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जो आपकी सोच को आपके विश्वास को बल दे, जिसके करने से कुछ अच्छा होता हो और साथ ही यह विश्वास हो कि हम जो भी करेंगे उससे हमें और हमसे जुड़े सभी लोगों को शांति मिलेगी वह आस्था है, लेकिन जो काम सिर्फ इसलिए किया जाए कि अगर हम नहीं करेंगे तो समाज नाराज होगा या भगवान नाराज हो जाएँगे तो वह अंधविश्वास है क्योंकि वहाँ पर डर बैठा हुआ है। आस्था में सकारात्मक ऊर्जा, विश्वास और समर्पण होता है जब कि अन्धविश्वास में अज्ञानता और भय छुपा होता है। नीलिमा कुमार
इस मंच पर उपस्थित सभी लोंगो को मेरा नमस्कार! "मुझे कुछ कहना है....." एक रचनाकार का अपनी रचना के साथ बिल्कुल वैसा ही कोमल, ममता से भरा पवित्र रिश्ता होता है जैसे कि एक माँ का अपनी संतान के साथ। वैसे तो माँ अपनी संतान को स्वयं ही गढ़ती है मगर ये संस्कार, संस्कृति एवं परम्पराएं उसके परम आलोचक होते हैं और अपने इन्हीं आलोचकों की सही आलोचना की बदौलत वह अपनी संतान को हीरे सा गढ़ने में सक्षम हो पाती है। ठीक उसी तरह अगर एक रचनाकार के पास उसके सच्चे आलोचक हों तो वह अपनी रचना को कोहिनूर बनाने में सफल हो पाते हैं। दोस्तों! मुझे अपनी हर रचना को कोहिनूर बनाना है और इसीलिए मुझे मेरे सच्चे आलोचकों की जरूरत है। अपनी लिखी रचना में स्वयं से गलतियों को ढूँढ पाना जरा मुश्किल होता है क्योंकि हमारी रचना भी तो हमारे अपने ही भावों का एक अंश होती है और अपना अंश हमेशा प्यारा ही लगता है फिर वह चाहे जैसा भी हो, इसीलिए एक आलोचक की तरह आपका मेरी रचना पर स्वागत है। मालूम नहीं मुझे यह बात लिखनी चाहिए या नहीं बस दिल कह रहा है लिख दूँ। हाल ही में मैंने किसी रचना पर एक समीक्षा पढ़ी थी। समीक्षक ने बड़ी ही ईमानदारी से रचना की तारीफ की और साथ ही रचना की गलतियों को इंगित करते हुए सुधारने की सलाह भी दे दी। वास्तव में कुछ कमियों के साथ रचना बहुत अच्छी थी। समीक्षक के इस ईमानदार आलोचना को लेखक ने स्वस्थ तरीके से ना लेकर उस पर अपनी नाराजगी जताई। मैं लेखक नहीं हूँ मगर थोड़ा बहुत कुछ लिख लेती हूँ। अपने मन के उदगारों को व्यक्त कर लेती हूँ। मेरा सभी से विनम्र अनुरोध है कि अगर उनकी रचना पर कोई सलाह देती समीक्षा आती है तो कृपया उसकी ओर ध्यान दीजिए ना कि नाराज़गी जाहिर कीजिए। मुझे लगता है अगर अपने आलोचकों का मान रक्खा जाए तो अगली रचना की प्रस्तुति सुधारों के साथ हो सकेगी। कृपया इसे मेरा अहंकार मत समझिएगा। धन्यवाद नीलिमा कुमार
सुप्रभात दोस्तों ! 🙏🙏 किन्ही परिस्थितिवश कुछ समय के लिए मैं मातृभारती पर आप सबके साथ नहीं थी। यही कारण था कि अपनी कोई नयी रचना पोस्ट नहीं कर पायी एवं आपकी रचना पढ़ नहीं सकी। फिलहाल अपनी एक नयी रचना के साथ आपके समक्ष उपस्थित हूँ। मेरी रचना आप सबके आशीर्वाद की आकांक्षी है।🙏🙏 "मेरा वो रोमांचक सफर.... (संस्मरण)" by Neelima Kumar read free on Matrubharti https://www.matrubharti.com/book/19912665/mera-woh-romanchak-safar-sansmaran
