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समझदार दादाजी "अरे! दादाजी ये आप गाँव के बाहर बैठकर आप ये क्या कर रहे हैं? जो भी शादी के कार्ड आते हैं उसे यूँ खंभे पर क्यों टांग रहे हैं? " रोहित ने साइकिल रोक कर रामफल दादा जी से पूछा । "बेटा कोरोना ऐसी महामारी जो बहुत तेजी से फैल रही है और मैं नहीं चाहता कि मेरे गांव का कोई भी इस महामारी के चपेट में आये । इसलिए मैं सभी कार्ड की फोटो खींच कर जिसका कार्ड होता है उसे व्हाट्सएप कर देता हूँ ताकि वो लोग ऑनलाइन आशीर्वाद देकर अपना फर्ज निभा सकें और बीमारी से भी बच जायें " दादा जी ने मुस्कुराते हुए कहा । "किंतु दादा जी आप भी तो इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं!!! " रोहित ने फिर से पूछा। "अरे बेटा मेरा क्या है! मैं तो अपनी जिंदगी जी चुका हूँ।" दादा जी ने कहा और फिर अपने काम में व्यस्त हो गये । एमके कागदाना© फतेहाबाद हरियाणा
बादल से मुलाकात राजू, बबलू, तुम सब आओ सब मिलके बदरा को मनाओ बदरा हमसे रूठ गए हैं मुंह फुलाके बैठ गए हैं बहुत बुलाया तो बादल आया साथ में रिमझिम को भी लाया बहुत ही पूछा तो बताया रो रोकर के दुखड़ा गाया। बहुत स्वार्थी हो गया मानव रूप ले लिया उसने दानव मेरे प्यारे दोस्त वो दरख्त उनको काट गिराए मानव तकलीफ़ मुझे बहुत ही होती मेघा,बरखा दोनों ही रोती रो रो करके तब वो सोती झड़ते रहते आंखों से मोती मुझसे सब ये देखा न जाए तुम लोगों को वर्षा भाए सबकुछ चाहो बिन हाथ हिलाए ऐसा कैसे चलेगा और बोला बाय मै बोली कोई बताओ उपाय शांत होकर फिर बात दोहराय मुझे पेड़ पौधे हैं प्यारे हाथ हिला ये मुझे बुलाय तुम सब मिलके पेड़ लगाओ धरती का शृंगार रचाओ बिन बुलाये फिर मैं आऊं पेड़ पौधों को गले लगाऊं मैंने भी कर डाला वादा सबको समझाऊंगी मैं दादा हम सब मिलके पेड़ लगाएंगे धरती का शृंगार रचायेंगे। तब खुश हुए थे बादल दादा बोले मैं आऊँगा ये रहा वादा जितने अधिक तुम पेड़ लगाओ उतनी चाहे तुम वर्षा पाओ। एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
हास्य नींद में स्वर्ग की सैर फेसबुक, व्हाट्सएप और टीवी सब जगह एक ही खबर थी । 21 को दुनिया खत्म हो जायेगी । बहुत डर भी लग रहा था और चिंता में नींद भी आसपास नजर नहीं आई । सोचते सोचते कब आंख लग गई पता ही न चला । आंख खुली तो अपने आपको एक कमरे में पाया । छत की तरफ ध्यान गया तो अजीब सा लगा, ये मेरा कमरा तो नहीं है! हड़बड़ाहट में उठी तो कमरे में एक औरत पोच्चा लगा रही थी । "तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो? " मैंने उससे पूछा। "आड़ै मेरी डयूटी सै मैडम जी" वह बोली । उसके मुंह से हरियाणवी सुनकर अपनापन सा लगा. मैं बोली- तेर तईं किसनै कही सै पोच्चा मारण की, मैं आपणे काम खुद करया करूँ समझी, अर ना तनै मास्क लगा राख्या!! " "मैडम जी सपना देखो हो के? " वह जोर ठहाका लगाकर बोली. मैं- मतलब?? "आपी ईब स्वर्गवासी हो लिये, आड़ै कोनी करोना- कराना । अर या लो आपकै काम की लिस्ट, सारा काम टैम पै करणा सै, टैम पै काम न्हीं करया तो फेर नरकवासी हो ज्याओगे । "वह मुझे समझा रही थी । मैंने सोचा चलो थोड़ी गफलत करते हैं और नरकलोक की सैर भी कर आते हैं आखिर पता तो चले यहाँ और वहाँ में फर्क क्या है? मैंने समय पर काम नहीं किया तो मुझे नियमानुसार नरकलोक भेज दिया गया। वहाँ भी वही सब सुविधाएं थी जो स्वर्गलोक में थी । मैं सोचने लगी स्वर्ग और नरक में कुछ भी तो फर्क नहीं है फिर लोग क्यों डरते हैं आने से? वही हराभरा खुशनुमा वातावरण, सब सुख सुविधाएं मौजूद थीं। किंतु जैसे ही खाना लगा सब टूट पड़े एक दूसरे थाली में। हम्म अब समझी, जो लोग धरती पर उधम मचाते हैं वही नरक में आकर भी सुकून से नहीं जीते हैं। इनकी हरकतों के कारण ही नरकलोक इनके लिए बनाया गया है।