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Purab Nirmey

Purab Nirmey

@purabnirmey2500


"फिर समय बन मेरा गान ,गाने लगी "

दान हाथों में था मुझ अकेले के सब ,
थाल में सजके क्यूँ फिर तू आने लगी ???

सब समर्पण मेरे तुम पे वारे गये ,
जो कभी ना थे हम वो ही गाये गये...
गान तेरा मेरे निज की निजता बना,
आग से ना जले, जल जलाये गये...

श्वास की श्वास भी निकलेगी छूट के,
चुन विकल्पों की महिमा में जाने लगी।।

मध्य की बात का वह जो किस्सा बना, ,
गढ़ कहानी अलंकृत तुम्हारी हुई ..
कठघरे में दोबारा स्वयं हम खड़े ,
फैसला पक्ष से पक्ष का ना बना ...

लब कभी क्या कहीं बोलेंगे, तुम कहो??
बन के तुम ही विधा चहचहाने लगी।।

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कौन हम _
एक ऐसी प्रयोगशाला,
जहाँ सबका शक्ति परीक्षण स्वीकार्य है ।।

राधे राधे

"निर्मेय"

हेतु मेरे अहेतुक बनाने को तुम,
खुद को भी तो सँवारो कभी तो कहीं..

हम खँगालेगें फिर तुमको अंदर तलक,
मंथनों में उजागर करो कुछ कहीं ....

वाद हर पल प्रयोजित है भीतर मेरे,
स्वर्ग तृष्णा के तुम ही विषय हो सभी .....

फिर निमंत्रण लिये मन खड़ा रेत सा ,
उतरो चर्चा में मेरी कभी तो सही ....

वार तो दें तनिक अंश अपना मगर ,
तुम तमस छोड़ रघु तो बनो फिर सही ।।

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तुम पराजय से बन आयु भर साथ हो ,
रत प्रतीक्षा में हर इक विजय है खड़ी ,
रथ बिना सारथी हाँ भटक जाता है ,
पर लगी थी पताका तेरे नाम की ,

जो भरी मंद हुँकार रणक्षेत्र में ..
बाण धनुषों की टंकार विन्यास पर ।।

अश्रुपूरित वचन पूर्ण हो जाते तो ,
युग समापन सा होता बिना चाहते ,
मन मना करके भी भागता तुम तलक ,
मारना मन दोबारा उचित होता क्या ??

सब मुखर से मनन चिंतनों में रहे ...
वाद अंतिम रहा शेष फिर तुम ही पर ।।

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सारे वाक्यों में तुमको ही मानद बना ,
स्वर्ण अक्षर जड़े हैं तेरे शीर्ष पर ....
हर इकाई को इक पुण्य मानक बना ,
जग कथा कह गया है तेरे इर्ष्य पर.....
जो विभाजन द्रवित कर गया था हमें ,
साक्ष्य में भूमि सी श्रृंखला तुम रहे .....
हस्त खाली कहाँ भेजते जब स्वयं ,
धाम बन तुम खड़े हो मेरे तीर्थ पर ।।

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