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महेश रौतेला

महेश रौतेला Matrubharti Verified

@maheshrautela
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बड़ी विचित्र बात है 10 और बीस रुपये के नये नोट बैंक देने से मना कर रहे हैं लेकिन बाजार में इनकी गड्डियां ब्लैक में मिल रही हैं ( 200 से चार सौ रुपये ब्लैक में एक गड्डी)। सरकार और समाचार पत्र इस ओर ध्यान क्यों
नहीं दे रहे हैं!!?

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हो सके तो नदी को बहने दो
सौ- दो सौ मील नहीं
हजारों मील दौड़ने दो।
पर्वत में वह गूँजेगी
माटी को सींचेगी,
कुछ साल नहीं
युग-युग तक उसे निकलने दो।
हो सके तो भारत की भाषा ले लो
दस-बीस साल के लिए नहीं
अविरल गंगा की धारा सी अमर रहने दो।
हो सके तो वृक्षों को रहने दो
दस-बीस साल नहीं
जीवनपर्यन्त फलने दो।
हो सके तो मिट्टी को देशज कर दो
केवल नारों में नहीं
मन में अवतरित होने दो।

*** महेश रौतेला

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चलो अब सितारों से मिलने चलें
जीना भी आवश्यक
मरना भी आवश्यक,
चलो अब सितारों को छूकर देखें।

सूरज की तरह निकलना सीखें
धूप की तरह तपाना सीखें,
चलो अब सितारों से मिलने चलें
मन से मन को मिलाकर देखें।

जो नहीं है उसे पुकार कर देखें
जो है उसे खगाल कर देखें,
जो प्यार की अनुभूति चले संग में
उसे अन्त तक सहलाते चलें।


*** महेश रौतेला

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राष्ट्र यहीं, देश यहीं
राष्ट्रीय प्रेम यहीं,
प्रेम के पत्र यहीं
अनन्त सशक्त शौर्य यहीं।

धूल यहीं है,बूँद यहीं है
अमृत यहीं, गरल यहीं,
अणु यहीं, परमाणु यहीं
अमृत-विष कुम्भ यहीं।

छिड़ा हुआ युद्ध यहीं
शत्रु का विनाश यहीं,
भारत का वन्दन यहीं
सनातन क्षितिज यहीं।

** महेश रौतेला

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मैं खड़ा इस पार रहा हूँ
सुख मेरा उस पार रहा है,
उस शिखर पर जो दिखा है
वह मनुज का अवतार रहा है।

पत्रों में प्यार भरा है
उनको यह स्वीकार नहीं है,
उसकी राह अलग-थलग है
मेरी राह बहुत सरल है।

मेरा राष्ट्र सतत व्यापक है
शक्ति के आगे शान्ति सबल है,
नतमस्तक जब होना ही है
हल्लागुल्ला क्यों करना है!

पथ की उर्जा बटोर रहा हूँ
राम-रावण को देख रहा हूँ,
जिसके मन में दुष्कर्म खड़े हैं
उसका विनाश देख रहा हूँ।


* महेश रौतेला

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इतिहास सुनो जो मरा नहीं है:

इतिहास सुनो जो मरा नहीं है
पावन धरा से मिटा नहीं है,
बसंत जब-जब आया है
वह सर्वत्र सगुण बन छाया है।

एक मनुज था, एक धरा थी
एक ही सूरज सबका था,
नक्षत्रों का मोह नहीं था
सौन्दर्य सर्वत्र एक ही था।

धर्म एक था,सत्य एक था
चलना सबका सरल- सहज था,
निर्दोषों के भीतर बैठा
आतंक का नाम नहीं था।

गुण-अवगुण तब तनते थे
सुचिता का ध्यान बहुत था,
शस्त्रों के आगे निडर
न्याय का आकार वृहत था।

यह विज्ञान का अथक परिश्रम
प्रयोग से दुरुपयोग हुआ,
कभी वायुयान तो कभी रायफल
आतंकी का हथियार हुआ।

इतिहास सुनो जहाँ हरिश्चंद्र हुआ
श्रीराम-कृष्ण का संसार रहा,
मिट्टी जहाँ शुद्ध प्यार हुयी
शैतानों का विनाश हुआ।

रण जो है, लड़ना होगा
धनुर्धरों को उठना होगा,
विराट व्यवस्था के संचालक का
ध्यान सदा रखना होगा।
***
*** महेश रौतेला

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जो नहीं होना चाहिए था
वह हुआ,
महाभारत में जो अधर्म के साथ था
वह मारा गया
लेकिन अश्वत्थामा घाव लिये अमर हो गया,
जो धर्म के साथ था
वह भी मारा गया,
लेकिन युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गये।
ग्यारह अक्षौहिणी सेना अधर्म के साथ!
सात अक्षौहिणी सेना धर्म के साथ!
गीता के संदेश के बाद
ईश्वर के आँखों के सामने
रक्त गरमाया और लहू बहा,
अंधा राजा निर्णायक नहीं था
रानी आँखों पर पट्टी बाँध
श्रीकृष्ण को शाप दे गयी,
जिसे भगवान ने बचाया
उसे तक्षक साँप डस गया,
बाघ से पूछा-
उसने हिरन को क्यों मारा?
तो उसने उत्तर नहीं दिया!


*** महेश रौतेला

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बिना सुबह के
कहाँ उठूँगा,
बिना शाम के
कहाँ बैठूँगा!
बिना रात के
कहाँ सोऊँगा,
बिना दिन के
कहाँ चलूँगा!

*** महेश रौतेला

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नीलाम करने वाला आदमी है
ठेकेदार भी आदमी है,
काटने वाला भी आदमी है
चीरने वाला भी आदमी है,
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है
जंगल जस का तस असहाय है।
सरकार में आदमी है
सड़क पर आदमी है,
पत्थरबाज भी आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
गाली देने वाला आदमी है
सुनने वाला आदमी है,
धर्मभेद में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
घूस लेने में आदमी है
घूस देने में आदमी है,
सच-झूठ में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
ठगने में आदमी है
ठगाजाने वाला आदमी है,
आन्दोलन में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
***
*** महेश रौतेला

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मैंने सोचा
ऊपर सुख है
फिर सोचा नीचे सुख है।
मैंने सोचा
शहर में सुख है
फिर सोचा गाँव में सुख है।
कभी सोचा इस मोड़ पर सुख है
कभी सोचा उस क्षण में सुख है,
गति में देखा ,मति में देखा
मैंने सोचा धन में सुख है
फिर पाया मन में सुख है।

*** महेश रौतेला

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