तभी दो औरतें लड़ती हुई आई । दोनों ने एक दूसरे की चोटी को कसकर पकड़ रखा था । दोनों ने लड़ते लड़ते मुझे चपेट में ले लिया । मैं जोर जोर से चिल्लाने लगी । बचाओ .. बचाओ!!! तभी पतिदेव चिल्ला पड़े -"के बीमारी सै? ना पड़ै ना पड़न दे! कितनी बै कह राख्खी सै भूतिया फिल्म ना देख्या कर.... । " और मुझे जोर से झिंझोड़ दिया। आंख मलते मलते घूरकर इनको देखा, और पूछा- "थम्म आड़ै के करो सो? गुस्सा होकर बोले- इब कित्त जाऊँ? फिर नींद उड़ी तो मोबाईल में टाइम देखा सुबह के चार बज रहे थे । "ओह तो हम जिंदा है! मतलब दुनिया खत्म नहीं हुई !"और गहरी सांस लेकर फिर सो गई । एम के कागदाना ( महेंद्र कौर यादव) एम. ए. , एम. फिल. नेट क्वालिफ़ाई हिंदी में (मौलिक रचना) फतेहाबाद हरियाणा m k a u r y a d a v @ g m a i l. c o m Q w r r t y u i o p a s h j k b v g c x m nv
विधुर पुरुष 2 अक्सर विधुर पुरुष बहुत ही झुंझलाता है माँ का प्यार बच्चों पर जब नहीं लुटा पाता है माँ सा आंचल देना चाहता मगर नहीं दे पाता है फटेहाल ठिठुरती रातों में माँ नहीं बन पाता है अक्सर विधुर पुरुष बहुत ही झुंझलाता है बच्चों को बाहों में लेता धूप ताप से बचाता है माँ पिता दोनों बनकर दोहरी भूमिका निभाता है अपने कुर्ते का आंचल बना खुद सर्दी सह जाता है अक्सर विधुर पुरुष बहुत ही झुंझलाता है बाहर मजदूरी करता घर में खाना ना पकता है खुद के आंसू रोक कर बच्चों को हंसना सिखाता है खुद बारिश को सहनकर बच्चों का छाता बन जाता है अक्सर विधुर पुरुष बहुत ही झुंझलाता है एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा मौलिक रचना
विधुर पुरुष अक्सर विधुर पुरुषों के अधिकारों की गुर्राहट बेटियों के आगे बौनी हो जाती हैं वे समझते हैं औरतों की वल्यू कभी खीजते हैं झुंझलाते हैं किंतु बेटी के उलझे केश देखकर झटक देते हैं झुंझलाहट ऐसे पुरुष अंदर से कठोर होने का दिखावा करते हैं मगर रो पड़ते हैं बेटी की विदाई पर एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
#विनोदी मैं बी चुप सी खींचग्गी आज संडे का दिन था अर उसका लड़न का मन था उसनै दरवाजा खोल्या नाई कै जाऊं सूं न्यू बोल्या मखा बाळ छोटे करवाकै आवैगा के? बोल्या बडे करवाकै आऊं सूं चालै सै के? मैं बी चुप सी खींचग्गी अर मुट्ठी सी भींचग्गी बोल्या देखिए लाइट सै के मंखा क्यूँ चिपणा सै के? वो आंख काढ़के गुर्राया जाणु मारणा झोटा आया ईब्ब बोलचाल बंद हो ली थी मैं बी कति परेशान सी हो ली थी रात नै पर्ची लिखके दे देई लिख्या मन्नै पांच बजे ठा देई मैं बी घणी हाई थी खार खाये बैठी थी मन्नै बी पर्ची बणाके धरदी जी पांच बजगे उठ ज्याओ जी तड़के के सात बजगे जनाब के होश से उडगे बोल्या तन्नै ठाया कोनी मंखा तन्नै ठाण की कही ए कोनी बोल्या पर्ची तो धरी थी मंखा पर्ची तो मन्नै बी धरी थी जनाब नै माथा पीट लिया बोल्या तैं जीतगी मैं हार लिया आज कै बाद किस्से तैं न्ही लडूं तेरै गैल तो कति ना भिडूं।। एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
मेरी स्वयं की लिखी कविता को आवाज देने का प्रयास किया है..
