोक में आश्रय पाइए।
पर ये भी याद रहे ये मेरी शराफत है
आपका अधिकार नहीं,
आप मेरे मित्र हो, इसलिए सोचता हूँ
कि आपकी आत्मा बेवजह इधर-उधर भटके,
ये अच्छा नहीं लगेगा।
आप मेरे प्रिय मित्र हैं,
और आपकी दुर्दशा का जिम्मेदार मैं हूँ,
तब लोग क्या कहेंगे?
कहने भर की बात नहीं है,
मुझ पर थूकेंगे, ताने और जी भरकर गालियाँ देंगे
पर विश्वास कीजिए आपको भी नहीं बख्शेंगे
मुझसे यारी करने के लिए आपको भी लानत भेजेंगे।
ये भी संभव है आपका वहिष्कार कर
आपका हुक्का पानी भी बंद कर दें,
आखिर तब आप क्या करेंगे और कहाँ जायेंगे?
सिर्फ इसीलिए आपको ये छूट दे रहा हूँ।
अब आप उठिए, आपको दरवाजे तक छोड़ने भी
मैं खुद ही चल रहा हूँ,
आपको होने वाली हर असुविधा के लिए
अग्रिम क्षमा भी आपसे माँग रहा हूँ,
अपराध मुक्त होने का इंतजाम भी लगे हाथ कर रहा हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

उफ! ये गलतफहमियाँ
******************
गलतफहमियों के हाथ पाँव नहीं होते
ये हमारे आपके मन की उपज होते हैं।
जब कभी हम उद्वेलित हो जाते हैं
सोचने समझने की शक्ति खो देते हैं
या यूँ भी कह सकते हैं
स्वार्थ की आड़ में हम खुद
गलतफहमियों को अपना हथियार बना लेते हैं।
सच जानना ही नहीं चाहते हैं
जो भी खो रहे हैं हम,
उसका एहसास तक नहीं करना चाहते हैं।
गलतफहमियों का शिकार हो
बहुत कुछ खोते भी हैं
पर गलतफहमियाँ दूर करने का
तनिक प्रयास भी नहीं करते हैं।
और जब बहुत देर हो जाती है
तब माथा पकड़कर कहते हैं
उफ! ये गलतफहमियां थीं
जिसका हम शिकार हो गए
तब बस! हाय करके रह जाते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More

अटल, अटल था, अटल ही रहेगा
*************
अटल जी सिर्फ अटल नहीं अजातशत्रु भी थे
नीति नियम सिद्धांतों के पुरोधा थे,
राजनेता, कुशल वक्ता, पत्रकार, संपादक
संवेदनशील कवि हृदय,
सादा, सरल, सहज जीवन के स्वामी
जिसका जीने का ढंग बड़ा निराला था।
सैद्धांतिक मूल्यों के वटवृक्ष
अपने चुटकीले अंदाज, बेलौस भाव और तार्किकता से
विरोधियों को भी निरुत्तर करने का उनका गुण
विरोधियों को भी नतमस्तक होने को मजबूर करता था।
राष्ट्रप्रेमी, राष्ट्र भक्त अटल जी ने 1977 में
जब संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व
बतौर विदेश मंत्री किया और अपना भाषण हिंदी में दिया,
देश विदेश देश में हिन्दी का मान बढ़ाया,
अपनी हिंदी भाषा को गौरव का भान कराया,
संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह पहला अवसर था
जब किसी ने हिंदी में भाषण देकर इतिहास रचा था।
जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है।
विचारों पर दृढ़ता जिसकी पहचान थी,
लोभ-लालच और अनीति को
जिसने सदा आइना दिखाया,
सिद्धांतों से न कभी समझौता किया,
सत्ता को भी जिसने ठोकर मारकर
सत्ता के लालचियों और कुटिल राजनीति के संवाहकों को
नीति, नियम सिद्धांतों का आइना दिखा दिया।
अपने नाम के अनुरूप अटल
सदा सिद्धांतों पर अटल रहे,
देश हित में अनेकों बड़े काम अटल जी ने किए,
चतुर्भुज सड़क योजना उनकी ही सोच का नाम है,
नदियों को जोड़ने का विचार
उनके दूरदृष्टि सोच का परिणाम है।
पश्चिमी देशों के दबाव में भी उन्हें नहीं भाया
भारत में सफल परमाणु परीक्षण कर
राष्ट्र को परमाणु शक्ति से संपन्न किया।
राष्ट्र और राष्ट्रहित से बढ़कर और कुछ नहीं है,
हर दिल में ये जज्बा जगाया।
नमन करते हैं हम अटल जी की अटल शख्सियत को जिसने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था खुद को,
पर कभी झुकने न दिया अपने या राष्ट्र के सम्मान को।
अटल जी जैसे अजातशत्रु नहीं आते हैं बार बार
लेकिन जब आते हैं तब नया इतिहास लिखा जाते हैं,
अपने नाम के अनुरूप सदा के लिए अटल हो जाते हैं
अटल, अटल था और अटल ही रहेगा
यह समाज, राष्ट्र और दुनिया को दिखा जाते हैं

