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नन्दलाल सुथार राही

नन्दलाल सुथार राही Matrubharti Verified

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बड़ी खूबसूरत

बड़ी खूबसूरत ये प्यारी सुबह है
मैं तेरा हूँ सूरज तू मेरी किरण है।

है तू मेरी जन्नत तू मेरी सब कुछ है
मैं फूल हूँ तेरा तू खुश्बू मेरी है।

ये सर्दी की राते तो लम्बी बड़ी है
तू पास न मेरे ये कैसा सितम है।

मुझे याद आये तेरा मुस्कुराना
मैं बादल हूँ तेरा तू बारिश मेरी है।

लिखू मैं कविता यादों में तेरी
मैं शायर हूँ तेरा तू मेरी गजल है।

तू मेरी सीमा मैं तुझसे बंधा हूँ
मैं तेरा हूँ कृष्णा तू राधा मेरी है।

बड़ी खूबसूरत......


#Cuteness

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जब दुःख हद से ज्यादा आने लगे
तब पिता याद आते है
जब पीड़ा नीर बनकर आँखों से बहने लगती है
तब पिता याद आते है
जब जमाना असुर बनकर सताता है
तब पिता याद आते है
जब परिस्थिति अपने नियंत्रण से बाहर हो जाती है
तब पिता याद आते है
पिता के बिना
होता है एक अनंत अधूरापन
जो उनके बिना कभी पूर्ण नहीं होता
उनकी हर डांट
हर बात
तब कचोटने लगती है
हृदय को भीतर तक
तक वो डांट
वो बात
मिलना बंद हो जाती है
जब व्यक्ति का साहस जवाब दे जाता है
तब पिता याद आते है
उनका साथ होना ही किसी साहस से कम न होता है
जब व्यक्ति को अकेलापन तड़पाता है
तब पिता याद आते है
उनका पास होना ही अकेलेपन की काट है
जब व्यक्ति को अपनों से भी दर्द मिलता है
तब पिता याद आते है
जिनके साथ होने पर सब अपने भी साथ हो जाते है।

-नन्दलाल सुथार'राही'

-नन्दलाल सुथार राही

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एक नन्हीं सी प्यारी सी चिड़िया रानी
उड़कर वो आकर बोली सयानी
तू देखे मुझे इस तरह से
मैं प्यारी बहुत हूँ इसी वजह से
फिर मैंने बोला ओ प्यारी चिड़िया
सुंदर बहुत तू जैसे हो गुड़िया
तू आ पास मेरे मैं तुझको रखूंगा
घर का हो कोई वैसे ही रखूंगा
फिर चिड़िया बोली तुम मुझको रखोगे
ये भी है माना पलकों पर रखोगे
तेरे पिंजरे में आकर खाना मिलेगा
सोने को सोने का घर भी मिलेगा
मैं हूँ सयानी मूरख नहीं पर
तुम हो अज्ञानी मैं हूँ नहीं पर
देखूं नहीं मैं झूठे ये सपने
सच्चा तो सोना भीतर है अपने
उडूँ जब गगन में तब मैं हूँ पाती
उड़ना ही आनंद तब उड़ती ही जाती
मानव नहीं जो बंधन में बंध जाऊँ
सुनहरा ये जीवन ऐसे ही गवाऊं ।
- नन्दलाल सुथार 'राही'

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तुम खुली हवा में घूमने वाले
मैं पिंजरे में बंद बटेर हूँ
कहते तो है सब देवी मुझको
पर मैं गृह मंदिर में कैद हूँ ।


मेरा दर्द तुम क्या समझोगे
ये दर्द दिन का नहीं अमरता है
इक दिन जरा ठहरो घर पे
क्यों मन तेरा नहीं लगता है?

सिर्फ रूप मेरा देखते हो
वासना से भरे पड़े हो
देखी नहीं कहीं भी नारी
जाती वहीं है नजर तुम्हारी।

पूछा कभी बहन से तुमने
कौनसा है कष्ट तुम्हें
बहन बेचारी करें ही क्या जब
कंस सा ही भाई मिले।

उर में अपने अश्रु छुपाए
होठों पे मुस्कान रखती हूँ
पुत्र, पिता, परिवार सबके लिए
उपवास अनेक भी रखती हूँ।

छोटी सी दिनचर्या में
आराम कभी न करती हूँ
यम से भी जो भिड़ जाए
सावित्री सा दिल रखती हूँ।

निज वेदना के सागर में डूबी
पर का उद्धार पर करती हूँ
जितने भी हो कष्ट मुझे पर
वरदान तुम्हें सब देती हूँ।



नन्दलाल सुथार रामगढ़

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तू सुन ले मानव इस जगत की बड़ी अनोखी रीत है
सब खो है जाता इक दिन सभी जिससे तुम्हारी प्रीत है
अभी भले तुम गुनगुनाओ, नृत्य कर लो, गीत गाओ
पर बात इक तुम याद रखना , राम का ही नाम रटना
चाहे ख़ुशी में झूम जाओ चाहे शोक को तुम जो पाओ
कभी अँधेरा कभी उजाला जीवन में रहता होता है
फिर भी मानव क्यों भला जीवन में पल-पल रोता है
अपने मद को तुम भुलाओ प्रेम की ज्योति जलाओ
मुस्कुराओ तुम सदा और सभी को मुस्कुराओ ।।


-राही

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जब आदमी ही आदमी से भेद करता था
तब आया एक भीम जो इक देव जैसा था
जिसने बताया आदमी बस आदमी होता
ना जन्म से कोई देवता ना नीच ही होता
सब है बराबर इस धरा पर सबको बतलाया
क्या ढोंग है? है सत्य क्या? यह सबको समझाया
गिरती हुई मानवता को जिसने सिखाया धर्म क्या?
जिसने जगाया नींद से और बताया कर्म क्या?
जिसने दिया सविंधान जो भारत के सिर का ताज है
जिसने सिखाया शिक्षा ही तो सुसभ्यता का राज है।



-नन्दलाल सुथार राही

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#हिंदी साहित्य
हिंदी के 33 संचारी भाव एक कविता के रूप में

पूर्ण रचना यहाँ पढ़े।

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