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महेश रौतेला

महेश रौतेला Matrubharti Verified

@maheshrautela
(464)

हम लड़ना जानते हैं

हम लड़ना जानते हैं
धरती से, पेड़ों से,
पहाड़ों से, पर्यावरण से,
नदों से, नदियों से।
युद्ध करना जानते हैं
अच्छे विचारों से,
सभ्यताओं से, सभ्यों से,
संस्कृतियों की परतों से ।
मल्लयुद्ध करते हैं
अन्दर की आत्मा से,
सत्य के प्रश्नों से,
सौन्दर्य की सरलता से ।
हम स्वभाव से आतंक फैला,
बुद्ध को जड़ बनाते हैं।
हमारी क्रान्तियों में,
ठहराव है, बिखराव है।
हम झगड़ना जानते हैं,
एक डर के साथ
एक महाभारत चाहते हैं,
जहाँ धर्म भी हो, अधर्म भी हो।
**********
** महेश रौतेला
२०१५

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पेड़ कट रहे थे
महसूस करने वाले रो रहे थे,
वृक्षारोपण हो रहा था
देखने वाले खुश थे,
पेड़ सूख रहे थे
पीड़ा मिट्टी को हो रही थी।


*** महेश रौतेला

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मुझे अपने गाँव से प्यार है
उसकी पगडंडियां टूटी हैं,
आधे खेत बंजर हो चुके हैं
गूल जहाँ-तहाँ भटक चुकी है,
नदी का बहाव अटका सा है
बादल इस साल फिर फटा है,
विद्यालय सूना-सूना है
पढ़ाई अस्त-व्यस्त है,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
शराब की दुकान खुल चुकी है
बिजली जगमगा रही है,
लड़ाई-झगड़े होते हैं
झूठी गपसप चलती है,
पर शान्ति का संदेश लिखे मिलते हैं
सत्य का आकांक्षा बनी हुई है,
क्योंकि "सत्यमेव जयते" वृक्ष पर
लिखा है।
पर वहाँ जा नहीं पाता
लम्बी चढ़ाई चढ़ नहीं पाता,
उम्र से लड़ नहीं पाता
ऊँचाई को बस देखभर लेता हूँ,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
मुझे अपने गाँव से बहुत प्यार है
वह पहले जैसा नहीं दिखता
जो भी चित्र आता है ,अलग लगता है
मेरे गाँव को कुछ तो वरदान है,
कि मैं उसे बूढ़ा नहीं कह पाता हूँ।
चूल्हे की आग जो तापी
उसकी आँच अब भी नरम है,
रात को देखी चाँदनी रात
अब भी याद है।
बात सच है कि प्यार गाँव से
है,
अस्सी साल की बुआ की झुर्रियों से जो प्यार झलकता था,
उससे गाँव को जाना था।
अब बातें बड़ी हो गयी हैं
पहले झंडे लेकर दौड़ते थे,
अब प्रजातंत्र में चुनाव लड़ते हैं,
साफ-साफ दिखता है
मुझे अपने गाँव से प्यार है।
प्यार भूला भी जा सकता है
वर्षों बाद देखा था
जब चारों ओर सन्नाटा था,
गाँव में इका दुक्का कोई रहता था,
फिर भी मेरा प्यार जिन्दा था।
***
२०१८

***महेश रौतेला

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तुम मेरी पीड़ा को जान सको तो जानो ईश्वर,
यह पथ टूटा,वह पथ टूटा
निर्माण यहाँ होना भगवन।
यह घर छूटा वह घर छूटा
दूर आकर लौटा हूँ ईश्वर,
मैंने देखा गगन तुम्हारा
किस सीमा पर रहना भगवन!
खिले वृक्ष पर पुष्प बहुत
सुगन्ध कहाँ तक आती भगवन!
इस दुनिया में बहुत कष्ट हैं
कौन कहाँ तक सहता भगवन!
मन में कौन कब तक बैठा
इसका ब्यौरा लिख दूँ भगवन,
यहाँ श्मशान, वहाँ श्मशान
नव जीवन आना है भगवन।
***

