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महेश रौतेला

महेश रौतेला Matrubharti Verified

@maheshrautela
(469)

बिना सुबह के
कहाँ उठूँगा,
बिना शाम के
कहाँ बैठूँगा!
बिना रात के
कहाँ सोऊँगा,
बिना दिन के
कहाँ चलूँगा!

*** महेश रौतेला

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नीलाम करने वाला आदमी है
ठेकेदार भी आदमी है,
काटने वाला भी आदमी है
चीरने वाला भी आदमी है,
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है
जंगल जस का तस असहाय है।
सरकार में आदमी है
सड़क पर आदमी है,
पत्थरबाज भी आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
गाली देने वाला आदमी है
सुनने वाला आदमी है,
धर्मभेद में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
घूस लेने में आदमी है
घूस देने में आदमी है,
सच-झूठ में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
ठगने में आदमी है
ठगाजाने वाला आदमी है,
आन्दोलन में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
***
*** महेश रौतेला

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मैंने सोचा
ऊपर सुख है
फिर सोचा नीचे सुख है।
मैंने सोचा
शहर में सुख है
फिर सोचा गाँव में सुख है।
कभी सोचा इस मोड़ पर सुख है
कभी सोचा उस क्षण में सुख है,
गति में देखा ,मति में देखा
मैंने सोचा धन में सुख है
फिर पाया मन में सुख है।

*** महेश रौतेला

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हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है:


श्रद्धांजलि पर मरे व्यक्ति को कहा जाता है-
अच्छा, ईमानदार, स्नेहिल,शिष्ट
उदार, पूर्ण, उज्जवल,कर्तव्यनिष्ठ।
जब जाता हूँ-
इस और उस विभाग में,
कपकपी सी आती है
सुर अटक सा जाता है,
वचन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं।
किसे कहूँ ईमानदार
सूझता नहीं,
किसे कहूँ अच्छा,
मुँह खुलता नहीं।
पर हर श्रद्धांजलि में
हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है।
***
*** महेश रौतेला

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बुरांश:

इच्छा थी,ईर्ष्या थी,स्पर्धा थी
बीच में बुरांश खिला था,
प्यार था,प्रयास था, प्रभाव था
साथ में बुरांश मिला था।
हमारे जंगलों में पला-बढ़ा
जंगल का उबाल था,
जंगल पर रोने के लिए
यह पहाड़ के साथ था।
उसने जब कहा "बुरांश"
मन लाल हो गया था,
स्पर्श था,साथ था,स्नेह था
पास में बुरांश खिला था।

*** महेश रौतेला

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हम लड़ना जानते हैं

हम लड़ना जानते हैं
धरती से, पेड़ों से,
पहाड़ों से, पर्यावरण से,
नदों से, नदियों से।
युद्ध करना जानते हैं
अच्छे विचारों से,
सभ्यताओं से, सभ्यों से,
संस्कृतियों की परतों से ।
मल्लयुद्ध करते हैं
अन्दर की आत्मा से,
सत्य के प्रश्नों से,
सौन्दर्य की सरलता से ।
हम स्वभाव से आतंक फैला,
बुद्ध को जड़ बनाते हैं।
हमारी क्रान्तियों में,
ठहराव है, बिखराव है।
हम झगड़ना जानते हैं,
एक डर के साथ
एक महाभारत चाहते हैं,
जहाँ धर्म भी हो, अधर्म भी हो।
**********
** महेश रौतेला
२०१५

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पेड़ कट रहे थे
महसूस करने वाले रो रहे थे,
वृक्षारोपण हो रहा था
देखने वाले खुश थे,
पेड़ सूख रहे थे
पीड़ा मिट्टी को हो रही थी।


*** महेश रौतेला

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मुझे अपने गाँव से प्यार है
उसकी पगडंडियां टूटी हैं,
आधे खेत बंजर हो चुके हैं
गूल जहाँ-तहाँ भटक चुकी है,
नदी का बहाव अटका सा है
बादल इस साल फिर फटा है,
विद्यालय सूना-सूना है
पढ़ाई अस्त-व्यस्त है,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
शराब की दुकान खुल चुकी है
बिजली जगमगा रही है,
लड़ाई-झगड़े होते हैं
झूठी गपसप चलती है,
पर शान्ति का संदेश लिखे मिलते हैं
सत्य का आकांक्षा बनी हुई है,
क्योंकि "सत्यमेव जयते" वृक्ष पर
लिखा है।
पर वहाँ जा नहीं पाता
लम्बी चढ़ाई चढ़ नहीं पाता,
उम्र से लड़ नहीं पाता
ऊँचाई को बस देखभर लेता हूँ,
फिर भी प्यार अपनी जगह है।
मुझे अपने गाँव से बहुत प्यार है
वह पहले जैसा नहीं दिखता
जो भी चित्र आता है ,अलग लगता है
मेरे गाँव को कुछ तो वरदान है,
कि मैं उसे बूढ़ा नहीं कह पाता हूँ।
चूल्हे की आग जो तापी
उसकी आँच अब भी नरम है,
रात को देखी चाँदनी रात
अब भी याद है।
बात सच है कि प्यार गाँव से
है,
अस्सी साल की बुआ की झुर्रियों से जो प्यार झलकता था,
उससे गाँव को जाना था।
अब बातें बड़ी हो गयी हैं
पहले झंडे लेकर दौड़ते थे,
अब प्रजातंत्र में चुनाव लड़ते हैं,
साफ-साफ दिखता है
मुझे अपने गाँव से प्यार है।
प्यार भूला भी जा सकता है
वर्षों बाद देखा था
जब चारों ओर सन्नाटा था,
गाँव में इका दुक्का कोई रहता था,
फिर भी मेरा प्यार जिन्दा था।
***
२०१८

***महेश रौतेला

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तुम मेरी पीड़ा को जान सको तो जानो ईश्वर,
यह पथ टूटा,वह पथ टूटा
निर्माण यहाँ होना भगवन।
यह घर छूटा वह घर छूटा
दूर आकर लौटा हूँ ईश्वर,
मैंने देखा गगन तुम्हारा
किस सीमा पर रहना भगवन!
खिले वृक्ष पर पुष्प बहुत
सुगन्ध कहाँ तक आती भगवन!
इस दुनिया में बहुत कष्ट हैं
कौन कहाँ तक सहता भगवन!
मन में कौन कब तक बैठा
इसका ब्यौरा लिख दूँ भगवन,
यहाँ श्मशान, वहाँ श्मशान
नव जीवन आना है भगवन।
***

** महेश रौतेला

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होली:

मन रंगा हो,तन रंगा हो
हमारा सम्पूर्ण साथ रंगा हो,
गोकुल रंगा हो,कान्हा रंगे हों
अयोध्या रंगी हो,राम रंगे हों
हमारा सम्पूर्ण भारतवर्ष रंगा हो।
राधा संग श्रीकृष्ण रंगे हों
गाँव रंगे हों, नगर रंगे हों,
धरा रंगी हो,धड़कन रंगी हो
हमारे प्यार का दृश्य रंगा हो।

* महेश रौतेला

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