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विषय: गाँव के वो दिन अपनों से ही मुँह मोड़ कर सभी रिश्तों को ये भूल जाते है आज कल अपने गाओं को छोड़ कर सभी शहर चले जाते है मिट्टी पर पड़े बारिश के बूँदों की भीनी ख़ुशबू आज भी याद है मुझे मेरे गाँव की वो खेत, वो हरियाली, वो गलियारे सभी याद है मुझे चाह नहीं है शहरों के चमकीले रोशनदान, नौकर, गाड़ी और महलों का आशियाना हमे तो आज भी भा जाता है टूटे हुए खटिये पे सो कर चाँद-तारों को निहारते जाना गाँव के लोगों की मासूमियत, उनकी बातें सब सच्चे लगते है इस शोर भरे शहर से ज़्यादा अब मुझे गाँव अच्छे लगते है आज भी भाता है वो जुगनुओं का टिमटिमाना और वो दरियों पे नहाना भाग जाती हूँ मैं हर बार शहर छोड़ कर गाँव के पगडंडियों की ओर, करके कुछ बहाना चाह नहीं है शहरों के शोर में बसे, अकेलापन में क़ैद, अपनों से ही मिलो दूर हो जाना हमे तो आज भी भा जाता है गाँव के आँगन में सभी के साथ हंसी-ठिठोली कर जाना वो मुर्ग़े की बांग, वो मंदिर की घंटी, वो पंछियों का चहचहाना ना जाने क्यों, पर आज भी हमे ये सब लगता है बड़ा ही सुहाना घर-परिवार और संस्कार से भरा-पूरा है हमारे गाँव का संसार अपनों के लिए, सपनों के लिए, शहर के ऐशों-आराम भी अब है निसार वो पारियों के क़िस्से, वो मिट्टी के घरौंदे, वो नानी का दुलार, वो दादी के हाथ का स्वाद, सभी अच्छा लगता है क्या कहूँ दोस्तों! गाँव से दूर होते हुए भी, ना जाने क्यों, पर ये गाँव फिर भी अच्छा लगता है - स्मृति सिंह
आज फिर से चल पड़ी हूँ उस रस्ते पर मैं ज़िंदगी को ढूँढने निकली हूँ मुसाफ़िर बन मैं ना सफ़र की ख़ुशी है, ना मंज़िल का मोह ना किसी का साथ है, ना कोई उम्मीद का जोह अपना घर-आँगन भी अब पीछे छोड़ दिया है अपनों से भी अब सारा नाता हमने तोड़ दिया है निकल पड़ी हूँ मैं, पर ना जाने अब आगे क्या होगा इस राह पर, अगर कोई हमारा राह भी देखे, तो क्या होगा सफ़र नयी थी, रस्ता नया था, और थी मन में एक नयी उमंग कुछ पल ख़ुशी, कुछ पल ग़म, जाने कैसी थी ये ज़िंदगी की तरंग एक-एक कदम उठाये तो, मिलो का सफ़र हम भी तय कर सकते है ज़मीन से उड़ान भर कर देखे तो, आसमान पर हम भी कभी छा सकते है आज भी गुज़र रहा है रहगुज़र के संग, ये ज़िंदगी का सफ़रनामा इस सफ़र में हमसफ़र मिल जाये अगर, तो फिर और क्या है पाना माना के मुश्किल है ये सफ़र, पर हमने भी कभी हिम्मत नहीं हारी है तुम भी देख लो ए ज़िंदगी, क्यूँकि इस बार तो जीत की बारी सिर्फ़ हमारी है पलकों पे आंसू थे मगर मन में कई नये अरमान सजाये थे और घरवालों ने अपने पैरों पर खड़े होने का फ़रमान सुनाये थे इस सफ़र में कुछ अच्छा कर गुज़रूँ, अब तो बस यही गुज़ारिश है ये तो सफ़र है, और इस सफ़रनामे में थोड़ी सी धूप है तो थोड़ी बारिश भी है चलते रहे अपने रास्ते पर अगर तो कोई किनारा ज़रूर दिखेगा इस सफ़र में कभी ना कभी कोई तो सहारा ज़रूर मिलेगा सफ़र आसान तो नहीं था मगर ये दास्तान है मेरे ज़फ़र की दोस्तों ये थी एक छोटी सी दास्तान मेरे अपने सफ़र की
शक्ल या अक्ल?? आप क्या चुनोगे??
क्यूँ ये दिल ज़ोरों से धड़कता है तेरे क़रीब आ कर क्यूँ ये मन इतना खुश हो जाता है तेरा साथ पा कर तेरे क़रीब आने की उम्मीद में, ये आँखें ना जाने कितने सारे ख़्वाब बुन रही थी तेरे क़रीब आने की उम्मीद में, ये ख़ामोश लफ़्ज़ कब से सिर्फ़ तुम्हें ही सुन रही थी उन जुगनुओं की तरह, मैं भी चमक उठती हूँ तेरे क़रीब आ कर उन फूलों की तरह, मैं भी संवर जाती हूँ तुझे अपने क़रीब पा कर तेरे क़रीब आ कर मैंने जाना कि, हमारे बीच ये फ़ासले कितनी ज़रूरी थी तेरे क़रीब आ कर मैंने जाना कि, तेरे बिना मैं अब तक कितनी अधूरी थी
पहले दिन था वो एक सपने सा धीरे-धीरे बनने लगा वो अपना सा रातें बढ़ी, बातें बढ़ी, मुलाक़ातें बढ़ी और बढ़ा हमारे बीच का वो प्यारा सा रिश्ता पास हुए हम और दूर हुए सारे ग़म सब कुछ भूल कर, खो गए हम एक दूसरे के बातों में बारिश के वो मौसम में, भीगे हम एक दूसरे के बाहों में उसकी बातों में ख़ुद को खोने लगी मैं उसके नज़रों से ज़िंदगी को जीने लगी मैं पास हुए हम और दूर हुए सारे ग़म फिर बार-बार मिलने लगे हम, उसके बिना हर पल जाता था थम एक दिन वो कह गया सनम, चाहिए मुझे तेरा साथ मरते दम चले जाएँगे इस दुनिया से कहीं दूर हम बसायेंगे ख़ुद का एक प्यार सा आशियाँ हम पास हुए हम और दूर हुए सारे ग़म फिर जैसे एक तूफ़ान सा आया मंडराने लगा उस पर किसी और का साया मुझे छोड़ उसने किसी और का साथ अपनाया उसे लगने लगी वो उसकी माया छोड़ मुझे उसने मेरे दिल को दुखाया पास हो रहे थे ग़म और दूर हो रहे थे हम उसने मुझे अकेला छोड़ा, मेरे दिल ने भी मुझे रुलाया आंसू आए, दर्द लाए, पर किसी ने उसे ना लाया रहने लगी गुमसुम और पलट गई सारी काया चार दिन की चाँदनी के बाद, अब जीवन में काली रात का है साया दूर हुए हम और रह गया तन्हाई का सितम
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