नमस्कार दोस्तों ! सर्वप्रथम तो मैं आप सभी लोगों का तहेदिल से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, जो मेरी रचनाओं को अपना कीमती वक्त प्रदान करते हैं। 29 मई 2019 को " चूका बीच " के नाम से मैंने अपनी एक रचना प्रकाशित की थी। किन्हीं पारिवारिक कारणों से कुछ समय के लिए मातृभारती से दूर रही। आज मैं एक रचना " अखबार की recycling क्यों है ज़रूरी ? " post कर रही हूँ। आप सभी से अनुरोध है कि इसे अवश्य ही पढ़ें एवं इस पर विचार करें। अगर आपको लगे कि मैंने सही लिखा है तो इस लेख को और लोगों तक अवश्य पहुँचाएं। अग्रिम आभार के साथ नीलिमा कुमार "अख़बार की recycling क्यों है ज़रूरी ?" by Neelima Kumar read free on Matrubharti https://www.matrubharti.com/book/19881260/akhbaar-ki-recycling-kyo-hai-jaruri
#Kiss तुम्हारे चुम्बन की तपिश आज भी मेरे माथे को महसूस होती है माँ ! काश आज फिर से चूम लेती तो, मेरी पेशानी पर पड़ी लकीरें कुछ तो धुंधली हो जातीं ।
सन् 2019 के गर्भ में पल रहे सन् 2020 का जन्म हो चुका है। नव कोपलें फूट चुकी हैं, नाज़ुक से पौधे को पेड़ बनना है।पत्तियाँ और फूल अभी आने हैं। इसके फूलों की ख़ुश्बू हम सबके मन को महका सके, सुकून के कुछ पल दे सके, इसके लिए इस पौधे की सिचाई एवं हिफाज़त की जिम्मेदारी के लिए हमें ही कटिबद्ध होना है। अंततः पौधे को फलदार वृक्ष बनता देख खुशी भी तो हमें ही मिलनी है। दोस्तों ! साल भर का मत सोचिए। रोज़ सबेरे अपने साथ-साथ एक संकल्प इस पौधे के लिए भी लीजिए और उस दिन उसे ही पूरा करने का प्रयास कीजिए। नकारात्मक विचारों और असंभव जैसे शब्दों का प्रयोग अपनी जिंदगी से निकाल दीजिए। तो आईए! हम सब मिलकर एक प्रण करते हैं -- इस पौधे के बढ़ने में अँजुरी भर सिंचाई का सहयोग हमारा भी हो। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
छायावाद की जननी " महादेवी वर्मा जी " की 11 सितम्बर को पुण्यतिथि थी। उनकी 32 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें मेरा शत् शत् नमन। अपनी इन पंक्तियों को श्रद्धान्जलिस्वरूप अर्पण कर रहीं हूँ इस युगप्रवर्तनी के चरणों में - छाया की तुम देवी बनकर उतरी वादी में महा प्राण बन, बड़े जतन से सजा रचा कर नवयुग की तुम महा प्रवर्तनी, लहरों सी कल-कल मधुर वाणी और सब भावों की बनी अग्रणी, पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन चतुर्दिशाओं की तुम स्वामिनी, त्रिवेनी के उस महासंगम की एक तुम गंगा पवित्र पावनी, तुम मीरा सी क्षमादायिनी लक्ष्मीबाई सी वज्र प्रतापिनी। सहस्त्र गुणों की ऐ स्वामिनी ! यह प्रशन् नहीं एक मात्र मेरा है जन-जन का जो भंवर में खड़ा। चारों दिशायें हैं मलिन आक्रान्त अन्धकार युक्त है हर प्रभात, हर वीर था जो एक भारतवासी अब करता खंडित , अखण्ड देश, हिन्दू मुस्लिम और सिख, ईसाई बुनते हैं भिन्न कफन भी भाई। अंकुरित होता हर वर्तमान जब घिरा है प्रशनों के भविष्य में ऐसे में क्या भूल हुई माँ ? खींच लिया क्यों अपना आँचल ? अब कौन दिशा दिखलाएगा, अब कौन रखेगा वरद हस्त ? फिर भी करतें हैं चरण स्तुति छाया की हे महादेवी ! महाप्रयाण के बाद भी तुम प्रकाश स्तम्भ सी खड़ी रहो, भूले भटके हर पथिक मात्र को जीवन - सत्य संकेत करो........... नीलिमा कुमार ( मौलिक एवं स्वरचित )
