छायावाद की जननी " महादेवी वर्मा जी " की 11 सितम्बर को पुण्यतिथि थी। उनकी 32 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें मेरा शत् शत् नमन। अपनी इन पंक्तियों को श्रद्धान्जलिस्वरूप अर्पण कर रहीं हूँ इस युगप्रवर्तनी के चरणों में -
छाया की तुम देवी बनकर
उतरी वादी में महा प्राण बन,
बड़े जतन से सजा रचा कर
नवयुग की तुम महा प्रवर्तनी,
लहरों सी कल-कल मधुर वाणी
और सब भावों की बनी अग्रणी,
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन
चतुर्दिशाओं की तुम स्वामिनी,
त्रिवेनी के उस महासंगम की
एक तुम गंगा पवित्र पावनी,
तुम मीरा सी क्षमादायिनी
लक्ष्मीबाई सी वज्र प्रतापिनी।
सहस्त्र गुणों की ऐ स्वामिनी !
यह प्रशन् नहीं एक मात्र मेरा
है जन-जन का जो भंवर में खड़ा।
चारों दिशायें हैं मलिन आक्रान्त
अन्धकार युक्त है हर प्रभात,
हर वीर था जो एक भारतवासी
अब करता खंडित , अखण्ड देश,
हिन्दू मुस्लिम और सिख, ईसाई
बुनते हैं भिन्न कफन भी भाई।
अंकुरित होता हर वर्तमान
जब घिरा है प्रशनों के भविष्य में
ऐसे में क्या भूल हुई माँ ?
खींच लिया क्यों अपना आँचल ?
अब कौन दिशा दिखलाएगा,
अब कौन रखेगा वरद हस्त ?
फिर भी करतें हैं चरण स्तुति
छाया की हे महादेवी !
महाप्रयाण के बाद भी तुम
प्रकाश स्तम्भ सी खड़ी रहो,
भूले भटके हर पथिक मात्र को
जीवन - सत्य संकेत करो...........
नीलिमा कुमार
( मौलिक एवं स्वरचित )