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मूलस्य वेदनम् -0५ इह जगती कोSपि निर्मूलं नास्ति किन्तु स्वमूलस्य संज्ञानमनिर्वचनीयं वर्तते। मूलवेदनं विना कार्याचरणं पतनस्यैव कारणं जायते। ©अमित कुमार दवे, खड़गदा
"आओ!मिलकर संकल्प करें हम। प्राकृतिक दौहन बंद करें हम।।" ©डॉ.अमित कुमार दवे,खड़गदा
पर्यावरण दिवस विशेष पर्यावरण को दिवस मनाने तक सीमित करना/रहना उचित नहीं। हमें हमारे आस-पास के हर पर्यावरणीय पहलू के प्रति निरन्तर सजग होना पडेगा।हम प्रकृति से केवल लेते ही जा रहे हैं।देते कुछ भी नहीं हैं।यदि कुछ दे रहे हैं तो वह है कोरा प्रदूषण।हमें हमारी जिम्मेदारी तय करनी होगी। केवल प्रकृति के अविवेकी दोहन करने के भाव के ऊपर विवेक के साथ पुनः लौटाने के भाव जागृत करने होंगे,तभी हम हमारी अगली पीढी हेतु शुद्ध साँसों की व्यवस्था कर पाएँगे। "आओ!मिलकर संकल्प करें हम। प्रकृति का अतिदौहन बंद करें हम।।" पर्यावरण दिवस की हार्दिक बधाई संग शुभकामनाएँ... सादर सस्नेह.... ©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा
विवेक पर्यावरण का तू जीवन में उतार ले जल में कल की तस्वीर देखकर, अपना आज और कल सँवारों।। तपती धरती का आँचल देखकर, कुछ तो हरकत अपनी सुधारो ।। हाल ए वक्त को भी अनदेखा कर, कल में अपने सुनसले सपने छोड़ो।। सुखते हुए जल स्रोतों को देखकर, मूर्ख निष्ठुर बने तुम क्या फिरते हो ? जानते हुए भी अनजाने से क्यों रहते हो , अपने अविवेक से खुद ही क्यों मरते हो? कर लो कुछ जतन अब भी ओ पगले! बीत जाने पर समय पीट सर पछताओगे।। पहल जीवन की आरम्भ खुद ही से कर लो, अगली पीढ़ी का जीवन सुरक्षित कर लो ।। अडौस-पडौस को अब अपने संग में लेकर, अपने ही पर्यावरण का तछ संशोधन कर ले।। अपने ही हाथों से अपना जीवन तू साध ले, कल के सपनों की अपनी बगिया तू सँवार ले।। विवेक पर्यावरण का तू जीवन में उतार कर , अपने संग अपनों का भी जीवन तू सँवार ले।। सादर प्रस्तुति डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा
©आम्र पत्र अहा! क्या खूब कहा सहज ही आम्र पत्र ने.. नहीं सदैव कोई रंग यहाँ, कोपल शैशव से सहज बढ़ता... पीत-गेरुए का यह सफर.. नित बतलाता यह समझाता.. जीवन में एक-सा समय कहाँ..? जीवन में एक ही सा रंग कहाँ...? सहज ही दिखला गया.. यह आम्रप पत्र..अपने बदलते स्वरूपों में सहज़ ही जीवन की डगर।। सादर प्रस्तुति ©अमित कुमार दवे, खड़गदा
चालाकियाँ अर्जित नकारात्मकताएँ हैं.... इनसे बचते रहें... मासूमियत ईश्वर का दिया हुआ स्वाभाविक उपहार है..... सहज ही बनाएँ रखें..... नित आगे बढ़ते रहें... 💐💐💐💐
विवेकानंद जयंती विशेष देश को आज विवेक चाहिए ©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा देश को आज विवेक चाहिए- सार्वकालिक महापुरुषों में… सनातन आदर्शों में…. वैश्विक विचारों में… अनुकरणीय मूल्यों में….।। सच!आज देश को विवेक चाहिए- संपादित व्यवहारों में…. जीवन संस्कारों म़े…. सामाजिक संंबन्धों में…. आपसी संवादों में….।। हाँ आज देश को विवेक चाहिए- शैक्षिक संरचनाओं में…. तकनीकी व्यवहारों में…. आचरित चरित्रों में…. प्रसारित सूचनाओं में…. देश को फिर आज विवेक चाहिए- उन्नत नागरिकता में… तेजस्वी उद्बोधनों में…. राष्ट्रीय राज्यनीति में…. उत्कृष्ट अर्थनीति में... सुनों ! आज देश को विवेक चाहिए- नव साहित्य के सृजन में.. सटिक शब्द व्यहरण में.. शास्त्र अनुशीलन मे….. आत्मिक अवबोधन में…. हाँ..! आज वही विवेक का .. देश के उत्थान को विवेक चाहिए..।। सादर प्रस्तुति ©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा
विषय : अटल बिहारी वाजपेयी विशेष ©शब्द - स्वप्न - संवेदन को जीवन राष्ट्र का करना होगा जननायक को अब अटल-सा फिर से बनना होगा ।। डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा, राजस्थान अटल के अटल आदर्शों को आचरण बनाना होगा, राष्ट्रीय राजनीति को पुनराभा से युक्त से करना होगा।। एकनिष्ठ राष्ट्र का निर्माण अब हर जन को करना होगा, स्वप्न अटल का मिलकर हमको नूनं पूर्ण करना होगा।। गिरती गरिमा से फिर राजनीति को ऊपर लाना होगा, सूत्र 'रामो द्वि वारं नाभिरभते' का स्थापित करना होगा।। सम्पूर्ण विश्व को राष्ट्रीय गरिमा का पाठ समझाना होगा, राष्ट्रीय अस्मिता ध्यान में रख हर व्यवहार करना होगा।। बिखरे अन्तरभारत को अब सूत्र एक में पिरोना होगा, स्वप्न अटल का मिलकर हमको शीघ्र पूर्ण करना होगा।। बन रत्न राष्ट्र का हर जन को नव निर्माण करना होगा, भारतवर्ष के खातिर संक्षिप्त स्वार्थों को छोड़ना होगा।। सहृदयी - सहज कविमन - तटस्थ विपक्षी ढूँढना होगा, शब्द - स्वप्न - संवेदन को जीवन राष्ट्र का करना होगा।। जननायक राष्ट्र का अब अटल-सा फिर से बनाना होगा, अनुभवी-संवेदी हाथों को ही नेतृत्व राष्ट्र का देना होगा।। गिरते राजनैतिक व्यक्तित्वों को फिर संभलना ही होगा, अन्यथा स्वप्न राष्ट्रीय नेतृत्व का स्वतः ही छोड़ना होगा।। राष्ट्रीय अस्मिता ध्यान में रख हर व्यवहार करना होगा, स्वप्न अटल का मिलकर हमको शीघ्र पूर्ण करना होगा।। सादर प्रस्तुति ©डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा, राजस्थान
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