आप सभी लोगों को हमारे भारतवर्ष की 73 वें नहीं बल्कि प्रथम स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई। हाँ ! आज मेरा देश वास्तव में स्वतंत्र हुआ है, पूर्ण स्वतंत्र। नीलिमा कुमार
" 20 वाँ कारगिल विजय दिवस " कारगिल पर गौरवपूर्ण विजय की सभी जवानों को हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई। कारगिल विजय दिवस पर शत् शत् नमन के संग वीर जवानों को समर्पित हैं कुछ पंक्तियाँ.... दिए की लौ से - ऐ जवान ! दिल में तुम हो , और हमारे सजदों में भी तुम हो । हमारी चिन्ताओं के साथ अपनी चिता तुम सजाते हो। तुम जिस बाती का हिस्सा हो उसका दिल भी रोता होगा , तो वहीं गर्व से अश्रुपूरित नम आँखो संग मस्तक भी ऊँचा होता होगा। ये न सोचना कि तुम अकेले हो , मेरा देश ही है वो दियाली जो अपनी बाती को संजोकर रखता है। और तुम उस बाती की लौ जो खुद जलकर हमें हर रोज़ एक नया सबेरा देते हो । ऐ जवान ! इसीलिए तो तुम हमारे दिल में हो और सजदों में भी । नीलिमा कुमार ( मौलिक एवं स्वरचित )
नमस्कार दोस्तों ! हमारे देश में लाखों ऐसे बच्चे हैं जो पढ़ना चाहते हैं मगर उनके पास किताबें ही नहीं हैं। हम सभी का एक छोटा सा प्रयास, उन्हें किताबें उपलब्ध करा सकता है। बस हमें दो काम करने हैं - पहला हमें अपने बच्चों की किताबों को रद्दी वालों को नहीं बेचना है और दूसरा CIVIL BEINGS ORGANISATION के इस VIDEO को ध्यान से सुनना है। यह वीडियो मुझसे किसी ने share किया था। बिना पैसा खर्च किए और बिना कहीं जाए हुए मात्र एक online form भरकर हम कैसे जरूरतमंद बच्चों तक किताबें पहुँचा सकते हैं, यही इस video में बताया गया है। एक विचार मेरे मन में भी आया है कि मात्र पुरानी किताबें ही क्यों ? हम नई किताबें, copy , pen , pencil, rubber , Geometry box, scale , school bags आदि चीजें हैं जो हम इस संस्था के द्वारा भिजवा सकते हैं। बहुत लोगों के साथ ऐसा होता है कि चाहते हुए भी वह सही पात्र, सही जगह नहीं चुन पाते या समयाभाव के कारण कुछ नहीं कर पाते और उनके विचार बस उनके मन में ही रह जाते हैं, तो ऐसे लोगों के लिए यह organization मददगार साबित हो सकती है क्योंकि इनका पूरा procedure शीशे की तरह साफ प्रतीत हो रहा है। हमारा दिया सामान किसके पास पहुँचा है, ये भी हमें जानकारी मिल जाएगी। इसीलिए मात्र video share ना करके मैंने भी एक प्रयास किया है अपने विचारों को आप सब तक पहुँचा कर। दोस्तों! हाथ बढ़ाइए शिक्षा से जुड़ी चीजों को जरूरतमंद बच्चों तक पहुँचाइए। इस video के साथ इसे copy paste करके शेयर ही नहीं करना है बल्कि एक form हमें भी भरना है। मैंने तो भर दिया है अब आपकी बारी है। धन्यवाद नीलिमा कुमार
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