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लेकिन सन्तोष है: बहुत निराशा है मन में कि इतना भ्रष्टाचार है पैसे का लेन-देन है, लेकिन सन्तोष है कि अच्छाई भी है। बहुत निराशा है मन में कि नदियां गदली हो चुकी हैं दूषित बहुत नाले हैं, पर सन्तोष है कि कुछ शुद्धता बनी हुयी है। मन बहुत उदास है कि कुछ पक्षियां विलुप्त हो गयी हैं कुछ जंगल कट चुके हैं पर सन्तोष है कि अभी भी आशा जीवित है। बहुत उदिग्न हूँ कि युद्ध लड़े जा रहे हैं, गलत इधर भी है गलत उधर भी है, लेकिन सन्तोष है कि अच्छाई अभी भी है। उधर इतनी घूस है इधर उतनी घूस है, कहीं झूठे नोटिस हैं कहीं झूठी जाँच है, लेकिन अच्छी बात है कि अभी भी सच पर विश्वास है। **** *** महेश रौतेला
कष्ट यहीं रह जायेंगे सुख-दुख बैठे रह जायेंगे। यह भाषा, वह भाषा बोलते-बोलते चुप हो जायेंगे, यह राह, वह राह चलते-चलते गुम हो जायेंगे। इस कहानी,उस कहानी को कहते-कहते विराम ले लेगें, इस ममता, उस ममता में ठहर सब कुछ छोड़ जायेंगे। इस किताब, उस किताब को पढ़ मौन जायेंगे, कभी इसकी, कभी उसकी आलोचना करते-करते आलोचना के पात्र बन जायेंगे। इस विभाजन, उस विभाजन में रह खाली हाथ चल देंगे, शिकायतों पर विराम लग क्षणभर में सब शान्त हो जायेंगे, कष्ट यहीं रह जायेंगे। *** महेश रौतेला
यह जग कान्हा तेरा है तो ये महाभारत खूनी किसका है! हर पग टेढ़ा, हर पग भटका यह सीधी राह किसकी है! देखा तुमको जग के संग तो युद्ध सारे किसके हैं! दुनिया सारी सुर विहीन है गीत सारे किसके हैं! कुछ साकार, कुछ विराट है यह नींद प्यारी किसकी है, पथ से आना,पथ से जाना यह चक्र पुराना किसका है! *** महेश रौतेला
यह जग कान्हा तेरा है तो ये महाभारत खूनी किसका है! * महेश रौतेला
प्रिय शहर की प्रिय बातें उगते सूरज सी लगती हैं। कहाँ गया मित्रों का झुंड जो प्रेम पत्र से दिखते थे! * महेश रौतेला
अहमदाबाद विमान दुर्घटना: क्षणभर जीना क्षण में मरना, गंतव्य चुना था भवितव्य विकट था। लोक यहीं है परलोक निकट है, क्षण की महिमा क्षण में संकट। सुख भी छूटा दुख भी छूटा, क्षण का उदभव क्षण में टूटा। किसको पूजा किसको छोड़ा, गंतव्य चुना है मंतव्य अटल है। क्षण में जीना क्षण में मरना दुर्घटना का संदेश क्रूर है। * महेश रौतेला
बड़ी विचित्र बात है 10 और बीस रुपये के नये नोट बैंक देने से मना कर रहे हैं लेकिन बाजार में इनकी गड्डियां ब्लैक में मिल रही हैं ( 200 से चार सौ रुपये ब्लैक में एक गड्डी)। सरकार और समाचार पत्र इस ओर ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं!!?
हो सके तो नदी को बहने दो सौ- दो सौ मील नहीं हजारों मील दौड़ने दो। पर्वत में वह गूँजेगी माटी को सींचेगी, कुछ साल नहीं युग-युग तक उसे निकलने दो। हो सके तो भारत की भाषा ले लो दस-बीस साल के लिए नहीं अविरल गंगा की धारा सी अमर रहने दो। हो सके तो वृक्षों को रहने दो दस-बीस साल नहीं जीवनपर्यन्त फलने दो। हो सके तो मिट्टी को देशज कर दो केवल नारों में नहीं मन में अवतरित होने दो। *** महेश रौतेला
चलो अब सितारों से मिलने चलें जीना भी आवश्यक मरना भी आवश्यक, चलो अब सितारों को छूकर देखें। सूरज की तरह निकलना सीखें धूप की तरह तपाना सीखें, चलो अब सितारों से मिलने चलें मन से मन को मिलाकर देखें। जो नहीं है उसे पुकार कर देखें जो है उसे खगाल कर देखें, जो प्यार की अनुभूति चले संग में उसे अन्त तक सहलाते चलें। *** महेश रौतेला
राष्ट्र यहीं, देश यहीं राष्ट्रीय प्रेम यहीं, प्रेम के पत्र यहीं अनन्त सशक्त शौर्य यहीं। धूल यहीं है,बूँद यहीं है अमृत यहीं, गरल यहीं, अणु यहीं, परमाणु यहीं अमृत-विष कुम्भ यहीं। छिड़ा हुआ युद्ध यहीं शत्रु का विनाश यहीं, भारत का वन्दन यहीं सनातन क्षितिज यहीं। ** महेश रौतेला
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