Quotes by mehmood khan in Bitesapp read free

mehmood khan

mehmood khan

@mehmoodkhan.306445


By-M.A.K

अब और तैं किया जाता नहीं,
सोचता हूँ......
जिंदगी अब यहीं थम जाए तो बेहतर है,
हो चूका हुं...चूर
दुनिया की रंजीश से,
बस...अब,
यहीं खामोश हो जाऊं तो बेहतर है

By-M.A.K

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क़ीमत....


उसने जुलेखा की तरह कीमत लगाई मेरी,
मैं ता उमर जिसकी आंखो में डूबा रहा।

उन्ही हाथों में कत्ल का सामान मिला मुझको,
मैं अपना समझ कर जिनको गले लगाता रहा।

सारी अछैयां धारी की धारी रह गईन,
जब उसने भरी बजम मुझको बेवफा कह दिया।

जिंदगी हमने गुजर एक कसम के वास्ते,
ज़माना फिर भी मेरा नाम फ़रेब लिखता रहा,

जन्म से लेकर मौत तक सब झूठ है इस जहां में,
बस दर हकीकत एक मर्ग-ए-बिस्तर है,
ता उमर दिल को यही बात समझ आ रहा है।


By-M.A.K

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यादे.....

ये मौसम ये भीगी उदासी ये रह गुजर,
उसपर ये पहली बारिश की भीनी भीनी सी खुशबू,
देख कर कुछ याद आया है,
वो जो गुजरा मौसम फिर लौट आया है।


By-M.A.K

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जब कभी लिखूंगा, जिंदगी पर
एक किताब लिखूंगा,
टूट कर बिखरा हूं ये बात लिखूंगा.

बड़े खुलूस से मारा है मुझको,
जिस्म का हर ज़र्रा दर्द की चुभन
से ओझल है
दिल का ये साज लिखूंगा.

कुछ इश्क में टूट गए,कुछ अपनों ने
तोड़ दिया,
जिंदगी की हर बाजी जीत कर हार गए,

वक़्त के कोरे कागज़ पे,
लाओह-ए-कलम से अपनी दास्तान लिखूंगा.

जब कभी लिखूंगा जिंदगी पर
एक किताब लिखूंगा.


By-M.A.K

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Inteha

तेरे इश्क की इंतेहां चाहता हूं,
बड़ी मुद्दत हुवी बिछड़े तुझसे,
अब मिला है तो राह-ए-सफ़र में,
तुझसे फिर रूबरू होना चाहता हूँ।

ता उमर देता रहा फरेब खुद को,
मोहब्बत की राह मैं,
लुट ता रहा मैं
इश्क के हाथो सारे बाज़ार में।

खाई है हमने चोट दिल पे,रहे इश्क में
मैं भी कितना नादान हूँ,
ये मैं कॅया चाहता हूँ,
तुझसे फिर दिल लगाना चाहता हूँ,

कर के एक बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद,
उसे वफ़ा चाहता हूँ।


By-M.A.K

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तेरे इश्क की इंतेहां चाहता हूं,
बड़ी मुद्दत हुवी बिछड़े तुझसे,
अब मिला है तो राह-ए-सफ़र में,
तुझसे फिर रूबरू होना चाहता हूँ।

ता उमर देता रहा फरेब खुद को,
मोहब्बत की राह मैं,
लुट ता रहा मैं
इश्क के हाथो सारे बाज़ार में।

खाई है हमने चोट दिल पे,रहे इश्क में
मैं भी कितना नादान हूँ,
ये मैं कॅया चाहता हूँ,
तुझसे फिर दिल लगाना चाहता हूँ,

कर के एक बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद,
उसे वफ़ा चाहता हूँ।

By-M.A.K

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माँ

जब से माँ नहीं है कुछ अच्छा नहीं लगता,
केया अपना केया पराया,
हर कोई डूबो ने मैं लगा है,
अब कोई रिश्ता अपना नहीं लगता.

माँ थी तो सब अपने थे, उसकी मौजुदगी से चहक ता था अगन,
अब ये खामोश घर मेरा नहीं लगता।

केया खुशी, केया गम, यूं तो हर तेवर पे खुश होते हैं हम, खुशियां भी मनई जाती हैं,
मगर,

माँ के बिना कोई ख़ुशी मोकम्मल नहीं लगती,
कोई तेवहार अच्छा नहीं लगता.
जब से माँ नहीं है कुछ अच्छा नहीं लगता।

सूना सूना सा है घर मेरा, सूनी सूनी सी चौखट मेरी,
अब मेरी चौकाहट पे कोई अपना नहीं आता,

जब से माँ नहीं है, मेरा घर, घर नहीं लगता,
अब कुछ अच्छा नहीं लगता.

By-M.A.K

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बड़ा जखम दिया है,इस ज़माने ने.


बड़ा जखम दिया है,इस ज़माने ने
सदियों लगेगी मूशकुरने में,

अजब सी दरियादीली देखी ज़माने की,
गरीबों को रुलाने में,अमीरों को हँसाने में.

कहीं पर खुले अत्तयाचार है,तो कहीं पे
मीठी जुबान पे तलवार है,

जरा सी बात पर सारे रीशते तोड़ देते हैं,सारी
रीवायते छोड़ देते हैं,

जहान सदियों गुजर जाती हैं,"महमूद" रिश्ते बनाने में,रुठो को मानाने में.

बड़ा जखम दिया है,इस ज़माने ने
सदियों लगेगी मूशकुरने में.!


By-M.A.K

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तेरी यादों की ताप्ती धूप में हमने खुद को सवरा है,
कतरा कतरा दरिया दरिया,
थाम के हमने ऑसू का,
खुद को संभला है।

बीते दीनो की शम्माऐ रोशन है दिल के गोशे में,
जैसे जलता है दिया मजारों पर, उठता है धुआं मजारों से,

अब तू ना आए तो बेहतर है, तेरा गम निकल जय तो बेहतर है
बड़ी मुश्किल से ये होश संभला है,
तुझको भुला कर हमने खुद को पाया है।


By-M.A.K

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