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क्या बयां करू इस खामोशी को, के भीड़ भी है यादों की, खोया तेरे ख़यालो में अकेला सा भी हूं।। Nirãñtar
सफ़र पर हूं, के लगता नहीं मुनासिब के ये सफ़र फ़िर नसीब हो। मंज़िल की खोज में रास्ते पर हूं, के लगता नहीं मुनासिब के ये मंजिल नसीब हो। शोर के बीच ख़ामोशिया से बतिया रहा हूं , के लगता नहीं मुनासिब के ये बाते फ़िर नसीब हो। वक़्त की बेरुखी के बीच कुछ खुशियों की तलाश पर हूं, के लगता नहीं मुनासिब के ये चंद खुशियां नसीब हो।
मुद्दते हो गई उसे मुस्कुराते देखे "निरन्तर", कान्हा कुछ आंसू उसके, मेरे नाम लिख दे।।
बड़ी अजीब बेचैनी सी छाई हुई है। आज चाय ओर तू बहुत याद आ रही है।
वो कुछ सांझ सी यूं लगी मुझे, कुछ गुस्साई सी,कुछ मुरझाई सी, कुछ शांत सी, कुछ उलझी सी,,,, वो अनसुलझी पहेली सी। फिर जब मिला उस सांझ से सांझ के बखत, बांछे खोल के जब वो मिली मुझसे के लगा सांझ मिली भोर से भोर के बखत फिर वो सांझ भोर सी हो गई और कुछ यूं लगी मुझे, कुछ अलसाई सी,कुछ खिलखिलाई सी, कुछ रंगीन सी, कुछ ख़्वाब लिए बैठी वो, लेती हुई अंगड़ाई सी, ऐसा लगा मुझे की बस भोर के ही इंतज़ार में थी वो रात भर वो सांझ सी कुछ यूं लगी वो मुझे। के हर शाम कुछ सांझ सा हो जाता हूं में की हर सुबह उसी की तरह भोर सा हो जाऊं में। के हम एक हो जाए।।।
अल सुबह बस कुछ यूं गुस्ताखियां करने निकल पड़ता हूं। यूं तो रोज ही जीता हूं अपनी जिन्दगी बस कुछ पल तेरे मेरे यू जीने निकल पड़ता हूं। खामोश रहती है जुबां हर वक़्त,, इस सर्द मौसम में इसे शब्द देने निकल पड़ता हूं। अल सुबह बस कुछ यूं गुस्ताखियां करने निकल पड़ता हूं।।। Nirãñtar
दीदार ए जां जो हुआ, तो इश्क़ मुकम्मल हुआ समझो।।
लोग बस देखते है मेरी ये हसी , जिसके पास रो सकु ऐसा कोई आस पास नहीं ।। वक़्त बित जाता है यूं ही आते जाते, लेकिन घर पर इंतज़ार करने वाला कोई खास नहीं।।
हालात ए वक्त कुछ यूं बयां हुए, के कुछ तू सुने कुछ में सुनू, सुकुं ए दिल तो तब आए जब तू मुझसे और में तुझसे रूबरू हो जाएं। हिज्र भी क्या खूब लिखा है तेरी मेरी चाहत का, मंजिल एक है फिर कु है रास्ते अलग अलग हो जाए। खूबसूरती तो बस इसमें है , तेरे मेरे दिल में तसल्ली है, शायद तू वहां और में यहां अपने अपने में शायद कहीं मस्त है। ना जाने कब इस तसली का कतले आम हो जाए। Nirãñtar
Tere Ishq Se Mili Hai Mere Wajood Ko Ye Shohrat Mera ziqr Hi Kaha Tha Teri Daastan Se Pehle Nirãñtar
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