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Dr.Bharat Bhalani

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@drpravinabhalanigmai


*जीवन मंत्र डेस्क*

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी जीवन के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं। एक प्रसंग के अनुसार एक शिष्य ने परमहंसजी से पूछा कि आम लोग तो सभी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन संत-संन्यासियों के लिए इतने कठोर नियम क्यों बनाए गए हैं?

परमहंसजी ने जवाब दिया कि आम लोग तो समाज में रहकर अनुशासन के साथ सभी काम करने के लिए आजाद हैं, लेकिन संन्यासी कितना भी तपस्वी क्यों न हो, उसे स्त्रियों से दूर रहना चाहिए, धन का संग्रह नहीं करना चाहिए, सुख-सुविधा पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, संत को क्रोध से बचना चाहिए।

शिष्य ने पूछा कि संन्यासियों के लिए ही इतने कठिन नियम क्यों बनाए गए हैं? जबकि संन्यासी भी इसी समाज का हिस्सा है, वह भी इंसान ही है।

परमहंसजी ने कहा कि त्याग की शिक्षा एक संन्यासी नहीं देगा तो और कौन देगा, संन्यासी अपने ज्ञान और कर्म से समाज को श्रेष्ठ जीवन जीने की सीख देता है। संन्यासी अपने आचरण से समाज को बताता है कि इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो सकती हैं, इसीलिए किसी चीज का मोह नहीं रखना चाहिए, त्याग की भावना रखेंगे तो कभी दुखी नहीं होना पड़ेगा। भगवान की भक्ति में मन लगा रहेगा।

*प्रसंग की सीख* इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि एक संन्यासी को कभी अधर्म का साथ नहीं देना चाहिए। कभी ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिए, जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। संन्यासी को धर्म के अनुसार ही आचरण करना चाहिए, ताकि आम लोग उनसे सही काम करने की सीख ले सके।

*सुप्रभात*
*आपका दिन मंगलमय हो....?*

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स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी जीवन के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं। एक प्रसंग के अनुसार एक शिष्य ने परमहंसजी से पूछा कि आम लोग तो सभी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन संत-संन्यासियों के लिए इतने कठोर नियम क्यों बनाए गए हैं?

परमहंसजी ने जवाब दिया कि आम लोग तो समाज में रहकर अनुशासन के साथ सभी काम करने के लिए आजाद हैं, लेकिन संन्यासी कितना भी तपस्वी क्यों न हो, उसे स्त्रियों से दूर रहना चाहिए, धन का संग्रह नहीं करना चाहिए, सुख-सुविधा पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, संत को क्रोध से बचना चाहिए।

शिष्य ने पूछा कि संन्यासियों के लिए ही इतने कठिन नियम क्यों बनाए गए हैं? जबकि संन्यासी भी इसी समाज का हिस्सा है, वह भी इंसान ही है।

परमहंसजी ने कहा कि त्याग की शिक्षा एक संन्यासी नहीं देगा तो और कौन देगा, संन्यासी अपने ज्ञान और कर्म से समाज को श्रेष्ठ जीवन जीने की सीख देता है। संन्यासी अपने आचरण से समाज को बताता है कि इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो सकती हैं, इसीलिए किसी चीज का मोह नहीं रखना चाहिए, त्याग की भावना रखेंगे तो कभी दुखी नहीं होना पड़ेगा। भगवान की भक्ति में मन लगा रहेगा।

*प्रसंग की सीख* इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि एक संन्यासी को कभी अधर्म का साथ नहीं देना चाहिए। कभी ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिए, जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। संन्यासी को धर्म के अनुसार ही आचरण करना चाहिए, ताकि आम लोग उनसे सही काम करने की सीख ले सके।

*सुप्रभात*
*आपका दिन मंगलमय हो....?*

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GM

મંજુર છે
મને તમારો વૈશાખ-જેઠનો
ધગધગતો તાપ;
પણ એક શર્ત,
પછી તમારા સ્નેહનો
અષાઢી વરસાદ હોવો જોઇએ.

hi

મોટા થયા પછી હાસ્ય માં થોડો ફરક આવે છે,
પહેલાં આવતું હતું હવે લાવવું પડે છે...

અમુક રાતે તમને ઊંઘ નથી આવતી
અને અમુક રાતે તમે સુવા નથી માંગતા,
વેદના અને આનંદ વચ્ચે આ ફેર છે...

પ્રેમ અને આંસુની ઓળખ ભલે અલગ અલગ હોય,
પણ બન્નેનું ગોત્ર એક જ છે હ્રદય...

