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हे भगवान तुम्हें रट लूँ तो हे भगवान तुम्हें रट लूँ तो रट कर तुम्हें रख लूँ तो, राम तुम्हीं, श्याम तुम्हीं महिमा थोड़ी भज लूँ तो। उदय यहीं, अस्त यहीं लक्ष्य कहीं रख लूँ तो, प्रकाश यहीं, अंधकार यहीं पथ का पता पूछूँ तो। प्राण यहीं, परिवार यहीं प्राणों का भय साकार यहीं, अभय यहीं, पथ प्रशस्थ यहीं वलिदानों का इतिहास यहीं। श्याम कहूँ या भगवान कहूँ प्रिय के अन्दर रह लूँ तो, धूप रहे या छाँव रहे प्रिय के अन्दर सज लूँ तो। नाम यहीं, विराट यहीं महाभारत के अध्याय यहीं, न्याय यहीं, अन्याय यहीं मानव का विस्तृत ज्ञान यहीं। **** * महेश रौतेला
पहाड़ियों से गुजरा कल अचानक खड़ा हो गया , बातों की हँसी खिलखिलाने लगी , ईश्वर का रचा भूख में आने लगा, टूटे सपने अचानक जुड़ने लगे , मैं याद से पूछने लगा अनजान पता साथ की महक । मेरे ईश्वर ने मुझे पहिचाना नहीं तो मैं अद्भुत बन खड़ा हो गया । *** महेश रौतेला २२.०७.२०१४
अहं मुझमें था अहं तुम में था, वह गला और प्यार हो गया। श्रीकृष्ण दिखे राधा के संग, बासुरी बनी सुरों की अंग।
आज मैंने ईश्वर को सत्य बोलते देखा आज मैंने ईश्वर को असत्य बोलते देखा पता नहीं कहाँ आपको पता है तो बताना। आज मैंने ईश्वर को घूस देते देखा, आज मैंने ईश्वर को घूस लेते देखा पता नहीं कहाँ आपको पता है तो बताना। आज मैंने ईश्वर को अहिंसा में देखा, आज मैंने ईश्वर को हिंसा में देखा, पता नहीं कहाँ आपको पता है तो बताना। आज मैंने ईश्वर को न्याय करते देखा, आज मैंने ईश्वर को अन्याय करते देखा, पता नहीं कहाँ आपको पता है तो बताना।
स्याही मेरी काली है कागज सब श्वेत-सफेद, सरस्वती मेरी जिह्वा पर भविष्य पर लिपटी लाली है। सुर में शब्द जाल है घर का नाम महान है, खेत-खलियानों पर बैठा मेरा अटल ध्यान है। युग पूरा विज्ञान है नक्षत्रों में विद्यमान है, झोला मेरे काँधे पर समय का पूर्ण ज्ञान है। स्कूल सार्थक सपना है जोड़-घटाना करता है, गुणा-भाग के भीतर रह हमें सुरक्षित रखता है। * महेश रौतेला
मैंने पूछ लिया पहाड़ की ऊँचाई आसमान का रंग समुद्र की कहानी फूल की सुन्दरता मौसम का नाम इतिहास की घटना वृक्ष की उम्र नदी के लम्बाई इस ओर आती हवा का मन रिश्तों में तथागत महाभारत का कारण रामायण का मूल, समझता रहा पृष्ठों को उलटता गया , पर फिर जो मौन आया उससे कह न पाया अगली मुलाकात की बात, समय के छूटे क्षण कहते हैं कुछ गुनगुना जाते हैं , प्यार का विषय जो टूटा है उसी को उठाते- उठाते निराकार हो चुका हूँ। ** महेश रौतेला ०८.०७.२०१५
कैसे कह दूँ प्यार नहीं था जीवन में संसार नहीं था, ऊँचे शिखर पर अँधकार नहीं था नदी किनारे मिलाप नहीं था। कैसे कह दूँ स्नेह नहीं था कदम-कदम पर आनन्द नहीं था, जगने में आह्वान नहीं था घर पर कोई मित्र नहीं था। कैसे कह दूँ स्कूल नहीं था झोले में ज्ञान नहीं था, पढ़ने में मन नहीं था मृत्यु में प्राण नहीं था। सबके ऊपर हाथ बड़ा था आशीषों का गाँव बसा था, प्यार कभी सहज नहीं था प्रयासों में खोट नहीं था। कैसे कह दूँ मौन नहीं था जिह्वा पर नाम नहीं था, कानों में गीत नहीं था आँखों में संसार नहीं था। * महेश रौतेला
मेरे पास तुम्हारा- प्यार लिखा रह जाता है गाँव उधर दिख जाता है शहर बना मिल जाता है, पत्र छपा रह जाता है पहाड़ खड़ा दिख जाता है देश छाँव सा चल पड़ता है ------ * महेश रौतेला