जैसे को तैसा "सुनो, ये जनाब कौन हैं ? तुम्हारा म्यूच्यूअल फ्रैंड है।" सुधीर ने अपनी पत्नी को प्रश्नचित दृष्टि डालकर पूछा। "कौन है दिखाओ तो? अरे ये ऑफिस का ही सहकर्मी है।"प्रतिभा ने सुधीर के मोबाईल में देखकर बताया। "तुम्हें कितनी बार कहा है कि ऐसे ही किसी फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सैप्ट मत किया करो। एक्सैप्ट करने से पहले मुझे पूछ तो लिया करो।" सुधीर ने प्रतिभा को आंखें तरेर कर कहा। "तुम्हारी भी तो महिला मित्र हैं ! मैंने तो कभी नहीं कहा आपसे ! आप मुझसे पूछकर फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सैप्ट किया करो।" प्रतिभा ने सुधीर की आंखों में आंखें डालकर कहा। तभी सुधीर ने गुस्से में आकर जोरदार थप्पड़ प्रतिभा की गाल पर रसीद कर दिया। "अब ..अब मैं तुमसे पूछूंगा कि....कि मुझे क्या करना है क्या नहीं???" सुधीर गुस्से में चिल्लाया। च...टा..क... सुधीर क्षणभर के लिए सन्न रह गया । वह संभल पाता उससे पहले प्रतिभा ने बिना पल गंवाए सुधीर की गाल पर एक और चांटा ब्याज समेत लौटा दिया। "और हां सुनो, मैं कोई तुम्हारी जागीर नहीं हूँ ! जितना हक तुम्हारा मुझ पर है उतना ही मेरा भी तुम पर है। तुम्हें मुझसे प्रश्न पूछने का हक है तो मुझे भी है। आगे से ख्याल रखना, जैसा व्यवहार करोगे वैसा ही पाओगे!" प्रतिभा का ऐसा रूप देखकर सुधीर गाल सहलाता रह गया। एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
फितरत "तुम उदास क्यों हो?" मैंने 2019 को उदास देखकर पूछा। "अरे क्या बताऊं! मैने लोगों को खुशियां दी वो भूल गए और जाने अनजाने जो दर्द मैंनें दे दिये उसे समेटे बैठे हैं।मुझे भला बुरा भी कह रहे हैं।" 2019 ने रुआंसे होकर कहा। "नाराज तो मैं भी हूँ तुमसे, मगर शिकायत नहीं करूंगी । वैसे भी हम इंसानों की फितरत ही ऐसी है।हमारे साथ कोई अच्छा करता है उसे भूल जाते हैं और जो बुरा करता है उसे याद रखते हैं।तुम चिंता मत करो। मुझे दुख भी है तुम्हारे जाने का ,किंतु प्रकृति के नियम को हम बदल नहीं सकते।तुम थोड़ा मुस्कराओ और जाओ।" 2019 मुस्कुराया और एक आंसू की बूंद गाल पर लुढ़क आई। मानों कह रहा हो मुझे इंसानों से अब कोई शिकायत नहीं।अलविदा! मैं 2019 को अलविदा कहकर नववर्ष के स्वागत के लिए तैयारियां करने लगी। एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
क्या बदलेगा कल कल क्या बदलेगा हैंयय क्या बदलेगा कल वही सर्द सुबह वही दोपहर और वही संध्या वही हम होंगे वही तुम नये साल की मुबारकबाद देंगे एकदूसरे को हर साल की तरह सूर्य उदय होगा और चला जायेगा पश्चिम की ओर निभा देगा अपना कर्तव्य एक पिता की मानिंद धरती भी अपने पथ पर चक्कर काटती रहेगी गृहिणी के मानिंद सर्द हवाओं के चलते सब चले जायेंगे अपने अपने काम पर कुछ मनचले कुछ मनचले नववर्ष के बहाने फिर नशे की आड़ लेकर नोच डालेंगे किसी बेबस बच्ची को हम फिर मोमबत्तियां लेकर खड़े हो जायेंगे किसी पार्क में या जुलूस निकालेंगे सरे बाजार हमें महज कलेंडर नहीं बदलना वाकई हमें बदलना है तो बदलना होगा इस मानसिक रोगी समाज को बदलना होगा हमें स्वयं को नये साल से देने होंगे हमें बच्चों को संस्कार ताकि हमारी बच्चियां भी मना सकें हर उत्सव और और और वो घूम सकें इस पृथ्वी पर बेधड़क एमके कागदाना फतेहाबाद हरियाणा
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