*મીલાવી જામ માં અમે જીંદગી પી ગયા,*
*મદીરા તો શું કોઇની કમી પણ પી ગયા,*
*રડાવી જાય છે અમને બીજા નાં દર્દો,*
*બાકી અમારા દુ:ખો તો અમે હસી ને પી ગયા...*

મિત્રતા સાણસીની જેમ નિભાવવી જોઇએ,
પાત્ર ગમે તેટલું ગરમ જણાય પણ
એક વખત પકડ્યા પછી છોડવાનું ન હોય...

મન થી ભાંગી પડેલા ને મિત્રો જ સાચવી શકે છે,
સંબંધીઓ તો ખાલી વ્યવહાર સાચવે છે...

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बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध को तथागत भी कहा जाता है। उनके प्रवचनों में और प्रसंगों में जीवन को सुखी बनाने के सूत्र छिपे होते हैं। एक प्रसंग के अनुसार बुद्ध की सभा में अमीर-गरीब सभी तरह के लोग आते थे।

एक दिन उनके प्रवचन में एक सेठ पहुंचा। सेठ को बुद्ध की बातों ने बहुत प्रभावित किया। उसने उन्हें अपने घर खाने पर आमंत्रित किया। बुद्ध ने सेठ की बात मान ली। शिष्यों ने सेठ से कहा कि ध्यान रहे तथागत सिर्फ ताजा भोजन ही ग्रहण करते हैं। सेठ ने कहा कि ठीक है।

अगले दिन बुद्ध उस सेठ के यहां खाना खाने पहुंचे। सेठ ने तथागत को बताया कि वह जन्म से ही अमीर है। उसके पूर्वजों ने इतना धन कमाया कि आज उसे कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती है। आने वाली सात पीढ़ियां भी आराम से रह सकेंगी। कुछ देर बाद बुद्ध के लिए भोजन परोसा गया।

बुद्ध के सामने खाना आते ही उन्होंने सेठ से कहा कि मैं ये भोजन ग्रहण नहीं कर सकता। मेरे शिष्यों ने आपको बताया था कि मैं सिर्फ ताजा भोजन ग्रहण करता हूं। सेठ ने कहा कि तथागत ये ताजा भोजन ही है। तब बुद्ध ने कहा कि नहीं ये भोजन तुम्हारे पूर्वजों की कमाई से बना है। इसके लिए तुमने कोई श्रम नहीं किया है। जिस तुम अपनी मेहनत से धन कमाकर मुझे खाना खिलाओगे, मैं खुशी-खुशी वह खाना ग्रहण कर लूंगा।

*कथा की सीख* इस कथा की सीख यही है कि व्यक्ति को दूसरों के कमाए धन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। धन कमाने के लिए खुद मेहनत करनी चाहिए। तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है।

*सुप्रभात*
*आपका दिन मंगलमय हो....?*

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જાપાનના એક ડોક્ટર છે...
તેમનું નામ ડૉ. *શીગૈકી હિનોહરા..*

તેઓ *૧૦૨ વર્ષના* થયા તેમણે *સુખ* અને *સ્વાસ્થ્ય* વિશે પંદર *પુસ્તકો* લખ્યાં છે...

*૧૦૧ વર્ષના* થયા ત્યારે *"લીવિંગ લોંગ, લીવિંગ ગૂડ"* વિશે એક *ઇન્ટરવ્યૂમાં* કહ્યું કે.. *એનર્જી* માત્ર સારું *ખાવાથી* કે પૂરતી *ઊંઘ* કરવાથી નથી *આવતી* પણ ખરી *એનર્જી* માત્ર *સારું ફિલ* કરવાથી આવે છે *મજામાં* રહેવાથી આવે છે...?

તેમણે *કહ્યું* કે જિંદગીને *છુટ્ટી* મૂકી દો...✋

*જમવા* અને *સૂવા*
માટે બહુ *નિયમો* ન બનાવો...☝

*બાળકો* આવા કોઈ *નિયમોને* અનુસરતાં નથી છતા એ *મસ્ત,ખુશ* અને *તંદુરસ્ત* રહે છે *કારણ* કે એ *દરેક* વસ્તુનો *આનંદ* ઉઠાવે છે.....?

તમે *મજામાં* રહેશો તો *સાજા* રહેશો...?

મનને *મજબૂત* રાખો,..?

નેગેટિવ *વિચારો* અને *નકારાત્મક* માનસિકતા જ માણસને *બીમાર* પાડે છે કે *દુઃખી* રાખે છે.....☺

શરીર દરેક *પરિસ્થિતિમાં* અનુકૂળ થતું હોય છે માણસ મનથી *પરિસ્થિતિને* *સ્વીકારતો* નથી એટલે તેને *આકરું* લાગે છે *...✍*

*Think Positive...*
Enjoy Every Moment Of Life...?? ???
Good morning

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