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ना जाने कितने ही दिन की है यह ज़िंदगी जनाब,,,,,लोगों की ख़ुशियाँ का कारण बनिये, उनके दुखों का निवारण बनिये,,,,,,
अदृश्य प्यार तितली को जो होता है फूलों से , पौधों को जो होता है डाली से , पतझड़ को जो होता है सावन से , वैसा ही है अदृश्य हमारा यह प्यार ,, लहरों को जो होता है साहिल से , कश्ती को जो होता है पतवार से , राही को जो होता है मंज़िल से , वैसा ही है अदृश्य हमारा यह प्यार ,, अम्बर को होता है जो सूरज,चाँद और सितारों से , धरती को जो होता है वृक्षों, पशु और इंसानों से , सागर को होता है जो मोती, मीन और पतवारों से , वैसा ही है अदृश्य हमारा यह प्यार ,, राधा को जो होता है कान्हा की मुरली से , गौरा को जो होता है महादेव के डमरू से , भक्त को जो होता है अपने भगवान से , वैसा ही है अदृश्य हमारा यह प्यार ,,
जो कहते थे कभी आने भी ना देंगे इन आँखों में आंसू, हमें रोता देख भी वो ना जाने क्यूँ ख़ामोश बैठे हैं ,,,,
कौन कहता है कि सिर्फ़ दुख की घड़ी ही सबसे ज़्यादा लंबी प्रतीत होती है , उनसे मुलाक़ात होने से पहले की रात भी एक सदी से कम नहीं होती है ,,,,,
कुल्हड़ में अदरक वाली चाय शाम भी ख़ुशनुमा बन जाय , जब साथ तुम्हारा हो , हल्की सी बारिश हो , और हो कुल्हड़ में अदरक वाली चाय,, जो सबकी आदत में शामिल हो जाय, सुबह की चाय, शाम की चाय , वहाँ कोई जाम शायद ही कुछ कर पाय , लत जिसको भी गर तेरी लग जाय,, साथ वक्त गुज़ारने का जो बहाना बन जाय, यूँही क़रीब लाने का जो सहारा बन जाय, कॉलेज जाने वाले हों या ऑफ़िस वाले ही , घर आने वालों का भी जो गुज़ारा बन जाय,, सरदर्द हो ,थकान हो , मन शांत करने का बन जाती है जो उपाय , सर्द मौसम हो , हल्की सी बारिश हो , साथ तुम्हारा हो ,और हो कुल्हड़ में अदरक वाली चाय,,,,
शाम भी ख़ुशनुमा बन जाय , जब साथ तुम्हारा हो , हल्की सी बारिश हो , और हो कुल्हड़ में अदरक वाली चाय,,
तुझे मैं हज़ार बार लिखूँ तेरे प्यार की स्याही से , अपने प्यार की कलम से , तेरे जज़्बातों को , अपने अरमानों को , तेरी ख़्वाहिशों को , अपने अहसासों को , बार बार लिखूँ , तुझे मैं हज़ार बार लिखूँ ,,,,,, तेरे प्यार की इबारत से , मेरे प्यार की वर्तनी से , तेरे समर्पण को , अपने अर्पण को , तेरी मोहब्बत के दर्पण से, अपने निखरे रूप को , बार बार लिखूँ, तुझे मैं हज़ार बार लिखूँ ,,,,,, तेरे दिल की उलझन को , मेरे सुलझते इस मन को, तेरी आत्मीयता को , मेरी पवित्रता को , तेरे रूप के भोलेपन को , अपने चहकते से सृंगार को , बार बार लिखूँ , तुझे मैं हज़ार बार लिखूँ ,,,,,
धरती भी सिसकती है , आसमान भी रोता है, होती है सच्ची मोहब्बत जहाँ ,जुदा ही कौन होता है ,,, वो पैमानों की दूरियाँ , वो मिलने की हसरत, दिल में रखते ही हाँथ, उससे दीदार जहाँ होता है ,,,, वो बिन कहे उनका सुनना , सुनके भी ना सुनना, रोम रोम में समाहित है जो, उसका इतवार कहाँ होता है ,,, ख़्वाबों के पर ,हौसलों की उड़ान,मोहब्बत हो चाभी, परिंदे हों ऐसे अगर , उनका विश्राम कहाँ होता है ,,,??
धरती भी सिसकती है, आसमान भी रोता है , होती है सच्ची मोहब्बत जहाँ, जुदा ही कौन होता है ,,,
एक “तू” वजह ही काफ़ी है यूँ तो हज़ार उलझनें हैं मेरी ज़िंदगी में , मगर मेरे मुस्कुराने के लिए ,एक तू वजह ही काफ़ी है ,, यूँ तो हज़ार बहाने हैं , मौत से रूबरू होने को , पर ज़िंदगी से गले लगाने को ,एक तू वजह ही काफ़ी है ,, यूँ तो हज़ार ख्वाहिशें है , पूरी करने को , सजदा सिर्फ़ तेरा करूँ, यह ख़्वाब ही काफ़ी है ,, यूँ तो मुकम्मल जहान मिलता नही ,हर किसी को , मुझमें तुम हो , तुझमें मैं हूँ ,यह जज़्बात ही काफ़ी है ,, यूँ तो तरीक़े भी हज़ार हैं ,खुश रहने के , पर रूठ जाने पर तू मनाए , वो अहसास ही काफ़ी है ,, वैसे तो बहुत निराशा है छायी हर तरफ़ , पर तुझसे मिलने को , एक आश ही काफ़ी है ,, यूँ तो आसमान भी अधूरा है बिन ज़मीन के , पर हांथ में जब हांथ तेरा हो , संपूर्णता का वो आभास ही काफ़ी है ,,
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