ओएनजीसी में कार्य किया। कुमायूँ विश्वविद्यालय नैनीताल(डीएसबी,महाविद्यालय नैनीताल) से शिक्षा प्राप्त की(बी.एसी. और एम. एसी.(रसायन विज्ञान)।विद्यालय शिक्षा-खजुरानी,जालली,जौरासी और राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा में।"दिनमान","कादम्बिनी" गुजरात वैभव,राष्ट्र वीणा(गुजरात) तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। 7 काव्य संग्रह प्रकाशित। अमेजॉन पर २५ प्रकाशन। धनबाद,कलकत्ता,शिवसागर,अहमदाबाद,जोरहट में कार्य किया।

यह भी मेरा, वह भी मेरा
सोच रहा था,
अब समझ गया हूँ।
यह दिन भी मेरा, वह रात भी मेरी
सोच रहा था,
अब समझ गया हूँ।
जल भी मेरा, थल भी मेरा
सोच रहा था,
अब समझ गया हूँ।
सुख भी मेरा,दुख भी मेरा
सोच रहा था,
अब समझ गया हूँ।


* महेश रौतेला

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मैं ढूंढ़ता रहा तुम्हारे कदम
जो कहीं मिले नहीं,
खोजता रहा यादें
जो कभी सोयी नहीं,
देखता रहा समय
जो कभी रुका नहीं,
पूछता रहा पता
जो कहीं लिखा नहीं गया,
सोचता रहा नाम
जिसे किसी ने माना नहीं,
कहता रहा कहानी
जो कभी सुनी नहीं गयी,
गिनता रहा आँसू
जो कभी गिरे नहीं,
ढूंढ़ता रहा तुम्हारे कदम
जो कहीं मिले नहीं।

*महेश रौतेला
२७.०९.१५

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लो,मेरा मन ले लो
तुम्हें लौटाना है
मेरे प्यार की मुस्कराहट,
पगडण्डियों की सुगबुगाहट,
सहेलियों की फुसफुसाहट,
हवाओं की तनातनी
जीवन की उठा-पटक
क्षण-क्षण का आलोक
आँखों की मधुरता
बहाव की सरसता
स्नेह की नन्हीं लम्बाई
गीतों का सुर -साथ
बेजोड़ ज्ञान-विज्ञान ।
तुम्हें उठाने हैं
देश की ज्वलन्त समस्याएं
शब्दों पर सवाल,
लोक-परलोक की बातें
इतिहास की गूँजें।
लो,मेरा मन ले लो
तुम्हें उत्तर देना है।


*महेश रौतेला

सितम्बर २०१५

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निर्मल,शीतल शिखर हमारे
जड़-चेतन का मिलन भव्य है,
नक्षत्रों की बारात सजी है
यह दर्शन सहज हुआ दिव्य है।

यह उत्तर सब युग का है
पगडण्डी से दिखा सत्य है,
मानव की कठिनाई में
जड़ भी चेतन हो जाता है।

शिव ने तो लिखा कैलाश है
मन का वहाँ दिखा वास है,
टूटी धरती, बिखरा मानव
यहाँ सबका क्षणिक निवास है।

तू उठ तुझे कथा सुनाता
मानव की अनमोल बात है,
अपनी मुक्ति अपने हाथ है
किसको किसकी याद बात है!

* महेश रौतेला

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सोचते हैं
कल फिर सुबह होगी
शिक्षक और शिक्षा की।
हमारी भेंट पुनः होगी
हम पढ़-लिख बड़े हो जायेंगे,
शिक्षा और शिक्षक हमारे निकट आ
भगीरथ प्रयास से
ज्ञान की गंगा को पृथ्वी पर अक्षुण्ण रखेंगे।
समय हमारी चाह बन
नश्वरता को निकट नहीं आने देगा,
शिक्षक हमें
बीज से वृक्ष बना देंगे।
सोचते हैं
प्रदूषण की व्यापकता अस्त हो,
शिक्षा ऐसा अमृत हो
कि हमारा होना सार्थक हो।


* महेश रौतेला

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क्षणभर बह जाऊँ ओ नदी
पलभर उछल जाऊँ ओ जलधि,
कुछ देर चढ़ जाऊँ ओ पहाड़
मनभर ठहरा रहूँ ओ पृथ्वी।

कुछ पल देखता रहूँ ओ नक्षत्र
आवागमन चलता रहे ओ प्राण,
सुखमय मौन धरूँ ओ जीवन
बातों में रिटता रहूँ ओ मनुष्य।

छाँव बैठता रहूँ ओ वृक्ष
प्रार्थना करता रहूँ ओ शान्ति,
सत्य पर टिका करूँ ओ चेतना
सुरसुर चलता रहूँ ओ हवा।

* महेश रौतेला

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तेरे शब्दों से बँधा हुआ
सूक्ष्म तेरा साथ है,
यह नगर का रास्ता
तेरे बिना बिरान है।

तू धूप अपनी दे जरा
मैं निकट तेरे हूँ खड़ा,
पता अपना कह दे जरा
मैं उत्सुक हूँ खड़ा।

राह तेरे साथ है
मैं कदम लिए आ रहा,
शक्ति तुझमें है पड़ी
मैं दृष्टि पाने जा रहा।

* महेश रौतेला

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बहुत बार बहुत अच्छे लोग दिखते हैं
राह के करीब, मन के पास
शिखरों पर ,गहराइयों में
टिमटिमाते हुए,इतिहास में,
बहुत बार बहुत अच्छे लोग मिलते हैं,
गाँव के बीचों बीच
शहरों के इर्द-गिर्द,
हवा की तरह चलते
धूप की तरह बिछे
जल की तरह बहते
वृक्ष की तरह खड़े,
बहुत बार बहुत अच्छे लोग मिलते हैं।

*महेश रौतेला

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एक शाम ने मुझे चुन लिया था
प्यार का एक पत्र मुझे दे दिया था,
लिखे थे शब्द जो, वे गुनगुना रहे थे
जीने का अद्भुत मिजाज दिख रहा था ।
आसमान का बदन दूर दिख रहा था
मेरे हाथों में हाथ आ गया था ,
जिस शाम ने मुझे चुना था
उसी शाम में दिया जल रहा था ।
जो लोग मिले थे , स्वप्न से लगे थे,
जो दिन मिले थे , उम्र बन गए थे ,
जो आकांक्षा थी, वह रूकी हुई थी,
मेरी शाम पर , शहर बन गए थे।
जुड़े हुए हाथों में , बिछुड़े हुए थे ,
सुरीले स्वरों से ,कुछ गुनगुना रहे थे,
मेरी बातों को ,कोई सुन रहा था ,
कोई अनसुना कर ,कहीं चल रहा था।
ऐसी शाम भी थी जो शून्य हो गयी थी
ऐसा शब्द भी था,जोअमर बन गया था
मेरी शाम पर , कई पहाड़ बन गए थे
मेरी शाम से , कई गाँव जुड़ गए थे ।

* महेश रौतेला

१४.०८.२०१४

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ये स्वतंत्रता, ये प्यार
हमें मिलते रहें,
यह गंगा,यह कावेरी,
यह ब्रह्मपुत्र, यह गोदावरी,
हमें धोते रहें ।
यह भाषा, ये गीत
हमें जगाते रहें,
यह त्याग, यह बलिदान,
हमें उठाते रहें,
ये देश, ये कर्म
हमें बुलाते रहें ।

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*महेश रौतेला
१४.०८.२०११

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