राम तुम्हारी पूजा में सत्य बहुत मिलता है, कृष्ण तुम्हारी पूजा में प्यार बहुत रहता है, समग्र देखो तो संघर्ष बहुत है सृष्टि तुम्हारी आस्था है। *** महेश रौतेला
सिक्किम: हवाई जहाज में बैठने पर राइट बंधुओं की याद आती है। आधुनिक जीवन का आश्चर्य है ये। जेट इंजन के जहाज आज भी चार ही देश बना पाते हैं। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और फ्रांस। सिक्किम जाने के लिए बागडोगरा तक हवाई जहाज से और गंगटोक तक कार से जाते हैं। गंगटोक सिक्किम की राजधानी है। तिस्ता नदी का उद्गम यहीं के ग्लेशियर से होता है। एक ट्रक के पीछे लिखा था," मैं उस देश का वासी हूँ जहाँ तिस्ता बहती है।" गंगा जैसा स्नेह झलकता है इस वाक्य में। तिस्ता की बाढ़ के अवशेष दिख रहे हैं,सड़क से। चार अक्टूबर २०२३ को उग्र रूप में लोगों ने उसे देखा था उसे। बहुत अधिक नुकसान हुआ था। "यह हिमालय क्यों उग्र हो रहा देखो मानव क्यों सो रहा है!" गंगटोक में ठहरने के अच्छे-अच्छे होटल हैं। खाना अच्छा है। प्राकृतिक दृश्य मनमोहक है। स्वच्छता उल्लेखनीय है। धुंध होने के कारण हिमालय के दर्शन नहीं हुये। पहाड़ी शहर में उतार-चढ़ाव दिखना स्वाभाविक हैं। ताशी व्यु पाइंट से कंचनजंगा साफ मौसम में दर्शनीय लगता है। बौद्ध विहार शान्ति के प्रतीक यहाँ देखे जा सकते हैं। गणेश जी का मन्दिर में जा आशीष लिये जा सकते हैं। छोटे-छोटे झरनों का अपना आकर्षण है। वहाँ की पारंपरिक वेशभूषा में फोटो खिंचाने का स्थान-स्थान पर व्यवस्था है। इसमें रोजगार भी है। एक ड्रेस के सौ रुपये हैं। चाँगु झील तक सड़क बीआरओ ने सड़क बनायी है। रास्ते में झरने मिलते हैं। ड्राइवर से पूछा डैनी सिक्किम का ही है क्या? उसने कहा हाँ," डैनी डेजोंगप्पा"। कल आप जहाँ जा रहे हैं वहीं का। मैंने कहा मुझे उसकी धुँध फिल्म याद है। उसमें नवीन निश्चल और जीनत अमान भी थे। झील तक जाने के लिए परमिट व्वस्था है। आक्सीजन भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था भी है, कार ड्राइवर ने बताया। सड़क बहुत अच्छी है। रास्ते में नाश्ते- चाय- भोजन की दुकानें हैं और गरम कपड़े खरीदे जा सकते हैं या किराये पर ले सकते हैं। झील १२४०० फीट की ऊँचाई पर है। यहाँ रज्जु मार्ग(रोप वे) है जो भारत में सबसे ऊँचे स्थान पर बना रज्जु मार्ग है। झील का रंग बदलता रहता है। धुंध से अभी सब ढका है। लगभग पच्चीस याक वहाँ पर हैं।पर्यटक इनमें बैठकर फोटो खिचवाते हैं या सवारी भी करते हैं। कुछ बगल में खड़े होकर फोटो खींचा कर संतुष्ट हो जाते हैं। याक में बैठ कर फोटो खींचाने के लिए सौ रुपये देने होते हैं। मैंने बैठ कर फोटो खींचाई और फिर बगल में खड़े होकर सबने। मैंने याक के मालिक को पचास रुपये और देने चाहे तो उसने नहीं लिये। कहा," बगल में खड़े होकर खींचाने का कुछ नहीं लेते हैं।" झील के किनारे कुछ दूर तक हम गये। "धुँध में दबी है झील कोहरा दौड़ रहा है किनारे ओझल, भारत का सबसे ऊँचाई पर टिका रज्जुमार्ग पहाड़ों से बातें कर रहा है, प्यार लिख जाता हूँ लौटकर,ध्यानमग्न झील सा रंग,झरनों सा बहाव अपने में पाता हूँ। --- क्रमशः ** महेश रौतेला
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