सुधीर श्रीवास्तव २१.१२.२०२४
[05/04, 4:51 pm] Sudhir: व्यंग्य √√
औपचारिकता
************
नवरात्रों मेंं माँ का दरबार सजेगा,
माँ के नवरूपों की पूजा होगी,
धूप दीप आरती होगी
हर ओर नया उल्लास होगा।
चारों ओर माँ के जयकारे गूँजेंगे
माँ की चौकियाँ सजेंगी, जागरण भी होंगे,
माँ को मनाने के सबके, अपने अपने भाव होंगे।
मगर इन सबके बीच भी, बेटियों पर अत्याचार होंगें
उनकी अस्मत लूटी जायेगी,
उनकी लाचारी की कहानी, फिर हमें धिक्कारेगी।
हम फिर मोमबत्तियां जलायेंगे
संवेदना के भाव दर्शाएंगे,
पर कुछ करने का भाव,
दृढ़ प्रतिज्ञ होकर नहीं दिखायेंगे।
नवरात्रों में बेटियों को पूजेंगे,
चरण पखारेंगे, माथे लगाएंगे,
टीका करेंगे, माला पहनाएंगे
आशीर्वाद की लालसा में झोलियाँ फैलाएंगे,
अगले वर्ष का आमंत्रण भी‌आज ही पकड़ायेंगे।
देवी माँ खूब रिझायेंगे
मगर ये सब करके भी हम
बेटी बहन की सुरक्षा, स्वाभिमान का
बस! संकल्प नहीं कर पायेंगे,
देवी माँ का पूजन करने की
हर बार की तरह इस बार भी
मात्र औपचारिकता ही निभायेंगे।
अपनी तसल्ली के लिए बस
देवी माँ के चरणों में हाजिरी लगायेंगे
जय माता दी जय माता दी का शोर बस गुँजाएंगे।

● सुधीर श्रीवास्तव

Read More

कहूँ या न कहूँ

बड़े असमंजस में हूँ, कहूँ या न कहूँ
डरता हूँ आपके नाराज होने के डर से,
आपसे अपनी नजदीकियों से।
पर करूँ भी तो क्या करूँ?
कहे बिना मुझसे रहा भी तो नहीं जाता,
यह जानते हुए भी कि सच आपको जरूर चुभेगा।
पर इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि आप ही नहीं हर कोई, जो मुझे जानते हैं
मैं साफ सुथरे शब्दों में कहने का रोगी हूँ,
सच के दुष्परिणामों का भुक्तभोगी हूँ।
जाने कितनों से दूर हो चुका हूँ,
नित आलोचनाओं का शिकार होता हूँ,
पर अपनी आदत से बाज नहीं आता हूँ।
आज की तरह असमंजस में भी नहीं रहा कभी
बस! इसीलिए तो आपकी सलाह माँगता हूँ,
आप कुछ भी कहो, पर मैं तोजो सच है, कहे देता हूँ
कहूँ न कहूँ की उहापोह के भंवर से
बाहर निकलकर उन्मुक्त विचरता हूँ।

सुधीर श्रीवास्तव

Read More