** महेश रौतेला

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होली:

मन रंगा हो,तन रंगा हो
हमारा सम्पूर्ण साथ रंगा हो,
गोकुल रंगा हो,कान्हा रंगे हों
अयोध्या रंगी हो,राम रंगे हों
हमारा सम्पूर्ण भारतवर्ष रंगा हो।
राधा संग श्रीकृष्ण रंगे हों
गाँव रंगे हों, नगर रंगे हों,
धरा रंगी हो,धड़कन रंगी हो
हमारे प्यार का दृश्य रंगा हो।

* महेश रौतेला

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ये नदिया, ये पानी
ये मछलियों का होना,
कभी इस तट पर
कभी दूर तट पर,
घर से घराट तक
अन्न का पहुँचना,
व पानी की छपछप
व भूतों का भय छप,
अपने ही जीवों में
अपना ही मस्तक,
हिमगिरि के शिखरों का
गगन को छूना,
ये हमारा होना
चंचल हवा का बहना,
ये ऋतुओं का आना
गुनगुनी धूप का मिलना,
खेतो में फसल का
उगना और कटना,
हमारी लिखावट का
चलना और रूकना,
बचपन की डगर के
कहानी और किस्से,
उसी छाँव में
उठना और बैठना,
वहीं होली-दीवाली
वहीं दानव का मरना,
वहीं कृष्ण-कन्हैया
वहीं राधा का मिलना,
कुछ जय का होना
कुछ पराजय का मिलना,
हमारी निकटता का उदय और अस्त
भोर के अन्दर नक्षत्रों का चमकना,
अपनी कक्ष में ग्रहों का दिखना
हमारे भूगोल में
शताब्दियों का रहना,
जिन्दगी का यहाँ आना और जाना
कठिनाइयों का पल-पल दूर तक ठहरना
उल्लास में विविध पुष्पों का खिलना।
ढूंढो शहर तो राहें बहुत हैं,
गाँव को जाती सड़कें निडर हैं।
ये नदिया, ये पानी
ये बच्चों का होना,
कभी इस तट पर
कभी उस तट पर।


*** महेश रौतेला

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शिव की नगरी शिव ही जानें
जहाँ चाहें वहाँ विराजें,
विष भी ले लें
वरदान भी दे दें
शिव की बातें शिव ही जानें।


* महेश रौतेला

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हवा में मिल जाऊँगा
तो दिखूँगा कहाँ,
अँधकार में रहूँगा
तो दिखूँगा कहाँ!

आकाश में मिल जाऊँगा
तो कब तक दिखूँगा,
पाताल में रहूँगा
तो कैसे दिखूँगा!

नीति में रहूँगा
तो न्याय में दिखूँगा,
सत्य पर रहूँगा
तो पुण्य में ठहरूँगा।

लय में रहूँगा
तो गीत में मिलूँगा,
शान्ति में रहूँगा
तो शुद्धता में आऊँगा।

*** महेश रौतेला

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एक दिन थकना ही था
क्रोध को,
एक दिन थमना ही था
हँसी को,
एक दिन टूटना ही था
फूल को,
एक दिन धराशायी होना ही था
वृक्ष को,
एक दिन बुझना ही था
ममता को,
एक दिन होना ही था
प्यार को एकान्त,
एक दिन निकल ही जाना था
जीवन को।


*** महेश रौतेला

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एक दिन थकना ही था
क्रोध को,
एक दिन थकना ही था
हँसी को,
एक दिन छूटना ही था
फूल को,
एक दिन धराशायी होना ही था
वृक्ष को,
एक दिन जाना ही था
ममता को,
एक दिन पाना ही था
प्यार को एकान्त,
एक दिन निकल ही जाना था
जीवन को।


*** महेश रौतेला

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